विश्व के ऊर्जा संसाधन

विश्व ऊर्जा संसाधन पृथ्वी पर सभी उपलब्ध संसाधनों को उपलब्ध मानते हुए ऊर्जा उत्पादन की अनुमानित अधिकतम क्षमता है। इन्हें जीवाश्म ईंधन, परमाणु ईंधन और नवीकरणीय संसाधनों में विभाजित किया जा सकता है।

शेष तेल : ग्रह पर शेष 57 ज़ीटा-जूल तेल का विश्लेषण। 2005 में वार्षिक तेल की खपत 0.18 ZJ थी। इन आँकड़ों में अनिश्चितता है [1] [2]

जीवाश्म ईंधन

जीवाश्म ईंधन के शेष भण्डार का अनुमान कुछ इस प्रकार है: [3]

ईंधनZJ (2009) में सिद्ध ऊर्जा भंडार
कोयला   19.8
गैस   36.4
तेल   8.9

ये सिद्ध ऊर्जा भंडार हैं; वास्तविक भंडार 10,000 गुणा तक अधिक हो सकता है। इन संख्याओं में अनिश्चितता है। ग्रह पर शेष जीवाश्म ईंधन का अनुमान लगाना पृथ्वी की पपड़ी की विस्तृत समझ पर निर्भर करता है।आज आधुनिक ड्रिलिंग तकनीक से पानी में 3 किमी तक गहराई वाले कुओं को ड्रिल करना संभव है, जिससे हम भूगर्भ की सटीक संरचना को सत्यापित कर सकते हैं। लेकिन महासागर का आधा हिस्सा 3 किमी से अधिक गहरा है, जिससे हमारे ग्रह का एक तिहाई हिस्सा विस्तृत विश्लेषण की पहुंच से परे है।

कोयला

कोयला पृथ्वी पर सबसे प्रचुर और सबसे अधिक जलाया गया जीवाश्म ईंधन है। यह वह ईंधन था जिसने औद्योगिक क्रांति का आरंभ किया और उपयोग में वृद्धि जारी रखी। चीन, जिसके पास पहले से ही दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं, [4] 2007 में हर हफ्ते दो कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का निर्माण कर रहा था। [5] [6] लेकिन अब इनमें से कई संयंत्र धीरे-धीरे बंद किए जा रहे हैं।

कोयला उपयोग में सबसे तेजी से बढ़ता जीवाश्म ईंधन है और (ग्लोबल वार्मिंग और अन्य प्रदूषकों से सम्बंधित समस्याओं को यदि दरकिनार किया जाए, तो) इसके बड़े भंडार इसे वैश्विक समुदाय की ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए एक लोकप्रिय उम्मीदवार बना देंगे। [7] अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार कोयले का सिद्ध भंडार लगभग 909 बिलियन टन है, जो वर्तमान उत्पादन दर को 155 वर्षों तक बनाए रख सकता है, [8] जहाँ यदि इसमें प्रतिवर्ष 5% की वृद्धि होती है, तो यह घटकर 45 वर्ष या 2051 तक समाप्त हो जाएगा। । फिशर-ट्रोप्स प्रक्रिया के साथ कोयले से डीजल और जेट ईंधन जैसे तरल ईंधन बनाना संभव है। संयुक्त राज्य अमेरिका में बिजली उत्पादन का 49% हिस्सा कोयला जलने से होता है। [9]

प्राकृतिक गैस

द वर्ल्ड फैक्टबुक के आंकड़ों के आधार पर प्राकृतिक गैस सिद्ध भंडार (2014) वाले देश।

प्राकृतिक गैस अनुमानित 850 000 km³ शोषण-योग्य भंडार के साथ एक व्यापक रूप से उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है। इसके अलावा भी कम से कम इतनी और प्राकृतिक गैस निकाली जा सकती है, यदि शेल गैस उत्पादन के बेहतर तरीकों का उपयोग किया जाए। प्रौद्योगिकी में सुधार और व्यापक अन्वेषण से प्राप्त करने योग्य प्राकृतिक गैस भंडार में एक बड़ी वृद्धि हुई है, क्योंकि शेल फ्रैकिंग विधियों का विकास हुआ है। वर्तमान उपयोग दरों पर, प्राकृतिक गैस 100 से 250 वर्षों तक दुनिया की अधिकांश ऊर्जा जरूरतों की आपूर्ति कर सकती है। यह गणना समय के साथ खपत में वृद्धि पर निर्भर करती है।

