गोबी मरुस्थल

गोबी मरुस्थल, चीन और मंगोलिया में स्थित है। यह विश्व के सबसे बड़े मरुस्थलों में से एक है। गोबी दुनिया के ठंडे रेगिस्तानों में से एक है, जहां तापमान शून्य से चालीस डिग्री नीचे तक चला जाता है। गोबी मरुस्थल एशिया महाद्वीपमें मंगोलिया के अधिकांश भागपर फैला हुआ है। यह मरुस्थल संसारके सबसे बड़े मरुस्थलों में से एक है।'गोबी' एक मंगोलियन शब्द है,जिसका अर्थ होता है- 'जलरहितस्थान'। आजकल गोबी मरूस्थल एकरेगिस्तान है, लेकिन प्राचीनकालमें यह ऐसा नहीं था। इस क्षेत्र केबीच-बीच मेंसमृद्धशाली भारतीयबस्तियाँ बसी हुई थीं।गोबी मरुस्थल पश्चिम में पामीरकी पूर्वी पहाड़ियों से लेकर पूर्वमें खिंगन पर्वतमालाओं तकतथा उत्तर में अल्ताई, खंगाईतथा याब्लोनोई पर्वतमालाओंसे लेकर दक्षिण में अल्ताइनतथा नानशान पहाड़ियों तकफैला है। इस मरुस्थलका पश्चिमी भाग तारिम बेसिनका ही एक हिस्सा है।

गोबी (Говь)
मरुस्थल
गोबी रेगिस्तान, मंगोलिया
देशमंगोलिया, चीन
मंगोलियाई अइमगबयानख़ोंगोर, दोरनोगोवी, दुन्दगोवी, गोवी-अल्ताई, गोवीसुम्बेर, ओम्नोगोवी, सुख़बातर
चीनी प्रदेशभीतरी मंगोलिया
पर्वतमालागोवी-अल्ताई पर्वतमाला
विशेषनेमेग्त द्रोणी
लंबाई1,500 कि.मी. (932 मील), SE/NW
चौड़ाई800 कि.मी. (497 मील), N/S
क्षेत्रफल12,95,000 कि.मी.² (5,00,002 वर्ग मील)
गोबी मरुस्थल जनवादी गणतंत्र चीन और मंगोलिया के बीच बंटा हुआ है
गोबी मरुस्थल जनवादी गणतंत्र चीन और मंगोलिया के बीच बंटा हुआ है
गोबी मरुस्थल जनवादी गणतंत्र चीन और मंगोलिया के बीच बंटा हुआ है

यह संसार का पांचवां बड़ा औरएशिया का सबसे विशालरेगिस्तान है। सहारा रेगिस्तानकी भांति ही इस रेगिस्तानको भी तीन भागों में विभक्तकिया जा सकता है-1. ताकला माकन रेगिस्तान

