विमुक्ति धर्ममीमांसा
विमुक्ति धर्ममीमांसा(अंग्रेजी-Liberation Theology), एक ईसाई धर्ममीमांसक दृष्टिकोण है जो उत्पीड़ितों की विमुक्ति पर बल देता है। विमुक्ति धर्ममीमांसा को उत्पीड़न और भेदभाव की एक मूर्त स्थिति में विमुक्ति के ऐतिहासिक कार्यान्वयन(praxis), पर समालोचनात्मक विमर्श के रूप में परिभाषित किया गया है।[1] कभी-कभी यह सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण कर गरीबों के लिए सामाजिक चिंता और उत्पीड़ित लोगों के लिए राजनीतिक न्याय की मांग करता है; अन्य संदर्भों में, यह असमानता के अन्य रूपों को संबोधित करता है, जैसे कि नस्लभेद या जातिवादता।
विमुक्ति धर्ममीमांसा, लैटिन अमेरिकी संदर्भ में सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है, विशेषतः से कैथोलिक धर्म के भीतर, जहां यह १९६० के दशक में द्वितीय वेटिकन परिषद के बाद ,गुस्तावो गुतिरेज़, लियोनार्डो बोफ तथा जेसुइट जुआन लुइस सेगुंडो और जॉन सोब्रिनो जैसे धर्मविदों का राजनीतिक अभ्यास बन गया।[2]
विमुक्तिवादी धर्ममीमांसा, दुनिया के अन्य हिस्सों में भी विकसित हुए हैं जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत धर्ममीमांसा , फिलिस्तीनी मुक्ति धर्ममीमांसा, भारत में दलित धर्ममीमांसा, और दक्षिण कोरिया में मिंजंग धर्ममीमांसा ।[3]