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सिख धर्म प्रवेशद्वार

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on सोमवार, 29 अप्रैल 2024
सिख धर्म विश्व का पाँचवां संगठित धर्म है

खंडा
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सिख धर्म (IPA: ['siːkɪz(ə)m] या ['sɪk-] ; पंजाबी: ਸਿੱਖੀ, sikkhī, IPA: ['sɪk.kʰiː] ) पंद्रहवीं शताब्दी में उपजा और सत्रहवीं शताब्दी में धर्म रूप में परिवर्तित हुआ था. यह उत्तर भारत (तथा वर्तमान पाकिस्तान) में पंजाब राज्य में जन्मा था. इसके प्रथम गुरु थे गुरु नानक देव जी, और फ़िर बाद में नौ और गुरु हुए. सिख धर्म: सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, पर उसके पास जाने के लिये दस गुरुओं की सहायता को महत्त्वपूर्ण समझते हैं । इनका धर्मग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब है । अधिकांश सिख पंजाब (भारत) में रहते हैं ।सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे एक-ओंकार कहते हैं । उनका मानना है कि ईश्वर अकाल और निरंकार है । सिख शब्द संस्कृत शब्द शिष्य से निकला है, जिसका अर्थ है शिष्य या अनुयायी. [1][2] सिख धर्म विश्व का नौवां बड्क्षा धर्म है। इसे पाँचवां संगठित धर्म भी माना जाता है। [3]

गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रन्थ है। इसका संपादन सिख धर्म के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया। गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाश 16 अगस्त 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ। 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया, इसमे कुल 1430 पृष्ठ है।

सन्दर्भ

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चयनित लेख

गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रन्थ है। इसका संपादन सिख धर्म के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया। गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाश 16 अगस्त 1604 को हरिमन्दिर साहिब अमृतसर में हुआ। 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया, इसमे कुल 1430 पृष्ठ है।

गुरुग्रन्थ साहिब में मात्र सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं है, वरन् 30 अन्य हिन्दू और मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। इसमे जहां जयदेवजी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पांति के आत्महंता भेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के प्रतिनिधि दिव्य आत्माओं जैसे कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्ना की वाणी भी सम्मिलित है। पांचों वक्त नमाज पढ़ने में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से गुरु ग्रन्थ साहिब अद्वितीय है। इसकी भाषा की सरलता, सुबोधता, सटीकता जहां जनमानस को आकर्षित करती है। वहीं संगीत के सुरों व 31 रागों के प्रयोग ने आत्मविषयक गूढ़ आध्यात्मिक उपदेशों को भी मधुर व सारग्राही बना दिया है।

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ग्यारह गुरु

#नामजन्म तिथिगुरु बनने की तिथिनिर्वाण तिथिआयु
1गुरु गुरु नानक देव15 अप्रैल 146920 अगस्त 150722 सितंबर 153969
2गुरु अंगद देव31 मार्च 15047 सितंबर 153929 मार्च 155248
3गुरु अमर दास5 मई 147926 मार्च 15521 सितंबर 157495
4गुरु राम दास24 सितंबर 15341 सितंबर 15741 सितंबर 158146
5गुरु अर्जुन देव15 अप्रैल 15631 सितंबर 158130 मई 160643
6गुरु हरगोबिन्द सिंह19 जून 159525 मई 160628 फरवरी 164448
7गुरु हर राय16 जनवरी 16303 मार्च 16446 अक्टूबर 166131
8गुरु हर किशन सिंह7 जुलाई 16566 अक्टूबर 166130 मार्च 16647
9गुरु तेग बहादुर सिंह1 अप्रैल 162120 मार्च 166511 नवंबर 167554
10गुरु गोबिंद सिंह22 दिसंबर 166611 नवंबर 16757 अक्टूबर 170841
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चयनित ग्रन्थ

ਸਤਿਜੁਗ ਸਤਿਗੁਰ ਵਾਸਦੇਵ ਵਾਵਾ ਵਿਸ਼ਨਾ ਨਾਮ ਜਪਾਵੈ॥
कृत युग में, विष्णु वासुदेव के रूप में अवतरित होते हैं: वाहेगुरु में अंग्रेज़ी अक्षर ‘V’ विष्णु की याद कराता है.

ਦੁਆਪਰ ਸਤਿਗੁਰ ਹਰੀਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਹਾਹਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਿਆਵੈ॥
द्वापर युग के असली गुरु हैं भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें हरेकृष्ण भी कहते हैं: वाहेगुरु में अंग्रेज़ी अक्षर ‘H’ हरि या हरे कृष्ण की याद कराता है.

ਤ੍ਰੇਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਰਾਮ ਜੀ ਰਾਰਾ ਰਾਮ ਜਪੇ ਸੁਖ ਪਾਵੈ॥
त्रेता युग में राम हुए: वाहेगुरु में अंग्रेज़ी अक्षर ‘R’ राम की याद कराता है. उन्हें स्मरण करने से शांति और खुशी मिलती है.

ਕਲਿਜੁਗ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦ ਗਗਾ ਗੋਵਿੰਦ ਨਾਮ ਜਪਾਵੈ॥
कलि युग में गोविंद नानक रूप में आये: वाहेगुरु में अंग्रेज़ी अक्षर ‘G’ गोविंद की याद कराता है. हमें सदा गोविन्द गोविन्द जपना फ़लदायक होगा.

ਚਾਰੇ ਜਾਗੇ ਚਹੁ ਜੁਗੀ ਪੰਚਾਇਣ ਵਿਚ ਜਾਇ ਸਮਾਵੈ॥
सभी चार युगों के जप पंचायन में समाविष्ट हैं. यानि जन साधारण की आत्मा में.

ਚਾਰੋਂ ਅਛਰ ਇਕ ਕਰ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜਪ ਮੰਤ੍ਰ ਜਪਾਵੈ॥
इन चारों को जोड़ने पर हमें मिलता है Vahiguru यानि वाहेगुरु.

ਜਹਾਂ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਫਿਰ ਤਹਾਂ ਸਮਾਵੈ ॥੪੯॥੧॥
फ़िर जीव अपने मूल यानि परमात्मा में लीन हो जाता है. ||1||

भाई गुरदास - वार 1 पौड़ी 49

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