भारत के प्रधान मंत्रियों की सूची

भारत के अब तक सभी प्रधानमंत्री कार्यकाल सहित (विकिपीडिया लेख सूची)

भारत के प्रधानमन्त्री भारत गणतन्त्र की सरकार के मुखिया हैं।भारत के प्रधानमन्त्री, का पद, भारत के शासनप्रमुख (शासनाध्यक्ष) का पद है। संविधान के अनुसार, वह भारत सरकार के मुखिया, भारत के राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार, मन्त्रिपरिषद का मुखिया, तथा लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का नेतृत्व करता है। भारत की राजनैतिक प्रणाली में, प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल में का वरिष्ठ सदस्य होता है।

नरेन्द्र मोदी, भारत के वर्तमान (14वें) प्रधानमन्त्री, 26 मई 2014 से

भारत के प्रधानमंत्रियों की सूची

कुंजी:भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसजनता पार्टीजनता दलभारतीय जनता पार्टी
सं.नामकार्यकाल आरंभकार्यकाल समाप्तराजनैतिक दलजन्म स्थानशिक्षाचुनाव क्षेत्र
01जवाहरलाल नेहरू15 अगस्त 194727 मई 1964भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसइलाहाबाद, उत्तर प्रदेशहैरो स्कूल;
ट्रीनीटी कॉलेज, कैम्ब्रीज
इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश;
फूलपूर (इलाहाबाद),उत्तर प्रदेश
-गुलजारीलाल नंदा*27 मई 19649 जून 1964भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससियालकोट, पंजाबइलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबादमुंबई, महाराष्ट्र
02लालबहादुर शास्त्री9 जून 196411 जनवरी 1966भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसमुगलसराय, उत्तर प्रदेशकाशी विद्यापीठ, वाराणसीइलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
-गुलजारीलाल नंदा*11 जनवरी 196624 जनवरी 1966भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससियालकोट, पंजाबइलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबादमुंबई, महाराष्ट्र
03इन्दिरा गान्धी24 जनवरी 196624 मार्च 1977भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसइलाहाबाद, उत्तर प्रदेशशांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल;
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
रायबरेली, उत्तर प्रदेश;
मेडक, आंध्र प्रदेश
04मोरारजी देसाई24 मार्च 197728 जुलाई 1979जनता पार्टीभदेली, गुजरात(अज्ञात)सूरत, गुजरात
05चौधरी चरण सिंह28 जुलाई 197914 जनवरी 1980जनता पार्टीमेरठ, उत्तर प्रदेशआगरा विश्वविद्यालय, आगरा [1]बागपत, उत्तर प्रदेश
(03)इन्दिरा गान्धी14 जनवरी 198031 अक्टूबर 1984भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसइलाहाबाद, उत्तर प्रदेशशांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल;
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
रायबरेली, उत्तर प्रदेश;
मेडक, आंध्र प्रदेश
06राजीव गान्धी31 अक्टूबर 19842 दिसम्बर 1989भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसमुंबई, महाराष्ट्रइलाहाबाद;
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
अमेठी, उत्तर प्रदेश
07विश्वनाथ प्रताप सिंह2 दिसम्बर 198910 नवंबर 1990जनता दलइलाहाबाद, उत्तर प्रदेशइलाहाबाद विश्वविद्यालय;
पुणे विश्वविद्यालय
फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
08चंद्रशेखर10 नवंबर 199021 जून 1991जनता दलइब्राहिमपट्टी, बलिया, उत्तर प्रदेशइलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबादबलिया, उत्तर प्रदेश
09नरसिंह राव21 जून 199116 मई 1996भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकरीमनगर, आंध्र प्रदेशओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद;
मुंबई विश्वविद्यालय;
नागपुर विश्वविद्यालय
नंडयाल, आंध्र प्रदेश
10अटल बिहारी वाजपेयी16 मई 19961 जून 1996भारतीय जनता पार्टीग्वालियर, मध्य प्रदेशलक्ष्मीबाई कॉलेज, ग्वालियर;
डीएवी कॉलेज, कानपुर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
11एच डी देवगौड़ा1 जून 199621 अप्रैल 1997जनता दलहरदानाहल्ली, कर्नाटकहसन, कर्नाटककनकपुरा; हसन, कर्नाटक
12इंद्रकुमार गुज़राल21 अप्रैल 199719 मार्च 1998जनता दलझेलम (अब पाकिस्तान में)डीएवी कॉलेज, हैली कामर्स कॉलेज, लाहौरजलंधर, पंजाब
(10)अटल बिहारी वाजपेयी19 मार्च 199819 अक्टूबर 1999भारतीय जनता पार्टीग्वालियर, मध्य प्रदेशलक्ष्मीबाई कॉलेज, ग्वालियर;
डीएवी कॉलेज, कानपुर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
19 अक्टूबर 199922 मई 2004
13मनमोहन सिंह22 मई 200422 मई 2009भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसपंजाब प्रान्त के एक गाँव (अब पाकिस्तान में)पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ;
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय;
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय
असम राज्यसभा से
22 मई 200917 मई 2014
14नरेन्द्र मोदी**26 मई 201430 मई 2019भारतीय जनता पार्टीवड़नगर, गुजरात, भारत(अज्ञात)वाराणसी, उत्तर प्रदेश,
वडोदरा, गुजरात
30 मई 2019पदस्थवाराणसी, उत्तर प्रदेश

