नैनोप्रौद्योगिकी

[1]

नैनोतकनीकी
पूर्वसन्दर्भ
क्वांटम सिद्धान्त
इलेक्ट्ऱॉनिक चिप · मिनिएचराइजेशन
मूर का नियम · वामनीकरण की बाधाएँ
क्वांटम सिद्धान्त के अनुप्रयोग ·
नैनोतकनीकी के उपागम
तल-शीर्ष उपागम · शीर्ष-तल उपागम
अनुप्रयोग
नैनोकण · नैनो-ओषधियाँ · नैनो पैमाने पर अभिकलन


 · नैनोक्रिस्टल प्रादर्शी

नैनोतकनीक या नैनोप्रौद्योगिकी, व्यावहारिक विज्ञान के क्षेत्र में, १ से १०० नैनो (अर्थात 10−9 m) स्केल में प्रयुक्त और अध्ययन की जाने वाली सभी तकनीकों और सम्बन्धित विज्ञान का समूह है। नैनोतकनीक में इस सीमा के अन्दर जालसाजी के लिये विस्तृत रूप में अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्रों, जैसे व्यावहारिक भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, अर्धचालक भौतिकी, विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र (जो रासायन शास्त्र के क्षेत्र में अणुओं के गैर कोवलेन्त प्रभाव पर केन्द्रित है), स्वयमानुलिपिक मशीनएं और रोबोटिक्स, रसायनिक अभियांत्रिकी, याँत्रिक अभियाँत्रिकी और वैद्युत अभियाँत्रिकी. अभी यह कहना मुशकिल है कि इन रेखाओं में अनुसन्धान के क्या परिणाम होंगे। नैनोप्रौद्योगिकी को विद्यमान विज्ञान का नैनो स्केल में विस्तारीकरण, या विद्यमान विज्ञान को एक नये आधुनिक शब्ध में पुनराधारित कर रहा है।

21वीं सदी नैनो सदी बनने जा रही है। आज वस्तुओं के आकार को छोटा और मजबूत बनाने की होड़-सी मची हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में नैनो तकनीक विकसित करने के लिए दुनिया भर में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे हैं। अति सूक्ष्म आकार, बेजोड़ मजबूती और टिकाऊपन के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिसिन, ऑटो, बायोसाइंस, पेट्रोलियम, फॉरेंसिक और डिफेंस जैसे तमाम क्षेत्रों में नैनो टेक्नोलॉजी की असीम संभावनाएं बन रही हैं।

बक्मिनिस्तर फुल्लरीन् C60, जिसे बकिबॉल भी कहतें हैं, जो कार्बन के सबसे सरल ढाचे, फुल्लरीन्, है। फुल्लरीन् परिवार के सदस्यों पर अनुसन्धान नैनोप्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण विषय है।

नैनोतकनीक में दो प्रमुख पद्वतियों को अपनाया गया है। पहली पद्वति में पदार्थ और उपकरण आणविक घटकों से बनाए जातें हैं जो अणुओं के आणुविक अभिज्ञान के द्वारा स्व-एकत्रण के रसायनिक सिधान्तों पर आधरिथ है। दूसरी पद्वति में नैनो-वस्तुओं का निर्माण बिना अणु-सतह पर नियंत्रण के, बडे सत्त्वों से किया जाता है। नैनोतकनीक में आवेग माध्यम और कोलाइडल् विज्ञान पर नवीकृत रुचि और नयी पीढी के विशलेष्णात्मक उपकरण, जैसे कि परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (AFM) और अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM)। इन यन्त्रों के साथ इलेक्ट्रॉन किरण अश्मलेखन और आणविक किरण एपिटैक्सी जैसे विधिओं के प्रयोग से नैनो-विन्यासों के प्रकलन से इस विज्ञान में उन्नति हुई।

नैनो का अर्थ है ऐसे पदार्थ, जो अति सूक्ष्म आकार वाले तत्वों (मीटर के अरबवें हिस्से) से बने होते हैं। नैनो टेक्नोलॉजी अणुओं व परमाणुओं की इंजीनियरिंग है, जो भौतिकी, रसायन, बायो इन्फॉर्मेटिक्स व बायो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों को आपस में जोड़ती है।

इस प्रौद्योगिकी से विनिर्माण, बायो साइंस, मेडिकल साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स व रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि इससे किसी वस्तु को एक हजार गुणा तक मजबूत, हल्का और भरोसेमंद बनाया जा सकता है। छोटे आकार, बेहतर क्षमता और टिकाऊपन के कारण मेडिकल और बायो इंजीनियरिंग में नेनौ टेक्नोलॉजी तेजी से बढ़ रही है। नेनौ टेक्नोलॉजी से इंजन में कम घर्षण होता है, जिससे मशीनों का जीवन बढ़ जाता है। साथ ही ईंधन की खपत भी कम होती है।

