थर्मल प्रदूषण
थर्मल प्रदूषण किसी भी प्रकार के प्रदूषण की प्रक्रिया को कहा जायेगा जिससे व्यापक रूप में पानी के प्राकृतिक तापमान में बदलाव होता हो।
थर्मल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक विनिर्माताओं द्वारा शीतलक पानी का प्रयोग करने से होता है। जब शीतलक हेतु प्रयोग किया गया पानी पुनः प्राकृतिक पर्यावरण में आता है तो उसका तापमान अधिक होता है, तापमान में बदलाव के कारण (क.) ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है (ख.) पारिस्थिथिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। नगरीय जल बहाव-- सड़कों और गाड़ियों को रखने के स्थानों से बहे पानी, ये सभी तापमान के बढ़ने के कारण हो सकते हैं।
जब एक बिजली संयंत्र मरम्मत अथवा अन्य कारणों से खुलता और बंद होता है, तो इसकी वजह से मछलियां और अन्य तरह के जीवाणु जो की एक विशेष प्रकार के तापमान के आदि होते हैं, अचानक तापमान में हुई बढ़ोतरी से मर जाते हैं, इसे 'थर्मल झटका' कहा जाता है।
थर्मल प्रदूषण का एक और कारण जलाशय तालाब/टंकी द्वारा बहुत ही ज्यादा ठन्डे पानी को उष्ण नदियों में बहाने से होता है।
इसका प्रभाव मछलियों (विशेषकर अण्डों और लारवों) तथा व्यापक मात्र में मेरुदंडविहीन जीवाश्मों और नदी के प्रजनन के उत्पादन पर पड़ता है।
पारिस्थितिक प्रभाव - उष्म जल
तापमान के आधिक्य के कारण घुलनशील ऑक्सीजन (DO) की मात्रा की कमी पानी में होती है।
ऑक्सीजन की मात्रा की कमी के वजह से मछलियों, उभयचर जीवों और कोपेपोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। थर्मल प्रदूषण जल-प्राणियों के चयापचयी की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है, जैसे की एंजाइम गतिविधि, परिणामतः जीवाश्म अल्प समय में ज्यादा खाद्य पदार्थ सेवन करने लगते हैं, जो की वे नहीं करते अगर पर्यावरण में बदलाव ना हुआ होता। चयापचयी की प्रक्रिया में बदलाव के कारण खाद्य पदार्थ में कमी आ सकती है, जिसकी वजह से बहुत तीव्र गति से जनसंख्या में घटौति हो सकती है। पर्यावरण में बदलाव का परिणाम यह भी हो सकता है की जीव एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाएं जहां का पर्यावरण अनुकूलनीय हो, इसी प्रकार वे मछलियां भी अपना घर बदल सकती हैं जो की कहीं और सिर्फ उष्म जल में रहने की आदि हों. ऐसे में यह स्थिति अल्प अंतर में उपलब्ध संसाधनों के लिए होड़ की स्थिति पैदा करती है, इस कारण उन जीवाणुओं से जो उष्म तापमान की अनुकूल नहीं है, उनसे ज्यादा अनुकूलित जीवाणुओं को लाभ होता है। इस कारण पुराने और नए पर्यावरण में उपलब्ध खाद्य पदार्थ की श्रृंखला में समझौता करना पड़ता है। यह स्थिति जैविक भिन्नता को कम कर सकती है।
ध्यातव्य है की महज दो डिग्री सेल्सियस भी अगर तापमान में बदलाव होता है तो उसका व्यापक असर जीवाणुओं के चयापचय और अन्य कोशकीय जीवविज्ञान सम्बन्धी प्रभाव पड़ सकते हैं।
मुख्य प्रतिकूल बदलावों में कोशकीय परतों की परिगम्यता जो की विसारण के लिए जरूरी है, कोषकाएं प्रोटीन का जमाव और चयापचय के एंजाइम फेर-बदल में ये सभी शामिल होंगे। कोशकीय स्तर पर इन बदलावों का प्रतिकूल प्रभाव उनके जीवन और प्रजनन पर पड़ेगा.
प्रधान उत्पादकों (प्रजननकर्ताओं) पर इसका प्रभाव पड़ेगा क्यों की उष्णिय जल पेड़-पौधों के बढ़ने के रफ़्तार को तेज़ करती है, जो की अल्प जीवनाविधि का कारण बनेगी तथा जीवाणुओं जनसंख्या में भी बढ़ोतरी होगी।
ऐसी स्थिति शैवाल के पैदावार को बेइंतहा बढ़ा देगी, जिसके कारण ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आयेगी.
