चार्ल्स डार्विन

ब्रिटिश प्रकृतिवादी

चार्ल्स डार्विन (12 फरवरी, 180919 अप्रैल 1882) ने क्रमविकास (evolution) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।[2][3] उनका शोध आंशिक रूप से 1831 से 1836 में एचएमएस बीगल पर उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित था। इनमें से कई संग्रह इस संग्रहालय में अभी भी उपस्थित हैं। अल्फ्रेड रसेल वॉलेस के साथ एक संयुक्त प्रकाशन में, उन्होंने अपने वैज्ञानिक सिद्धांत का परिचय दिया कि विकास का यह शाखा पैटर्न एक ऐसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ, जिसे उन्होंने प्राकृतिक वरण या नेचुरल सेलेक्शन कहा।[4] डार्विन महान वैज्ञानिक थे - आज जो हम सजीव चीजें देखते हैं, उनकी उत्पत्ति तथा विविधता को समझने के लिए उनका विकास का सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन चुका है।[5]

चार्ल्स डार्विन
Three quarter length studio photo showing Darwin's characteristic large forehead and bushy eyebrows with deep set eyes, pug nose and mouth set in a determined look. He is bald on top, with dark hair and long side whiskers but no beard or moustache. His jacket is dark, with very wide lapels, and his trousers are a light check pattern. His shirt has an upright wing collar, and his cravat is tucked into his waistcoat which is a light fine checked pattern.
डार्विन, 45 की उम्रमें 1854
जन्म चार्ल्स डार्विन
12 फ़रवरी 1809
दि माउंट, श्र्यूस्बरी, श्रोपशायर, इंग्लैण्ड
मृत्यु 19 अप्रैल 1882(1882-04-19) (उम्र 73)
डाउनहाउस, लक्सटेड रोड, डाउन, केंट, यूनाइटेड किंगडम
आवास इंग्लैण्ड
नागरिकता ब्रिटिश
राष्ट्रीयता ब्रिटिश
क्षेत्र प्राकृतिक इतिहास, भूविज्ञान
संस्थान Tertiary education:
University of Edinburgh Medical School (medicine)
Christ's College, Cambridge (University of Cambridge) (BA)
Professional institution:
Geological Society of London
अकादमी सलाहकार John Stevens Henslow
Adam Sedgwick
प्रसिद्धि दि वॉयज ऑफ़ दि बीगल
जीवजाति का उद्भव
क्रमविकास by
प्राकृतिक वरण
प्रभाव अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट
जॉन हर्शेल
चार्ल्स ल्येल
प्रभावित जोसेफ़ डाल्टन हुकर
थामस हेनरी हक्सले
रिचर्ड डॉकिन्स
एर्न्स्ट हेक्केल
जॉन लुबोक
उल्लेखनीय सम्मान
  • FRS (1839)[1]
  • Royal Medal (1853)
  • Wollaston Medal (1859)
  • Copley Medal (1864)
चार्ल्स डार्विन

संचार डार्विन के शोध का केंद्र-बिंदु था। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव (Origin of Species (हिंदी में - ' प्रजाति की उत्पत्ति ')) प्रजातियों की उत्पत्ति सामान्य पाठकों पर केंद्रित थी।[6] डार्विन चाहते थे कि उनका सिद्धांत यथासंभव व्यापक रूप से प्रसारित हो। डार्विन के विकास के सिद्धांत से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि किस प्रकार विभिन्न प्रजातियाँ एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। उदाहरणतः वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि रूस की बैकाल झील में प्रजातियों की विविधता कैसे विकसित हुई।

पत्राचार

कई वर्षों के दौरान, जिसमें उन्होंने अपने सिद्धान्त को परिष्कृत किया, डार्विन ने अपने अधिकांश साक्ष्य विशेषज्ञों के लम्बे पत्राचार से प्राप्त किया। डार्विन का मानना था कि वे प्रायः किसी से चीजों को सीख सकते हैं और वे विभिन्न विशेषज्ञों, जैसे, कैम्ब्रिज के प्रोफेसर से लेकर सुअर-पालकों तक से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे।[7]

डार्विन का व्यवसाय

बीगल पर विश्व भ्रमण हेतु अपनी समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना मानते थे जिसने उनके व्यवसाय को सुनिश्चित किया। समुद्री-यात्रा के बारे में उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूने इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसाइटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हुआ।

अपने कैरियर के प्रारंभ में, डार्विन ने प्रजातियों के जीवाश्म सहित बर्नाकल (विशेष हंस) के अध्ययन में आठ वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने 1851 तथा 1854 में दो खंडों के जोड़ों में बर्नाकल के बारे में पहला सुनिश्चित वर्गीकरण विज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत किया। इसका अभी भी उपयोग किया जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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