नैनो विज्ञान अति सूक्ष्म मशीनें बनाने का विज्ञान है। ऐसी मशीनें, जो इंसान के जिस्म में उतर कर, उसकी धमनियों में चल-फिर कर वहीं रोग का ऑपरेशन कर सकें। ऐसी मशीनें, जो मोबाइल को आपके नाखून से भी छोटा कर दें। जो ऐसी धातु बना दें, जो स्टील से दस गुना हल्की और सौ गुना मजबूत हो। यानी वह धातु, जिससे ऐसे खंभे बनाए जा सकें, जो सिर्फ कुछ इंच के हों, लेकिन पुल का बोझ सह सकें।

आधुनिक उपयोग में नैनोतकनीक के उदाहरण आणुविक ढांचे पर आधारित पोलिमर और सतह विज्ञान पर आधारित कम्प्यूटर चिप का निर्माण है। नैनोतकनीक के अनेक आशाजनक क्षेत्रों, जैसे क्वांटम डोट्स और नैनोंट्यूब्स, के बावज़ूद, वास्तविक वाणिज्यिक उपयोग अम्बार स्तर पर नैनोंकणों का उपयोग में सीमित है, जैसे धूप मलहम, प्रसाधन सामग्री, रक्षात्मक लेप, दवा सुपुर्दगी[2] और दाग प्रतिरोधी कपड़ों।

उद्गम

नैनोतकनीकी के सिद्धान्तों का पहला प्रयोग (मगर इस नाम के गढने से पूर्व) केल्टेक में दिसम्बर २९ १९५९, अमेरिकन फिसिकल असोसिएशन के बैठक के दोरान रिच्हर्ड फेइन्मन के व्याख्यान, "दैरस् प्लेंटी ओफ् रूम् एट् द बोटम" (आधार में काफी जगह है), में हुआ। फेमन ने एक विधि का उल्लेख किया जिसमें एकल अणुओं और अणुकणिकाओं के प्रकलन हेतु सूक्ष्म यन्त्रों को बनाने का सुझाव है। उन्होंने इस दोरान गुरुत्वाकर्षण के घटते प्रभाव और पृष्ठ तनाव और वॉन् डर वाल् आकर्षण के बढते प्रमुखता का उल्लेख किया। नैनोतकनीक शब्द को गढने का श्रेय टोक्यो विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नोरिओ तानिगुच्हि ने किया। १९८० में इसकी परिभाषा का बखान गहराई सें एरिक ड्रेक्स्लर ने किया, जिन्होंने नैनो स्केल के विज्ञान और यंत्रों को लोकप्रिय बनाया अपने व्याख्यानों से और अपनी किताबें से। नैनोतकनीकी और नैनोविज्ञान १९८० के दशक में इन दो आविश्कारों से हुई: गुच्छ विज्ञान और अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM)। इनकी सहायता से १९८६ मे फुल्लरीन् का और उसके कुछ साल बाद कार्बन नैनोट्यूब का। अर्धचालक नैनो क्रिस्टल का संश्लेषण और उस पर अनुसंधान हुआ। इसके कारण कई नैनोंट्यूबों का आविश्कार हुआ। परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (AFM) का आविश्कार STM के ५ साल बाद हुआ।

कार्बन नैनोंट्यूब्स का सजीवन

मूल सिद्धान्त

एक नैनोमीटर मीटर का सौ करोडवां, या 10−9, भाग है। तुलना के लिये:

  • कार्बन:कार्बन अणुकणिकाओं में अणुओं के बीच की दूरी लगभग .12-.15 nm होती है।
  • डीएनए की चौडाई करीबन 2 nm है।
  • सबसे छोटी कोशिकाएं, मैकोप्लास्मा जाति के जीवाणु की चौडाई करीबन 200 nm है।

एक नैनोमीटर का एक मीटर की तुलनात्मक उपमाएं

  • अगर एक कंचा एक नैनोमीटर हो तो पृथ्वी एक मीटर होगा।[3]
  • एक नैनोमीटर एक आदमी की दाढी में उतना बडाव होगा जब तक के वह अपने अस्तरे को अपने चेहरे तक लाता है।[3]

बडे से छोटा: एक तात्विक परिप्रेक्ष्य

परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र से किया दृष्टिगोचर, स्वच्छ सोने (Au)(100) की सतह का प्रतिबिंब. अलग-अलग अणुओं को सतह में देखा जा सकता है।