* कार्यकारी
** कार्यकाल जारी
*** भारतीय नैशनल कांग्रेस बन गयी कांग्रेस आई (आई, इंदिरा के लिए)

कालखण्ड-अनुसार प्रधानमंत्रीपद का इतिहास

समयरेखा

नरेन्द्र मोदीमनमोहन सिंहअटल बिहारी वाजपेयीइन्द्र कुमार गुजरालऍच॰ डी॰ देवगौड़ाअटल बिहारी वाजपेयीपी॰ वी॰ नरसिम्हा रावचन्द्र शेखरविश्वनाथ प्रताप सिंहराजीव गांधीइन्दिरा गांधीचरण सिंहमोरारजी देसाईइन्दिरा गांधीगुल्ज़ारीलाल नन्दालाल बहादुर शास्त्रीगुल्ज़ारीलाल नन्दाजवाहरलाल नेहरू

१९४७-१९८०

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू(दाए) और अगले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री(बाएँ), के० कामराज(मध्य) के साथ, १९५५ से पूर्व की तस्वीर
इंदिरा गांधी, १९७७

वर्ष १९४७ से २०१७ तक, प्रधानमन्त्री के इस पद पर कुल १४ पदाधिकारी अपनी सेवा दे चुके हैं। और यदि गुलज़ारीलाल नन्दा को भी गिनती में शामिल किया जाए, [2] जो कि दो बार कार्यवाही प्रधानमन्त्री के रूप में अल्पकाल हेतु अपनी सेवा दे चुके हैं, तो यह आंकड़ा १५ तक पहुँचता है। १९४७ के बाद के, कुछ दशकों तक. भारतीय राजनैतिक मानचित्र पर, कांग्रेस पार्टी का लगभग चुनौती विहीन, निरंतर राज रहा। इस काल के दौरान भारत ने, कांग्रेस के नेतृत्व में कई मज़बूत सरकारों का राज देखा, जिनका नेतृत्व कई शक्तिशाली व्यक्तित्व के प्रधान-मन्त्री-गणों ने किया। भारत के पहले प्रधानमन्त्री, जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने १५ अगस्त १९४७ में, भारत के स्वाधीनता समारोह के साथ, अपने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्होंने अविरल १७ वर्षों तक भारत को अपनी सेवायें दी। वे ३ पूर्ण और एक खण्डित कार्यकाल तक इस पद पर विराजमान रहे। उनका कार्यकाल, मई १९६४ में उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। वे अब तक के, सबसे लंबे समय तक शासन संभालने वाले प्रधानमन्त्री हैं। [3] जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, उन्हीके पार्टी के, लाल बहादुर शास्त्री इस पद पर विद्यमान हुए, जिनके लघुकालिक १९-महीने के कार्यकाल में भारत ने वर्ष १९६५ का कश्मीर युद्ध और उसमे पाकिस्तान की पराजय देखी। युद्ध के पश्चात्, ताशकन्द के शांति-समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, ताशकन्द में ही उनकी अकारण व अकस्मात् मृत्यु हो गयी।[4][5][6] शास्त्री के बाद, प्रधानमन्त्री पद पर, ज ला नेहरू की पुत्री, इंदिरा गांधी इस पद पर, देश की पहली महिला प्रधानमन्त्री के तौर पर निर्वाचित हुईं। इंदिरा के पहले दो कार्यकाल ११ वर्षों तक चले, जिसमें उन्होंने, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और पूर्व राजपरिवारों को मिलने वाले शाही भत्ते और राजकीय उपाधियों की समाप्ती, जैसे कठोर कदम उठाये। साथ ही पाकिस्तान से १९७१ का युद्ध और बांग्लादेश की स्थापना, जनमत-संग्रह द्वारा सिक्किम का भारत में अभिगमन, पोखरण में भारत के पहले परमाणु परीक्षण जैसे ऐतिहासिक घटनाएँ भी इंदिरा गांधी के इस शासनकाल में हुआ। परंतु इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद, १९७५ से १९७७ तक का कुख्यात आपातकाल भी इंदिरा गांधी ने ही लगवाया था। यह समय सरकार द्वारा, आंतरिक उथल-पुथल और अराजकता को "नियंत्रित" करने हेतु, लोकतांत्रिक नागरिक अधिकारों की समाप्ती और 'राजनैतिक विपक्ष के दमन' के लिए कुख्यात रहा।[7][8][9][10]