तेल

अनुमान है कि पृथ्वी पर तेल का भंडार 57 ZJ हो सकता है (हालांकि अनुमान 8 ZJ की निम्न मात्रा से[10] लेकर वर्तमान में साबित और शोषण-योग्य भंडार से मिलकर अधिकतम 110 ZJ [11] )। लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह शोषण-योग्य भंडार हो (यदि हम गैर-पारंपरिक स्रोत जैसे कि तेल रेत और तेल शेल के लिए आशावादी अनुमान भी शामिल करें तब)। आपूर्ति प्रोफाइल के 18 मान्यता प्राप्त अनुमानों के होते हुए वर्तमान में यह माना जाता है कि निष्कर्षण का शिखर 2020 में 93 मिलियन बैरल प्रति दिन (एमबीबी) की दर से होगा। वर्तमान तेल की खपत 0.18 ZJ प्रति वर्ष (31.1 बिलियन बैरल) या 85 mbd की दर से है।

तेल की क़ीमत (जो $147/ बैरल के एक उच्च से घटकर $40/ बैरल तक गिर गया था) को बढ़ाकर $75/ बैरल तक लाने का लक्ष्य रखते हुए है, OPEC ने उत्पादन घटाकर 2.2 mbd करने की घोषणा की, जो कि 1 जनवरी 2009 से मान्य है। [12]

स्थिरता

आपूर्ति की सुरक्षा से सम्बंधित प्रश्नों पर राजनीतिक विचार, ग्लोबल वार्मिंग और स्थिरता से संबंधित पर्यावरण संबंधी कार्यवाहियों से यह उम्मीद है कि वे दुनिया की ऊर्जा खपत को जीवाश्म ईंधन से दूर ले जाएँगी। पीक ऑयल की अवधारणा से ज्ञात होता है कि वर्तमान में उपलब्ध पेट्रोलियम संसाधनों का लगभग आधा उत्पादन किया जा चुका है, और भविष्य में उत्पादन में कमी संभावना है।

यदि कोई सरकार जीवाश्म ईंधन से दूर जाती है तो वह कार्बन उत्सर्जन और हरे कराधान के माध्यम का प्रयोग करेगी। इससे आर्थिक दबाव बढ़ने की संभावना है। कुछ देश अपने क़ानून क्योटो प्रोटोकॉल के अनुरूप बनाकर इस दिशा में और कदम उठा रहे हैं।

कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्तमान खपत दरों के अनुसार, वर्तमान तेल भंडार 2050 तक पूरी तरह से समाप्त हो सकता है। [13]

परमाणु ईंधन

परमाणु ऊर्जा

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि शेष यूरेनियम संसाधन 2500 ZJ के बराबर हैं। [14] यह गणना ब्रीडर रिएक्टरों के उपयोग को मानकर की है, जो उपभोग करने की तुलना में अधिक फिसाइल सामग्री बनाते हैं। आईपीसीसी ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान में once-through fuel cycles reactors के माध्यम से केवल 2 ZJ बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम का भंडार है।[15]

यद्यपि 21 वीं सदी की शुरुआत में यूरेनियम दुनिया भर में मुख्य परमाणु ईंधन है, लेकिन 20 वीं शताब्दी के मध्य से थोरियम और हाइड्रोजन जैसे अन्य ईंधनों की जांच चल रही थी। ग़ौरतलब है कि भारत के केरल राज्य में थोरियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

थोरियम का भंडार यूरेनियम की तुलना में काफी अधिक है, और हाइड्रोजन भी अच्छी-ख़ासी मात्रा में उपलब्ध है। यूरेनियम की तुलना में थोरीयम को प्राप्त करना भी बहुत आसान माना जाता है। जहाँ यूरेनियम की खदानें भूमिगत रूप से संलग्न अतः खनिक के लिए बहुत खतरनाक मानी जाती हैं, थोरियम को खुले गड्ढों से लिया जाता है। [16] अतः विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं थोरियम उत्पादन यूरेनियम के उत्पादन से अधिक सिरक्षित है।