जैसे जैसे हम एक भौतिक वयवस्था को छोटा करते जाते हैं, हमें नये भौतिक प्रतिभासों का पता चलता है। इनमें शामिल हैं सांख्यिकीय यांत्रिकी और प्रमात्रा यांत्रिकी। मैक्रो, या १०−६, आयामों में भी इन प्रतिभासों का पता नही चलता। नैनो स्केल में तल-क्षेत्रफल से घनफल के अनुपात के बढ जाने के कारण यांत्रिक, उष्ण, प्रकाशिक तथा उत्प्रेरक जैसे भौतिक गुणधर्मों का प्रभाव बदल जात है। नवीन "यांत्रिक" गुणधर्मों में अनुसंधान नैनोमेकैनिक्स् के तहत हो रहा है।

नैनो-पदार्थों के उत्प्रेरक बरताव का जैव-पदार्थों के साथ अंतःक्रिया के जोखिम का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है।

नैनो-पदार्थों के इन गुणधर्मों के कई अनोखे अनुप्रयोग हैं। उदाहरण के लिये, गैर पारदर्शी पदार्थ का पारदर्शी होना (तांबा), अचर पदार्थों का उत्प्रेरक बनना (प्लाटिनम, सोना), गैर दहनशील का दहनशील पदार्थ बनना (एलुमिनियम), ठोस पदार्थ का सामान्य तापमान में तरल होना (सोना), या कुचालक पदार्थ का चालक होना (सिलिकॉन)।

सरल से जटिल: एक आणुविक परिप्रेक्ष्य

आधूनिक संश्लेषिक रासायनशास्त्र आज वहाँ तक पहुँच चुका है कि छोटे अणुओं से बडे ढाँचें की संरचना की जा सकती है। आज इन पद्यतियां से अनेकों प्रकार के उपयोगी रसायन बनाये जा रहे हैं, जैसे की दवायें और वाणिज्यिक उपयोगी बहुलक। विशाल अणुकणिका रासायन शास्त या/और आणुविक स्वय-संयोजन इसे एक कदम आगे ले जाता है - एक-एक कर अणुओं को पुनर्निधारित आकारों में सहेज कर विशाल अणुकणिकाओं की संरचना करके।

अधिकांश लाभदायक ढांचों के निर्माण नही हो पा रहा है क्योंकि इसके लिये ज़रूरत पडती है जटिल और उष्मागतिकी के सिधांतों के परे अणुओं के असम्भव संरचनाओं की। इसके बावज़ूद प्रकृति में कई ऐसे उदाहरण हैं, जैसे कि जेम्स वॉट्स्न और फ्रैन्सिस क्रिक द्वारा व्याख्यित बेस पैर और किण्वक-विकृत्य अन्योन्यक्रियें। नैनोतकनीक कि चुनौती है प्रकृति के इन सिधांतों का प्रयोग करने की।

आणुविक दांतेदार पहिंयो का नासा के द्वारा कंप्यूटर अनुकरण

आणविक नैनोतकनीकी: एक दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य

आणविक नैनोतकनीकी में, जिसे आणविक निर्माण भी कहते हैं, नैनो स्केल की मशीनों का उपयोग करके आणुविक पैमाने पर नैनो पधार्थों को बनाया जाता है। यह तकनीक सामान्य निर्माण तकनीकों से भिन्न है, जिनका प्रयोग कार्बन नैनोट्यूब्स या नैनोकणों के उत्पादन में होत है। इस तकनीक का आधार प्रकृति के अनन्त उदाहरणों में मिलता है। ड्रेक्स्लर और अन्य वैज्ञानिकों[4] का विश्र्वास है कि, पहले जीव अनुकरण से और फिर यांत्रिक अभियांत्रिकी के सिद्धांतों के उपयोग से उत्पादन तकनीकों को विकसित करके प्रोग्रामयोग्य युक्ति बनेंगे। वहीं कार्लोस मोन्टेमागमो[5] का मनना है कि सिलिकॉन और जैविक आणुविक मशीनों के तकनीकों को साथ लाने से बनेंगी नैनो सिस्टम्। एक और विचारधारा रिच्ह्रड स्माली की, जिनके अनुसार इनमे से किसी भी तकनीक के सफल होने की कोइ भी सम्भावना नही।

डॉ एलेक्स ज़ेटल और उनके साथियों[6][7] ने लॉरेन्स बर्कली लैब में और, हो और ली[8] ने कोर्नेल विश्वविद्यालय में कई महत्वपुर्ण सफलताएँ पायीं हैं।

नैनोप्रौद्योगिकी का उपयोग

हालांकि नैनोतकनीकी के संभावित उपयोगों का बवंडर सा है, अधिकतर वाणिज्यिक उपयोग पहली पीढ़ी के निष्क्रिय पधार्थों का ही है। इनमे शामिल है टैटेनियम डाई आक्साइड का प्रयोग प्रसाधन सामग्रीओं में, चाँदी नैनो कण का प्रयोग खादपदार्थों के डिब्बाबंदी, कपडों, कीटाणुनाशकों और घरेलू यंत्रों में, जस्ता आक्साइड नैनो कण का प्रयोग प्रसाधन सामग्रीओं, रंगलेप (पेंट), बाहरी-फर्नीचर वार्निश; और सेरियम आक्साइड ईंधन-उत्प्रेरक के रूप में।[9]

