बमा लोग

बमा (बर्मी भाषा : ဗမာလူမျိုး / बमा लूम्योः) या बर्मन बर्मा का सबसे बड़ा जातीय समूह है। बर्मा के के दो-तिहाई लोग इसी समुदाय के सदस्य हैं। बमा लोग अधिकतर इरावती नदी के जलसम्भर क्षेत्र में रहते हैं और बर्मी भाषा बोलते हैं। प्रायः म्यन्मा के सभी लोगों को 'बमा' कह दिया जाता हैं, जो सही नहीं है क्योंकि बर्मा में और भी जातियाँ रहती हैं। विश्व भर में देखा जाए तो बमा लोगों की कुल सँख्या सन् २०१० में लगभग ३ करोड़ की थी।

१८९० के दशक का एक बमा पति-पत्नी का युग्म
सन् १९२० के काल की एक सुसज्जित बमा स्त्री
रंगून के एक घर के बाहर नाट देवताओं के लिए बना एक छोटा सा मंदिर

जाति की उत्पत्ति

माना जाता है कि बमा लोगों का मूल पूर्वी एशिया है। सम्भव है कि इनकी शुरुआत आधुनिक दक्षिण चीन के यून्नान प्रांत में हुई हो, जहाँ से आज से १,२००-१,५०० वर्ष पहले इनके पूर्वज उत्तर बर्मा में इरावती नदी की घाटी में आ बसे। धीरे-धीरे यह पूरी इरावती नदी के इलाक़े में फैल गए। यहाँ पहले से कुछ जातियाँ रहती थीं, जैसे की मोन लोग और प्यू लोग, जो या तो खदेड़ दिए गए या फिर जिनका बमरों में ही विलय हो गया। बमर लोगों की भाषा बर्मी है, जो तिब्बती भाषा से सम्बन्ध रखती है और चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार की सदस्या है। बर्मी में ऐसे बहुत से धर्म सम्बन्धी शब्द हैं जो संस्कृत या पालि भाषा से आये हैं।

समाज और संस्कृति

बमर स्त्रियाँ और पुरुष दोनों शरीर के निचले हिस्से पर लोंग्यी नाम की लुंगिया पहनते हैं। महत्वपूर्ण अवसरों पर स्त्रियाँ सोने के ज़ेवर, रेशम के रुमाल-दुपट्टे और जैकेट पहनती हैं। मर्द अक्सर 'गाउन्ग बाउन्ग' नाम की पगड़ियाँ और ताइकपोन नाम की बंदगला जैकेट पहनते हैं। स्त्रियाँ और पुरुष दोनों 'ह्न्यात फनत' नाम की मखमली सैंडिल पहनते हैं। आधुनिक युग में इन मखमली ह्न्यात फनत की बजाए रबड़, चमड़े और प्लास्टिक की सैंडिलें-चप्पल भी आम हो गई हैं, जिन्हें बर्मा में 'जापानी जूते' बुलाया जाता है। किसी ज़माने में बमर पुरुष लम्बे बाल रखा करते थे और उनमें कान की बालियाँ आम थी, लेकिन अब यह कम ही देखा जाता है। त्वचा को सौन्दर्यपूर्ण बनाने के लिए एक पेड़ की छाल को पीसकर उसका 'थनखा' नाम का उबटन चेहरे और हाथों-पैरों पर लगाया जाता है। यह स्त्रियों, लड़कियों और कम उम्र के लड़कों-किशोरों पर देखा जाता है।

धार्मिक प्रथाएँ

बमर लोग अधिकतर बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा के अनुयायी होते हैं। इसमें बौद्ध आचार के पंचशील का पालन और दान, शीलता और विपश्यना पर जोर दिया जाता है। समाज में बौद्ध भिक्षुकों का बहुत मान-सम्मान होता है। ज़्यादातर गाँवों में एक बौद्ध मठ और पगोडा (स्तूप) होता है, जिसकी देख-रेख और ख़र्चा पूरा गाँव अपने योगदान से चलाता है। पूर्णिमा के दिनों में अक्सर इन स्तूपों पर त्यौहार लगता है। मॉनसून की बारिशों के दौरान कुछ अवसरों का आयोजन होता है जिनमें भिक्षुकों को नए वस्त्र भेंट किये जाते हैं। बमरों में अपने लड़कों को कुछ कम समय के लिए भिक्षुक बनाने की भी प्रथा है जिसके बाद वे अपने परिवारों को लौटकर साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। आधुनिक युग में पाठशालाओं के बनाने से पहले अधिकतर बमर अपनी शिक्षा इन्ही बौद्ध मठों में प्राप्त करते थे।

बौद्ध पूजा के साथ-साथ, बमर लोगों की प्राचीन परम्परा के अनुसार 'नाट' नाम के दिव्य गणों को भी पूजा जाता है। नाटों में ३७ प्रमुख और बहुत से अन्य नाट बताए गए हैं और उन्हें पूजने के लिए बहुत से बमर घरों के बाहर 'नाट एइन' नाम के छोटे मंदिर बने हुए मिलते हैं। सबसे प्रमुख नाट देवता का नाम 'एइन्दविन मिन महागिरि' (यानी 'महापर्वत के घरवाले स्वामी') है, जिनके लिए इन मंदिरों में अक्सर एक नारियल भेंटस्वरूप रखा जाता है।[1]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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