काबा

सऊदी अरब में पवित्र स्थल, मुसलमानों की नमाज़ की दिशा

काबा या ख़ाने काबा (अरबी: الكعبة‎, अंग्रेज़ी: Ka'aba, अरबी उच्चारण: का'आ़बा) मक्का, सउदी अरब में स्थित एक घनाकार (क्यूब के आकार की) इमारत है जिसे इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।[1] इस्लामी परंपरा के अनुसार इस भवन को सबसे पहले, इब्राहीम के समय में खुद, इब्राहिम ने बनाया था। यह ईमारत, मक्का के मस्जिद-अल-हरम के बीचो-बीच स्थित है। क़ुरान और इस्लामी शरिया के अनुसार दुनिया के सारे मुसलामानों पर यह लागु है की वे नमाज़ के समय काबा की और मुँह कर के नमाज़ अदा करें।[2] हज तीर्थयात्रा के दौरान भी मुस्लिमों को तवाफ़ नामक महत्वपूर्ण धार्मिक रीत पूरी करने का निर्देश है, जिसमें काबे की सात परिक्रमाएँ की जाती हैं।[3]

काबा
का'आ़बा Ka'aba
ٱلْكَعْبَة
पवित्र काबा के पास तीर्थयात्री
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताइस्लाम
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिमक्का, हेजाज, सउदी अरब
काबा is located in पृथ्वी
काबा
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 42 पर: The name of the location map definition to use must be specified। के मानचित्र पर अवस्थिति
भौगोलिक निर्देशांक21°25′21.0″N 39°49′34.2″E / 21.422500°N 39.826167°E / 21.422500; 39.826167 39°49′34.2″E / 21.422500°N 39.826167°E / 21.422500; 39.826167
ऊँचाई (अधि.)13.1 मी॰ (43 फीट)

नामकरण

अरबी शब्द का'आ़बा (كَعْبَة) का शाब्दिक अर्थ होता है "घनाकार"(क्यूब)। इसके अलावा, क़ुरान में इसे "अल-बैत" (अरबी: ٱلْبَيْت‎) और बैती(अरबी: بَيْتِي‎) [2:125, 22:26], बैतिक अल-मुह़र्रम (अरबी: بَيْتِكَ ٱلْمُحَرَّم‎) [14:37], अल-बैत अल-ह़राम (अरबी: ٱلْبَيْت ٱلْحَرَام‎) [5:97], अल-बैत अल-अ़तीक़ (अरबी: ٱلْبَيْت ٱلْعَتِيق‎) [22:29], भी कहा गया है। तथा काबा के इर्द-गिरद के क्षेत्र को अल-मस्जिद अल-हरम भी कहा गया है।

संरचना

इस्लामी धारणा और व्युत्पत्ति

क़ुरान के कई आयतों में काबा और उसकी व्युत्पत्ति का उल्लेख है। क़ुरान में उल्लेखित कहानी के अनुसार, काबा अल्लाह के लिए बनाया गया पहला प्रार्थनागृह है, जिससे इब्राहिम और उनके पुत्र इस्माइल ने अल्लाह के कहने पे "बक्का" (वर्त्तमान मक्का) में निर्मित किया था। इस कहानी का उल्लेख निम्न आयतों में मिलता है:

यकीनन लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो बक्का (मक्का) में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सारे जहाँ के लोगों का रहनुमा
—सुरा अल-इमरान(३); आयात ९६[4][5]
और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब हमने इबराहीम के ज़रिये से इबरहीम के वास्ते ख़ानए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी (और उनसे कहा कि) मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर को तवाफ और क़याम और रूकू सुजूद करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखना
—सुरा अल-हज(२२), आयात २६[6][7]
और (वह वक्त याद दिलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे (और दुआ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी (ये ख़िदमत) कुबूल कर बेशक तू ही (दूआ का) सुनने वाला (और उसका) जानने वाला है
—सुरा अल-बक़रा(२), आयात १२७[8][9]
मस्जिद अल-हराम के बीच स्थित काबा

धार्मिक महत्व

कि़बला

इस्लामिक शब्दावली के अनुसार, कि़बला, प्रार्थना के समय रुख करने वाली दिशा को कहा जाता है। इसका उल्लेख क़ुरान की सुरा अल-बक़रा की आयत १४३ और १४४ में मिलता है।[Qur'an 2:143–144] इस्लामिक नियमों के अनुसार नमाज़ अदा करते समय या प्रार्थना करते समय इस दिशा में मुड़ कर ही प्रार्थना की जाती है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार काबा ही किबला की दिशा होती है।

