वैदा लोग

वैदा (सिंहली: වැද්දා, तमिल: வேடுவர், अंग्रेज़ी: Vedda) या वैद्दा श्रीलंका की एक आदिवासी जनजाति है। इतिहासकारों का मानना है कि वे श्रीलंका के सबसे पहले मानव निवासी थे। पारम्परिक तौर से वैदा श्रीलंका के जंगलों के भीतर रहा करते थे। उनकी अपनी अलग वैदा भाषा थी, जिसकी मूल जड़ें अज्ञात हैं और जो अब विलुप्त हो चुकी है। सिंहली भाषा में वैदाओं को वन्नियल ऐत्तो (වන්නියලෑත්තන්, Wanniyala Aetto) भी कहते हैं, जिसका मतलब 'वन के लोग' है।

तीर्थयात्रा कर रही एक वैदा महिला
एक वैदा परिवार

जातीय जड़ें

वैदाओं का आनुवंशिकी अध्ययन करने से पता चला है कि वे श्रीलंका के सिंहली लोगों लगभग ३०,००० वर्षों से भिन्न हैं, यानि वे उनसे एक बिलकुल ही अलग जाति हैं।[1] बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि वैदाओं के पूर्वज लगभग २०,००० साल पहले हिमयुग के दौरान भारत से चलकर श्रीलंका पहुँचे थे। हिमयुगों में भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला रामसेतु पूरी तरह समुद्र-तल के ऊपर उभरा हुआ एक ज़मीनी पुल होता था जिसपर चलकर जानवर, मनुष्य और वृक्ष-पौधे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आराम से फैल सकते थे। आधुनिक युग में भारत और श्रीलंका के बीच ४० मील का खुला समुद्र है।[2][3][4]

५वीं सदी ईसवी में लिखी श्रीलंका के महावंश इतिहास-काव्य में एक पुलिंद जाति का ज़िक्र है जो इतिहासकारों के अनुसार श्रीलंका के सन्दर्भ में वैदा जाति के बारे में है। यह कहता है कि जब राजकुमार विजय (जो सिंहलों के सबसे पहले राजा बने) छठी शताब्दी ईसापूर्व में बंगाल से श्रीलंका आए तो उन्होंने कुवेनी नामक एक यक्ख (यक्ष) स्त्री से विवाह किया और बच्चे पैदा किये। बाद में उन्होंने एक क्षत्रीय स्त्री से शादी करके कुवेनी को दुत्कार दिया। उसके बच्चे आधुनिक रत्नपुर ज़िले के सुमनकूट क्षेत्र चले गए और वहाँ उन्होंने अपना वंश बढ़ाया। यही आगे चलकर वैदा बने।[5]

संस्कृति

धर्म

वैदाओं का मूल धर्म सर्वात्मवाद (ऐनिमिज़्म​) है। श्रीलंका के भीतरी हिस्सों में बसने वाले वैदा लोगों ने सिंहल लोगों की सोहबत से अपने सर्वात्मवाद में कुछ बौद्ध धर्म को भी मिश्रित कर लिया है जबकि पूर्वी तट पर तमिलों के पास रहने वाले वैदाओं ने सर्वात्मवाद में हिन्दू धर्म मिला लिया है। वैदा अपने पूर्वजों को पूजते हैं जिन्हें सिंहली-भाषी वैदा 'नाए याकु' कहते हैं। वैदाओं के कुछ अपने अलग देवी-देवता भी हैं, जिनमें से 'कंडे यक्का' और 'बिलिंद यक्का' नामक पूर्वज-देवता प्रमुख हैं। इन पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए इनकी पूजा करने के बाद 'किरी कोराहा' (Kiri Koraha) नमक नाच समारोह आयोजित किया जाता है।[6] श्रीलंका के दक्षिण में कतरगाम (Kataragama) नामक तीर्थस्थल में स्कन्द (हिन्दू देवता और शिव के दूसरे पुत्र, जिन्हें तमिल में 'मुरुगन' कहते हैं और जो कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं) पूजे जाते हैं। कतरगाम स्कन्द के बारे में धारणा है कि यहाँ उन्होंने एक वल्ली नामक वैदा मृग-देवी से विवाह किया था। कतरगाम के मंदिर की इज़्ज़त श्रीलंका के सभी सम्प्रदाय करते हैं और यहाँ बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई सभी तीर्थ करते हैं।[7]

विवाह और स्त्री-पुरुषों के सम्बन्ध

वैदाओं में विवाह की रीति बहुत सरल होती है। वधु एक वृक्ष-छाल की रस्सी बनाती है (जिसे 'दिया लनूवा' कहते हैं) और उसे वर की कमर में बाँध देती है। इसके द्वारा वह यह संकेत देती है कि उसने वर को अपना जीवन-साथ स्वीकार लिया है और विवाह सम्पन्न हो जाता है। वैदा समाज में स्त्रिओं और पुरुषों को कई पहलुओं में बराबारी का दर्जा दिया जाता है। बेटियों को अपने परिवार की सम्पत्ति में बारबार का हक़ मिलता है। वैदा समाज में एक पति की एक ही पत्नी होने का रिवाज है, हालांकि अगर कोई औरत विधवा हो जाए तो अक्सर उसके पति का भाई उस से विवाह कर लेता है।

अंतिम संस्कार

वैदाओं में मृतों को दफ़ना देने का रिवाज है और किसी की मृत्यु होते ही उसे जल्द-से-जल्द दफ़ना देने का प्रयास किया जाता है। ४ से ५ फ़ुट की क़ब्र खोदी जाती है और उसमें शव को कपड़े में लपेटकर लिटा दिया जाता है। ऊपर से उसे पत्तों और मिटटी से ढककर बंद कर दिया जाता है। शव के साथ-साथ मृतक का कुछ निजी सामान भी दफ़ना दिया जाता है, जैसे कि उसके धनुष-बाण और पान-सुपारी की थैली। क़ब्र के सिरे पर तीन खुले नारियल और एक छोटा लकड़ियों का ढेर और पाऊँ की तरफ़ एक खुला और एक बंद नारियल भी रखा जाता है। कुछ वैदा समुदायों में दफ़नाने से पहले शव को कुछ विशेष जंगली पत्तों या नीम्बू के रस से सुगन्धित किया जाता है। कुछ समुदायों में क़ब्र के सिर, पैर या बीच में 'पथोक' नामक एक प्रकार के कैक्टस को बोया जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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