औरोक्स

औरोक्स आधुनिक पालतू गाय की पूर्वज नस्ल थी। यह एक बड़े अकार की जंगली गाय थी जो एशिया, यूरोप और उत्तर अफ़्रीका में रहा करती थी लेकिन विलुप्त हो गई। यूरोप में यह सन् १६२७ तक पाई गई थी। इस नस्ल के सांड के कंधे ज़मीन से १.८ मीटर (५ फ़ुट १० इंच) तक ऊँचे होते थे और गाय १.५ मीटर (४ फ़ुट ११ इंच) ऊँची होती थी।[1] माना जाता है कि विश्व की सभी पालतू गाय औरोक्स के ही वंशज हैं।

औरोक्स का १६वी शताब्दी में बना एक चित्र
औरोक्स की उपनस्लों का फैलाव
भेड़ियों से लड़ता हुआ एक यूरेशियाई औरोक्स (कल्पित चित्र)

अन्य भाषाओँ में

औरोक्स को अंग्रेज़ी में "aurochs" लिखा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम "बॉस प्रिमिजिनियस" (Bos primigenius) है।

उपनस्लें

औरोक्स की तीन जंगली उपनस्लें पाई गई हैं:

  • भारतीय उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस नामाडिकस, Bos primigenius namadicus) - यह भारतीय उपमहाद्वीप के गरम रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहा करती थी और औरोक्स की सब से प्राचीन उपनस्ल थी। इस उपनस्ल की उत्पत्ति वर्तमान से २० लाख वर्ष पूर्व हुई और यही बाक़ी दो औरोक्स उपनस्लों की पूर्वजा थी। भारत की ज़ेबू गाय (साधारण सफ़ेद-भूरे रंग की भारतीय गाय) इसी से उत्पन्न हुई है और इसलिए अत्यंत सूखे में भी जी सकती है। भारत में ज़ेबू गाय को लगभग ९००० ईसापूर्व में पालतू बनाया गया।[2]
  • यूरेशियाई उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस प्रिमिजिनियस, Bos primigenius primigenius) - यह यूरोप, साइबेरिया और मध्य एशिया में रहा करती थी और लगभग ६००० ईसापूर्व में इसे पालतू बनाया गया। रोमन साम्राज्य में इन्हें युद्ध के पशु की तरह इस्तेमाल किया जाता था और इनका शिकार भी किया जाता था। १३वी सदी तक शिकार से इनकी संख्या इतनी कम हो गई के केवल राजाओं और उनके दरबारियों को ही इनका शिकार करने की अनुमति दी जाती थी। फिर भी इनकी संख्या घटती गई। आखरी ज्ञात जीवित औरोक्स एक मादा (गाय) थी जो पोलैंड के याक्तोरोव वन में १६२७ में प्राकृतिक कारणों से मर गई।[3]
  • उत्तर अफ़्रीकी उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस मौरेटैनिकस, Bos primigenius mauretanicus) - यह उत्तर अफ़्रीका के वनों और घासवाले इलाकों में रहती थी। माना जाता है की भारतीय उपनस्ल मध्यपूर्व से होती हुई उत्तर अफ़्रीका जा पहुँची और इस उपनस्ल में परिवर्तित हो गई। संभव है के मिस्र में पालतू गाय कभी इसी उपनस्ल की वंशज हुआ करती थी। बाद में भारतीय ज़ेबू गाय मिस्र पहुँच गई और वही मिस्र में पाली जाने लगी। हाल ही में अनुवांशिकी (जॅनॅटिक) अनुसंधान से देखा गया है कि कुछ उत्तर अफ़्रीकी गायों में ज़ेबू से भिन्न तत्व हैं जो इन उत्तर अफ़्रीकी औरोक्स से हो सकते हैं।[4]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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