मेसोथेलियोमा

मेसोथेलियोमा, अधिक स्पष्ट रूप से असाध्य मेसोथेलियोमा (Malignant Mesothelioma), एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है, जो शरीर के अनेक आंतरिक अंगों को ढंककर रखनेवाली सुरक्षात्मक परत, मेसोथेलियम, से उत्पन्न होता है। सामान्यतः यह बीमारी एस्बेस्टस के संपर्क से होती है।[1]

Mesothelioma
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Left sided mesothelioma with mediastinal node enlargement : CT scan.
आईसीडी-१०C45.
आईसीडी-163
ICD-O:M9050/3-9055
ओएमआईएम156240
डिज़ीज़-डीबी8074
मेडलाइन प्लस000115
ईमेडिसिनmed/1457 
एम.ईएसएचD008654

प्लुरा (फेफड़ों और सीने के आंतरिक भाग का बाह्य-आवरण) इस बीमारी का सबसे आम स्थान है, लेकिन यह पेरिटोनियम (पेट का आवरण), हृदय,[2] पेरिकार्डियम (हृदय को घेरकर रखने वाला कवच) या ट्युनिका वेजाइनलिस (Tunica Vaginalis) में भी हो सकती है।

मेसोथेलियोमा से ग्रस्त अधिकांश व्यक्ति या तो ऐसे स्थानों पर कार्यरत थे जहां श्वसन के दौरान एस्बेस्टस और कांच के कण उनके शरीर में प्रवेश कर गये या फिर वे अन्य तरीकों से एस्बेस्टस कणों और रेशों के संपर्क में आए. यह संभावना भी व्यक्त की जाती रही है कि एस्बेस्टस या कांच के साथ कार्य करने वाले किसी पारिवारिक सदस्य के कपड़े धोने के कारण भी किसी व्यक्ति में मेसोथेलियोमा विकसित होने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।[3] फेफड़ों के कैंसर के विपरीत, मेसोथेलियोमा और धूम्रपान के बीच कोई संबंध नहीं है, लेकिन धूम्रपान के कारण एस्बेस्टस-प्रेरित अन्य कैंसरों का जोखिम अत्यधिक बढ़ जाता है।[4] एस्बेस्टस के संपर्क में आने वाले लोग एस्बेस्टस संबंधी बीमारियों, मेसोथेलियोमा सहित, के लिये क्षतिपूर्ति हासिल करने हेतु अक्सर वकीलों की सहायता लेते रहे हैं। एस्बेस्टस फंड या कानूनी मुकदमों के माध्यम से मिलने वाला हर्जाना मेसोथेलियोमा में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है (एस्बेस्टस और कानून देखें).

मेसोथेलियोमा के लक्षणों में प्लुरल रिसाव (फेफड़ों और सीने की दीवार के बीच द्रव) या सीने में होने वाले दर्द के कारण सांस लेने में तकलीफ तथा सामान्य लक्षण, जैसे वजन में कमी आना, शामिल हैं। सीने के एक्स-रे तथा सीटी स्कैन (CT Scan) से इसके निदान का अनुमान किया जा सकता है और बायोप्सी (ऊतकों के नमूने) तथा सूक्ष्मदर्शी परीक्षण से इसकी पुष्टि हो सकती है। बायोप्सी लेने के लिये थोरैकोस्कोपी (कैमरेयुक्त एक नली को सीने में डालना) का प्रयोग किया जा सकता है। यह प्लुरल भाग (जिसे प्लुरोडेसिस कहा जाता है) को पोछने के लिये टैल्क (Talc) जैसे पदार्थों के प्रयोग की भी अनुमति देता है, जिससे और अधिक द्रव को एकत्रित होने व फेफड़ों पर दबाव डालने से रोका जा सके। कीमोथेरपी, रेडियेशन थेरपी और कभी-कभी शल्य चिकित्सा के द्वारा किये जाने वाले उपचार के बावजूद इस बीमारी का निदान बहुत कम ही हो पाता है। मेसोथेलियोमा की शीघ्र पहचान के लिये स्क्रीनिंग परीक्षणों के बारे में अनुसंधान जारी है।

संकेत व लक्षण

संभव है कि मेसोथेलियोमा के संकेत या लक्षण एस्बेस्टस के संपर्क में आने के बाद भी 20 से 50 वर्षों तक दिखाई न दें. प्लुरल स्पेस में द्रव के एकत्रित होने (प्लुरल रिसाव) के कारण सांस लेने में समस्या होना, खांसी और सीने में दर्द अक्सर प्लुरल मेसोथेलियोमा के लक्षण होते हैं।

पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा के लक्षणों में वजन घटना और कैशेक्सिया (Cachexia), जलोदर (पेट में बनने वाला एक द्रव) के कारण पेट में सूजन और दर्द शामिल हैं। पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा के अन्य लक्षणों में आंतों में रूकावट, खून जमने में समस्या, रक्ताल्पता और बुखार शामिल हो सकते हैं। यदि कैंसर मेसोथेलियम से बाहर शरीर के अन्य भागों तक फैल गया हो, तो इसके लक्षणों में दर्द, निगलने में तकलीफ और गरदन या चेहरे पर सूजन आदि शामिल हो सकते हैं।

ये लक्षण मेसोथेलियोमा या अन्य, कम गंभीर स्थितियों के कारण उत्पन्न हुए हो सकते हैं।

प्लुरा को प्रभावित करने वाला मेसोथेलियोमा ये संकेत और लक्षण उत्पन्न कर सकता है:

  • सीने में दर्द
  • फेफड़ों से रिसाव, या फेफड़ों के चारों ओर द्रव जमना
  • सांस लेने में तकलीफ
  • थकान या रक्ताल्पता
  • घरघराहट, स्वर बैठना, या खांसी
  • खांसी के कारण निकलने वाले बलगम (द्रव) में रक्त आना (हीमोप्टाइसिस)

गंभीर मामलों में, व्यक्ति के शरीर में ट्युमर भी बन सकता है। व्यक्ति में न्यूमोथोरैक्स, या फेफड़े द्वारा कार्य बंद कर देने, की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। रोग बढ़ सकता है और शरीर के अन्य भागों तक फैल सकता है।

पेट को प्रभावित करने वाले ट्युमर सामान्यतः तब तक कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करते, जब तक कि वे बहुत बाद वाले चरण तक न पहुंच जाएं. लक्षणों में शामिल हैं:

  • पेट दर्द
  • जलोदर या पेट में द्रव का असामान्य जमाव
  • पेट में कोई ढेर जमना
  • आंत के कार्यों में समस्या
  • वज़न घटाना

रोग के गंभीर मामलों में, निम्नलिखित संकेत व लक्षण मौजूद हो सकते हैं:

  • नसों में रक्त के थक्के जमना, जिनके कारण थ्रोम्बोफ्लेबाइटिस हो सकता है
  • डिसेमिनेटेड इन्ट्रावैस्क्युलर कोएग्युलेशन, एक समस्या जिसके कारण शरीर के अनेक अंगों में भीषण रक्त-स्राव होता है
  • पीलिया, अथवा आंखों और त्वचा में पीलापन
  • रक्त शर्करा के स्तर में कमी
  • फेफड़ों में रिसाव
  • पल्मनरी एम्बोली, या फेफड़ों की धमनियों में रक्त के थक्के बनना
  • गंभीर जलोदर

सामान्यतः मेसोथेलियोमा अस्थियों, मस्तिष्क या अधिवृक्क ग्रंथि तक नहीं फैलता. फेफड़ों के ट्युमर सामान्यतः केवल फेफड़ों के एक ओर ही पाये जाते हैं।

कारण

एस्बेस्टस के साथ कार्य करना मेसोथेलियोमा के लिये प्रमुख जोखिम कारक है।[5] संयुक्त राज्य अमरीका में, एस्बेस्टस असाध्य मेसोथेलियोमा का प्रमुख कारण है और इसे "निर्विवाद"[6] रूप से मेसोथेलियोमा के विकास से जुड़ा हुआ माना जाता है। वस्तुतः एस्बेस्टस और मेसोथेलियोमा के बीच संबंध इतना अधिक गहरा है कि कई लोग मेसोथेलियोमा को एक "संकेत (singal)" या "पहरेदार (sentinel)" ट्युमर ही मानते हैं।[7][8][9][10] अधिकांश मामलों में, एस्बेस्टस से संपर्क का इतिहास पाया जाता है। हालांकि, कुछ लोगों में एस्बेस्टस से किसी ज्ञात संपर्क के बिना भी मेसोथेलियोमा होने की जानकारी मिली है। दुर्लभ मामलों में, मेसोथेलियोमा को विकिरण चिकित्सा, इन्ट्राप्लुरल थोरियम डाइऑक्साइड (थोरोट्रास्ट) और अन्य रेशेदार सिलिकेट, जैसे एरियोनाइट, के अंतःश्वसन से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि सिमियन वाइरस एसवी40 (SV40) मेसोथेलियोमा के विकास में एक सहायक कारक के रूप में कार्य कर रहा हो सकता है।[11]