तवाफ़

तवाफ़ करते हुए हाजी, २०१६

इस्लाम के अनुसार प्रत्येक सक्षम मुस्लमान से यह उम्मीद की जाती है की वह अपने जीवन में कमसेकम एक बार हज करे। हज एक इस्लामिक तीर्थयात्रा है, जो इस्लामिक सांवत के ज़ु अल-हिज्जा के महीने में किया जाता है, जिसमें प्रत्येक यात्री को मक्का जा कर कुछ नियमानुसार कार्य करने होते हैं। यह प्रथा इस्लाम के पांच स्तंभों का भी हिस्सा है। इसके अलावा एक छोटी तीर्थ यात्रा भी होती ही, जिसे उमरा कहा जाता है। इन दोनों यात्राओं में यात्रियों को ७ बार काबा की परिक्रमा करनी होती है। इस क्रिया को तवाफ़ कहा जाता है। इस प्रथा का सम्बन्ध मुहम्मद स॰ अ॰ की जीवन से है, जिन्होंने मक्का पर कब्ज़ा करने के बाद, हज करते समय ऐसा किया था। मगर इस्लामिक परंपरा के अनुसार, मक्का तक तीर्थ यात्रा करने की प्रथा अरबों में इस्लाम के आने के अनेक वर्ष पहले, पैगम्बर इब्राहीम के ज़माने से चली आ रही है। हज यात्रा विश्व की सबसे प्रसिद्द धार्मिक यात्राओं में से एक है जिसमे प्रत्येक वर्ष १८ लाख तीर्थ यात्री मक्का आते हैं।[10]

इतिहास

1718 में काबा का दृश्य। एड्रियान रेलैण्ड

इसलामी अभिलेखेखों और पुरातात्विक शोध से यह सिद्ध होता है की यह भवन कई बार, युद्ध, और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से छतिग्रस्त हुआ है, तथा मरम्मत और पुनर्निर्मित भी किया गया है। उमय्यद सेना और अब्दुल्लाह इब्न अल-ज़ुबैर के बीच युद्ध में मक्का की पहली घेराबंदी के दौरान ( रविवार , 31 अक्टूबर 683 ईस्वी , पैगम्बर मुहम्मद स॰अ॰ के निधन के ५१ वर्ष बाद) आग से इस संरचना को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।[11] इस घटना का बाद, इब्न अल-ज़ुबैरी, जो उमय्यद खिलाफत के विरोधी थे, ने हज़रात अली की मृत्यु से उमय्यद खिलाफत के मज़बूती से अरब भूमि पर पकड़ बनाने के बीच के समय में मक्का पर शासन किया था। इब्न अल-जुबैर ने इस दौरान काबा को पुनः निर्मित किया, जिसमें उन्होंने हतीम की दीवार को भी काबा की संरचना में शामिल कर के बनवाया था। उन्होंने ऐसा एक इस्लामी मान्यता के आधार पर किया (जिसका उल्लेख कई हदीस संग्रहों में पाया जाता है) कि हतीम इब्राहिम द्वारा निर्मित काबा की मूल नींव के अवशेष थे, और मुहम्मद स॰अ॰ काबा का पुनर्निर्माण करना चाहते थे ताकि इसे काबा में शामिल किया जा सके।

तत्पश्चात, काबा को 692 में मक्का की दूसरी घेराबंदी के दौरान, उमय्यद आक्रमणकारियों द्वारा पत्थरों से बमबारी कर, ध्वस्त कर दिया गया था, जिसमें उमाय्याद सेना का नेतृत्व अल-हज्जाज इब्न यूसुफ ने किया था। अब्दुल मलिक इब्न मरवान के अंतर्गत, मक्कई विद्रोह के पतन और इब्न अल-ज़ुबैर की हत्या से उमय्यदों ने अंततः सभी इस्लामी शहरों को अपने शासन के अंतर्गत कर लिया, तथा यह घटना दूसरी फ़ितना का अंत साबित हुई। 693 ईस्वी में, अब्दुल मलिक ने अल-ज़ुबैर द्वारा बनायीं काबा को ध्वस्त कर काबा को पुनः अपने पुराने घनाकार नींव पर बना डाला।

९३० के हज के समय शिआ क़रामतान आक्रमणकारियों ने काबा पे एक क्रूर हमले और रक्तपात के बाद, काबे में स्थित काले पत्थर को चुरा कर अल-अहसा ले जाय गया था, जिसे अब्बासियों द्वारा ९५२ में वापस लाया गया।[12] काबा की मूल आकृति तब से अब तक लगभग वैसी ही रही है। काबा की मौजूद संरचना अधिकांशतः १७ वीं शताब्दी में उस्मानों द्वारा बनायी गयी है, जब १६२९ में अत्यधिक वर्षा के के बाद काबा के दीवार ध्वस्त हो गए थे। उसके बाद, इस संरचना को मक्का में ही पाए जाने वाले ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया। मौजूदा काबा उसी समय से बानी हुई है।[13]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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