बुहरान का आक्रमण
बुहरान का आक्रमण या ग़ज़वा ए बुहरान (अंग्रेज़ी:Invasion of Buhran) गश्ती आक्रमण के रूप में माना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के चौथे या पांचवें महीने के 3 हिजरी में हुआ। मुसलमानों के पास एक रिपोर्ट आई थी कि बुहरान से बनू सुलेयम की एक दुर्जेय सेना मदीना पर आगे बढ़ रही थी। मुहम्मद 300 आदमियों को लेकर हिजाज़ के पास बुहरान पहुँचे, जहाँ बनू सुलेयम जनजाति वाले दहशत में भाग गए।
पूरे अभियान के दौरान, वे किसी भी दुश्मन से नहीं मिले, और कोई लड़ाई नहीं हुई। अभियान को मुस्लिम विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी के अनुसार "गश्ती आक्रमण" माना जाता है।
इस घटना का उल्लेख इब्न हिशाम की मुहम्मद की जीवनी और सफिउर्रहमान मुबारकपुरी द्वारा अर्रहीकुल मख़तूम जैसे आधुनिक इस्लामी स्रोतों में किया गया है।[1][2]
सराया और ग़ज़वात
अरबी शब्द ग़ज़वा [3] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[4][5]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक), हिंदी (Pdf)