एस्बेस्टस प्राचीन काल में भी ज्ञात था, लेकिन उन्नीसवीं सदी के पूर्व तक इसे खानों से नहीं निकाला जाता था और व्यावसायिक रूप से इसका बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया जाता था। द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान इसका प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया। सन 1940 के दशक के प्रारंभ से ही लाखों अमरीकी मजदूर एस्बेस्टस कणों के संपर्क में आ चुके थे। प्रारंभ में, एस्बेस्टस के संपर्क में आने के जोखिमों की जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं थी। हालांकि, बाद में यह पाया गया कि जलपोत कारखानों, एस्बेस्टस की खानों और मिलों में काम करने वाले लोगों, एस्बेस्टस उत्पादों के उत्पादकों, ताप और निर्माण उद्योगों के मजदूरों और अन्य व्यवसाय करने वालों में मेसोथेलियोमा विकसित होने का जोखिम बहुत अधिक होता है। आज संयुक्त राज्य अमरीका के ऑक्युपेशनल सेफ्टी एन्ड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (ओशा [OSHA]) तथा संयुक्त राज्य अमरीका के ईपीए (EPA) का आधिकारिक दृष्टिकोण यह है कि अमरीकी कानूनों के द्वारा आवश्यक बताये गये सुरक्षा मापदंड और "अनुमतियोग्य संपर्क सीमाएं", हालांकि एस्बेस्टस-संबंधी अधिकांश गैर-असाध्य रोगों को रोक पाने के लिये पर्याप्त हैं, लेकिन फिर भी वे एस्बेस्टस संबंधी कैंसरों, जैसे मेसोथेलियोमा, को रोक पाने या उसके प्रति सुरक्षा प्रदान कर पाने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।[12] इसी प्रकार, ब्रिटिश सरकार के हेल्थ एन्ड सेफ्टी एक्ज़ीक्यूटव (एचएसई [HSE]) ने औपचारिक रूप से कहा है कि मेसोथेलियोमा के लिये कोई भी सीमा बहुत निचले स्तर पर होनी चाहिये और यह बात व्यापक तौर पर स्वीकार की जाती है कि यदि ऐसी कोई सीमा मौजूद भी हो, तब भी वर्तमान में उसे परिमाणित नहीं किया जा सकता. अतः व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये, एचएसई (HSE) यह मानती है कि कोई "सुरक्षित" सीमा अस्तित्व में नहीं है। अन्य लोगों ने भी यह पाया है कि ऐसी किसी सीमा की उपस्थिति का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, जिसके नीचे मेसोथेलियोमा का जोखिम न हो। [13] ऐसा प्रतीत होता है कि दवा की खुराक और इसकी प्रतिक्रिया के बीच एक रेखीय संबंध है, जिसके अनुसार दवा की खुराक बढ़ाने पर बीमारी भी बढ़ती जाती है।[14] इसके बावजूद, मेसोथेलियोमा को एस्बेस्टेस के संक्षिप्त, निम्न-स्तरीय या अप्रत्यक्ष संपर्क से जोड़ा जा सकता है।[6] ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभाव के लिये आवश्यक खुराक की मात्रा पल्मनरी एस्बेस्टॉसिस या फेफड़ों के कैंसर की तुलना में एस्बेस्टस-प्रेरित मेसोथेलियोमा के लिये कम होती है।[6] पुनः एस्बेस्टस से संपर्क के लिये कोई सुरक्षित स्तर नहीं है क्योंकि यह मेसोथेलियोमा के बढ़े हुए जोखिम के साथ संबंधित है।

मेसोथेलियोमा उत्पन्न करने के लिये एस्बेस्टस से संपर्क की अवधि संक्षिप्त हो सकती है। उदाहरणार्थ, केवल 1-3 माह के संपर्क में भी मेसोथेलियोमा उत्पन्न होने के मामले लेखबद्ध किये गये हैं।[15][16] एस्बेस्टस के साथ काम करने वाले लोग इसके संपर्क से जुड़े जोखिम को कर करने के लिये व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण पहनते हैं।

विलंबता की अवधि, पहले संपर्क से लेकर रोग के आविर्भाव तक का समय, मेसोथेलियोमा के मामले में लंबी होती है। लगभग कभी भी यह पंद्रह वर्षों से कम नहीं होती, जबकि इसका अधिकतम स्तर 30-40 वर्ष है।[6] व्यवसाय से संबंधित मेसोथेलियोमा के मामलों की एक समीक्षा में, विलंबिता अवधि का मध्यमान 32 वर्ष था।[17] पेटो व अन्य (Peto et al) से प्राप्त डेटा के आधार पर, मेसोथेलियोमा का जोखिम पहले संपर्क से तीसरी या चौथी घात तक बढ़ता हुआ दिखाई देता है।[14]

परिवेशी संपर्क

यह पाया गया है कि जिन स्थानों पर एस्बेस्टस प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, उनके आस-पास रहने वाले लोगों में मेसोथेलियोमा के मामले अधिक देखे जाते हैं। उदाहरणार्थ, केंद्रीय कैप्पाडोशिया, तुर्की में, तीन छोटे गांवों-तुज़कॉय (Tuzköy), कराइन (Karain) और सारिहिदिर (Sarıhıdır) में होने वाली सभी मौतों में से 50% का कारण मेसोथेलियोमा था। प्रांरभ में, एरियोनाइट, एस्बेस्टस जैसे लक्षणों वाला एक जलसैकतिज खनिज, को इसका कारण माना गया था, हालांकि हाल ही में महामारीसंबंधी विस्तृत परीक्षण में यह पाया गया कि एरियोनाइट अधिकांशतः उन परिवारों में मेसोथेलियोमा का कारण बनता है, जिनमें इसकी आनुवांशिक प्रवृति हो। [18][19]जल की आपूर्ति और खाद्य-पदार्थों में एस्बेस्टस रेशों की उपस्थिति के दस्तावेजों ने लंबी अवधि में, तथा अभी तक इन रेशों के संपर्क के बारे में अज्ञात सामान्य जनसंख्या पर इसके संभावित प्रभावों को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।

व्यावसायिक

एस्बेस्टस के रेशों से संपर्क को बीसवीं सदी के प्रारंभ से ही एक व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम के रूप में पहचाना जा चुका है। महामारी-संबंधी अनेक अध्ययनों ने एस्बेस्टस के व्यावसायिक संपर्क को फेफड़ों के आवरण पर जमने वाले प्लाक, फेफड़ों के स्थूलन के बहाव, एस्बेस्टॉसिस, फेफड़ों और कंठनली के कैंसर, जठरांत्रीय ट्युमर और फेफड़ों के आवरण तथा उदरावरण के असाध्य मेसोथेलियोमा से जोड़ा है। एस्बेस्टस का प्रयोग अनेक औद्योगिक उत्पादों में बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है, जिनमें सीमेंट ब्रेक लाइनिंग, गैस्केट, छतों के तख्ते, फर्श से जुड़े उत्पाद, टेक्सटाइल और इन्सुलेशन शामिल हैं।

एस्बेस्टस का वाणिज्यिक उत्खनन सन 1945 और 1966 के बीच विटेनूम, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में हुआ। खदान में कार्यरत खनन-कर्मियों के एक सामूहिक अध्ययन के अनुसार हालांकि क्रोसिडोलाइट के संपर्क में आने के बाद, पहले 10 वर्षों में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी, लेकिन सन 1985 में ऐसी 80 मौतें हुईं, जिन्हें मेसोथेलियोमा से जोड़कर देखा जा सकता था। सन 1994 तक, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में 539 लोगों की मृत्यु मेसोथेलियोमा से होने की बात कही गई।

पराव्यावसायिक द्वितीयक संपर्क

एस्बेस्टस मजदूरों के परिवारजनों व उनके साथ रहने वाले अन्य लोगों में मेसोथेलियोमा का और संभवतः एस्बेस्टस संबंधी अन्य बीमारियों का भी, जोखिम बढ़ जाता है।[20][21] यह जोखिम एस्बेस्टस मजदूरों के कपड़ों और बालों पर लगकर उनके साथ घर आने वाली एस्बेस्टस धूल का परिणाम हो सकता है। परिवारजनों की एस्बेस्टस के रेशों के संपर्क में आने की संभावना को कम करने के लिये, अक्सर एस्बेस्टस श्रमिकों के लिये अपना कार्यस्थल छोड़ने से पूर्व नहाना और कपड़े बदलना आवश्यक होता है।

इमारतों में एस्बेस्टस

एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगाये जाने के पूर्व सार्वजनिक और निजी दोनों ही परिसरों में प्रयुक्त अनेक इमारती सामग्रियों में एस्बेस्टस हो सकता है। मरम्मत का कार्य या डीआईवाय (DIY) गतिविधियां कर रहे लोग एस्बेस्टस के संपर्क में आ सकते हैं। यूके (UK) में, सन 1999 के अंत में क्राइसोटाइल एस्बेस्टस का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया गया था। सन 1985 के आसपास यूके (UK) में भूरे और नीले एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इन तिथियों से पहले निर्मित या नवीनीकृत इमारतों में एस्बेस्टस सामग्रियां हो सकती हैं।

