जुरचेन लोग
जुरचेन लोग (जुरचेनी: जुशेन; चीनी: 女真, नुझेन) उत्तर-पूर्वी चीन के मंचूरिया क्षेत्र में बसने वाली एक तुन्गुसी जाति थी।[1] वैसे यह विलुप्त तो नहीं हुई लेकिन १७वीं सदी में उन्होने अपने आप को मान्छु लोग बुलाना शुरू कर दिया और वही उनकी पहचान बन गई। जुरचेनों ने जिन राजवंश की स्थापना की थी जिसने चीन के कुछ हिस्से पर सन् १११५ से १२३४ के काल में शासन किया लेकिन जिसे सन् १२३४ में मंगोल आक्रमणों ने नष्ट कर दिया।[2]
इतिहास
प्राचीनकाल के मंचूरिया में एक मोहे नामक तुन्गुसी जाति रहती थी जिनका कोरिया के बाल्हे राज्य के साथ पहले लड़ाई-झगड़ा था लेकिन जो फिर उसके अधीन हो गए। जुरचेन इन्ही मोहे लोगों के वंशज माने जाते हैं। ११वीं सदी तक जुरचेन ख़ितानी लोगों के लियाओ राजवंश के अधीन हो गए। सन् १११५ में जुरचेनों में एक सक्रीय नेता उभरा जिसका नाम 'वनयन अगुदा' था। उसने जुरचेनों को एक किया और सत्ता पर क़ब्ज़ा कर के जिन राजवंश (१११५–१२३४) शुरू किया। चीनी भाषा में इसका अर्थ 'सुनहरा राजवंश' निकलता है। वनयन अगुदा अपना राज्याभिषेक करवा कर अपना नया नाम 'सम्राट ताईज़ु' रखा। जुरचेन अब ख़ितानियों से आज़ाद हो गए। उन्होंने हान चीनियों के सोंग साम्राज्य को दक्षिण दिशा में खदेड़ दिया और उत्तरी चीन के बड़े भूभाग पर नियंत्रण कर लिया। सोंग राजवंश दक्षिणी इलाक़ों में दक्षिणी सोंग राजवंश के नाम से टिक गया और उनमें और जुरचेनों में झड़पें चलती रहीं। सन् ११८९ के बाद जिन राजवंश दो-तरफ़ा युद्धों में फँस गया - दक्षिण में सोंग के साथ और उत्तर में मंगोलों के साथ। वे थकने लगे और सन् १२३४ में मंगोल हमलावरों ने इनके राज को पूरी तरह ख़त्म कर डाला।
एक नई मान्छु पहचान
सन् १५८६ से लेकर एक तीस साल के अरसे तक एक नुरहाची नामक एक जुरचेन सरदार ने जुरचेन क़बीलों को फिर से एकता के सूत्र में बांधना शुरू किया। उसके बेटे (हुंग ताईजी) ने आगे चलकर इस समुदाय का नाम 'मान्छु' रखा। यही नीव थी जिसपर बाद में चलकर मान्छुओं ने चीन में अपना चिंग राजवंश स्थापित किया।