1960 के दशक के बाद से दुनिया भर में कई ऊर्जा उत्पादकों ने थोरियम का प्रयोग करना शुरू कर दिया था।

परमाणु संलयन

1950 के दशक से हाइड्रोजन के संलयन के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन के विकल्प की जांच की जा रही है। ईंधन को प्रज्वलित करने के लिए आवश्यक तापमान बहुत अधिक होता है, इतना कि कोई भी सामग्री इसे सहन नहीं कर सकती है, इसलिए इसे ऐसे तरीक़े से सीमा-बद्ध करना चाहिए, जिसमें किसी सामग्री का प्रयोग ना करना पड़े। चुंबकीय और जड़त्वीय कारावास इस क्षेत्र में मुख्य विकल्प हैं ( Cadarache, Inertial confinement fusion )। दोनों ही 21 वीं सदी के शुरुआती वर्षों में गर्म अनुसंधान विषय हैं।

संलयन शक्ति (fusion power) वह प्रक्रिया है, जिससे सूर्य और अन्य तारे चलते है। यह हाइड्रोजन या हीलियम के समस्थानिकों के नाभिक को बनाकर बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न करती है, जो समुद्री जल से प्राप्त हो सकती है। इस ताप का सैद्धांतिक तौर पर विद्युत उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। संलयन को बनाए रखने के लिए आवश्यक तापमान और दबाव इसे नियंत्रित करने के लिए एक बहुत कठिन प्रक्रिया बनाते हैं। संलयन कम प्रदूषण के साथ, बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आपूर्ति करने में (सैद्धांतिक रूप से) सक्षम है। [17] अपर्याप्त शोध के कारण पिछले 20 से संलयन अनुसंधान में प्रगति रुकी पड़ी है। [18]

अक्षय संसाधन

गैर-नवीकरणीय संसाधनों के विपरीत नवीकरणीय संसाधन हमेशा उपलब्ध होते हैं, और उनकी तरह अंततः समाप्त नहीं होते। एक साधारण तुलना एक कोयला खदान और एक जंगल की है। भले ही जंगल का क्षेत्रफल कम हो सकता हो, अगर यह अच्छी तरह प्रबंधित होता है तो यह ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति करता है, बनाम कोयला खदान, जो एक बार समाप्त हो जाती है। पृथ्वी के उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों में से अधिकांशणीय संसाधन हैं। कुल अमेरिकी ऊर्जा भंडार का 93 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अक्षय संसाधनों का है। गैर नवीकरणीय संसाधनों की तुलना में वार्षिक नवीकरणीय संसाधनों को तीस गुना गुणा बढ़ावा मिला है। [19]

सौर ऊर्जा

अक्षय ऊर्जा स्रोत पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से भी अधिक हैं और सैद्धांतिक रूप में आसानी से दुनिया की ऊर्जा जरूरतों की आपूर्ति कर सकते हैं। 89 PW सौर ऊर्जा [20] इस ग्रह की सतह पर गिरती है। फ़िलहाल हम पूरी सौर ऊर्जा या उसका अधिकांश भाग प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। किंतु यदि इसका 0.02% हिस्सा भी हम उपयोग में ला सकें, तो यह वैश्विक वर्तमान ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काफ़ी होगा।

सौर ऊर्जा के साथ एक समस्या यह है कि यह रात में बिजली का उत्पादन नहीं करती है। भले ही 2014 के अंत में दुनिया भर में बिजली के उपयोग में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 1% थी, [21] किंतु वैश्विक स्तर पर, सौर ऊर्जा ऊर्जा का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ स्रोत है, पिछले कुछ वर्षों में 35% की वार्षिक औसत वृद्धि देखी गई है। जापान, यूरोप, चीन, अमेरिका और भारत इस क्षेत्र में बढ़ते हुए प्रमुख निवेशक देश हैं।