रोग-निदान

सीएक्सआर (CXR) मेसोथेलिओमा का प्रदर्शन करते हुए
मेसोथेलिओमा के साथ एक रोगी का सीटी स्कैन, कोरोनल खंड (वह खंड जो सामने और आधा विभाजित के एक सामने शरीर के प्रकार है).मेसोथेलिओमा पीले तीर से केंद्रित है, केंद्रीय फुफ्फुस बहाव (द्रव संग्रह) एक पीले रंग की स्टार से चिह्नित है। लाल संख्या: (1) दाहिना फेफड़ा, (2) रीढ़ की हड्डी, (3) बाएं फेफड़े, (4) पसलियां, (5) महाधमनी के हिस्से के उतरते तिल्ली, (6) तिल्ली, (7) बाएं गुर्दे, (8) दाहिना गुर्दा, (9) जिगर.
मेसोथेलिओमा का प्रदर्शन करते हुए फुसफुस द्रव साइटोपैथोलॉजी नमूना के सूक्ष्मग्राफ.
कोर बायोप्सी में मेसोथेलिओमा दिखाते हुए सूक्ष्मग्राफ.

मेसोथेलियोमा का निदान कर पाना अक्सर कठिन होता है क्योंकि इसके लक्षण अनेक अन्य बीमारियों के लक्षणों जैसे ही होते हैं। निदान की शुरुआत रोगी के चिकित्सीय इतिहास की समीक्षा के साथ होती है। एस्बेस्टस के संपर्क में आने का इतिहास मेसोथेलियोमा के लिये चिकित्सीय आशंका को बढ़ा सकता है। एक शारीरिक परीक्षण किया जाता है, जिसके बाद सीने का एक्स-रे और अक्सर फेफड़ों की कार्यक्षमता की जांच भी की जाती है। एक्स-रे फेफड़ों के आवरण की मोटाई बढ़ने की जानकारी दे सकता है, जो कि आमतौर पर एस्बेस्टस से संपर्क के बाद देखी जाती है और मेसोथेलियोमा की आशंका को बढ़ा देती है। सामान्यतः एक सीटी (CT) (या कैट [CAT]) स्कैन अथवा एक एमआरआई (MRI) परीक्षण किया जाता है। यदि द्रव की बहुत बड़ी मात्रा मौजूद हो, तो इस द्रव को एक सीरिंज की सहायता से खींचने पर साइटोपैथोलॉजी के द्वारा असामान्य कोशिकाओं की पहचान भी की जा सकती है। प्लुरल द्रव के लिये, यह कार्य थोरेकोस्टॉमी (सीने में नली डालकर); जलोदर के लिये पैरासेन्टेसिस या जलोदर निकास नली; तथा पेरिकार्डियल[disambiguation needed] बहाव के लिये पेरिकार्डियोसेंटेसिस के द्वारा किया जाता है। हालांकि कोशिकाविज्ञान में प्राणघातक कोशिकाओं की अनुपस्थिति मेसोथेलियोमा को पूरी तरह बाहर नहीं करती, लेकिन यह इसे बहुत अधिक असंभावित बना देती है, विशेषतः यदि कोई वैकल्पिक निदान किया जाता है (उदा.तपेदिक, हृदय-गति का रूकना). दुर्भाग्य से, असाध्य मेसोथेलियोमा का यह निदान केवल साइटोलॉजी के द्वारा कर पाना कठिन होता है, यहां तक कि विशेषज्ञ पैथोलॉजिस्ट के द्वारा भी.

सामान्यतः असाध्य मेसोथेलियोमा के निदान की पुष्टि करने के लिये एक बायोप्सी आवश्यक होती है। चिकित्सक ऊतक का एक नमूना लेते हैं जिसका पैथोलॉजिस्ट द्वारा सूक्ष्मदर्शी की सहायता से परीक्षण किया जाता है। एक बायोप्सी विभिन्न प्रकार से की जा सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि असामान्य क्षेत्र शरीर में कहां स्थित है। यदि कैंसर सीने में हो, तो चिकित्सक थोरैकोस्कोपी कर सकता है। इस विधि में, चिकित्सक सीने की दीवार में एक छोटा-सा चीरा लगाता है और दो पसलियों के बीच सीने में एक पतली, प्रकाशित नली डालता है, जिसे थोरैकोस्कोप कहते हैं। थोरैकोस्कोपी के द्वारा चिकित्सक सीने के भीतर देखता है और ऊतकों के नमूने प्राप्त करता है। वैकल्पिक रूप से, सीने का शल्य-चिकित्सक (Chest Surgeon) सीधे ही सीने को खोल सकता है (थोरैकोटॉमी). यदि कैंसर पेट में हो, तो चिकित्सक लैपेरोस्कोपी कर सकता है। परीक्षण के लिये ऊतक प्राप्त करने के लिये, चिकित्सक पेट में एक छोटा चीरा लगाकर उदर-भाग में एक विशेष उपकरण डालता है। यदि ये विधियां पर्याप्त ऊतक प्रदान न कर सकें, तो अधिक व्यापक निदानात्मक शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है।

इम्युनोहिस्टोकैमिकल अध्ययन असाध्य मेसोथेलियोमा को नियोप्लास्टिक मिमिक्स से अलग पहचान पाने में पैथोलॉजिस्ट की सहायता करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनेक परीक्षण और पैनल उपलब्ध हैं। कोई भी एक परीक्षण मेसोथेलियोमा को कार्सिनोमा से अलग कर पाने या यहां तक कि सुसाध्य बनाम असाध्य की पहचान कर पाने के लिये सटीक नहीं है।

इम्युनोहिस्टोकैमिस्ट्री के विशिष्ट परिणाम
सकारात्मकनकारात्मक
झिल्ली के वितरण में ईएमए (एपिथेलियम मेम्ब्रेन एन्टीजेन)सीईए (कार्सिनोएम्ब्रियोनिक एन्टीजेन)
डब्ल्यूटी१ (WT1) (विल्म्स का ट्युमर)बी72.3 (B72.3)
कैलरेटिनाइनएमओसी-3 1 (MOC-3 1)
मेसोथेलिन-1सीडी15 (CD15)
साइटोकेराटिन 5/6बीईआर-ईपी4 (Ber-EP4)
एचबीएमई-1 (ह्युमन मेसोथेलियल सेल 1)टीटीएफ-1 (TTF-1) (थायरॉइड ट्रान्सक्रिप्शन फैक्टर-1)

ऊतक-विज्ञान की दृष्टि से असाध्य मेसोथेलियोमा के तीन प्रकार होते हैं: (1) एपिथेलियॉइड; (2) सार्कोमेटॉइड; और (3) बायफेसिक (मिश्रित). एपिथेलॉइड असाध्य मेसोथेलियोमा के लगभग 50-60% मामलों से मिलकर बना होता है और सामान्यतः इसका पूर्वानुमान सार्कोमेटॉइड और बायफेसिक उप-प्रकारों की तुलना में बेहतर होता है।[22]

चरणबद्ध-वर्गीकरण

मेसोथेलियोमा का चरणबद्ध-वर्गीकरण इंटरनैशनल मेसोथेलियोमा इन्ट्रेस्ट ग्रुप द्वारा की गई अनुशंसाओं पर आधारित है।[23] प्राथमिक ट्युमर का टीएनएम (TNM) वर्गीकरण, लसीका ग्रंथि की सहभागिता और दूरस्थ मेटास्टेसिस किया जाता है। टीएनएम (TNM) अवस्था के आधार पर मेसोथेलियोमा को चरण Ia–IV (एक से चार-ए[A]) में रखा जाता है।[23][24]

छानबीन

एस्बेस्टस के संपर्क में आए लोगों की छानबीन के लिये एक वैश्विक प्रोटोकॉल पर सहमति बनी हुई है। छानबीन के लिये किये जाने परीक्षण पारंपरिक विधियों की तुलना में मेसोथेलियोमा का शीघ्र निदान कर सकते हैं और इस प्रकार मरीजों के बच पाने की संभावना को बढ़ाते हैं। सीरम ऑस्टियोपॉन्टिन का स्तर एस्बेस्टस के संपर्क में आने वाले लोगों में मेसोथेलियोमा की छानबीन करने के लिये उपयोगी हो सकता है। निदान में पाया गया है कि लगभग 75% मरीजों के सीरम में घुलनशील मेसोथेलाइन-संबंधी प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है और सुझाव दिया गया है कि यह छानबीन के लिये उपयोगी हो सकता है।[25] चिकित्सकों ने मेसोमार्क की परख की जांच करना शुरु कर दिया है, जिसके द्वारा रोगी मेसोथेलियोमा कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित घुलनशील मेसोथेलिन-संबंधी प्रोटीन (एसएमआरपी [SMRPs]) के स्तरों को मापा जाता है।[26]

पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण उत्पन्न हुए क्रियात्मक परिवर्तन)

पेरीकार्डियम के व्यापक भागीदारी के साथ विस्तृत फुफ्फुस मेसोथेलिओमा.

