रत्नागिरि
रत्नागिरि (Ratnagiri) भारत के महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। बाल गंगाधर तिलक की यह जन्मस्थली महाराष्ट् के दक्षिण-पश्चिम भाग में अरब सागर के तट पर स्थित है। यह कोंकण क्षेत्र का ही एक भाग है। यहां बहुत लंबा समुद्र तट हैं। यहां कई बंदरगाह भी हैं। यह क्षेत्र पश्चिम में सहयाद्रि पर्वतमाला से घिरा हुआ है। रत्नागिरि अल्फांसो आम के लिए भी प्रसिद्ध है।[1][2]
रत्नागिरि Ratnagiri | |
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रत्नागिरि में जलप्रपात | |
निर्देशांक: 16°59′N 73°18′E / 16.99°N 73.30°E 73°18′E / 16.99°N 73.30°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | महाराष्ट्र |
ज़िला | रत्नागिरि ज़िला |
ऊँचाई | 11 मी (36 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 76,229 |
भाषा | |
• प्रचलित | मराठी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 415612, 415639 |
दूरभाष कोड | 02352 |
वाहन पंजीकरण | MH-08 |
वेबसाइट | www |
इतिहास
रत्नागिरि का मराठा इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह 1731 ई. में सतारा के राजा के अधिकार में आ गया और यह 1818 ई. तक सतारा के कब्जे में रहा। 1818 ई. में इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। यहां पर एक किला भी है जिसे बीजापुर के राजपरिवार ने बनवाया था। बाद में 1670 ई. में इस किले की शिवाजी ने मरम्मत करवाई थी।
रत्नागिरि का संबंध महाभारत काल से भी है। कहा जाता है अपने वनवास का तेरहवां वर्ष पांडवों ने रत्नागिरि से सटे हुए क्षेत्र में बिताया था। रत्नागिरि में ही म्यांमार के अंतिम राजा थिबू तथा विनायक दामोदर सावरकर को कैद कर रखा गया था।
यातायात और परिवहन
रेल मार्गरत्नागिरी में रेलवे जंक्शन है। रत्नागिरी आने की सबसे बढिया रेल कोंकण कन्या एक्सप्रेस है।
सड़क मार्गरत्नागिरी के लिए मुंबई से सीधी बस सेवा है। मुंबई सेंट्रल, बोरीबली तथा परेल से रत्नागिरी के लिए बसें चलती है।
रत्नागिरी दुर्ग
रत्नागिरी, रत्नदुर्ग या भगवती दुर्ग के रूप में जाना जाने वाला एक दुर्ग है। रत्नागिरी मुंबई से 220 किलोमिटर दक्षिण में स्थित है। सोलहवीं सदी में बीजापुर के सुल्तानों ने इसका निर्माण करवाया था। छत्रपती शिवाजी महाराज ने 1670 ई. में इसका पुननिर्माण कराकर मराठा नौसेना का प्रमुख केन्द्र बनाया। इस दुर्ग में तीन सुदृढ़ चोटियाँ हैं। दक्षिण की ओर स्थित सबसे बड़ी चोटी पारकोट के नाम से जानी जाती है। मध्य चोटी पर बाले नामक क़िला है, जिसमें प्रसिद्ध भगवती मंदिर आज भी सुरक्षित है। तीसरी चोटी मंदिर के पीछे ढलान पर है, जहाँ से कहा जाता है कि दंडित बंदियों को नीचे धकेलकर मार दिया जाता था। चोटी के पश्चिम में कुछ पुरानी गुफाएँ भी हैं। बर्मा (म्यांमार) के अंतिम राजा थिबॉ को अंग्रेजों ने 1885 ई. में देश निकाला देकर यहीं भेजा था तथा उसे विशेष रूप से नज़रबंद करके रखा गया था।
जयगढ़ क़िला
जयगढ़ क़िले की स्थापना 17 वीं शताब्दी में हुई थी। जयगढ़ क़िला एक खड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है। जयगढ़ क़िले के पास से ही संगमेश्वर नदी बहती है। जयगढ़ क़िले से आसपास का बहुत सुंदर दूश्य दिखता है।