प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, "दिल्ली धोषणा" के मसौदे पर हस्ताक्षर करते हुए
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोवियत संघ के कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव, शर्बित्स्की के साथ, १९८२

इस आपातकाल के कारण, इंदिरा के खिलाफ उठी विरोध की लहर के कारण, आपातकाल के समापन के बाद, १९७७ के चुनावों में, विपक्ष के तमाम राजनैतिक दलों ने, संगठित रूप से जनता पार्टी के छत्र के नीचे, कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर लड़ा, और कांग्रेस को बुरी तरह पराजित करने में सफल रही। जनता पार्टी की गठबंधन के तरफ से मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री बने। प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई की सरकार अत्यंत विस्तृत एवं कई विपरीत विचारधाराओं की राजनीतिक दलों द्वारा रचित थी, जिनका एकजुट होकर, विभिन्न राजनैतिक निर्णयों पर एकमत ना हो पाने से समन्वय बनाकर रखना बहुत कठिन था। अंततः ढाई वर्षों के शासन के बाद, २८ जुलाई १९७९ को मोरारजी के इस्तीफ़े के साथ ही उनकी सरकार गिर गई। [11] तत्पश्चात्, क्षणिक समय के लिए, मोरारजी की सरकार में उपप्रधानमन्त्री रहे, चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से, बहुमत सिद्ध किया और प्रधानमन्त्री की शपथ ली। उनका कार्यकाल केवल ५ महीनों तक चला (जुलाई १९७९ से जनवरी १९८०)। उन्हें भी घटक दलों के साथ समन्वय बना पाना कठिन रहा, अंततः कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण उनहोंने भी बहुमत खो दिया, और उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।[12] इन तकरीबन ३ वर्षों की सत्ता से बेदखली के बाद, कांग्रेस पुनः भरी बहुमत के साथ सत्ता में आई, और इंदिरा गांधी को अपने दुसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित किया गया। इस दौरान, उनके द्वारा की गयी सबसे कठोर एवं विवादस्पद कदम था ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसे अमृतसर के हरिमंदिर साहिब में छुपे हुए खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ किया गया था। अंत्यतः,उनका कार्यकाल, ३१ दिसंबर १९८४ की सुबह को उनकी हत्या के साथ समाप्त हो गया।

१९८०-२०००

प्रधानमंत्री राजीव गांधी, वर्ष १९८९
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह

