खाड़ी सहयोग परिषद
खाड़ी सहयोग परिषद (Golf Cooperation Council) यह संगठन फारस की खाड़ी से घिरे देशो का एक क्षेत्रीय समूह है सदस्य देश बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात है इसका मुख्यालय सऊदी अरब रियाद स्थित मेँ है तथा अधिकारिक भाषा अरबी है।
खाड़ी अरब राज्य सहयोग परिषद مجلس التعاون لدول الخليج العربية Cooperation Council for Arab the States of the Golf | ||||
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मानचित्र संकेत सीसीएएसजी सदस्य. | ||||
मुख्यालय | रियाद, सऊदी अरब | |||
अधिकारिक भाषा | अरबी | |||
प्रकार | व्यापार गुट | |||
सदस्यता | ||||
नेताओं | ||||
- | महासचिव | अब्दुल्लाह बिन राशीद अल जायनी | ||
- | सुप्रीम काउंसिल प्रेसीडेँसी | कुवैत[1] | ||
स्थापना | ||||
- | जीसीसी के रूप मेँ | 25 मई 1981 | ||
क्षेत्रफल | ||||
- | कुल | 2673108 km2 | ||
- | जल (%) | 0.6 | ||
जनसंख्या | ||||
- | 2014 जनगणना | 50.761.260 | ||
- | घनत्व | 17.37/km2 | ||
सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक) | 2013 प्राक्कलन | |||
- | कुल | $1,640 | ||
- | प्रति व्यक्ति | $33,005 | ||
मुद्रा | Khaleeji (प्रस्तावित) 6 मुद्राएँ (ISO 4217 in brackets) (BHD) बहरीन दिनार (KWD) कुवैती दिनार (OMR) ओमानी. रियाल (QAR) कतर रियाल (SAR) सऊदी अरब रियाल (AED) संयुक्त अरब अमीरात , दिरहम | |||
जालस्थल http://www.gcc-sg.org | ||||
a. | Sum of component states' populations. |
उद्भव एवं विकास
कुवैत सरकार ने छह अरब खाड़ी राज्यों, जो विशेषसांस्कृतिक और ऐतिहासिक बंधनों से जुड़े हैं, को एक मंचपर लाने के लिये एक संगठन का प्रस्ताव तैयार किया। तद्नुसार रियाद समझौता जारी क्या गया, जिसने सांस्कृतिक, सामाजिक,आर्थिकऔर वित्तीय क्षेत्रों में सहकारीप्रयासों का सुझाव दिया। 25-26 मई, 1981 को अबु धाबी(संयुक्त अरब अमीरात) में छहखाड़ी देशों (बहरीन, कुवैत,ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) केअध्यक्षों ने परिषद के संविधान पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार खाड़ी सहयोग परिषद(जीसीसी) अस्तित्व में आई।बहरीन के उपद्रव के बीच, सउदी अरब और संयुक्त अरबअमीरात ने बहरीन में विद्रोह को खत्म करने के लिए अपनी सैनिक टुकड़ियां वहां भेजीं। कुवैत और ओमान ने सेना भेजने से मना कर दिया।दिसंबर 2011 में सउदी अरब ने प्रस्तावित किया कि जीसीसी ने एक परिसंघ गठित किया। अन्य देशों नेप्रस्ताव के विरुद्ध आपत्ति जताई। जार्डन, मोरक्को, एवं यमन को भविष्य में दी जानी वाली सदस्य के संबंध में भी विचार-विमर्श किया गया।
उद्देश्य
1. सदस्य देशों में एकता लाने के लिये सभी क्षेत्रों में उनके मध्य समन्वय, समाकलन और सहयोग स्थापित करना;
2. सभी क्षेत्रों में सदस्य देशों के नागरिकों के मध्य मौजूदसहयोग को और मजबूत और गहरा बनाना;
3. सभी क्षेत्रों में समान तंत्र विकसित करना, और;
4. सदस्य देशों के नागरिकोंकी भलाई के लिये उद्योग, खनिज, कृषि, समुद्री संसाधन और जैविक संसाधन क्षेत्रों मेंवैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहन देना। संरचना जीसीसी के संगठनात्मक ढांचे में सर्वोच्च परिषद त्रिस्तरीयपरिषद्, सहयोग परिषद सामान्य सचिवालय तथा आर्थिक सामाजिक, औद्योगिक, व्यापार एवं राजनितिक क्षेत्रों में अनेक समितियां सम्मिलित हैं। सर्वोच्च परिषद जीसीसी की सर्वोच्च सत्ता होती है सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष इसपरिषद के सदस्य होते हैं इसकी बैठक प्रत्येक वर्ष होतीहै, जिसमें संगठन की नीतियों का निर्धारण होता है। सभी सदस्य देशों के विदेश मंत्रीमंत्रिस्तरीय परिषद के सदस्यहोते हैं। इस परिषद की प्रत्येक तीन महीने के अंतरालपर एक बैठक होती है जिसमें सर्वोच्च परिषद की बैठक की तैयारियां होती हैं तथा सदस्य देशों में सहयोग और समन्वयको विकसित करने के लिये नीतियों, सिफारिशों और परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाती है। सहयोगपरिषद में एक सामंजन विवाद आयोग होता है, जोसर्वोच्च परिषद से जुड़ा रहता है। सचिवालय का प्रधान अधिकारी महासचिव होता है, जिसकी नियुक्ति तीनवर्षों के लिये सर्वोच्च परिषद के द्वारा होती है। महासचिव की नियुक्ति का नवीनीकरण होसकता है। सचिवालय, जिसमेंअनेक विशिष्ट क्षेत्र सम्मिलितहोते हैं, सर्वोच्च परिषद औरमंत्रिस्तरीय परिषद की सिफारिशों का क्रियान्वयनकरता है।