मेसोथेलियम आयतफलक की तरह चपटी की गई कोशिकाओं की एक परत से मिलकर बना होता है, जो शरीर की सीरस गुहिकाओं (serous cavities), जिनमें पेरिटोनियल, पेरिकार्डियल तथा प्लुरल गुहिकाएं शामिल हैं, की उपकला की रेखा का निर्माण करती हैं। फेफड़े के जीवितक (Parenchyma) में एस्बेस्टस के रेशों के एकत्र होने के परिणामस्वरूप आन्त्र फुफ्फुसावरण (visceral pleura) के भेदन में होता है, जहां से रेशों को इसके बाद फेफड़े की सतह तक पहुंच जाते हैं, जिसके कारण असाध्य मेसोथेलियल प्लाक विकसित हो जाता है। पेरोटोनियल मेसोथेलियोमा का कारण बनने वाली प्रक्रियाओं के बारे में अभी तक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है, हालांकि यह प्रस्तावित किया गया है कि फेफड़ों में एकत्रित हो जाने वाले एस्बेस्टस रेशे लसीका तंत्र के माध्यम से उदर व अन्य संबंधित अंगों में पहुंच जाते हैं। इसके अतिरिक्त, एस्बेस्टस रेशों से दूषित बलगम को निगलने के बाद एस्बेस्टस रेशे आंत में एकत्रित हो सकते हैं।

यह देखा गया है कि एस्बेस्टस या अन्य खनिज रेशों से जुड़ा प्लुरल प्रदूषण कैंसर का कारण बनता है। एस्बेस्टस के लंबे पतले रेशे (नीला एस्बेस्टस, एम्फिबोल रेशे) "पंखदार रेशों" (क्राइसोलाइट या सफेद एस्बेस्टस रेशे) की तुलना में अधिक कैंसर के अधिक प्रभावी कारक होते हैं।[6] हालांकि, अब इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि छोटे कण लंबे रेशों के बजाय अधिक घातक हो सकते हैं। वे हवा में निलंबित बने रहते हैं, जहां से वे सांस के साथ शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और वे फेफड़ों में अधिक सरलता से तथा गहराई तक भेदन कर सकते हैं। नॉर्थ शोर-लॉन्ग आइलैण्ड ज्युइश हेल्थ सिस्टम में फेफड़ों संबंधी व गहन-चिकित्सा विभाग के प्रमुख, डॉ॰ एलन फीन ने कहा था कि "दुर्भाग्य से [वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से] हम संभवतः एस्बेस्टस के स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं के बारे में बहुत अधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे." डॉ॰ फीन "वर्ल्ड ट्रेड सेंटर सिन्ड्रोम" से या ढहा दी गई इस इमारत के पास केवल एक या दो दिनों के संक्षिप्त संपर्क के कारण उत्पन्न श्वसन-संबंधी समस्याओं से पीड़ित अनेक मरीजों का उपचार किया था।[27]

यह दर्शाया जा चुका है कि फॉस्फोरिलेटेड क्राइसोलाइट रेशों के अंतः विषमांगी संचारण के बाद चूहों में मेसोथेलियोमा विकसित हो जाता है। यह सुझाव दिया गया है कि मनुष्यों में, रेशों का प्लुरा तक संचरण मेसोथेलियोमा की रोगजनकता के लिये गंभीर होता है। चूहों की प्लुरल व पेरिटोनियल गुहिकाओं में एकत्रित एस्बेस्टस रेशों के सीमित घावों तक मैक्रोफेजों व प्रतिरक्षा तंत्र की नय कोशिकाओं की लक्षणीय संख्या के देखा गया प्रयोग इसका समर्थन करता है। रोग के बढ़ते जाने पर इन घावों ने मैक्रोफेजों को आकर्षित व एकत्रित करना जारी रखा और घावों के भीतर होने वाले कोशिकीय परिवर्तनों की पराकाष्ठा आकृति-विज्ञान के संदर्भ में एक असाध्य ऐसे ट्युमर के रूप में हुई।

प्रयोगात्मक प्रमाण दर्शाते हैं कि प्रारंभ और विस्तार के क्रमिक चरणों में मेसोथेलियोमा के विकास के साथ एस्बेस्टस एक पूर्ण कैंसरकारक के रूप में कार्य करता है। एस्बेस्टस रेशों द्वारा सामान्य मेसोथेलियल कोशिकाओं के असाध्य रूपांतरण के पीछे स्थित आण्विक कार्यविधि इसकी ऑन्कोजीनिक (Oncogenic) क्षमताओं के प्रदर्शन के बावजूद अस्पष्ट बनी हुई है (अगले अनुच्छेद के बाद वाला अनुच्छेद देखें). हालांकि, एस्बेस्टस रेशों के संपर्क में आने के बाद सामान्य मानवीय मेसोथेलियल कोशिकाओं से असाध्य फेनोटाइप में रूपांतरण का प्रयास प्रयोगशाला में सफल नहीं हो सका है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि एस्बेस्टस रेशे मेसोथेलियम की कोशिकाओं के साथ प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क तथा मैक्रोफेजों जैसी ज्वलनशील कोशिकाओं के साथ अंतःक्रिया के बाद होने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों के माध्यम से कार्य करते हैं।

एस्बेस्टस रेशों व डीएनए (DNA) के बीच अंतःक्रिया के विश्लेषण ने यह दर्शाया है कि फैगोसाइटोसयुक्त रेशे गुणसूत्रों से संपर्क कर पाने में सक्षम होते हैं और अक्सर वे या तो क्रोमेटिन रेशों के साथ जुड़ जाते हैं अथवा गुणसूत्र के भीतर फंस जाते हैं। एस्बेस्टस के रेशे और गुणसूत्रों या तंतु उपकरण के संरचनात्मक प्रोटीनों में जटिल असामान्यताएं शामिल हो सकती हैं। गुणसूत्र 22 के युग्म में से एक गुणसूत्र का नष्ट हो जाना (Monosomy) सबसे आम असामान्यता है। अक्सर देखी जानी वाली असामान्यताओं में 1p, 3p, 9p और 6q गुणसूत्र अंगों का संरचनात्मक पुनर्व्यवस्थापन शामिल है।

मेसोथेलियोमा कोशिका पंक्ति में आम जीन असामान्यताओं में ट्युमर को रोकने वाले जीनों को मिटा दिया जाना शामिल है:

  • 22q12 पर न्यूरोफाइब्रोमैटॉसिस टाइप 2
  • पी16 (P16)INK4A
  • पी14 (P14)ARF

यह भी देखा गया है कि एस्बेस्टस लक्ष्य कोशिकाओं में बाहरी डीएनए (DNA) के प्रवेश में मध्यस्थ की भूमिका निभाता है। इस बाहरी डीएनए (DNA) के प्रवेश के परिणामस्वरूप विभिन्न संभावित क्रियाविधियों के कारण उत्परिवर्तन और ऑन्कोजेनेसिस उत्पन्न हो सकते हैं:

  • ट्युमर को रोकने वाले जीनों की निष्क्रियता
  • ऑन्कोजीनों का सक्रिय हो जाना
  • उत्प्रेरक क्षेत्र वाले किसी बाहरी डीएनए (DNA) के प्रवेश के कारण प्रोटो-ऑन्कोजीनों का सक्रिय हो जाना
  • डीएनए (DNA) की मरम्मत करने वाले किण्वकों का सक्रिय हो जाना, जो त्रुटि-प्रवण हो सकते हैं
  • टेलोमरेज़ का सक्रिय हो जाना
  • एपोप्टॉसिस (apoptosis) की रोकथाम

यह देखा गया है कि एस्बेस्टस रेशे मैक्रोफेजों के कार्यों और स्रावण विशेषताओं को परिवर्तित कर देते हैं, जिससे अंततः मेसोथेलियोमा के विकास का समर्थन करने वाली स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। एस्बेस्टस फैगोसाइटॉसिस के बाद, मैक्रोफेज हाइड्रॉक्सिल अणुसमूहों (Radicals), जो कोशिकीय अवायवीय चयापचय का एक सामान्य उपोत्पाद हैं, का अधिक मात्रा में उत्सर्जन करते हैं। हालांकि, इन मुक्त अणुसमूहों को क्लास्टोजेनिक के रूप में जाना जाता है और ऐसी धारणा है कि मेम्ब्रेन-सक्रिय एजेंट एस्बेस्टस की कैंसरकारकता को बढ़ाते हैं। ये ऑक्सीडेन्ट डीएनए (DNA) के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंतःक्रिया करके, मेम्ब्रेन-संबंधी कोशिकीय घटनाओं को परिवर्तित करके, ऑन्कोजीन के सक्रियण और कोशिकीय एन्टीऑक्सीडेन्ट प्रतिरक्षाओं के विचलन को शामिल करके ऑन्कोजेनिक प्रक्रिया में सहभागी हो सकते हैं।

