चिन राजवंश

छिन राजवंश (चीनी: 秦朝, छिन छाउ) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २२१ ईसापूर्व से २०७ ईसा पूर्व तक शासन किया। छिन वंश शान्शी प्रांत से उभर कर निकला और इसका नाम भी उसी प्रांत का परिवर्तित रूप है। जब चिन ने चीन पर क़ब्ज़ा करना शुरू किया तब चीन में झोऊ राजवंश का केवल नाम मात्र का नियंत्रण था और झगड़ते राज्यों का काल चल रहा था। छिन राजवंश उन्ही झगड़ते राज्यों में से एक, चिन राज्य (秦国, चिन गुओ), से आया था। सबसे पहले चिन ने कमज़ोर झोऊ राजवंश को समाप्त किया और फिर बाक़ी के छह राज्यों को नष्ट कर के चीन का एकीकरण किया।[1] शक्तिशाली होने के बावजूद छिन राजवंश बहुत कम काल तक सत्ता में रहा और उसके बाद चीन में हान राजवंश का उदय हुआ।

२१० ईसापूर्व में छिन साम्राज्य का मानचित्र
छिन षी ह्वाङ (秦始皇) जो झगड़ते राज्यों के काल में चिन राज्य (秦国) के शासक और फिर पूरे चीन के पहले छिन राजवंश के सम्राट बने

शासनकाल

चिन राजवंश का विस्तार

अपने शासनकाल में चिन राजवंश ने व्यापार बढ़ाया, कृषि में उन्नति की और सैन्य रूप से अपने साम्राज्य को सुरक्षित किया। इसमें एक बड़ा क़दम जागीरदारों को हटाना था, जिनका झोऊ ज़माने में हर किसान मोहताज होता था। इस से देश की जनता पर सम्राट का सीधा नियंत्रण हो गया जिस से उसमें बड़े काम करने की क्षमता आ गई। उन्होंने उत्तर के क़बीलियाई लोगों से लगातार आते हमलों को कम करने के लिए चीन की महान दीवार का निर्माण करवाना शुरू किया। चीनी लिपि का और विकास करवाया गया, वज़नों-मापों के लिए कड़े मानक बनवाये गए (जिस से व्यापार और बेच-ख़रीद में आसानी हो गई और विवाद कम हो गए) और मुद्रा (सिक्के और नोट) का विकास किया गया। चिन शासक न्यायवाद में विश्वास रखते थे और इस विचारधारा के अंतर्गत शासकों को अपने नागरिकों पर कड़ा नियंत्रण रखने की सीख दी जाती थी। उन्होंने पहले गए राजवंशों का नाम हमेशा के लिए मिटाने की कोशिश में प्राचीन किताबें और ग्रन्थ जलवाए और ४०० से अधिक विद्वानों को जिंदा दफ़न करवाया। इस से चीन में जो बुद्धिजीवियों का स्वतन्त्र वातावरण चल रहा था, जिसे सौ विचारधाराएँ कहा जाता है, समाप्त हो गया। इन चीज़ों से आने वाले विद्वानों में चिन के अच्छे कामों के बावजूद उन के लिए एक घृणा भी पैदा हो गई।[2] चीन में इस घटना को 'किताब जलाना और विद्वान दफ़नाना' कहा जाता है, जिसके लिए चीनी भाषा में वाक्य 'फ़ेन शू कंग रु' (焚書坑儒) है। जब भी कोई तानाशाह विचारों और बुद्धिजीवियों को कुचलना चाहता है तो चीनी संस्कृति में इस सूत्रवाक्य का प्रयोग होता है।[3]

राजवंश का अंत

चिन राजवंश की सरकार भारी-भरकम और धीमी थी लेकिन सैनिक मामलों में उन्होंने हमेशा नई तकनीकें अपनाई। फिर भी एक शक्तिशाली सेना के बावजूद भी चिन राजवंश बहुत कम समय के लिए चला। जब पहला चिन सम्राट २१० ईसापूर्व में मरा तो उसके दो मंत्रियों ने उसके बेटे को गद्दी पर यह समझकर बैठाया कि उसके ज़रिये वे स्वयं राज करेंगे। इस इरादे के बावजूद, इन दोनों में आपस में लड़ाई हो गई, जिस से वे दोनों और नया सम्राट, तीनों ही अपनी जानों से हाथ धो बैठे। राजवंश में इन कमज़ोरियों को देखकर विद्रोह भड़कने लगे और एक चू राज्य (楚國, चू गुओ) के नेता ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसी ने फिर हान राजवंश की नीव रखी। चिन राजवंश के इतनी जल्दी डूब जाने के बाद भी उसका प्रभाव आने वाले राजवंशों पर रहा और माना जाता है कि विश्व में 'चीन' देश का नाम इसी राजवंश से पड़ा है।[4]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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