ग्लोनास

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ग्लोनास

ग्लोनास (GLONASS) (रूसी: ГЛОНАСС[1], IPA: [ɡlɐˈnas]), रूसी अंतरिक्ष बल द्वारा रूसी सरकार के लिए संचालित एक रेडियो-आधारित उपग्रह नौवहन (नेविगेशन) प्रणाली है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (जीपीएस), चीन की कम्पास नेविगेशन प्रणाली और यूरोपीय संघ (ई.यू.) की योजनाबद्ध गैलीलियो स्थिति निर्धारण प्रणाली और भारत की भारतीय क्षेत्रीय नौवहन (नेविगेशनल) उपग्रह प्रणाली की एक वैकल्पिक और पूरक प्रणाली है।

ग्लोनास के विकास का आरम्भ 1976 में सोवियत संघ में हुआ था। 12 अक्टूबर 1982 से लेकर 1995 तक, कई रॉकेट प्रक्षेपणों के माध्यम से इस प्रणाली में पर्याप्त मात्रा में उपग्रहों को शामिल किया गया। लेकिन दुर्भाग्यवश इसके बाद रूसी अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी और इस प्रणाली की स्थिति भी कमजोर हो गई। 2000 के दशक के आरम्भ में व्लादिमीर पुतिन की अध्यक्षता में इस प्रणाली की बहाली को एक शीर्ष सरकारी वरीयता प्रदान की गई और वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि की गई। फ़िलहाल ग्लोनास रूसी संघीय अंतरिक्ष एजेंसी का सबसे महंगा कार्यक्रम है जिसमें 2010 के इसके बजट का एक तिहाई हिस्सा खर्च हो गया था।

2010 तक ग्लोनास ने रूसी प्रदेश के लगभग 100% हिस्सों को कवर करने की क्षमता हासिल कर लि थी। फरवरी 2011 तक उपग्रह समूह में 22 संचालनीय उपग्रह थे जो लगातार वैश्विक कवरेज प्रदान करने के लिए आवश्यक 24 उपग्रहों की दृष्टि से कम था और 2011 के दौरान इस कमी के पूरा होने की उम्मीद है। ग्लोनास उपग्रहों की डिजाइनों को कई बार नवीकृत किया गया है जिसका सबसे नवीनतम संस्करण ग्लोनास-के (GLONASS-K) है।

इतिहास

1970-1979: स्थापना और डिजाइन

सोवियत संघ की प्रथम उपग्रह आधारित रेडियो नेविगेशन प्रणाली त्सिक्लोन थी जिसका मकसद बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों को सटीक स्थिति निर्धारण का तरीका प्रदान करना था। 1967 और 1978 के बीच 31 त्सिक्लोन उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। इस प्रणाली की मुख्य समस्या यह थी कि स्थिर या धीमी गति से चलने वाले जहाज़ों के अत्यधिक सटीक होने के बावजूद, किसी स्थिति का निर्धारण करने के लिए प्रापक स्टेशन द्वारा कई घंटे अवलोकन करना पड़ता था जिसकी वजह से यह कई नेविगेशन प्रयोजनों के लिए और बैलिस्टिक मिसाइलों की नई पीढ़ी के मार्गदर्शन के लिए अनुपयोगी साबित हुआ।[2] 1968-1969 में, नौसेना के साथ-साथ वायु, थल और अंतरिक्ष बलों की भी सहायता करने वाली एक नई नेविगेशन प्रणाली की कल्पना की गई। औपचारिक आवश्यकताओं को 1970 में पूरा किया गया; सरकार ने "एकीकृत अंतरिक्ष नेविगेशन प्रणाली" का विकास शुरू करने का फैसला किया।[3]

ग्लोनास का डिजाइन तैयार करने का काम क्रास्नोयार्स्क-26 शहर में एनपीओ पीएम के युवा विशेषज्ञों के एक समूह को सौंपा गया (जिसे आज जेलेज़नोगोर्स्क के नाम से जाना जाता है). व्लादिमीर चेरेमिसिन के नेतृत्व में उन्होंने कई प्रस्ताव विकसित किए जिसमें से संस्थान के निदेशक ग्रिगोरी चेर्निवस्की ने अंतिम प्रस्ताव का चयन किया। इस काम को 1970 के दशक के अंतिम दौर में पूरा किया गया; इस प्रणाली में मध्यम वृत्ताकार कक्ष में 20,000 किमी की ऊंचाई पर संचालित होने वाले 24 उपग्रह शामिल होंगे। यह प्रणाली 4 उपग्रहों से प्राप्त संकेतों के आधार पर प्रापक स्टेशन की स्थिति का तुरंत पता लगाने में सक्षम होगी और वस्तु की गति और दिशा का भी खुलासा करने में सक्षम होगी। भारी-उत्तोलक प्रोटोन रॉकेट पर इन उपग्रहों में से एक बार में तीन उपग्रहों को छोड़ा जाएगा. कार्यक्रम के लिए अधिक संख्या में उपग्रहों की जरूरत को देखते हुए एनपीओ पीएम उपग्रहों के निर्माण का काम ओम्स्क के पीओ पोलियोट को सौंप दिया गया जिनके पास बेहतर उत्पादन क्षमता थी।[4][5]

