तावीज़
तावीज़ या जंतर ऐसी किसी वस्तु को कहते हैं जो सौभाग्य लाने के लिए या दुर्भाग्य और बुरी नज़र से बचाने के लिए रखी जाए। यह किसी भी प्रकार की वस्तु हो सकती है, जैसे की काला धागा, रत्न, मूर्तियाँ, रुद्राक्ष, सिक्के, चित्र, अंगूठियाँ, पौधे, वग़ैराह। भारतीय उपमहाद्वीप में अक्सर यह किसी माला में कोई धार्मिक वस्तु पिरो के बनाए जाते हैं, जैसे कि रुद्राक्ष या एक छोटी सी थैली में बंद किसी मन्त्र या आयत की पर्ची। यह किसी धार्मिक ग्रन्थ या लेख के रूप में भी हो सकती है, जैसे किसी बीमार के तकिये के नीचे अक्सर हनुमान चालीसा रख दी जाती है।[1][2][3]
तावीज़ मुस्का (तुर्की) या taʿwīdh (अरबी: تعويذ) दक्षिण एशिया में अच्छे भाग्य और संरक्षण के लिए पहना जाने वाला एक ताबीज या लॉकेट है।
मुसलमानों द्वारा पहनी जाने वाली तवीज़ में कुरान[4] और / या अन्य इस्लामी प्रार्थना का समावेश हैं। कुछ मुसलमानों तवीज़ को बुराई से बचाने के लिए पहना है।[5] तावीज़ शब्द का प्रयोग अन्य प्रकार के ताबीज के संदर्भ में किया जाता है। यह एक लटकन हो सकती है, धातु पर नक्काशी या यहां तक कि फ्रेम किए हुए युगल भी हो सकते हैं।
हिंदुओं द्वारा पहना जाने वाला तावीज़ अक्सर उस धर्म में पवित्र ओम प्रतीक को धारण करता है और हिंदी साहित्य में संदर्भित है।
शब्द-साधन
उर्दू और हिंदी में इस्तेमाल होने वाला शब्द तावीज़ अरबी से आता है। अरबी शब्द tawwīdh, जिसका अर्थ है "ताबीज" या "आकर्षण" क्रिया awwadha से बना है, जिसका अर्थ है "किसी ताबीज या भस्म के साथ किसी को मज़बूत करना"। [6]