माशेरब्रुम
माशेरब्रुम पाक अधिकृत कश्मीर के बल्तिस्तान क्षेत्र में स्थित काराकोरम पर्वतों के माशेरब्रुम पर्वत समूह का सबसे ऊँचा पर्वत है। ७,८२१ मीटर (२५,६५९ फ़ुट) की बुलंदी के साथ यह विश्व का २२वाँ सबसे ऊँचा और पाकिस्तान-नियंत्रित क्षेत्रों का ९वाँ सबसे ऊँचा पहाड़ है। इसे के१ (K1) भी बुलाया जाता है क्योंकि १९वीं सदी में काराकोरम शृंखला के निरिक्षण के दौरान यह पहला मापा गया पर्वत था। माशेरब्रुम समूह बाल्तोरो हिमानी से दक्षिण में स्थित है।
माशेरब्रुम Masherbrum | |
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के१ (K1) | |
उच्चतम बिंदु | |
ऊँचाई | 7,821 मी॰ (25,659 फीट) |
उदग्रता | 2,457 मी॰ (8,061 फीट) |
सूचीयन | दुनिया का २२वाँ सबसे ऊँचा पर्वत |
निर्देशांक | 35°38′24″N 76°18′21″E / 35.64000°N 76.30583°E 76°18′21″E / 35.64000°N 76.30583°E [1] |
भूगोल | |
स्थान | गिलगित-बल्तिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर |
मातृ श्रेणी | काराकोरम |
आरोहण | |
प्रथम आरोहण | १९६० में जॉर्ज अर्विन्ग बॅल और विली उनसोएल्ड द्वारा |
सरलतम मार्ग | हिमानी, बर्फ़ पर चढ़ाई |
नाम
'माशेरब्रुम' नाम की उत्पत्ति और अर्थ को लेकर विद्वानों में बहस है। 'माशादार' का मतलब सामने से छर्रों से भरा जाने वाली बंदूक़ होता है और 'ब्रुम' का मतलब 'पर्वत'। सम्भव है यही इस नाम की जड़ रही हो। लेकिन 'माशा' का अर्थ 'उच्च महिला या रानी' भी होता है जिससे यह भी मुमकिन है कि पहाड़ के नाम का अर्थ 'पर्वतों की रानी' हो। १९६० में स्थानीय राजा के अनुसार इसका नाम संस्कृत से था और उसका अर्थ 'फ़ैसले का दिन' या 'प्रलय पर्वत' है।[2] कुछ अन्य स्रोत इसे बलती भाषा से उत्पन्न बताते हुए इसका अर्थ 'आग का पहाड़' बताते हैं।[3]
इतिहास
१८५६ में ब्रिटिश राज का थोमस मोन्टगोमरी नामक सैन्य अफ़सर काराकोरम शृंखला का निरिक्षण कर रहा था। उसने यहाँ माशेरब्रुम की बुलंद चोटी देखी और उसे 'काराकोरम-१' या 'के-१' का सरकारी नामांकन दे दिया। लेकिन स्थानीय लोगों के लिये इसका नाम 'माशेरब्रुम' ही था। १९३८ में इसे दक्षिण से चढ़ने का प्रयास किया गया जो नाक़ामयाब रहा। १९४७ में भारत विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान में कश्मीर को लेकर १९४८ का युद्ध छिड़ा। युद्ध-विराम के बाद इस क्षेत्र पर पाकिस्तानी क़ब्ज़ा बन गया। १९५५ और १९५७ में माशेरब्रुम पर विजय पाने के दो और पर्वतारोही प्रयास भी असफल रहे। आख़िरकर १९६० में एक अमेरिकी दस्ते के जॉर्ज अर्विन्ग बॅल और विली उनसोएल्ड इसपर दक्षिणपूर्व मार्ग से चढ़ने में सफल हुए।