रोलां बार्थ
रोलां बार्थ (१९१५ - १९८०) फ्रांस के प्रमुख साहित्यिक आलोचक, साहित्यिक और सामाजिक सिद्धांतकार, दार्शनिक और लाक्षण-विज्ञानी थे। संरचनावाद, लाक्षण-विज्ञान, समाजशास्त्र, डिज़ाइन सिद्धांत, नृविज्ञान और उत्तर-संरचनावाद जैसे सिद्धांत उनके विविध विचारों से प्रभावित थे।
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | 12 नवम्बर 1915 Cherbourg, France |
मृत्यु | 26 मार्च 1980 पेरिस, फ्रान्स | (उम्र 64)
वृत्तिक जानकारी | |
युग | 20th-century philosophy |
क्षेत्र | पाश्चात्य दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | संरचनावाद Semiotics उत्तर-संरचनावाद |
मुख्य विचार | संकेतविज्ञान (Semiotics) साहित्य सिद्धान्त Narratology Linguistics |
प्रमुख विचार | Structural analysis of narratives[1] Death of the author Writing degree zero Effect of reality |
प्रभाव Saussure · Marx · Nietzsche[2] · Freud · Lacan · Sartre · Bataille · Michelet · Valéry · Lyotard | |
प्रभावित Michel Foucault · Julia Kristeva · James Wood · Eric de Kuyper · Philippe-Joseph Salazar · Gérard Genette · Susan Sontag · Benoît Peeters | |
हस्ताक्षर |
प्रारंभिक जीवन
रोलां बार्थ का जन्म १२ नवंबर १९१५ को नॉर्मंडी में चेरबोर्ग नामक शहर में हुआ था। जब वे कुछ महीने के थे तब प्रथम विश्वयुद्ध में उनके पिता लुई बार्थ की मौत हो गई। इस कारण रोलां बार्थ को उनकी मां, हेन्रिएटा बार्थ, उनकी चाची और उनकी नानी ने उर्ट नामक गाँव में बड़ा किया। जब वे ग्यारह साल के थे, तब उनका परिवार पेरिस में बस गया, लेकिन उनकी प्रांतीय जड़ें पूरे जीवन भर मजबूत रहीं। २५ फरवरी १९८० में घर लौटते समय बार्थ एक गाड़ी से धक्का खा गए और मार्च २६ को छाती पर हुई चोटों के कारण उनका देहान्त हो गया।
पेशेवर जीवन
बार्थ परिश्रमी छात्र थे। उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। १९३९ में शास्त्रीय पत्रों में डिग्री हासिल की और १९४३ में व्याकरण और भाषाशास्त्र में। १९४१ में ग्रीक त्रासदी पर अपने कार्य के लिए उन्हें पेरिस विश्वविद्यालय से एम ए की उपाधि मिली। इस समय वे स्वास्थ्य मुद्दों, जिन्मे से एक था क्षय रोग, से भी पीड़ित थे। इन स्वास्थ्य मुद्दों के कारण उन्के शैक्षणिक व्यवसाय में कई बाधाएं आईं और वे फ्रांस के सेना में भी भर्ती नहीं हो पाय।
अन्ततः १९४८ में उन्होंने फ्रांस, रोमानिया और मिस्र के संस्थानों में कई अल्पावधि पद प्राप्त किए। उनकी पहली पुस्तक, "राईटिङ डिग्री ज़ीरो" , एक वामपंथी पेरिसियन पत्र कोम्बैट के लिये लिखे गये निबंध पर आधारित है। १९५२ में वे कोशकला और समाजशास्त्र पढ़ने लगे जिसके दौरान उन्होंने लेस लेट्रेस नूवेल्स नामक पत्रिका के लिए द्विमासिक निबंध लिखे जो १९५७ में "माईथोलोजीज़" नामक किताब में प्रकाशित किए गए थे।
१९६० दशक में बार्थ लाक्षण-विज्ञान और संरचनावाद का अध्ययन प्रारंभ किए। १९६७ में उन्होंने अपना सब्से प्रसिद्ध निबंध "दी डैत ऑफ दी औथर" लिखा। एक और प्रभावाशाली किताब "एस/ज़ी" जिस्मे उन्होंने बालज़ैक की किताब सारासीन का विश्लेषण किया है १९७० में लिखी गई थी। अपने जीवन के इस समय में वे कई विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक एवं अतिथि प्राध्यापक थे।