संरचना
जीससी ने संयुक्त उद्यमपरियोजनाओं के वित्तीय पोषण के लिये एक छह बिलियन कोष का गठन किया।वाणिज्य, उद्योग और वित्त मेंसहयोग करने के लिये 1981 में एक संयुक्त आर्थिकसमझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इससे एक साझा बाजार का मार्ग प्रशस्त हुआ। मध्य-पूर्व की घटनाओं ने खाड़ी नेताओं को संयुक्त सुरक्षा उपायों पर विचार करने के लिये विवश किया। इसकेपरिणामस्वरूप प्रायद्वीपीयकवच (Peninsula Shield) के नाम से एक रक्षा बल कागठन किया गया। जीसीसी केविचारार्थ सबसे महत्वपूर्ण विषय तेल और तेल से संबद्धहैं, क्योंकि इसके सदस्यों के पास विश्व के 40 प्रतिशत तेल के भण्डार हैं। 1980 के दशक में जीसीसी ने ईरान - इराक विवाद के शांतिपूर्ण समाधान में सहयोग देने की इच्छा व्यक्त की। 1987 में जीसीसी ने इस्लामी रूढ़िवाद (ईरानी आक्रामकता) के विस्तार को रोकने के लिये क्षेत्रीय और विश्वव्यापी समर्थन पर बल दिया फिर भी जीसीसी की विश्वसनीयता में उस समय ह्रास हुआ जब वह 1990 में कुवैत पर इराकी अधिग्रहण के विरुद्ध समन्वित राजनयिक या सैनिक प्रतिक्रिया व्यक्त करने में असफल रही। जून 1997 में सदस्य देश, मिस्र और सीरिया के साथ अपने-अपने राष्ट्रीय बाजारों की एकबड़े क्षेत्रीय बाजार में समाहित करने के लिये सहमत हुये। इस उद्देश्य कीपूर्ति के लिये राष्ट्रीय शुल्क दरको समाप्त करने तथा क्षेत्र सेबाहर के देशों से आयातित गैर-राष्ट्रीय वस्तुओं के लिये न्यूनतम और अधिकतम सीमाशुल्क अपनाने के निर्णय लिये गये कतर द्वारा मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थन ने अन्यखाड़ी देशों के साथ उसके तनाव को हवा दी। यह खाड़ीसहयोग परिषद् की मार्च 2014 की बैठक के दौरानअधिक तीव्र हो गई, जिसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब और बहरीन नेकतर से अपने राजनयिकों कोवापिस बुला लिया। 1981 मेंजीसीसी की स्थापना से इसकेसदस्यों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है। इसके सभी सदस्य अरब राजतंत्र बने हुए हैं। कुछ जीसीसी देशों की इराक, जार्डन और यमन से भू-सीमा लगी है,और कुछ की मिस्र, सोमालिया, ईरान, पाकिस्तान और भारत के साथ समुद्री सीमा है। इराक एकमात्र ऐसा देश है जिसकी फारस की खाड़ी केसाथ सीमा लगती है और वह जिसीसी का सदस्य नहीं है।इराक द्वारा खाड़ी युद्ध में कुवैत पर हमले के बाद सन्1990 में इसकी सम्बद्ध सदस्यता को खत्म कर दियागया। 2009 में, यह सूचित किया गया कि इराक जीसीसीचैम्बर ऑफ कॉमर्स के कार्टेल में शामिल था। दिसंबर 2012 के पनामा शिखर सम्मेलन में,जीसीसी देशों ने ईरान द्वारा उनके आतरिक मामलों में हस्तक्षेप को समाप्त करने काआह्वान किया जीसीसी के क्षेत्रमें विश्व की सर्वाधिक तीव्रगति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिसमें अधिकतर का कारण तेल एवं प्राकृतिक गैस की कीमतों में बेतहाशा उछाल है। यह क्षेत्र कई खेल प्रतियोगिताओ के लिए एक आकर्षक स्थल के तौर पर भीउदित हो रहा है, जिसमें दोहा, कतर में 2006 के एशियाई खेल भी शामिल हैं।दोहा ने 2016 के समर ओलंपिक गेम्स के लिए आवेदन करने का भी असफल प्रयास किया। बाद में कतर को 2022 में आयोजित होने वालेएफआईएफए (फीफा) विश्व कप की मेजबानी सौंपी गई। हाल ही में, जीसीसी के नेताओं ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए बेहद कम प्रयास करने पर चर्चा की। जबकि जीसीसीदेशों को सर्वप्रथम आर्थिक संकट ने घेरा और उन्होंने ही इस संकट से निपटने हेतु त्वरित प्रत्युत्तर दिया। उनके कार्यक्रम असमानताओं से संभावित रहे।
महासचिव
कार्यकाल | नाम | देश |
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26 मई 1981 – अप्रैल 1993 | अब्दुल्लाह बिशहरा[2] | कुवैत |
अप्रैल 1993 – अप्रैल1996 | फहीम बिन सुल्तान अल कासिमी[3] | संयुक्त अरब अमीरात |
अप्रैल 1996 – 31 मार्च 2002 | जमील इब्राहिम हैजालेन[4] | सऊदी अरब |
1 अप्रैल 2002 – 31 मार्च 2011 | अब्दुल रहमान बिन हामाद अल अत्तीयाह [5] | कतर |
1 अप्रैल 2011 – वर्तमान | अब्दुल्लातिफ बिन राशीद अल जायनी | बहरीन |