टार्डीग्रेड
टार्डीग्रेड (Tardigrade) एक जल में रहने वाला आठ-टाँगों वाला सूक्ष्मप्राणी है। इन्हें सन् 1773 में योहन गेट्ज़ा नामक जीववैज्ञानिक ने पाया था। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं।[1][2]
टार्डीग्रेड Tardigrade | |
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मिल्नेसिअम टार्डीग्रेडम (Milnesium tardigradum) | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
अधिसंघ (: | एक्डीसोज़ोआ (Ecdysozoa) |
अश्रेणीत: | टैक्टोपोडा (Tactopoda) |
संघ: | टार्डीग्रेड (Tardigrade) स्पालानज़ानी, १७७७ |
वर्ग | |
टार्डीग्रेड पृथ्वी का सबसे प्रत्यास्थी (तरह-तरह की परिस्थितियाँ झेल सकने वाला) प्राणी है। यह 1 केल्विन (−272 °सेंटीग्रेड) से लेकर 420 केल्विन (150 °सेंटीग्रेड) का तापमान और महासागरों की सबसे गहरी गर्तो में मौजूद दबाव से छह गुना अधिक दबाव झेल सकते हैं।[3] मानवों की तुलना में यह सैंकड़ों गुना अधिक विकिरण (रेडियेशन) में जीवित रह सकते हैं और अंतरिक्ष के व्योम में भी कुछ काल तक ज़िन्दा रहते हैं।[4] यह 30 वर्षों से अधिक बिना कुछ खाए-पिए रह सकते हैं और धीरे-धीरे लगभग पूरी शारीरिक क्रियाएँ रोक लेते हैं और उनमें सूखकर केवल 3% जल की मात्रा रह जाती है। इसके बाद जल व आहार प्राप्त होने पर यह फिर क्रियशील हो जाते हैं और शिशु जन सकते हैं।[1][5][6][7] फिर भी औपचारिक रूप से इन्हें चरमपसंदी नहीं माना जाता क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में यह जितनी अधिक देर रहें इनकी मृत्यु होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है जबकि सच्चे चरमपसंदी जीव अलग-अलग उन चरम-परिस्थितियों में पनपते हैं जिनके लिए वे क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से अनुकूल हों।[1][8][9]