तापमान में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी जीवन उपयोगी एंजाइमों के अप्राकृतिकरण की तरफ अग्रसर होगी, जो की एंजाइम के चौकोर संरचानाएं के अन्दर हाइड्रोजन और डिसुलफाइड के जोड़ के टूटने से होगी।
एंजाइम के गतिविधि में घटौती के कारण जल-जीवों के लिए समस्यायं खड़ी हो सकती हैं मसलन वह चर्बी गलाने की क्षमता को नष्ट करती है, जो की कुपोषण का कारण बनती है।
कुछ मामलों में उष्मीय जल का नगण्य प्रभाव देखा जा सकता है, यहां तक की नए जल्य पारिस्थितिकी तंत्र को वह बेहतर भी बना सकती हैं। इस महत्वपूर्ण घटना को मौसमी जालों में देखा जा सकता है, जिन्हें थर्मल समृधि के रूप में जाना जाता है। एक चरम मामले में क्रियाकलापों के मनाटी में सम्मुचयन में पाया जाता है, जो ज्यादातर सर्दियों के दौरान बिजली संयंत्रों द्वारा बहाए गए पानी के स्थलों का इस्तेमाल अपने प्रजनन के लिए करते हैं।
आकलन बताते हैं की अगर इन बिजली संयंत्रों द्वारा छोड़े गए पानियों के स्थलों को हटा दिया जाये तो इनकी जनसंख्या में कमी आयेगी.
ताज़े जल के स्रोत के लिए तापमान ज्यादा से ज्यादा 70° फारेनहाइट, खारे पानी के लिए 80 °F और उष्ण-कटिबंधीय मछलियों के लिए 85 डिग्री होना चाहिए। [तथ्य वांछित]
पारिस्थितिक प्रभाव - शीतल जल
जलाशयों द्वारा अप्राकृतिक रूप में ठन्डे पानी के छोड़े जाने पर नदी के मछलियों, मेरुदंडविहिन जीवाणुओं और उसके जीव-जंतुओं पर पड़ सकता है।
ऑस्ट्रेलिया की नदियां, जहां, उष्णिय जल तापमानों का स्थापत्य है, वहां के स्थानीय मछलियों की नस्लों का सफाया हो गया है और मेरुदंड विहीन जीव-जंतुओं में भरी मात्रा में फेर-बदल हुआ है अथवा शक्तिहीन हो गए हैं। ताज़े जल के स्रोतों का तापमान कम से कम 50 °F, खारे-जल का 75 °F और उष्ण-कटिबंधीय का 80 °F होना चाहिए।
थर्मल प्रदूषण नियंत्रण
औद्योगिक अपशिष्ट संयुक्त राज्य में औद्योगिक स्रोतों द्वारा थर्मल प्रदूषण का मुख्य कारण, बिजली संयंत्र, पेट्रोलियम शोधक, लुगड़ी और कागज़ मिल, रासायन संयंत्र, स्टील मिल और अयस्क हैं।[2][3] इन स्रोतों द्वारा विसर्जित उष्णिय जल को नियंत्रित करने में शामिल हैं:
- ठंडे तालाबों, मनुष्य निर्मित जलाशयों में भाप के तकनीक, संवहन और विकिर्णन द्वारा इन्हें ठंडा किया जा सकता है।
- ठन्डे करने के टावर जो की भाप के तकनीक तथा उष्मता के विसर्जन द्वारा वातावरण को ठंडा करते हैं।
- पुनर्जीवनीकरण एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा घरेलू अथवा औद्योगिक अतिरिक्त उष्णता को पुनः कम किया जाता है।[4]
कुछ सुविधाएं जो की एक बार में ठंडा करने (OTC) की प्रक्रिया द्वारा होती हैं, पानी की उष्णता को पूर्ण रूप में कम नहीं कर पाती.
उदाहरणतः सेन फ्रांसिस्को में पोत्रेरो जेनेरेटिंग स्टेशन जो की OTC का इस्तेमाल करती है तथा सेन फ्रांसिस्को खाड़ी में जल विसर्जित करती है, इस जल का तापमान कड़ी के अनुकूलित पर्यावरण से लगभग 10 °C (20 °F) ज्यादा है।[5]
शहरी बहाव गर्मियों के मौसम में, शहरी बहावों के छोटे जल स्रोतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि पानी, बहुत गर्म हो गए पार्किंग के स्थलों, सड़कों और राहगीरों के लिए चलने वाले जगहों से होकर बहता है।
इस पानी को बहाने के लिए जो सुविधाएं हैं उनकी वजह से सीधे-सीधे यह जमीनी पानी से जाकर मिल जाता है, इन्हें प्राकृतिक रूप में जल धारण करने वाले स्थलों की तथा मजबूत जलकुन्दों जैसे प्रणालियों के द्वारा थर्मल प्रदूषण को रोका जा सकता है। जल को धारण करने वाले बेसिनों से तापमान कम करने में ज्यादा सहायता नहीं पहुंचती क्योंकि छोटे जल स्रोतों में जाकर मिलने से पहले ही ये सूरज की रौशनी से गर्म हो जाते हैं।[6]......
इन्हें भी देखें
Book: Pollution | |
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- पानी शीतलन
- जल प्रदूषण
- पानी की गुणवत्ता