१९५७ में जब वे मिडलबरी कॉलेज में प्राध्यापक थे, तब उन्होंने रिचर्ड हॉवर्ड, जो एक अम्रीकी कवि, साहित्यिक आलोचक, निबंधकार, शिक्षक और अनुवादक थे, से दोस्ती की। रिचर्ड हॉवर्ड ने बार्थेस के कई निबंधों और कितबों का अनुवाद किया। १९७५ में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी जिस्का नाम है "रोलां बार्थ" ।
प्रभाव
बार्थे निम्नलिखित लोगों से प्रभावित हुए थे:
- फर्दिनंद दे सोशोर, स्विटज़रलैंड के एक भाषाविद
- कार्ल मार्क्स, जर्मनी के एक दार्शनिक और अर्थशास्त्री
- फ्रेडरिक नीत्से, जर्मनी के दार्शनिक और सांस्कृतिक आलोचक
- सिगमंड फ्रॉयड, औस्ट्रिया के एक स्नायु विज्ञानी
- जाक लेकन, फ्रांस के एक मनोचिकित्सक
- जीन-पॉल सातर, फ्रांस के एक दार्शनिक एवं लेखक
- जार्ज बाटैले, फ्रांस के एक दार्शनिक
- जूल्स मिशेलेट, फ्रांस के एक इतिहासकार
- पॉल वैलेरी, फ्रांस के एक दार्शनिक एवं कवि
- जीन-फ्रांकोइस लियोटार्ड, फ्रांस के एक दार्शनिक और साहित्यिक सिद्धांतकार
विचार
बार्थ ने अपनी दार्शनिक यात्रा अस्तित्ववाद से प्रतिक्रियाशील विचारों से शुरू की। उन्का लक्ष्य था साहित्य में अनोखी चीज़ों का खोज करना। उनका कहना था की भाषा संस्कृति द्वारा बनाई जाती है, इसीलिए मौलिक नहीं हो सकती। अगर लेखक पारम्परिक लेखन शैली अपनाते रहे तो मौलिकता का त्याग करना पड़ेगा। मौलिकता निरंतर परिवर्तन और अभ्यास से ही पाई जा सकती है।
उनका यह भी मानना है की शब्दों और छित्रों का कुदरती अर्थ नहीं होता, परंतू, हर चीज़ को अर्थ मानव देता है। यह अर्थ चिह्न और लक्षणों द्वरा समझे जाते है।
बार्थ का मनना था की लेखक और उनकी रचना का अस्तित्व अलग होता है। वे मानते थे की आदर्श रचना ऐसी होती है जिसके अर्थ की व्याख्या कई अलग दृष्टिकोण से की जा सकती है।
प्रसिद्धि
१९६० दशक से बार्थ की बौद्धिक ऊँचाई अविवादित थी और उनके सिद्धांत फ्रांस में ही नहीं यूरोप और अमेरिका में भी प्रसिद्ध एवं स्वीकृत थे। बार्थ ने निम्नलिखित प्रसिद्ध लोगों को प्रभावित किया:
- माइकल फौकाल्ट, फ्रांस के एक दार्शनिक और साहित्यिक और सामाजिक सिद्धांतकार
- जूलिया क्रिस्टेवा, फ्रांस के एक दार्शनिक और साहित्यिक आलोचक
- जेम्स वुड, इंगलैंड के एक साहित्यिक आलोचक और लेखक
- एरिक डी क्यूपर, फ्लेमिश-बेल्जियम और डच लेखक और लाक्षण-विज्ञानी
- फिलिप-जोसेफ सलज़ार, फ्रांस के एक दार्शनिक
- जेरार्ड जेनेलेट, फ्रांस के एक साहित्यिक आलोचक
- सुसान सोंटाग, अमेरिकी लेखक
- बेनोइट पिटर, फ्रांस के एक हास्य-रस के लेखक
रचनाएँ
बार्थ ने फ्रेन्च में २० से अधिक रचनाएँ की है, जिनके अंग्रेज़ी अनुवाद भी मिलते हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें ये हैं-
- राईटिङ डिग्री ज़ीरो (फ्रेन्च: १९५३ अंग्रेज़ी: १९६८)
- एलीमेंट्स ओफ सीमियोलजी (फ्रेन्च: १९६४ अंग्रेज़ी: १९६८)
- माईथोलोजीज़ (फ्रेन्च: १९५७ अंग्रेज़ी: १९७२)
- एस/ज़ी (फ्रेन्च: १९७० अंग्रेज़ी: १९७५)
- केमरा लुसिया (फ्रेन्च: १९८० अंग्रेज़ी: १९८१)