फिर भी, अभी अनुसंधान किये बिना अगले शिखर पर जाना संभव नही है। 'नैनो' शब्ध के मूल सिद्धातों को उत्पादन के स्तर तक ले जाने के लिये नैनो स्तर मे अणुओं का परिचालन पर अनुसंधान जारी है। किन्तु 'नैनो' शब्ध के तकनीकी उद्यमी और वैज्ञानिकों द्वारा दुरुपयोग एक प्रतिक्षेप को जन्म दे सकता है[10]चिकित्सा क्षेत्र में जैव तकनीक के क्षेत्र में नैनोतकनीक की मदद से कई सारी ऐसी बीमारियों का निदान संभव हो सकता है जो कि अभी काफ़ी मुश्किल है। उदाहरण के लिए नैनोतकनीक से बने शुक्ष्म संयंत्र को मनुष्य के शरीर के अंदर स्थापित करके मनुष्य की बीमारी की स्थिति की बराबर निगरानी रखी जा सकती है।

आज हर दैनिक जीवन की घरेलु वस्तु मे नैनो तकनीक का समावेश है. उपभोक्ता वस्तुओँ मे इनके अनेकोँ अनुप्रयोग हैं. उदाहरण के लिये धूप का चश्मा. ग्लास की कोटिंग मे नैनो तकनीक का उपयोग होता है जिसके कारण वे और भी मजबूत और हानिकारक पैराबैंगनी (UV rays) किरणों को पहले की तुलना मे अधिक बेहतर तरीके से ब्लॉक कर सकते हैँ. सनस्क्रीन और अन्य कॉस्मेटिक्स मे भी नैनो कण होते हैँ जो प्रकाश को आर पार जाने देते हैं परंतु पैराबैंगनी (UV rays) किरणों को रोक देते हैं. पहनावे हेतु कपडों को भी ये अधिक टिकाउ बनाते हैं उन्हे वाटरप्रूफ और हवा प्रूफ बनाते हैं. टेनिस की गेंद भी नैनो कम्पोसिट कोर से बनाई जाती हैं ताकि उनका बॉउंस अधिक हो और पुरानी तकनीक से बनी गेंदों की तुलना मे अधिक टिकाउ हो. पैकेजिंग जैसे की दूध आदि के कार्टन मे नैनो कण इस्तेमाल किये जाते हैँ ताकि दूध प्लास्टिक की थैली मे अधिक समय तक तरोताजा रहे. ये कुछ उदाहरण हैं उन वस्तुओँ के जिन्हे हम अपने दैनिक जीवन मे उपयोग मे लाते हैं. 


आशय

नैनोतकनीकी के व्यापक सम्भावित उपयोगों के दावों के कारण कई चिन्ताओं को व्यक्त किया जा रहा है। सामाजिक स्वास्थ्य पर इसके दुश्प्रभाव के डर से नैनो पदार्थों के औद्योगिक स्तर पर उत्पादन पर, जहाँ शासन के नियंत्रण की अपेक्षा की जा रही है, वहाँ इन नियंत्रणों से इस अनुसन्धान पर प्रोत्साहान देने की राय दी जा रही है।

दीर्घकालीन चिन्ताएं समाज पर आर्थिक कुप्रभाव, जैसे विकसित और विकासशील राष्टों के बीच बढते आर्थिक असमताएं और अर्थव्यवस्था का पश्च-अभावग्रस्त अवस्था में जाना, हैं।

नैनो टेक्नोलॉजी मार्केट का काफी तेजी से विस्तार हो रहा है। वैज्ञानिक गतिविधियां बढ़ने और हर क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी की बढ़ती मांग की वजह से पिछले कुछ वर्ष में इस क्षेत्र में अत्यधिक विस्तार की जरूरत पड़ रही है। अभी तक भारत में नैनो टेक से संबंधित अधिकांश कार्य आयात किए जा रहे हैं। हालांकि देश में रिसर्च का काम तेजी से चल रहा है, लेकिन अभी तक देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। ऐसे में आने वाले समय में इस क्षेत्र में देश में विकास की काफी संभावनाएं हैं। नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में लगातार विकास होने की वजह से युवाओं के लिए इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं उत्पन्न होंगी। वर्तमान में देश के अलावा विदेश में भी अच्छे व जानकार नैनो टेक्नोलॉजिस्ट की काफी मांग है। यह इंटरडिसिप्लिनरी एरिया है, इसलिए इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट में अच्छा होना जरूरी है। लगातार रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वजह से यह बात कही जा सकती है कि आने वाला समय नैनो टेक्नोलॉजी का ही है। 

उल्लेख

बाहरी कड़ियाँ

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