तोपख़ाना

तोपख़ाना या आर्टिलरी (artillery) किसी फ़ौज या युद्ध में सैनिकों के ऐसे गुट को बोलते हैं जिनके मुख्य हथियार प्रक्षेप्य प्रकृति के होते हैं, यानि जो शत्रु की तरफ़ विस्फोटक गोले या अन्य चीज़ें फेंकते हैं। पुराने ज़माने में तोपख़ानों का प्रयोग क़िले की दीवारों को तोड़कर आक्रामक फौजों को अन्दर ले जाना होता था लेकिन समय के साथ-साथ तोपें हलकी और अधिक शक्तिशाली होती चली गई और अब उन्हें युद्ध की बहुत सी स्थितियों में प्रयोग किया जाता है। आधुनिक युग में तोपख़ाने को ज़मीनी युद्ध का सबसे ख़तरनाक तत्व माना जाता है। प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध दोनों में सब से अधिक सैनिकों की मृत्यु तोपख़ानों से ही हुई। १९४४ में सोवियेत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने एक भाषण में तोपख़ाने को 'युद्ध का भगवान' बताया।[1]

२००९ में अफ़्ग़ानिस्तान में एक अमेरिकी तोपख़ाना (आर्टिलरी) दस्ता अपनी तोप चलाते हुए

आधुनिक युग की जंगों में हार-जीत में तोपख़ानों की इतनी बड़ी भूमिका रही है कि कुछ समीक्षकों के अनुसार '१६वीं सदी में तोपख़ाना ही औद्योगिक टेक्नोलॉजी की परम उपलब्धि थी' और कुछ अरसे के लिए 'तोपों का निर्माण मुख्य उद्योग था'।[2] भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में भी तोपख़ाने का बहुत प्रभाव रहा है। उदाहरण के लिए जब बाबर ने उज़्बेकिस्तान से आकर भारत पर आक्रमण किया तो वह पहला सैन्य नेता था जिसने उत्तर भारत में तोपख़ाने का प्रयोग किया। आरम्भ में यह बात उसकी जीत और मुग़ल साम्राज्य के स्थापित हो सकने की एक बड़ी वजह रही।[3]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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