इंदिरा के बाद, भारत के प्रधानमन्त्री बने, उनके ज्येष्ठ पुत्र, राजीव गांधी, जिन्हें, ३१ अक्टूबर की शाम को ही कार्यकाल की शपथ दिलाई गयी। उन्होंने पुनः निर्वाचन करवाया और इस बार, कांग्रेस ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त कर, विजयी हुई। १९८४ के चुनाव में कांग्रेस ने लोकसभा में ४०१ सांसद संख्या का विशाल बहुमत प्राप्त किया था, जो कि किसी भी दल द्वारा प्राप्त किया गये बहुमत में से विशालतम संख्या है। ४० वर्ष की युवा आयु में प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेने वाले राजीव गांधी, इस पद पर विराजमान होने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं।[13] राजीव गांधी की हत्या के बाद, राष्ट्रीय मंच पर उभरे, विश्वनाथ प्रताप सिंह, जोकि राजीव गांधी की कैबिनेट में, वित्तमंत्री और रक्षामंत्री के पद पर थे। अपनी साफ़ छवि के लिए जाने जाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने वित्तमंत्रीत्व और रक्षामंत्रीत्व के समय, भ्रष्टाचार, कला-बाज़ारी और टैक्स-चोरी जैसी समस्याओं के खिलाफ कई कदम उठाये थे, कहा जाता है कि इसीलिए विश्वनाथ प्रताप सिंह के बढ़ते प्रभाव को खतरा मान राजीव गांधी ने उन्हें मंत्रिमंडल से १९८७ में निष्कासित कर दिया था। १९८८ में उन्होंने जनता दल नमक राजनैतिक दल की स्थापना की, और अनेक कांग्रेस-विरोधी दलों की मदद से नेशनल फ्रंट नमक गठबंधन का गठन किया। १९८९ के चुनाव में कांग्रेस ६४ सीटों तक सीमित रह गयी, जबकि नेशनल फ्रंट, सबसे बड़ा गठबंधन बन कर उभरा। भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन के साथ नेशनल फ्रंट ने सरकार बनाई, जिसका नेतृत्व विश्वनाथ प्रताप सिंह को दिया गया। वी.पी. सिंह के कार्यकाल में सामाजिक न्याय की दिशा में कई कदम उठाये गए , जिनमे से एक विवादास्पद निर्णय भी था, वी पी सिंह ने अनारक्षितों के राष्ट्रव्यापी उग्र विरोध को, सामाजिक समानता की तुलना में वरीयता देते हुए, अनदेखा कर, मंडल आयोग के अन्य पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण देने के सुझावों को मानते हुए, अन्य पिछड़े वर्ग में आने वाले लोगो के लिए भी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान पारित कराया। इसके अलावा, उन्होंने, राजीव गांधी के काल में, श्रीलंका में तमिल आतंकवादियों के खिलाफ जारी भारतीय शांति सेना की कार्रवाई पर भी रोक लगा दी। अमृतसर के हरमिंदर साहिब में ऑपरेशन ब्लू स्टार हेतु क्षमा-याचना के लिए उनकी यात्रा, और उसके बाद के घटनाक्रमों ने बीते बरसों से पंजाब में तनाव को लगभग पूरी तरह शांत कर दिया था। परंतु अयोध्या में "कारसेवा" के लिए जा रहे लालकृष्ण आडवाणी की "रथ यात्रा" को रोक, आडवानी की गिरफ़्तारी के बाद, भाजपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। तब वी.पी.सिंह ने ७ नवंबर १९९० को अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया। [14][15][16][17] वी पी सिंह के इस्तीफे के बाद, उनके पुर्व साथी, चंद्रशेखर ने ६४ सांसदों के साथ समाजवादी जनता पार्टी गठित की और कांग्रेस के समर्थन के साथ, लोकसभा में बहुमत सिद्ध किया। परंतु उनका प्रधानमन्त्री काल, अधिक समय तक नहीं चल सका। कांग्रेस की समर्थन वापसी के कारण, नवंबर १९९१ में चंद्रशेखर का एक वर्ष से भी कम का कार्यकाल समाप्त हुआ, और नए चुनाव घोषित किये गए।[18]

प्रधानमंत्री नरसिंह राव(मध्य में) की तस्वीर
राष्ट्रीय विज्ञानं केंद्र में प्रधानमंत्री नरसिंह राव