शुरू में ग्लोनास को 65 मी तक की सटीकता के लिए डिजाइन किया गया था लेकिन वास्तव में असैनिक संकेत में इसकी सटीकता 20 मी और सैन्य संकेत में 10 मी थी।[6] पहली पीढ़ी के ग्लोनास उपग्रहों की लम्बाई 7.8 मीटर, चौड़ाई 7.2 मी और द्रव्यमान 1260 किलो था जिनमें उनके सौर पैनलों की माप भी शामिल था।[6]

1980-1995: पूर्ण कक्षीय उपग्रह समूह की प्राप्ति

1980 के दशक के आरंभिक दौर में एनपीओ पीएम को जमीनी परीक्षण के लिए पीओ पोलियोट से पहले प्रोटोटाइप उपग्रहों की प्राप्ति हुई। अधिकांश निर्मित हिस्सों की गुणवत्ता का स्तर निम्न था जिसकी वजह से एनपीओ पीएम के इंजीनियरों को काफी हद तक उन्हें फिर से डिजाइन करना पड़ा जिसके फलस्वरूप इनके प्रदर्शन में देर हो गई।[4] 12 अक्टूबर 1982 में कॉसमॉस-1413, कॉसमॉस-1414 और कॉसमॉस-1415 नामक तीन उपग्रहों को एक प्रोटोन रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया। प्रक्षेपण के समय प्रत्याशित तीन उपग्रहों के बजाय केवल एक ग्लोनास उपग्रह तैयार होने की वजह से इसे दो नकली उपग्रहों के साथ प्रक्षेपित करने का फैसला किया गया। अमेरिकी मीडिया ने अपनी खबर में इस घटना को एक उपग्रह और "दो गुप्त वस्तुओं" का प्रक्षेपण बताया। काफी समय तक अमेरिकियों को उन "वस्तुओं" की प्रकृति का पता नहीं चल सका। सोवियत संघ टेलीग्राफ एजेंसी (टीएएसएस) ने इस प्रक्षेपण को कवर करते हुए ग्लोनास को एक ऐसी प्रणाली बताया जिसे "सोवियत संघ के असैनिक उड्डयन विमान, नौसेना परिवहन और मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नावों की स्थिति का पता लगाने के लिए बनाया गया था".[4]

1982 से अप्रैल 1991 तक सोवियत संघ ने कुल मिलाकर 43 ग्लोनास संबंधी उपग्रहों और पांच परीक्षण उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के समय दो विमानों में बारह क्रियाशील ग्लोनास उपग्रहों का संचालन किया जा रहा था जो प्रणाली के सीमित उपयोग के लिए (देश के सम्पूर्ण प्रदेशों को कवर करने के लिए 18 उपग्रहों की जरूरत थी) काफी था। रूसी संघ ने उपग्रह समूह का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और इसका विकास जारी रखा। [5] 1993 में इस प्रणाली को औपचारिक रूप से संचालनशील घोषित किया गया[7] जिसमें अब 12 उपग्रह थे और दिसंबर 1995 में उपग्रह समूह को आखिरकार इसकी इष्टतम स्थिति में लाया गया जिसमें 24 संचालनशील उपग्रह शामिल थे। इसने ग्लोनास की परिशुद्धता को अमेरिकी जीपीएस प्रणाली के बराबर लाकर खड़ा कर दिया जिसने दो साल पहले सम्पूर्ण संचालन क्षमता हासिल की थी।[5]

1996-1999: आर्थिक संकट और जीर्णावस्था में पहुंचना

पहली पीढ़ी के उपग्रहों में से प्रत्येक उपग्रह 3 साल तक संचालित होने की वजह से इस प्रणाली को सम्पूर्ण क्षमता को बरकरार रखने के लिए 24 उपग्रहों के पूरे नेटवर्क का रखरखाव करने के लिए हर साल दो प्रक्षेपणों की जरूरत थी। हालांकि, 1989-1999 की आर्थिक रूप से संकट के समय अंतरिक्ष कार्यक्रम के वित्तपोषण के 80 प्रतिशत की कटौती कर दी गई और उसके बाद रूस इस प्रक्षेपण दर का खर्च उठाने में खुद को अक्षम पाया। दिसंबर 1995 में पूरा समर्थन मिलने के बाद दिसंबर 1999 तक कोई अतिरिक्त प्रक्षेपण नहीं किया गया। नतीजतन 2001 में उपग्रह समूह में क्रियाशील उपग्रहों की संख्या घटकर 6 रह गई। विसैन्यीकरण की प्रस्तावना के रूप में कार्यक्रम की जिम्मेदारी को रक्षा मंत्रालय से लेकर रूस की असैनिक अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कॉसमॉस को सौंप दी गई।[6]

2000-2007: नवीन प्रयास और आधुनिकीकरण

ग्लोनास कार नेविगेशन डिवाइस के साथ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन.राष्ट्रपति के रूप में पुतिन ने ग्लोनास के विकास के लिए विशेष ध्यान दिया.

