ग्लास्नोस्त
ग्लास्नोस्त एक सोवियत नीति थी जिसका उद्देश्य "सोवियत रूस के सरकारी संस्थानोँ एवं क्रियाकलापोँ में खुलेपन एवं पारदर्शिता को बढ़ाना" था। इस नीति का संस्थापन मिखाइल गोर्बाचेव ने अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में किया।[1] ग्लास्नोस्त को सामान्यतः पेरेस्त्रोइका (शाब्दिक अर्थ:पुनर्गठन; गोर्बाचेव द्वारा संस्थापित एक अन्य समकालीन सुधारवादी नीति) के साथ जोड़कर देखा जाता है। "ग्लास्नोस्त" शब्द का रूसी भाषा में उपयोग १८वीं शताब्दी के अंत से किया जा रहा है।[2]गोर्बाचेव द्वारा इस शब्द का प्रयोग उन नीतियों हेतु किया जाता था जो उनके हिसाब से कम्युनिस्ट पार्टी एवं सोवियत सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम तथा केंद्रीय आयोग में प्रशासनिक शक्तियों के दुष्प्रयोग को सीमित कर सकती हैं। रूसी मानवाधिकार कार्यकर्ता ल्युदमिला अलेक्सेयेवा के अनुसार "ग्लास्नोस्त" शब्द "शताब्दियों से रूसी भाषा का भाग रहा है। वह तब से शब्दकोशों एवं विशानशास्त्रों में उल्लेखित है, जबसे शब्दकोश एवं विधानशास्त्र अस्तित्व में हैं। वह एक साधारण, मेहनती एवं अनिर्वचनीय शब्द है जिसका प्रयोग एक प्रक्रिया, प्रशानिक न्याय की कोई भी प्रक्रिया जो अनावृत रूप से संचालित की जाए, के लिए किया जाता है जाता है।"[3]
ग्लास्नोस्त शब्द का प्रयोग रूसी इतिहास में ८० के दशक के उस समय के लिए भी जाता है जब वहाँ कम सेंसरशिप एवं सूचना की अधिक आज़ादी थी।
प्रभाव
अधिक पारदर्शिता
सेंसरशिप में छूट दिए जाने के परिणामस्वरूप कम्युनिस्ट पार्टी की समाचार माध्यमों पर पकड़ ढीली पड़ने लगी। कुछ ही समय में समाचार माध्यमों ने सोवियत प्रशासन द्वारा दबाकर रखी गयी गम्भीर सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं (जैसे घटिया आवास, खाद्य अभाव, नशाखोरी, प्रदूषण, ऊँची मृत्युदर, महिलाओं का समाज में दोयम दर्जा तथा राज्य के अपने नागरिकों के प्रति किये गए अपराध) को अनावृत करना शुरू कर दिया। सेंसरशिप में छूट के परिणामस्वरूप सोवियत रूस में पाश्चात्य साहित्य एवं चलचित्र का आगमन हुआ; धर्म, ज्योतिष एवं अन्य विषयों, जिनपर सोवियत प्रकाशक ध्यान नहीं दिया करते थे, पर लिखी गयी पुस्तकें उपलब्ध होने लगी[4]।
इसके साथ ही, ग्लास्नोस्त के चलते, लोगों को अपने भूत का ज्ञान हुआ। इसके चलते सोवियत जीवन की बहुत सकारात्मक छवि, जो प्रशासनिक माध्यमों द्वारा लोगों के समक्ष प्रस्तुत की जाती थी, का तीव्रता से ह्रास हुआ तथा सोवियत जीवन से जुड़े हुए नकारात्मक पहलु प्रकाश में आये। इससे नागरिकों का सोवियत जीवन शैली से विश्वास उठने लगा।
सोवियत इतिहास से सम्बंधित खुलासों का उन जनों पर विध्वंसक प्रभाव पड़ा जिनका साम्यवादी राज्य पर विश्वास था तथा जिन्हे इस तरह की जानकारी पहले उपलब्ध नहीं थी[5]।