प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर के ६ महीनों के शासनकाल के पश्चात्, कांग्रेस पुनः सत्ता में आई, इस बार, पमुलापति वेंकट नरसिंह राव के नेतृत्व में। नरसिंह राव, दक्षिण भारतीय मूल के पहले प्रधानमन्त्री थे। साथ ही वे न केवल नेहरू-गांधी परिवार से बहार के पहले कांग्रेसी प्रधानमन्त्री थे, बल्कि वे नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने अपना पूरे पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया। नरसिंह राव जी का कार्यकाल, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक एवं ऐतिहासिक परिवर्तन का समय था। अपने वित्तमंत्री, मनमोहन सिंह के ज़रिये, नरसिंह राव ने भारतीय अर्थव्यवस्था की उदारीकरण की शुरुआत की, जिसके कारण, भारत की अबतक सुस्त पड़ी, खतरों से जूझती अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया गया। इन उदारीकरण के निर्णयों से भारत को एक दृढतः नियंत्रित, कृषि-उद्योग मिश्रित अर्थव्यवस्था से एक बाज़ार-निर्धारित अर्थव्यवस्था में तब्दील कर दिया गया। इन आर्थिक नीतियों को, आगामी सरकारों ने भी जारी रखा, जिनने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाया।[19][20] इन आर्थिक परिवर्तनों के आलावा, नरसिंह राव के कार्यकाल में भारत ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि के विवादित ढांचे का विध्वंस और भारतीय जनता पार्टी का एक राष्ट्रीय स्तर के दल के रूप में उदय भी देखा। नरसिंह राव जी का कार्यकाल, मई १९९६ को समाप्त हुआ, जिसके बाद, देश ने अगले तीन वर्षों में चार, लघुकालीन प्रधानमन्त्रीयों को देखा: पहले अटल बिहारी वाजपेयी का १३ दिवसीय शासनकाल, तत्पश्चात्, प्रधानमन्त्री एच डी देवगौड़ा (1 जून, 1996 से 21 अप्रेल, 1997) और इंद्रकुमार गुज़राल(21 अप्रेल, 1997 से 19 मार्च, 1998), दोनों की एक वर्ष से कम समय का कार्यकाल एवं तत्पश्चात्, पुनः प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की १९ माह की सरकार।[21][22] १९९८ में निर्वाचित हुए प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कुछ अत्यंत ठोस और चुनौती पूर्ण कदम उठाए। मई १९९८ में सरकार के गठन के एक महीने के बाद, सरकार ने पोखरण में पाँच भूतालिया परमाणु विस्फोट करने की घोषणा की। इन विस्फोटों के विरोध में अमरीका समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, परंतु रूस, फ्रांस, खाड़ी देशों और कुछ अन्य के समर्थन के कारण, पश्चिमी देशों का यह प्रतिबंध, पूर्णतः विफल रहा।[23][24] इस आर्थिक प्रतिबंध की परिस्थिति को बखूबी संभालने को अटल सरकार की बेहतरीन कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया। भारतीय परमाणु परीक्षण के जवाब में कुछ महीने बाद, पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया।[25] दोनों देशों के बीच बिगड़ते हालातों को देखते हुए, सरकार ने रिश्ते बेहतर करने की कोशिश की। फ़रवरी १९९९ में दोनों देशों ने लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किये, जिसमें दोनों देशों ने आपसी रंजिश खत्म करने, व्यापार बढ़ने और अपनी परमाणु क्षमता को शांतिपूर्ण कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की घोषणा की।