एस्बेस्टस में प्रतिरक्षा को दबाने वाली विशेषताएं भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, यह प्रदर्शित किया जा चुका है क्राइसोलाइट रेशे प्रयोगशाला के नियंत्रित वातावरण में फाइटोहेमैग्लुटिनिन-प्रेरित परिधीय रक्त लिम्फोसाइट के विकास को हतोत्साहित करते हैं, प्राकृतिक मारक कोशिका लाइसिस का दमन करते हैं और लिम्फोकाइन-प्रेरित मारक कोशिका की व्यावहारिकता व पुनर्प्राप्ति को लक्षणीय रूप से घटा देते हैं। इसके अलावा, एस्बेस्टस-प्रेरित मैक्रोफेजों में आनुवांशिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्रजननक्षम मेसोथेलियल कोशिका माइटोजेन, जैसे प्लैटलेट-व्युत्पन्न विकास कारक (पीडीजीएफ [PDGF]) की मुक्ति और रूपांतरण विकास कारक-β (टीजीएफ [TGF]) के रूप में मिलता है, जिसमें, आगे एस्बेस्टस रेशों द्वारा क्षति के बद मेसोथेलियल कोशिकाओं का दीर्घकालिक उत्तेजन व प्रसरण शामिल हो सकता है।

उपचार

असाध्य मेसोथेलियोमा के लिये रोगनिदान अभी भी निराशाजनक बना हुआ है, हालांकि कीमोथेरपी के नए प्रकारों और बहुपद्धतिपरक उपचारों के कारण कुछ हद तक सुधार दिखाई दे रहा है।[28] प्रारंभिक चरणों में असाध्य मेसोथेलियोमा के उपचार से रोगनिदान बेहतर होता है, लेकिन पूरी तरह ठीक हो जाने के मामले बहुत अधिक दुर्लभ हैं। असाध्यता के नैदानिक व्यवहार पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है, जिनमें प्लुरल गुहिका की सतत मेसोथेलियल सतह, जो अपपर्णित कोशिकाओं के माध्यम से स्थानीय मेटास्टैसिस का समर्थन करती है, अंतःस्थ ऊतक व प्लुरल गुहिका के भीतर स्थित अन्य अंगों तक आक्रमण, तथा एस्बेस्टस से संपर्क और रोग के विकास के बीच अत्यधिक लंबा विलंबिता काल शामिल हैं। हिस्टोलॉजिकल उपप्रकार तथा मरीज की आयु व स्वास्थ्य की अवस्था भी रोगनिदान के पूर्वानुमान में सहायता करते हैं।

शल्य-चिकित्सा

शल्य-चिकित्सा, स्वयं में, निराशाजनक साबित हुई है। एक बड़ी श्रृंखला में, शल्य-चिकित्सा (एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी सहित) के द्वारा उत्तरजीविता का मध्यमान केवल 11.7 माह था।[28] हालांकि, विकिरण व कीमोथेरपी के साथ संयोजित किये जाने पर अनुसंधान परिवर्तित सफलता की ओर संकेत करते हैं (ड्युक, 2008). (शल्य-चिकित्सा के साथ बहुपद्धति उपचार के बारे में अधिक जानकारी के लिये नीचे देखें). एक प्लुरेक्टॉमी/डिकॉर्टीसेशन सबसे आम शल्य-चिकित्सा है, जिसमें सीने की आवरण-रेखा हटा दी जाती है। एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी (ईपीपी [EPP]) कुछ कम प्रचलित है, जिसमें फेफड़े, सीने की भीतरी आवरण रेखा, अर्ध-मध्यपट तथा हृदयावरण को हटा दिया जाता है।

विकिरण

परिसीमित रोग वाले मरीजों के लिये और जो मरीज एक पूर्ण शल्य-चिकित्सा को सह सकते हों उनके लिये, अक्सर शल्य-चिकित्सा के बाद एक संयुक्त उपचार के रूप में विकिरण का प्रयोग किया जाता है। सीने के समस्त अर्ध-भाग का विकिरण पद्धति द्वारा उपचार किया जाता है, जो अक्सर कीमोथेरपी के साथ दी जाती है। शल्य-चिकित्सा के बाद केमोथेरेपी के साथ विकिरण का प्रयोग करने की इस पद्धति की शुरुआत बॉस्टन स्थित ब्राइगम एन्ड वीमेन'स हॉस्पिटल (Brigham & Women's Hospital) की थोरैसिक ऑन्कोलॉजी टीम द्वारा की गई थी।[29] एक पूर्ण शल्य-चिकित्सा के बाद विकिरण और कीमोथेरपी का प्रयोग करने के परिणामस्वरूप मरीजों के एक चयनित समूह की उत्तरजीविता में वृद्धि हुई है और इनमें से कुछ मरीज 5 वर्षों से अधिक समय तक भी जीवित रहे। मेसोथेलियोमा के प्रति एक आरोग्यकारी पद्धति के एक भाग के रूप में, सीने की निकास नली के प्रवेश-स्थलों पर रेडियोथेरेपी का प्रयोग भी किया जाता है, ताकि सीने की दीवार में इस पथ पर ट्युमर के विकास को रोका जा सके।

हालांकि मेसोथेलियोमा केवल रेडियोथेरेपी के साथ किये जाने वाले आरोग्यकारी उपचार के प्रति सामान्यतः प्रतिरोधी होता है, लेकिन ट्युमर के विकास से उत्पन्न होने वाले लक्षणों, जैसे किसी मुख्य रक्तवाहिका में व्यवधान, से छुटकारा दिलाने के लिये कभी-कभी प्रशामक उपचार परहेजों का प्रयोग किया जाता है। आरोग्यकारी उद्देश्य से अकेले प्रयोग किये जाने पर विकिरण चिकित्सा ने कभी भी मेसोथेलियोमा से उत्तरजीविता में कोई सुधार प्रदर्शित नहीं किया है। शल्य-चिकित्सा द्वारा न हटाये गये मेसोथेलियोमा का उपचार करने के लिये विकिरण की आवश्यक खुराक अत्यधिक विषैली साबित होगी.

कीमोथेरपी

कीमोथेरपी मेसोथेलियोमा के लिये एकमात्र शल्य-चिकित्सा है, जो अनियंत्रित और नियंत्रित परीक्षणों में उत्तरजीविता को बढ़ाने वाली साबित हुई है। सन 2003 में वोगेलज़ैंग (Vogelzang) व उनके सहयोगियों द्वारा प्रकाशित एक ऐतिहासिक अध्ययन में अकेली सिस्प्लैटिन कीमोथेरपी की तुलना सिस्प्लैटिन व पेमेट्रेक्स्ड (ब्रांड नाम ऐलिम्टा) कीमोथेरपी के संयोजन के साथ उन मरीजों में की गई थी, जिन्हें पहले असाध्य प्लुरल मेसोथेलियोमा के लिये कीमोथेरपी नहीं दी गई थी और जो अधिक आक्रामक "उपचारात्मक" शल्य-चिकित्सा के उम्मीदवार नहीं थे।[30] यह परीक्षण असाध्य प्लुरल मेसोथेलियोमा में कीमोथेरपी से होने वाले उत्तरजीविता लाभ की पहली रिपोर्ट थी, जिसने दर्शाया कि जिन मरीजों का उपचार केवल सिस्प्लैटिन के साथ किया गया था, उनमें उत्तरजीविता की अवधि का मध्यमान 10 माह था, जबकि मरीजों के जिस समूह का उपचार सिस्प्लैटिन व पेमेट्रेक्स्ड के संयोजन से किया गया और जिन्हें फोलेट व विटामिन B12 के द्वारा अतिरिक्त पोषण भी दिया गया, उनमें यह 13.3 माह था। परीक्षण में अधिकांश मरीजों को विटामिन का अतिरिक्त पोषण भी दिया गया और जिन मरीजों ने प्रतिदिन फोलेट 500mcg की मौखिक खुराक और प्रत्येक 9 सप्ताह के अंतराल में इंट्रामस्क्युलर विटामिन B12 1000mcg की खुराक प्राप्त की, उनमें पेमेट्रेक्स्ड से जुड़े दुष्प्रभाव उन मरीज़ों की तुलना में बहुत कम थे, जिन्हें पेमेट्रेक्स्ड विटामिन के पूरक पोषण के बिना दिया गया था। लक्ष्य प्रतिक्रिया दर सिस्पैटिन समूह में 20% से लेकर संयोजित पेमेट्रेक्स्ड समूह में 40% तक बढ़ गई। कुछ दुष्प्रभाव, जैसे मिचली और उल्टी आना, मुखपाक और दस्त संयोजित पेमेट्रेक्स्ड समूह में अधिक आम थे, लेकिन इन्होंने मरीजों के केवल एक छोटे-से समूह को ही प्रभावित किया और कुल मिलाकर विटामिन के पूरक पोषण भी दिया जाने पर पेमेट्रेक्स्ड व सिस्प्लैटिन का संयोजन मरीजों के लिये सुसह्य था; संयोजिक पेमेट्रेक्स्ड समूह में जीवन की गुणवत्ता व फेफड़ों की कार्यक्षमता के परीक्षणों दोनों में वृद्धि हुई। फरवरी 2004 में, यूनाइटेड स्टेट्स फूड एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने असाध्य प्लुरल मेसोथेलियोमा के उपचार के लिये पेमेट्रेक्स्ड के प्रयोग की अनुमति प्रदान की। हालांकि, कीमोथेरपी के इष्टतम प्रयोग को लेकर अभी भी कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं, जिनमें उपचार को प्रारंभ करने का सही समय और दिये जाने चक्रों की इष्टतम संख्या शामिल हैं।

