वायुशय

भरे अंग जो अपनी उर्जाता को नियंत्रित करने के लिए मछली की क्षमता में योगदान देता है

वायुशय (swim bladder, gas bladder) एक भीतरी गैस-भरा अंग होता है जिसके प्रयोग से हड्डीदार मछलियाँ अपने उत्प्लावन (बोयेंसी) पर नियंत्रण रखती हैं। इसके प्रयोग से वह बिना सक्रीय रूप से तैरे किसी मनचाही गहराई पर स्थाई रूप से ठहर सकती हैं।[1][2] इसके विपरीत उपास्थिदार मछलियाँ वायुशय-रहित होती हैं और अगर वे न तैरें तो धीरे-धीरे नीचे जाती चली जाती हैं (हालांकि कुछ के शरीर में चर्बी के भंडार होते हैं जो उन्हें कुछ हद तक डूबने से बचाते हैं)। वायुशय के दो अन्य लाभ भी हैं। प्रथम, इसकी उपस्थिति से मछली का संहति-केन्द्र उसके आयतन-केन्द्र से नीचे होता है, जिस से उस के शरीर को स्थायित्व मिलता है। दूसरा, वायुशय में हवा खिसकाने से मछली ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिसे वह अपनी जाति की अन्य मछलियों से संचार के लिए प्रयोग कर सकती हैं।[3]

एक मछली का बाहर निकाला गया वायुशय
मछली शरीर के भीतर वायुशय का चित्रण
वायुशय रोग के कारण यह मछली न तो अपनी गहराई पर नियंत्रण रखती है और न ही अपने शरीर को उलट जाने से रोक पा रही है

ढांचा

वायुशय में साधारण रूप से दो गैस से भरी थैलियाँ होती हैं, हालांकि कुछ रूढ़ि जातियों में एक ही थैली भी पाई जाती है। यह आमतौर पर पीठ के पास स्थित होता है। वायुशय की दीवारे लचीली होती हैं और आसपास के दबाव के अनुसार फैलती-सिकुड़ती हैं। इन दीवारों में रक्त वाहिकाओं की संख्या कम होती है और दिवारों पर गुआनिन क्रिस्टल की परत चढ़ी होती है जिस में से गैस निकल नहीं सकती। वायुशय पर दबाव बदलकर मछली अपने उत्प्लावन को बदल सकती है और पानी में अपनी गहराई काफ़ी हद तक बदल सकने में सक्षम होती है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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