२०००-वर्त्तमान

अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ प्रधानमंत्री वाजपेयी

१७ अप्रैल १९९९ को जयललिता की पार्टी आइएदमक ने सरकार से अपना समर्थन है दिया, और नए चुनावों की घोषणा करनी पड़ी।[26][27] तथा अटल सरकार को चुनाव तक, सामायिक शासन के स्तर पर घटा दिया गया। इस बीच, कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर आई, और अटलजी की सरकार ने सैन्य कार्रवाई के आदेश दे दिए। यह कार्रवाई सफल रही और करीब २ महीनों के भीतर, भारतीय सऐना ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त कर ली। १९९९ के चुनाव में भाजपा के नेतृत्व की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बहुमत प्राप्त की, और प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी कुर्सी पर बरकरार रहे। अटल ने आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को बरक़रार रखा और उनके शासनकाल में भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक विकास दर प्राप्त किया। साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर और बुनियादी सहूलियतों के विकास के लिए सरकार ने कई निर्णायक कदम उठाए, जिनमें, राजमार्गों और सडकों के विकास के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना और प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाएँ शामिल हैं।[28][29] परंतु, उनके शासनकाल के दौरान, वर्ष २००२ में, गुजरात में गोधरा कांड के बाद भड़के हिन्दू-मुस्लिम दंगों ने विशेष कर गुजरात एवं देश के अन्य कई हिस्सों में, स्वतंत्रता-पश्चात् भारत के सबसे हिंसक और दर्दनाक सामुदायिक दंगों को भड़का दिया। सरकार पर और गुजरटी के तत्कालीन मुख्यमंत्री , नरेंद्र मोदी, पर उस समय, दंगो के दौरान रोक-थाम के उचित कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया गया था। प्रधानमन्त्री वाजपेयी का कार्यकाल मई २००४ को समाप्त हुआ। वे देश के पहले ऐसे ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने अपना पूरे पाँच वर्षों का कार्यकाल पूर्ण किया था। २००४ के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने में अक्षम रहा, और कांग्रेस सदन में सबसे बड़ी दल बन कर उबरी। वामपंथी पार्टियों और कुछ अन्य दलों के समर्थन के साथ, कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए(संयुक्त विकासवादी गठबंधन) की सरकार स्थापित हुई, और प्रधानमन्त्री बने, मनमोहन सिंह। वे देश के पहले सिख प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने, दो पूर्ण कार्यकालों तक इस पद पर अपनी सेवा दी थी। उनके कार्यकाल में, देश ने प्रधानमन्त्री वाजपेयी के समय हासिल की गए आर्थिक गति को बरक़रार रखा।[30][31] इसके अलावा, सरकार ने आधार(विशिष्ट पहचान पत्र), और सूचना अधिकार जैसी सुविधाएँ पारित की। इसके अलावा, मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अनेक सामरिक और सुरक्षा-संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ा। २६ नवंबर २००८ को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद, देश में कई सुरक्षा सुधर कार्यान्वित किये गए। उनके पहले कार्यकाल के अंत में अमेरिकाके के साथ, नागरिक परमाणु समझौते के मुद्दे पर, लेफ़्ट फ्रंट के समर्थन वापसी से सरकार लगभग गिरने के कागार पर पहुँच चुकी थी, परंतु सरकार बहुमत सिद्ध करने में सक्षम रही। २००९ के चुनाव में कांग्रेस, और भी मज़बूत जनादेश के साथ, सदन में आई, और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री के आसान पर विद्यमान रहे।[32] प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल, अनेक उच्चस्तरीय घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही। साथ ही आर्थिक उदारीकरण के बाद आई प्रशंसनीय आर्थिक गति भी सुस्त पद गयी, और अनेक महत्वपूर्ण परिस्थितियों में ठोस व निर्णायक कदम न उठा पाने के कारण सरकार सरकार की छवि काफी ख़राब हुई थी। प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह का कार्यकाल, २०१४ में समाप्त हो गया।[33] २०१४ के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, जिसने भ्रस्टाचार और आर्थिक विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था, ने अभूतपूर्व बहुमत प्राप्त किया, और नरेंद्र मोदी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया। वे पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री हैं, जोकि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर विद्यमान हुए हैं। साथ ही वे पहले ऐसे प्रधानमन्त्री हैं, जोकि आज़ाद भारत में जन्मे हैं।[34]

कालक्रम

नरेन्द्र मोदीमनमोहन सिंहअटल बिहारी वाजपेयीइंद्रकुमार गुज़रालएच डी देवगौड़ाअटल बिहारी वाजपेयीनरसिंह रावचंद्रशेखरविश्वनाथ प्रताप सिंहराजीव गान्धीइन्दिरा गान्धीचौधरी चरण सिंहमोरारजी देसाईइन्दिरा गान्धीगुलजारीलाल नंदालालबहादुर शास्त्रीगुलजारीलाल नंदाजवाहर लाल नेहरू

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

🔥 Top keywords: आदर्श चुनाव आचार संहिताक्लियोपाट्रा ७अटल बिहारी वाजपेयीफेसबुकखाटूश्यामजीसिद्धू मूसे वालाभारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरणमुखपृष्ठविशेष:खोजमिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकारजय श्री रामएलिसे पेरीलोक सभाराम मंदिर, अयोध्याहनुमान चालीसाभारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेशॐ नमः शिवायश्रीमद्भगवद्गीताएल्विश यादवभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीतेरी बातों में ऐसा उलझा जियारामस्मृति मंधानाझारखण्ड के राज्यपालों की सूचीमैं अटल हूँनागरिकता (संशोधन) अधिनियम, २०१९होलीभारत का संविधानहिन्दीनरेन्द्र मोदीभारतीय आम चुनाव, २०२४हनु मानराज्य सभा के मनोनीत सदस्यों की सूचीगुम है किसी के प्यार मेंहिन्दी की गिनतीभीमराव आम्बेडकरगायत्री मन्त्रभारतउत्तर प्रदेश