पवन ऊर्जा

उपलब्ध पवन ऊर्जा अनुमान 300 TW से लेकर 870 TW तक माना जाता है। [20] [22] निचले अनुमान का उपयोग करते हुए, उपलब्ध पवन ऊर्जा का सिर्फ 5% भी यदि हम प्रयोग में ला सकें, तो यह दुनिया भर में ऊर्जा की वर्तमान जरूरतों की आपूर्ति कर सकता है। इस पवन ऊर्जा का अधिकांश भाग खुले महासागर में उपलब्ध है। महासागरों में पृथ्वी का 71% हिस्सा होता है और हवा खुले पानी पर अधिक वेग से चलती है क्योंकि इसमें कम अवरोध होते हैं।

लहर और ज्वार की शक्ति

2005 में, ज्वारीय शक्ति द्वारा 0.3 GW बिजली का उत्पादन किया गया था। [23] चंद्रमा (68%) और सूर्य (32%) के गुरुत्वाकर्षण द्वारा निर्मित ज्वारीय बलों और चंद्रमा और सूर्य के अपने-अपने अक्ष पर घूमने से और पृथ्वी के सापेक्ष अक्ष पर घूमने के कारण उतार-चढ़ाव वाले ज्वार आते हैं। इस ज्वारीय उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप लगभग 3.7 TW की औसत दर से अपव्यय होता है। [24]

लहरें हवा से उत्पन्न होती हैं, जो बदले में सौर ऊर्जा से प्राप्त होती है, और प्रत्येक रूपांतरण पर उपलब्ध ऊर्जा के परिमाण के लगभग सौ गुना की कमी आती है। पृथ्वी के तटों तक पहुँचने वाली तरंगों की कुल शक्ति 3 TW तक होती है। [25]

भूतापीय (जियोथर्मल)

प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में अनुमानित निवेश और भूवैज्ञानिक संरचनाओं के बारे में अनुमानों के आधार पर, दुनिया भर में शोषण करने लायक भू-तापीय ऊर्जा संसाधनों के अनुमान एक दूसरे से काफी भिन्न हैं। 1999 के किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यह सोचा गया था कि यदि 'उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग' किया जाए तो ये संसाधन 65 GW से 138 GW के बीच हो सकते हैं, । [26] अन्य अनुमानों में विद्युत उत्पादन क्षमता 35 से 2000 गीगावॉट है, जिसमें 140 ईजे प्रति वर्ष इनके प्रत्यक्ष उपयोग की क्षमता है। [27]

बायोमास

बायोमास और जैव ईंधन के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि सतत ईंधन (sustainable energy) स्रोतों में रुचि बढ़ रही है। अपशिष्ट उत्पादों का उपयोग करने से संसाधन का खाने के बजाय ईंधन की तरह उपयोग करने वाला विवाद उत्पन्न नहीं होता। साथ ही साथ, मीथेन गैस जलने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम हो जाता है, क्योंकि भले ही यह कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है, लेकिन मीथेन की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड 23 गुना कम प्रदूषण फैलाती है। जैव ईंधन जीवाश्म ईंधन का स्थायी रूप से आंशिक प्रतिस्थापन कर सकते हैं, लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर उनका प्रभाव ईंधन बनाने के लिए फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किए जाने वाले पौधों को उगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कृषि प्रथाओं पर निर्भर करता है। जहाँ यह व्यापक रूप से माना जाता है कि जैव ईंधन कार्बन-न्यूट्रल हो सकते हैं, इस बात के प्रमाण हैं कि वर्तमान कृषि विधियों द्वारा उत्पादित जैव ईंधन काफ़ी मात्रा में शुद्ध कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। [28] [29] [30] भूतापीय और बायोमास केवल दो ही ऐसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं जिनके सावधानीपूर्वक प्रबंधन की इसलिए आवश्यकता होती है, क्योंकि यहाँ स्थानीय संसाधनों के घट जाने की सम्भावना रहती है। [31]

पनबिजली (हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर)

2005 में विश्व की 16.4% बिजली हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर से उत्पन्न हुई, जो 1973 में 21.0% थी। लेकिन 1973 में बिजली की जगह यदि हम ऊर्जा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर को ऊर्जा के स्त्रोत की तरह को देखें तो विश्व की केवल 2.2% ऊर्जा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर से उत्पन्न हुई। [32]

संदर्भ

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