रैल्टिट्रेक्स्ड के साथ सिस्प्लैटिन के प्रयोग ने उत्तरजीविता में वैसा ही सुधार प्रदर्शित किया है, जैसा सिस्प्लैटिन अ पेमेट्रेक्स्ड के संयोजन के द्वारा देखा गया है, लेकिन रैल्टिट्रेक्स्ड अब इस संकेत के लिये व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है। जो मरीज़ पेमेट्रेक्स्ड को नहीं सह सकते, उनके लिये गेम्सिटेबाइन या वाइनोरेल्बाइन के साथ सिस्पैटिन का संयोजन या केवल वाइनोरेल्बाइन एक विकल्प है, हालांकि इन दवाओं के लिये कोई उत्तरजीविता लाभ प्रदर्शित नहीं किया गया है। जिन मरीज़ों में सिस्प्लैटिन का प्रयोग न किया जा सकता हो, उनमें इसके स्थान पर कार्बोप्लैटिन का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन गैर-यादृच्छिक डेटा कार्बोप्लैटिन-आधारित संयोजनों के लिये रुधिरविज्ञान संबंधी विषाक्तता की उच्च दरें और निम्न प्रतिक्रिया दरें प्रदर्शित करता है, हालांकि इसमें भी उत्तरजीविता के आंकड़े सिस्प्लैटिन पाने वाले मरीजों जैसे ही हैं।[31]

ड्युक यूनिवर्सिटी द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित एक अध्ययन, जिसके अनुसार सुधार में लगभग 50 पॉइन्ट की वृद्धि का निष्कर्ष निकाला गया था, के बाद जनवरी 2009 में, यूनाइटेड स्टेट्स एफ़डीए (FDA) ने चरण I या II के मेसोथेलियोमा के लिये विकिरण के साथ शल्य-चिकित्सा जैसे पारंपरिक उपचारों के प्रयोग या कीमोथेरपी की अनुमति दी।

प्रतिरक्षा चिकित्सा

प्रतिरक्षा चिकित्सा में शामिल उपचार परहेजों ने भिन्न-भिन्न परिणाम प्रदान किये हैं। उदाहरणार्थ, यह पाया गया कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के प्रयास में बैसीलस कैल्मेट-ग्वेरिन (Bacillus Calmette-Guérin) (बीसीजी [BCG]) के इंट्राप्लुरल संचारण का मरीज को कोई लाभ नहीं होता (हालांकि यह ब्लैडर के कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिये लाभदायाक हो सकता है). मेसोथेलियोमा कोशिकाएं प्रयोगशाला के नियंत्रित वातावरण में इंटरल्युकिन-2 (आईएल-2 [IL-2]) द्वारा सक्रियण के बाद एलएके (LAK) कोशिकाओं के प्रति अतिसंवेदनशील साबित हुईं. वस्तुतः आईएल-2 (IL-2) विषाक्तता के अस्वीकार्य रूप से उच्च स्तरों तथा बुखार व दुर्बलता जैसे दुष्प्रभावों के कारण यह परीक्षण रोक दिया गया था। इसके बावजूद, इंटरफेरॉन अल्फा के साथ अन्य परीक्षण बहुत अधिक उत्साहजनक साबित हुए और इनमें 20% मरिजों ने ट्युमर की मात्रा में 50% से अधिक की कमी महसूस की तथा इसके दुष्प्रभाव भी न्यूनतम रहे।

तापीय इंट्राऑपरेटिव इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरपी

पॉल शुगरबेकर ने वॉशिंग्टन कैंसर इंस्टीट्यूट में तापीय इंट्राऑपरेटिव इंट्रापेरिटोनियल की कीमोथेरपी के नामक विधि विकसित की। [32] शल्य-चिकित्सक यथासंभव अधिकांश ट्युमर हटा देता है और इसके बाद 40 और 48° सेल्सियस के बीच के तापमान पर गर्म किये गये एक कीमोथेरपी एजेंट द्वारा पेट में प्रत्यक्ष उपचार किया जाता है। यह द्रव 60 से 120 मिनटों तक भरकर रखा जाता है और फिर इसे बहा दिया जाता है।

यह तकनीक चयनित दवाओं की उच्च मात्रा के द्वारा उदर और श्रोणि सतहों में उपचार को सुविधाजनक बना देती है। कीमोथेरपी उपचार को गर्म करने से ऊतकों का भेदन करके दवाओं को भीतर भेजा जा सकता है। इसके अलावा, गर्म करने से सामान्य कोशिकाओं की तुलना में असाध्य कोशिकाओं को अधिक क्षति पहुंचती है।

इस तकनीक का प्रयोग असाध्य प्लुरल मेसोथेलियोमा से ग्रस्त मरीजों में भी किया जाता है।[33]

बहुपद्धति उपचार

ठोस ट्युमर के उपचार से संबंधित सभी मानक विधियों-विकिरण, कीमोथेरपी व शल्य-चिकित्सा- का परीक्षण असाध्य प्लुरल मेसोथेलियोमा से ग्रस्त मरीजों में किया जाता रहा है। हालांकि, अपने आप में शल्य-चिकित्सा बहुत अधिक प्रभावी नहीं है, लेकिन सहायक कीमोथेरपी व विकिरण के संयोजन में शल्य-चिकित्सा (त्रिपद्धति उपचार) ने अनुकूल पूर्वाभासी कारकों वाले मरीजों में उत्तरजीविता को बहुत अधिक (3-14 वर्षों तक) विस्तारित कर दिया है।[29] हालांकि, बहुपद्धति उपचार के परीक्षण की अन्य बड़ी श्रृंखला ने उत्तरजीविता में केवल मध्यम सुधार (उत्तरजीविता का मध्यमान 14.5 माह और केवल 29.6% मरीज ही 2 वर्षों तक जीवित रहे) ही प्रदर्शित किया है।[28] साइटोरिडक्टिव शल्य-चिकित्सा के द्वारा ट्युमर के ढेर को कम करना उत्तरजीविता को बढ़ाने का मुख्य उपाय है। दो प्रकार की शल्य-चिकित्सा विकसित की गई है: एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी और प्लुरेक्टॉमी/डीकॉर्टिकेशन. इन ऑपरेशनों को करने के संकेत अद्वितीय हैं। ऑपरेशन का चयन मरीज के ट्युमर के आकार पर निर्भर होता है। यह एक महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि यह पहचाना जा चुका है कि ट्युमर की मात्रा मेसोथेलियोमा के लिये एक पूर्वाभासी कारक है।[34] प्लुरेक्टॉमी/डीकॉर्टिकेशन में अंतःस्थ फेफड़े को छोड़ दिया जाता है और इसे बीमारी के प्रारंभिक चरण वाले मरीजों पर किया जाता है, जब इसका उद्देश्य केवल दर्द को कम करना नहीं, बल्कि समस्त दृश्य ट्युमर को हटाना (मैक्रोस्कोपिक कम्पलीट रीसेक्शन) हो। [35] एक्स्ट्राप्लुरल न्यूमोनेक्टॉमी एक अधिक व्यापक ऑपरेशन है, जिसमें पार्श्विक तथा आंत्र फुफ्फुसावरणों, अंतःस्थ फेफड़े, इप्सिलैटरल मध्यपट और इप्सिलैटरल हृदयावरण को शल्य-क्रिया के द्वारा हटाया जाता है। यह ऑपरेशन मरीजों के उस उपसमूह के लिये बताया जाता है, जिनमें ट्युमर अधिक विकसित हो और जो न्यूमोनेक्टॉमी को सह सकते हों.[36]

