हॉकिंग विकिरण

उग्रता (Hawking radiation) कृष्णिका विकिरण होता है जो ब्रह्माण्ड में कालेछिद्रों के घटना क्षितिजों के पास प्रमात्रा (क्वांटम) प्रभावों से उत्पन्न होता है। इसका नाम भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग पर रखा गया जिन्होंने सैद्धांतिक अध्ययन के आधार पर सन् 1974 में ऐसे विकिरण प्रभाव होने कि भविष्यवाणी करी थी, हालांकि यह प्रभाव वास्तव में अभी तक देखा नहीं गया है।[1][2] हॉकिंग विकिरण से कालेछिद्रों का द्रव्यमान और ऊर्जा दोनों घटते हैं, इसलिए इस प्रभाव को कालाछिद्र वाष्णन (black hole evaporation) भी कहा जाता है। यदि किसी कालेछिद्र में अन्य स्रोतों से द्रव्यमान न गिर रहा हो तो वे इस प्रभाव से क्षीण होते रहते हैं और अंततः अस्तित्व से मिट जाते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि सूक्ष्म कालेछिद्र अधिक उग्र विकिरण उत्पादक होते हैं और अधिक तेज़ी से वाष्पित होकर ग़ायब हो जाते होंगे।[3]

बड़े मैजलेनिक बादल के सामने में एक कालेछिद्र का काल्पनिक दृश्य।

जुन 2008 में नासा ने फ़र्मी अंतरिक्ष दूरबीन नामक अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित करा जो बिगबैंग में हमारे ब्रह्माण्ड के जनन के तुरंत बाद बने कालेछिद्रों से गामा विकिरिण कोंध (gamma ray flashes) की तालाश में है। माना जाता है कि पूर्ण वाष्पण से बिलकुल पहले कालेछिद्रों से गामा विकिरण कोंधती है, लेकिन अभी तक यह देखा नहीं गया है। यह भी सम्भावना है कि लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर अपने कार्य में जल्द ही वाष्पित होने वाले सूक्ष्म कालेछिद्र बना दे, जो समाप्त होते-होते कोंधें, लेकिन यह भी अभी तक देखा नहीं गया है।[4][5][6][7]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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