मुख्य आकर्षण
बौद्ध मठ
रत्नागिरि में दो विशाल बौद्व मठ थे। इनमें से एक दो मंजिला था। इस मठ में एक बड़ा आंगन था जिसके दोनों तरफ बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए कमरे बने हुए थे। इस मठ के अतिरिक्त यहां से छ: मंदिर, हजारों छोटे स्तूप, 1386 मुहरें, असंख्य मूर्त्तियां आदि के अवशेष मिले हैं। इन स्तूपों में सबसे बड़ा स्तूप 47 फीट लंबा तथा 17 फीट ऊंचा था। यह स्तूप चार छोटे-छोटे स्तूपों से घिरा हुआ था। इस स्तूप की सजावट कमल के फूल, पंखूडि़यों तथा मणिकों से की गई थी।
थीवा महल
इस महल का निर्माण 1910-11 ई. में हुआ था। देश निकाला की सजा के बाद बर्मा (अब म्यांमार) के राजा और रानी इसी महल में रहे थे। वे लगभग पांच साल तक अपना समय यहां बिताया। यहीं इन दोनों की समाधि भी है जोकि पत्थर की बनी हुई है।
मालगूंड
यह स्थान प्रसिद्ध मराठी कवि केशवसूत का जन्मस्थान है। यह एक छोटा सा गांव है जोकि गणपतिफूले से 1 किलोमीटर दूर है। केशवसूत के घर को अब छात्रावास का रूप दे दिया गया है। मराठी साहित्य परिषद ने केशवसूत की याद में यहां एक खूबसूरत स्मारक का निर्माण करवाया है।
जयगढ़ किला
इस किले की स्थापना 17 वीं शताब्दी में हुई थी। यह किला एक खड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है। इसके पास से ही संगमेश्वर नदी बहती है। इस किले से आसपास का बहुत सुंदर दूश्य दिखता है।
पावस
यह स्थान स्वामी स्वरुपानंद से संबंधित है। स्वरुपानंद महाराष्ट्र के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने पावस को ही अपना निवास स्थान बनाया था। जिस मकान में स्वरुपानंद रहते थे उस भवन को अब आश्रम का रूप दे दिया गया है।
वेलनेश्वर
यह गांव रत्नागिरि से 170 किलोमीटर दूर है। इसके पास समुद्र तट है। यह समुद्रतट नारियल के वृक्षों से भरा हुआ है। यहां शिव का एक पुराना मंदिर भी है। यहां आने वाले पर्यटक इस मंदिर को देखने जरुर आते हैं। यह मंदिर शैव धर्म के रहस्यवाद से संबंधित है।
रत्नागिरि किला
इस किले का निर्माण बहमनी काल में हुआ था। यह बाद में आदिल शाह के कब्जे में आ गया। 1670 ई. में शिवाजी ने इस किले पर कब्जा कर लिया। 1761 ई. तक इस किले पर सदाशिव राव भाऊ का अधिकार था। 1790 ई. में धुंधु भास्कर प्रतिनिधि ने इस किले की मरम्मत करवाई और इसके प्राचीरों का मजबूत किया। यह किला घोड़े की नाल के आकार में है। इसकी लंबाई 1300 मीटर तथा चौड़ाई 1000 मीटर है। यह किला तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। इस किले का एक बुर्ज सिद्धा बुर्ज' लाइट हाउस के रूप में काम करता था। इस किले में देवी भगवती का एक बहुत ही आकर्षक मंदिर है। इस किले के ३ दिशा में समुन्दर का खारा पानी होने बावजुद किले के कुऐ में मधुए पानी मिलता है।
गणपतीपुले
यह बीचों के लिए प्रसिद्ध है। यह रत्नागिरि से 2५ किलोमीटर स्थित है। यहां भगवान गणेश का एक प्रसिद्ध स्वयनभु मंदिर भी है। यहाँ मान्यता है कि जो भी भक्त बडी श्रद्धा से गणेशजीका दर्शन करते है तो गणेशजी उनकी मनोकामना पूर्ण करते है।