महामारी-विज्ञान

हालांकि ज्ञात मामलों की संख्या पिछले 20 वर्षों में बढ़ी है, लेकिन मेसोथेलियोमा अभी भी एक अपेक्षाकृत दुर्लभ प्रकार का कैंसर है। एक से दूसरे देश के बीच मामलों की दर में अंतर है और न्यूनतम दर ट्युनिशिया और मोरॉक्को में प्रति 1,000,000 में 1 से कम व ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम में सर्वाधिक: प्रति 1,000,000 में 30 प्रतिवर्ष है।[37] तुलना के लिये, धूम्रपान के उच्च स्तरों वाली जनसंख्याओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले प्रति 1,000,000 में 1,000 से अधिक हो सकते हैं। औद्योगिकीकृत पश्चिमी देशों में असाध्य मेसोथेलियोमा के मामलों की दर वर्तमान में 7 से 40 प्रति 1,000,000 है, जो कि पिछले कुछ दशकों में एस्बेस्टस के साथ जनसंख्या के संपर्क पर निर्भर करती है।[38] ऐसा अनुमान लगाया गया है कि सन 2004 में संयुक्त राज्य अमरीका में 15 प्रति 1,000,000 के साथ संभवतः यह अपने उच्चतम स्तर पर थी। विश्व के अन्य भागों में भी इसके मामलों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है। मेसोथेलियोमा महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है और इसका खतरा उम्र के साथ-साथ बढ़ता जाता है, लेकिन पुरुषों या महिलाओं में से किसी को भी यह बीमारी किसी भी आयु में हो सकती है। कुल मेसोथेलियोमा में से लगभग 1/5 से 1/3 पेरिटोनियल होते हैं।

सन 1940 और 1979 के बीच, लगभग 27.5 मिलियन लोग संयुक्त राज्य अमरीका में व्यावसायिक रूप से एस्बेस्टस के संपर्क में आए.[39] सन 1973 और 1984 के बीच, कॉकेशियाई पुरुषों में प्लुरल मेसोथेलियोमा के मामलों में 300% की वृद्धि हुई। सन 1980 से लेकर सन 1990 के दशक के अंत तक यूएसए (USA) में मेसोथेलियोमा से होने वाली मृत्यु की दर 2,000 प्रति वर्ष से बढ़कर 3,000 हो गई, जिसमें पुरुषों द्वारा इससे ग्रसित होने की संभावना महिलाओं की तुलना में चार गुना अधिक थी। संभव है कि ये दरें अचूक न हों क्योंकि हो सकता है कि मेसोथेलियोमा के कई मामलों का निदान गलत तरीके से फेफड़े के एडीनोकार्सीनोमा के रूप में कर दिया गया हो, जिसे मेसोथेलियोमा से अलग पहचान पाना कठिन होता है।

समाज व संस्कृति

उल्लेखनीय मामले

हालांकि मेसोथेलियोमा दुर्लभ है, लेकिन इसके पीड़ितों में उल्लेखनीय लोग शामिल हैं।

  • मैल्कॉम मैक्लेरेन, न्यूयॉर्क डॉल्स व सेक्स पिस्टल्स के पूर्व प्रबंधक जिनकी 8 अप्रैल 2010 को मृत्यु हो गई।
  • बिली वॉन, अमरीकी बैंडप्रमुख, सन 1991 में मृत्यु हुई।
  • हैमिल्टन जॉर्डन, अमरीकी राष्ट्रपि जिमी कार्टर के लिये चीफ ऑफ स्टाफ और आजीवन कैंसर कार्यकर्ता, 2008 में मृत्यु हुई।
  • रिचर्ड जे. हर्न्सटीन, मनोवैज्ञानिक तथा द बेल कर्व के सह-लेखक, सन 1994 में मृत्यु.
  • ऑस्ट्रेलियाई नस्लवाद-विरोधी कार्यकर्ता बॉब बेलीयर का सन 2005 में निधन हो गया।
  • ब्रिटिश विज्ञान कथा लेखक माइकल जी. कोनी, जिन्होंने लगभग 100 कृतियों की रचना की थी, की मृत्यु भी सन 2005 में ही हुई थी।
  • अमरीकी फिल्म व टेलीविजन अभिनेता पॉल ग्लीसन, जो संभवतः सन 1985 की फिल्म द ब्रेकफास्ट क्लब में प्रिंसिपल रिचर्ड वर्नन की भूमिका के सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं, का निधन सन 2006 में हुआ।
  • मिकी मोस्ट, एक अंग्रेज़ रिकॉर्ड निर्माता, की सन 2003 में मेसथेलियोमा के कारण मृत्यु हो गई।
  • अमरीकी वास्तुशास्री पॉल रुडॉल्फ का सन 1997 में निधन हो गया।
  • बर्नी बैंटन, ऑस्ट्रेलियाई मजदूरों के अधिकारों के लिये लड़नेवाले एक कार्यकर्ता, ने जेम्स हार्डी से मुआवजा पाने के लिये एक लंबी लड़ाई लड़ी, जिनकी कम्पनी के लिये कार्य करने के बाद वे मेसोथेलियोमा से ग्रस्त हो गए थे। उन्होंने दावा किया कि उनके द्वारा विद्युत-केंद्रों के लिये इन्सुलेशन पदार्थ बनाने का कार्य शुरु किये जाने के पूर्व से ही जेम्स हार्डी को एस्बेस्टस के खतरों की जानकारी थी। अंततः मेसोथेलियोमा ने उनके साथ-साथ ही उनके भाई व जेम्स हार्डी के सैकड़ों मजदूरों की ज़िंदगी छीन ली. जेम्स हार्डी ने बैंटन के साथ एक गुप्त समझौता किया, लेकिन तब उनका मेसोथेलियोमा अंतिम चरणों में पहुंच चुका था और उनके 48 घंटों से ज्यादा समय तक जीवित बच पाने की उम्मीद नहीं थी। सन 2007 में ऑस्ट्रेलिया के संघीय चुनाव में अपनी जीत के बाद आभार उदबोधन में बोलते हुए ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रुड ने बैंटन के लंबे संघर्ष का उल्लेख किया था।
  • 22 दिसम्बर 1979 को अभिनेता स्टीव मैक्क्वीन को पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा होने की जानकारी प्राप्त हुई। उन्हें शल्य-चिकित्सा या कीमोथेरपी उपचार नहीं दिया गया क्योंकि चिकित्सकों को लगा कि कैंसर बहुत अधिक बढ़ चुका था। अंततः मैक्क्वीन ने मेक्सिको के चिकित्सालयों में वैकल्पिक उपचार लेना प्रारंभ किया। 7 नवम्बर 1980 को कैंसर की शल्य-चिकित्सा के बाद हृदयाघात से जुवारेज़, मेक्सिको में उनकी मृत्यु हो गई। संभवतः एक युवक के रूप में यू.एस. मरीन्स में कार्य करने के दौरान-उन दिनों जहाजों की पाइपों के आवरण के रूप में एस्बेस्टस का प्रयोग आम था-या ऑटोमोबाइल रेसिंग सूट (मैक्क्वीन रेसिंग के एक उत्साही चालक व प्रशंसक थे) में आवरण पदार्थ के रूप में एस्बेस्टस के प्रयोग के द्वारा वे इसके संपर्क में आए हों.[40]
  • संयुक्त राज्य अमरीका के कांग्रेस सदस्य ब्रुस वेंटो की सन 2000 में मेसोथेलियोमा के कारण मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी द्वारा प्रतिवर्ष एमएआरएफ (MARF) परिसंवाद में ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं को ब्रुस वेंटो पुरस्कार दिया जाता है, जिन्होंने मेसोथेलियोमा के क्षेत्र में अनुसंधान और इसकी हिमायत करने के लिये सर्वाधिक समर्थन दिया हो।
  • अनुपचारित अस्वस्थता और दर्द की एक लंबी अवधि के बाद सन 2002 की शरद ॠतु में रॉक एन्ड रोल संगीतकार और गीतकार वॉरेन ज़ेवॉन के लिये यह निदान किया गया कि वे मेसोथेलियोमा से ग्रस्त हैं और उनका ऑपरेशन नहीं किया जा सकता. उपचारों, जिनके बारे में उनका विश्वास था कि वे उन्हें दुर्बल बना सकते हैं, को अस्वीकार करते हुए, ज़ेवॉन ने अपनी ऊर्जा अपने अंतिम एल्बम द विण्ड, उनकी छूटती हुई सांसों के बारे में बताने वाले गीत "कीप मी इन योर हार्ट" सहित, की रिलीज़ पर केंद्रित कर दी। 7 सितंबर 2003 को लॉस एंजल्स, कैलिफोर्निया में ज़ेवॉन का निधन हो गया।
  • सन 2007 में मेसोथेलियोमा के कारण प्रभावशाली आइरिश गायक-गीतकार क्रिस्टी हेनेसी की मृत्यु हो गई और उन्होंने अपने निधन से कई सप्ताहों पहले रोगनिदान को स्वीकार करने से कर्कशतापूर्वक इंकार कर दिया था।[41] हेनेसी के मेसिथेलियोमा के लिये अपने जीवन के शुरुआती दिनों में उनके द्वारा लंदन के निर्माण-स्थलों पर कार्य करते हुए बिताये गये वर्षों को ज़िम्मेदार माना गया।[42][43]
  • सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लैब्स के संस्थापकों में से एक, ऑरेकल कॉर्पोरेशन के अग्रदूत बॉब माइनर की सन 1994 में मेसोथेलियोमा के कारण मृत्यु हो गई।
  • स्कॉटिश लेबर पार्टी के सांसद जॉन विलियम मैक्डॉगल का मेसोथेलियोमा से दो वर्षों तक लड़ने के बाद 13 अगस्त 2008 को निधन हो गया।[44]
  • ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार और समाचार-प्रस्तोता कैनबरा के पीटर लियोनार्ड ने 23 सितंबर 2008 को इस परिस्थिति के आगे घुटने टेक दिये.
  • ऑलिम्पिक के स्वर्ण पदक विजेता और लंबे समय तक टोस्टमास्टर्स के कार्यकारी निदेशक टेरेन्स मैक्कान का 7 जून 2006 को डाना पॉइन्ट, कैलिफोर्निया स्थित अपने घर में मेसोथेलियोमा के कारण निधन हो गया।
  • मर्लिन ऑल्सेन, प्रो फुटबॉल हॉल ऑफ फेम में शामिल खिलाड़ी और टेलीविजन अभिनेता की 10 मार्च 2010 को मेसोथेलियोमा के कारण म्रृत्यु हो गई, जिसका निदान सन 2009 में हुआ था।

