तुंगुस्का घटना
तुंगुस्का घटना एक बहुत बड़े विस्फोट की घटना है जिसे किसी धूमकेतु या उल्का की वजह से होना माना जाता है। यह घटना रूस स्थित साइबेरिया poddkamenna (तुंगुस्का नदी) के किनारे जिसे आजकल Krasnoyarsk Krai से जाना जाता है में ७:१४ KRAT (००. ४ UT ) पर ३० जून १९०८ को हुई। यह विस्फोट जमीन से ५-१० क़ि.मी. (३-६ मील ) की ऊँचाई पे हुआ था जिसे किसी उल्कापिंड के जमीन पे टकराने के बजाय हवा में ही फट जाने के कारण हुआ माना जाता है। अलग-अलग वैज्ञानिक शोध बताते है की इस पिंड का आकर ६० मीटर (२०० फ़ीट ) से १९० मीटर (६२० फ़ीट) के बीच है। यह पृथ्वी के ज्ञात इतिहास में अब तक की सब से बड़ी उल्कापिंडिय घटना है।
इस धमाके की ताकत अनुमानत: ३ से लेकर ३० मेगाटन TNT के बीच बताई जाती है। लेकिन मुख्यत: यह विस्फोट १० से १५ मेगाटन TNT के बराबर रहा होगा जो जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में डाले गए परमाणु बमों से १००० गुना (तक़रीबन अमेरिकी "कैसल ब्रावो" बम १९५४ के बराबर तथा रूसी "जार बॉम्बा " जो की मानव द्वारा आज तक किया सबसे बड़ा परमाणु विस्फोट है के २/५ वे भाग के बराबर था )
यह भी अनुमान लगाया गया है की तुंगस्का विस्फोट से २.१५० वर्ग किलोमीटर (८३० वर्गमील ) में स्तिथ ८ करोड़ पेड़ों का सफाया हो गया था और झटके की लहर (Shock Wave) लगभग ५.० रिक्टर तीव्रता के भूकम्प के बराबर थी। इस तरह का विस्फोट किसी महानगर का आसानी से विनाश कर सकता है लेकिन तुंगुस्का मामले में इस जगह के सुदूर साइबेरिया में होने के कारण किसी के भी मरने की खबर लेखो में नहीं है।इस घटना के बाद से उल्कापिंडों को मानव समुदाय ने गंभीरता से लेना शुरु कर दिया तथा इनके द्वारा होने वाले व्यापक विनाश से वैज्ञानिक लोग अवगत हुए।