रोमंथक

रोमंथक (ruminant) या जुगाली करने वाले वह सम-ऊँगली खुरदार स्तनधारी पशु होते हैं जो वनस्पति खाकर पहले अपने पेट के प्रथम ख़ाने में उसे नरम करते हैं और फिर जुगाली करके उसे वापस अपने मूंह में लाकर चबाते हैं। पेट के प्रथम कक्ष से मूंह में वापस लाये गए खाने को पागुर (cud) कहा जाता है और यह दोबारा चबाने से और महीन हो जाता है जिस से उससे हज़म करते समय अधिक पौष्टिकता ली जा सकती है। विश्व में रोमंथकों की लगभग १५० जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें बहुत से जाने-पहचाने पालू और जंगली जानवर शामिल हैं, मसलन गाय, बकरी, भेड़, जिराफ़, भैंस, हिरण, ऊँट, लामा और नीलगाय।जुगाली करने वालों की लगभग 200 प्रजातियों में घरेलू और जंगली दोनों प्रजातियाँ शामिल हैं। जुगाली करने वाले स्तनधारियों में मवेशी , सभी पालतू और जंगली गाय , बकरी , भेड़ , जिराफ , हिरण , चिकारे और मृग शामिल है। वर्गीकरण की दृष्टि से, उपवर्ग रुमिनान्टिया शाकाहारी आर्टियोडैक्टाइल का एक वंश है जिसमें दुनिया के सबसे उन्नत और व्यापक अनइगुलेट्स शामिल हैं।[1] [2]

ब्रिटेन में जुगाली कर रही एक गाय
कक्ष दर्शाने के लिए काटकर फैलाया गया रोमंथक पेट - (a) ग्रासनाल, (b) रूमेन, (c) रेटिक्यूलम​, (d) ओमेसम, (e) ऐबोमेसम, (f) आँत

[3] पौधे के पदार्थ को और अधिक तोड़ने और पाचन को उत्तेजित करने के लिए जुगाली को दोबारा चबाने की प्रक्रिया को चिंतन कहा जाता है।[4]

विवरण

जहाँ ग़ैर-रोमंथकों (जैसे कि मानव, भेड़िये, बिल्लियाँ) के पेटों में एक ही कक्ष होता है वहाँ रोमंथकों के पेट में चार ख़ाने होते हैं। यह इस प्रकार हैं:[5]

  • रूमेन (rumen) - यह पहला और सबसे बड़ा कक्ष होता है। खाई हुई वानस्पतिक सामग्री (थूक से भी मिले हुए घास, पत्ते, वग़ैराह) इसमें आती है और यहाँ मौजूद बैक्टीरिया उसपर किण्वन (फ़रमेन्टेशन) करते हैं।
  • रेटिक्यूलम​ (reticulum) - रूमेन से किण्वित खाना रेटिक्यूलम​ जाता है जहाँ और भी बैक्टीरिया उसे परिवर्तित करते हैं। यहाँ खाना बहुत से द्रव से भी मिश्रित किया जाता है। महीन खाने के कण डूबकर इस ख़ाने के नीचे बैठ जाते हैं जबकि मोटे कण और टुकड़े ऊपर रहते हैं। महीन खाना पाचन के लिए एक पतली नली के ज़रिये सीधा ऐबोमेसम (अंतिम कक्ष) में पहुंचा दिया जाता है।[6] खाने के बड़े टुकड़े जुगाली की क्रिया के द्वारा पागुर नामक गोले के रूप में वापस ऊपर मुंह में पहुंचा दिया जाता है, जहाँ जानवर उसे चबाता है। इस पागुर में बहुत से बैक्टीरिया भी मिश्रित होते हैं।यहां लगभग 75 मिलियन जंगली जुगाली करने वाले जानवर भी हैं। वे ऑस्ट्रेलिया और अंटार्क[7]टिका महाद्वीपों को छोड़कर कहीं भी पाए जा सकते हैं। उनमें से अधिकांश यूरोप, अफ्रीका और एशिया में हैं।। तदनुसार, स्पाउल्डिंग ने विलुप्त परिवार एन्थ्राकोथेरिडे की कुछ प्रजातियों को रुमिनांतियामोर्फा (लेकिन रुमिनांतिया में नहीं) के भीतर समूहीकृत किया, लेकिन अन्य को रुमिनांतियामोर्फा की बहन क्लैड, सीटानकोडोंटामोर्फा के भीतर रखा ।[8]
  • ओमेसम (omasum) - मुंह में पागुर को अच्छी तरह चबाने के बाद पशु फिर से उसे निग़ल लेता है और यह ओमेसम (यानि पेट के तीसरे कक्ष) में पहुँचता है। चबाए गए खाने के टुकड़े अब काफ़ी छोटे हो गए होते हैं और उसमें मिश्रित बैक्टीरिया के पास उसे किण्वित करने के लिए और सतही क्षेत्र मिलता है। ओमेसम की दीवारें खाने में मिले हुए पानी को काफ़ी हद तक भी सोख लेती हैं। यहाँ से अब यह किण्वित खाना ऐबोमेसम (चौथे कक्ष) में जाता है।
  • ऐबोमेसम (abomasum) - यह यथार्थ आमाशय भी कहलाता है। बहुत से जीववैज्ञानिक ऐबोमेसम को ही पशु का असली पेट समझते हैं क्योंकि यही एकमात्र कक्ष है जहाँ पाचन के रसायन (जैसे कि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) उसे हज़म करते हैं। अम्ल के कारण खाने में मिश्रित बैक्टीरिया भी मारे जाते हैं (हालांकि रूमेन में लगातार और बैक्टीरिया जन्मते रहते हैं, इसलिए जानवर को इनकी कमी नहीं होती)। सरल पदार्थों में परिवर्तित खाना अब आँतों में जाता है जहाँ उसके शक्तिवर्धक और पौष्टिक तत्व सोख लिए जाते हैं। हालांकि, वुडल ने पाया कि जुगाली करने वालों के आहार में फाइबर की मात्रा और रूपात्मक विशेषताओं के बीच बहुत कम संबंध है, जिसका अर्थ है कि हॉफमैन और स्टीवर्ट द्वारा जुगाली करने वालों के श्रेणीबद्ध विभाजन के लिए आगे के शोध की आवश्यकता है ।[9][10]

यदि तीनों ख़ानों का आकार मिलकर देखा जाए तो एक गाय में यह १०० लीटर से २४० लीटर तक होता है।[6]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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