2. अलशान रेगिस्तान

3. मुअस या ओर्डिस रेगिस्तान

गोबी रेगिस्तान का अधिकतरभाग रेतीला न होकर चट्टानी है।यहाँ रेगिस्तान की जलवायु मेंतेजी से बदलाव होता है। यहाँ नकेवल सालभर तापमान बहुतजल्दी-जल्दी बदलता है,बल्कि 24 घंटों में ही तापमान मेंव्यापक परिवर्तन भी आजाता है। गोबी रेगिस्तान मेंवर्षा की औसत मात्रा 50 से 100मि.मी. है। यहाँ अधिकतरवर्षा गर्मी के मौसम मेंही होती है। रेगिस्तान मेंअधिकतर नदियाँ बारिश केमौसम में ही बहती हैं। अत: केवलवर्षा ऋतु में ही नदी मेंपानी रहता है।निकटवर्ती पर्वतों से जल धाराएँरेगिस्तान की शुष्क भूमि मेंसमा जाती हैं। यहाँ काष्ठीय वसूखा प्रतिरोधी गुणों वालेसैकसोल नामक पौधे बहुतायत मेंमिलते हैं। लगभग पत्ति विहीन यहपौधा ऐसे क्षेत्रों में भी उगआता है, जहाँ की रेत अस्थिरहोती है। अपने इस विशेष गुण केकारण यह पौधा भू-क्षरणको रोकने में सहायक होता है।गोबी रेगिस्तान 'बेकिटरियनऊंट', जिनके दो कूबड होते हैं,का आवास स्थल माना जाता है।कछु जगंली किस्म के गधेभी यहाँ पाये जाते हैं। संसार केरेगिस्तान के विशेष भालूइसी रेगिस्तान में पाए जाते हैं। इनभालूओं की प्रजाति 'मज़ालाई'अथवा 'गोबी' अब लुप्त होने केकगार पर पहुँच चुकी है। इसकेअतिरिक्त यहाँ जंगली घोड़े,गिलहरी व छोटे कद के बारहसिंगेभी पाये जाते हैं।विस्तारसंसार के बड़े मरुस्थलों में से एकगोबी का मरुस्थल,जिसका विस्तार उत्तर सेदक्षिण में लगभग 600 मीलतथा पूर्व से पश्चिम में लगभग 1000मील है, तिब्बत तथा अल्ताईपर्वतमालाओं के बीच छिछले गर्तके रूप में विद्यमान है।इसकी प्राकृतिक भू-रचना ढालूमैदान के समान है, जिसकेचारों तरफ़ पर्वतीय ऊँचाइयाँ हैं।कटाव तथा संक्षारण क्रियाओंके प्रबल होने से यह मरुस्थलअपनी विशिष्ट भूरचना के लियेप्रसिद्ध है। सूखी हुईनदियों की तलहटियाँ तथा झीलों केतटों पर ऊँचाई पर स्थित जल केनिशान यहाँ की जलवायु मेंपरिवर्तन के प्रमाण हैं।सभ्यता अवशेषप्राचीन कालीन विभिन्नसभ्यताओं के द्योतक भग्नावशेषभी इस मरुस्थल में पाए जाते हैं।यहाँ गर्मी बहुत ज़्यादा और तेज़पड़ती है तथा गर्मी में औसततापमान 45° से 65° सें. तथा जाड़ेका ताप 15° सें. तक रहता है।यहाँ पर कभी-कभी बर्फ़ के तूफ़ानतथा उष्ण बालू मिश्रित तूफ़ानभी आते हैं।यहाँ कि वनस्पतियों में घासतथा काँटेदार झाड़ियाँ मुख्य रूपसे पाई जाती हैं। जलका यहाँ प्राय: अभावही रहता है। कारवाँ मार्गों पर10 मील से 40 मील की दूरी परकुएँ पाए जाते हैं।जीव-जंतुइस मरुस्थल के पूर्वी भाग मेंजहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून सेकुछ वर्षा हो जाती है,वहाँ थोड़ी खेतीबाड़ी होती है,एवं भेड़, बकरियाँ तथा अन्य पशुपाले जाते हैं। उत्तरी-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों मेंभी भेड़बकरियाँ पाली जाती हैं। सूदूरउत्तर में कुछ जंगल हैं। उत्तर मेंओरखान तथा उसकी सहायकनदियों की घाटियों मेंचीनी बस्तियाँ हैं। आबादी बहुतही विरल है। मंगोल यहाँ की मुख्यजाति है। उत्तर तथा दक्षिण केघास के मैदानों मेंआदिवासी लोग हैं,जो खानाबदोशों का जीवनव्यतीत करते हैं। कारवाँ मार्गअधिकांश पूर्व से पश्चिम दिशा मेंहैं, जिन पर चीनी व्यापारी कपड़े,जूते, चाय , तंबाकू , ऊन, चमड़ेतथा समूर आदि का व्यापार करतेहैं।भारतीय संस्कृति के अवशेषगोबी मरुस्थल में 'सर औरेल स्टोन'द्वारा पुरातात्त्विक खुदाई मेंबौद्ध स्तूपों , विहारों, बौद्ध एवंहिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ, बहुतसी पांडुलिपियाँ तथा भारतीयभाषाओं एवं वर्णाक्षरों में बहुत सेआलेखों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनअवशेषों के बीच घूमते हुए सर औरेलको यह अनुभव होने लगा था कि,वे पंजाब के किसी प्राचीन गाँवमें घूम रहे हैं। 7वीं शताब्दी मेंसुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनत्सांग इसी गोबी मरूस्थल केरास्ते से ही भारत में आया औरफिर चीन वापस गया। उसे इसक्षेत्र में बौद्ध धर्म और भारतीयसंस्कृति का प्राधान्य दिखाईदिया। ज्यों-ज्यों इस क्षेत्र मेंरेगिस्तान बढ़ता गया, त्यों-त्यों यहाँ पर भारतीय संस्कृति केकेन्द्र विलुप्त होते गये।

कुल 1, 623 वर्ग किलोमीटर में फैला यह दुनिया का पांचवां बड़ा मरुस्थल है। यह उत्तर में अल्टेई पहाड़ और मंगोलिया के स्तेपी और चरागाह से घिरा है, इसके दक्षिण-पश्चिम में घंसू का गलियारा और तिब्बत के पठार तथा दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में चीन के उत्तरी क्षेत्र के मैदान हैं। यह कई तरह के जीवाश्मों और दुर्लभ जंतुओं के लिए भी जाना जाता है। गोबी मरुस्थल अतीत में महान मंगोल साम्राज्य का हिस्सा रहा है और सिल्क रोड से जुड़े कई महत्वपूर्ण शहरों का क्षेत्र रहा है। यह रेगिस्तान जलवायु और स्थलाकृति में आए कई तरह के विशिष्ट बदलाव के कारण पारिस्थितिकी और भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर बना है। गोबी रेगिस्तान हिमालय की दूसरी तरफ है, जिसके कारण हिंद महासागर से आनेवाली नम हवा रुक जाती है, नतीजतन इस क्षेत्र में वर्षा नहीं हो पाती।

गोबी के मरुस्थल से उठते धूल के गुबार से परेशान चीन ने राजधानी बीजिंग के बाहरी इलाकों से मंगोलिया के भीतर तक वृक्षारोपण के जरिये पेड़ों की दीवार बनाई है। इससे काफी हद तक 'येलो ड्रैगन' के नाम से मशहूर इस धूल भरी आंधी से चीन को छुटकारा मिला है। चीन की योजना इस रेगिस्तान को रोकने की है, क्योंकि उसे भय है कि इसके विस्तार से उसकी कृषि व्यवस्था के लिए संकट पैदा हो सकता है। भूजल स्तर के गिरने, जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पशुओं की चराई केकारण यह मरुस्थल फैलता ही जा रहा है।

बाहरी कड़ियाँ

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