मेसोथेलियोमा के साथ कुछ समय तक जीवित रहने वाले उल्लेखनीय लोग

हालांकि इस बीमारी के साथ उत्तरजीविता की अवधि विशिष्टतः सीमित होती है, लेकिन कुछ उत्तजीवी लोग उल्लेखनीय हैं। जुलाई 1982 में स्टीफन जे गॉउल्ड को पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा होने का निदान किया गया। अपने निदान के बाद गॉउल्ड ने डिस्कवर पत्रिका के लिये लिखा "मध्यरेखा संदेश नहीं है (Median Isn't the Message)",[45] जिसमें उन्होंने तर्क दिया की मध्यरेखा पर उत्तरजीविता जैसे सांख्यिकीय आंकड़े केवल उपयोगी संक्षेपण हैं, भाग्य नहीं. गॉउल्ड इसके बाद 20 वर्षों तक जीवित रहे और अंततः उनकी मृत्यु मेटास्टैटिक एडीनोकार्सिनोमा के कारण हुई, मेसोथेलियोमा के कारण नहीं. जुलाई 1997 में लेखक पॉल क्राउस को पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा होने की जानकारी मिली। उनके लिये एक वर्ष से भी कम समय तक जीवित रह पाने का पूर्वानुमान किया गया था और अनेक प्रकार के पूरक तौर-तरीकों का प्रयोग किया गया। वह रोगनिदान के पूर्वानुमान की अपनी अवधि को पूरा कर चुकने के बाद आज भी जीवित हैं और उन्होंने अपने अनुभव के बारे में "सर्वाइविंग मेसोथेलियोमा एन्ड अदर कैंसर्स: अ पेशंट'स गाइड (Surviving Mesothelioma and Other Cancers: A Patient's Guide)" नामक पुस्तक लिखी,[46] जिसमें उन्होंने उपचार और उस निर्णय प्रक्रिया के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं, जिसके आधार पर वे अनुकलनात्मक औषधि लेने के निर्णय पर पहुंचे।

कानूनी मुद्दे

एस्बेस्टस निर्माताओं के खिलाफ पहले कानूनी मुकदमे सन 1929 में दायर किये गये। तब से, एस्बेस्टस, एस्बेस्टॉसिस व मेसोथेलियोमा के बीच संपर्क की जानकारी मिलने के बाद (कुछ रिपोर्टों में इसे सन 1898 से ही ज्ञात बताया गया है) एस्बेस्टस निर्माताओं और नियोक्ताओं के खिलाफ सुरक्षा मानकों के क्रियान्वयन को अनदेखा करने के कारण अनेक कानूनी मुकदमे दायर किये जा चुके हैं। इन मुकदमों और इनसे प्रभावित लोगों की कुल संख्या के परिणामस्वरूप जवाबदेही करोड़ों डॉलर तक पहुंच चुकी है।[47] मुआवजे की राशि के आवंटन की मात्रा और विधि अनेक अदालती मामलों का स्रोत रही है, ये यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचे हैं, तथा सरकार वर्तमान व आगामी मामलों को निपटाने का प्रयास कर रही है। हालांकि, आज तक यूएस कांग्रेस इसमें शामिल नहीं हुई है और एस्बेस्टस के मुआवजे का संचालन करने वाला कोई संघीय कानून नहीं है।[48]

इतिहास

एस्बेस्टस निर्माताओं के खिलाफ पहला कानूनी मुकदमा सन 1929 में लड़ा गया। दोनों पक्षों ने उस मुकदमे में समझौता कर लिया और समझौते के एक भाग के रूप में वकील मामलों को आगे न लड़ने पर सहमत हुए. सन 1960 में, वैग्नेर व अन्य (Wagner et al.) द्वारा प्रकाशित एक लेख मेसोथेलियोमा को एस्बेस्टस के संपर्क के कारण उत्पन्न होने वाले रोग के रूप में स्थापित करने वाला पहला लेख था।[49] इस लेख में 30 से भी ज्यादा ऐसे लोगों के मामलों का उल्लेख किया गया था, जो दक्षिण अफ्रीका में मेसोथेलियोमा से ग्रस्त हो गये थे। कुछ मामलों में संपर्क क्षणिक थे और कुछ खान मजदूर थे। उन्नत सूक्ष्मदर्शी तकनीकों के प्रयोग से पूर्व, अक्सर असाध्य मेसोथेलियोमा का निदान फेफड़े के कैंसर के एक भिन्न प्रकार के रूप में किया जाता था।[50] सन 1962 में, मैक्नल्टी ने एक ऑस्ट्रेलियाई एस्बेस्टस श्रमिक में असाध्य मेसोथेलियोमा के पहले नैदानिक मामले की जानकारी दी। [51] उस श्रमिक ने सन 1948 से लेकर 1950 तक वाइटेनूम में एस्बेस्टस खदान में मिल पर कार्य किया था।

वाइटेनूम नगर में, एस्बेस्टस-युक्त खान अवशिष्ट का प्रयोग विद्यालयों के प्रांगण व खेल के मैदानों को ढंकने में किया जाता था। सन 1965 में, ब्रिटिश जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल मेडिसिन में प्रकाशित एक लेख ने यह स्थापित किया कि एस्बेस्टस कारखानों और खदानों के आस-पास रहने वाले, लेकिन उनमें काम न करने वाले लोगों को मेसोथेलियोमा हो गया था।

सन 1943 में, इस बात के प्रमाण के बावजूद कि एस्बेस्टस खनन और मिलिंग से जुड़ी धूल एस्बेस्टस-संबंधी रोग उत्पन्न करती है, वाइटेनूम में खनन की शुरुआत हुई और यह सन 1966 तक जारी रही. सन 1974 में, नीले एस्बेस्टस के खतरों की पहली सार्वजनिक चेतावनियां "इस धिस किलर इन योर होम? (Is this Killer in Your Home?)" शीर्षक वाली आवरण कथा में ऑस्ट्रेलिया की बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित की गईं. सन 1978 में, हेल्थ डिपार्टमेंट द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका "द हेल्थ हैज़ार्ड ऐट वाइटेनूम (The Health Hazard at Wittenoom)", जिसमें हवा के नमूनों के परिणाम और विश्वव्यापी चिकित्सा जानकारी की एक समीक्षा थी, के प्रकाशन के बाद वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने विटेनूम नगर को हटाने का निश्चय किया।

सन 1979 तक, वाइटेनूम से जुड़ी लापरवाही के लिये पहली याचिका सीएसआर (CSR) व इसकी सहायक कंपनी एबीए (ABA) के खिलाफ जारी की गईं थीं और वाइटेनूम के पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने के लिये एस्बेस्टस डीसीज़ सोसाइटी (Asbestos Diseases Society) की स्थापना की गई।

लीड्स, इंग्लैंड में, आर्मली एस्बेस्टस हादसे में टर्नर एंड नेवॉल के खिलाफ अनेक अदालती मुकदमे शामिल थे, जिनमें मेसोथेलियोमा से पीड़ित स्थानीय निवासियों ने कंपनी के कारखाने से होने वाले एस्बेस्टस प्रदूषण के लिये मुआवजे की मांग की थी। एक उल्लेखनीय मामला, जून हैन्कॉक का है, जो सन 1993 में इस बीमारी से ग्रस्त हुए और सन 1997 में उनकी मृत्यु हो गई।[52]

इन्हें भी देखें

  • मेसोथेलिओमा एप्लाइड रिसर्च फाउंडेशन
  • एस्बेस्टॉसिस
  • पेरिटोनियल मेसोथेलिओमा
  • लस्य कार्सिनोमा

सन्दर्भ

स्रोत

नोट्स

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:Respiratory and intrathoracic neoplasia

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