मानी धर्म
मानी धर्म (फ़ारसी: آیین مانی, आईन-ए-मानी; अंग्रेजी: Manichaeism) एक प्राचीन धर्म था जो ईरान के सासानी साम्राज्य के अधीन बेबीलोनिया क्षेत्र में शुरू होकर मध्य एशिया और उसके इर्द-गिर्द के इलाक़ों में बहुत विस्तृत हो गया। इसकी स्थापना मानी (२१६-२७६ ईसवी अनुमानित) नामक एक मसीहा ने की थी और इसमें बौद्ध धर्म, ज़रथुष्टी धर्म और ईसाई धर्म के बहुत से तत्वों का मिश्रण था। मानी की लिखाईयाँ पूर्ण रूप से तो नहीं बची लेकिन उनके बहुत से अंश और भाषांतरित प्रतियाँ अभी भी उपलब्ध हैं। यह धर्म तीसरी से सातवी शताब्दी ईसवी तक चला और अपने चरम पर विश्व के सबसे मुख्य धर्मों में से एक था। उस समय यह चीन से लेकर रोम तक विस्तृत था।[1]
मानी धर्म में सिखाया गया था कि ब्रह्माण्ड में अच्छे और बुरे के बीच युद्ध चल रहा है, जिसमें अच्छा पक्ष सत्य, प्रकाश और आत्मिक तथ्य से सम्बंधित है जबकि बुरा पक्ष असत्य, अन्धकार और सांसारिक तथ्यों से। इसमें यह दावा किया गया कि महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह और ज़रथुष्ट्र के संदेशों को उनके अनुयायियों ने बिगाड़ दिया था और मानी ने उन्हें फिर से स्पष्ट करा है। मानी ने सात पुस्तकें लिखीं, जिनमें से छह सीरियाई भाषा में और एक मध्य फ़ारसी में थीं।[2]
पश्चिमी संस्कृत में सूत्रवाक्य
मानी धर्म को अंग्रेज़ी में 'मैनीकेइज़्म' (Manichaeism) बुलाया जाता है, जो अब पश्चिमी संस्कृति में एक सूत्रवाक्य की तरह प्रयोग होता है। ऐसे व्यक्ति को 'मैनीकेइस्ट' (Manichaeist) बुलाया जाता है जो किसी उलझे प्रश्न के बारे में ग़लत तरीके से 'सही-ग़लत' की राय रखता हो। ऐसे लोग अन्य लोगों और चीज़ों को 'सिर्फ़ अच्छा' या 'सिर्फ़ बुरा' की केवल दो श्रेणियों में डाल देते हैं। अक्सर इसका अर्थ यह निकलता है कि ऐसे व्यक्ति हर विषय में अपने साथ पूर्णतः सहमत लोगों को 'अच्छा' और ज़रा सी बात पर भी असहमत लोगों को 'बुरा' और विनाश करने लायक शत्रु समझते हैं।[3]