पद्मनाथ गोहाइ बरुवा
पद्मनाथ गोहाइं बरुवा ( असमिया: পদ্মনাথ গোহাঞি বৰুৱা / पद्मनाथ गोहाञि बरुवा ; 1871-1946) आसम साहित्य सभा के प्रथम अध्यक्ष थे। वे आधुनिक असमिया साहित्य के आरम्भिक काल के प्रमुख साहित्यकार थे। वह एक उपन्यासकार, कवि, उत्कृष्ट नाटककार, विश्लेषक और एक विचारोत्तेजक लेखक थे। उनके मर्मस्पर्शी व्यक्तित्व और गहन ज्ञान को देखते हुए, उन्हें असमिया साहित्य का "पितामह" माना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने असमिया साहित्य और समाज में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी, जो कि असमिया व्यक्ति को पहली बार दिया गया एक दुर्लभ सम्मान था। वे असम के पहले साहित्यिक पेंशन-धारी भी थे। [2]
पद्मनाथ गोहाइं बरुवा | |
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जन्म | 24 अक्टूबर 1871 नकरी गाँव, उत्तरी लखीमपुर, असम |
मौत | 7 अप्रैल 1946 | (उम्र 74)
पेशा | उपन्यासकार, कवि, नाटककार |
भाषा | असमिया |
राष्ट्रीयता | Indian |
उल्लेखनीय कामs | भानुमती (1890), असमिया का पहला उपन्यास[1] |
जीवनसाथी | लीलावती, हीरावती |
प्रारंभिक जीवन
पद्मनाथ गोहेन बरुआ का जन्म 1871 में उत्तरी लखीमपुर के नकरी गाँव में हुआ था। [2] वह असम विधान परिषद के प्रथम अहोम सदस्य थे। [3] अपने गाँव में ही एक बंगाली माध्यम के विद्यालय में उनकी शिक्षा आरम्भ हुई। 19 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता गए।
असमिया भाषा और साहित्य के उत्थान के लिए असमिया छात्रों द्वारा स्थापित असमिया भाषार उन्नति साधिनी सभा के सक्रिय सदस्य बने और उनकी यात्रा शुरू हुई। किन्तु वे अपनी बीए की परीक्षा पूरी नहीं कर सके क्योंकि लैटिन सीखने में उन्हें बहुत कठिनाई हुई। उन दिनों भारतीय छात्रों को अपने बीए पाठ्यक्रम के लिए एक प्राचीन भाषा का अध्ययन करना पड़ता था। पद्मनाथ ने अपने विद्यालयी पाथ्यक्रम में संस्कृत नहीं सीखी थी। इसलिए उन्होने लैटिन का विकल्प चुना था।
अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने में असफल होकर उन्होने बैचलर ऑफ लॉ की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया।
इस प्रकार, हालांकि वह कलकत्ता में एक औपचारिक डिग्री हासिल करने में विफल रहे, लेकिन उनके वर्षों में उन पर बहुत प्रारंभिक प्रभाव पड़ा। यहीं पर वे असमिया साहित्य के समकालीन दिग्गजों जैसे गुणीराम बरुआ, हेमचंद्र गोस्वामी, उनके वरिष्ठ साथी लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ आदि के संपर्क में आए। इसके अलावा, कलकत्ता में ही वे अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना से प्रेरित हुए।