2000 के दशक के शुरूआती दौर में व्लादिमीर पुतिन की अध्यक्षता में रूसी अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ और राज्य के वित्त में काफी सुधार हुआ। खुद पुतिन ने ग्लोनास में खास दिलचस्पी ली[6] और इस प्रणाली की बहाली को सरकार की शीर्ष वरीयताओं में से एक बना दिया गया।[8] इस प्रयोजन के लिए अगस्त 2001 को संघीय लक्ष्यित कार्यक्रम "वैश्विक नेविगेशन प्रणाली" 2002-2011 (सरकार निर्णय संख्या 587) का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का बजट 420 मिलियन डॉलर था[9] और इसका उद्देश्य 2009 तक सम्पूर्ण उपग्रह समूह को बहाल करना था।

10 दिसम्बर 2003 को दूसरी पीढ़ी के उपग्रह डिजाइन ग्लोनास-एम को पहली बार प्रक्षेपित किया गया। इसका द्रव्यमान आधारभूत ग्लोनास की तुलना में थोड़ा अधिक था जिसका वजन 1415 किलो था लेकिन इसका जीवन काल मूल उपग्रह की तुलना में दुगना था जिससे आवश्यक प्रतिस्थापन दर में 50 प्रतिशत की कमी देखी गई। नए उपग्रह में भी दो अतिरिक्त असैनिक संकेतों को प्रसारित करने की क्षमता और बेहतर सटीकता थी।

2006 में रक्षा मंत्री सर्गेई इवानोव ने उन संकेतों में से एक संकेत (30 मी की सटीकता के साथ) को नागरिक उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराने का आदेश दिया। हालांकि पुतिन इससे संतुष्ट नहीं थे और उनकी मांग की थी कि सम्पूर्ण प्रणाली को पूरी तरह से सभी के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए। नतीजतन, 18 मई 2007 को सभी प्रतिबन्ध हटा लिए गए।[7][10] 10 मी की परिशुद्धता वाली सटीक और पहली मात्र-सैन्य संकेत को उसके बाद से असैनिक उपयोगकर्ताओं के लिए मुफ्त उपलब्ध करा दिया गया है।

2000 के पहले दशक के मध्य में रूसी अर्थव्यवस्था में आने वाली तेजी के परिणामस्वरूप देश के अंतरिक्ष बजट में काफी वृद्धि हुई। 2007 में ग्लोनास कार्यक्रम के वित्तपोषण में काफी वृद्धि हुई; इसका बजट दोगुना से भी अधिक हो गया। 2006 में ग्लोनास को संघीय बजट से 181 मिलियन डॉलर मिलने के बावजूद 2007 में इस राशि को बढ़ाकर 380 मिलियन डॉलर कर दिया गया।[7]

अंत में 2001–2011 के दौरान इस कार्यक्रम पर 140.1 बिलियन रबल (4.7 बिलियन डॉलर) खर्च किया गया जो रोस्कॉसमॉस की सबसे बड़ी परियोजना बन गई और जिसमें इसके 2010 के बजट के 84.5 बिलियन रबल का एक तिहाई खर्च हो गया।[11]

2008-2011: सम्पूर्ण क्षमता की बहाली

जून 2008 में इस प्रणाली में 16 उपग्रह थे जिनमें से 12 उपग्रह उस समय पूरी तरह से काम कर रहे थे। इस समय रोस्कॉसमॉस का उद्देश्य पहले योजनाबद्ध समय सीमा से एक साल बाद 2010 तक कक्षा में 24 उपग्रहों का एक सम्पूर्ण उपग्रह समूह स्थापित करना था।[12]

एक घरेलू, स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन प्रणाली होने का सैन्य महत्व अगस्त 2008 में होने वाले 2008 दक्षिण ओसेशिया युद्ध के दौरान समझ में आया: शत्रुता के दौरान अमेरिकी जीपीएस प्रणाली क्षेत्र में पूरी तरह से छा गई थी।[13] सितम्बर 2008 में प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने संघीय बजट से ग्लोनास को अतिरिक्त 67 बिलियन रबल (2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित करने के लिए एक डिक्री पर हस्ताक्षर किया।[14]

वाणिज्यिक उपयोग को प्रोत्साहन

हालांकि ग्लोनास उपग्रह समूह वैश्विक कवरेज के निकट पहुँच रहा है लेकिन इसका वाणिज्यीकरण खास तौर पर उपयोगकर्ता खंड का विकास अमेरिकी जीपीएस प्रणाली की तुलना में पीछे है। उदाहरण के लिए कारों के लिए पहला वाणिज्यिक रूसी निर्मित ग्लोनास नेविगेशन उपकरण ग्लोस्पेस एसजीके-70 को 2007 में प्रस्तुत किया गया था लेकिन यह इसी के समान जीपीएस रिसीवरों की तुलना में बहुत बड़ा और काफी महंगा था।[8] 2010 के अंतिम दौर में बाजार में बस कुछ मुट्ठी भर ग्लोनास रिसीवर उपलब्ध थे और उनमें से बहुत कम साधारण उपभोक्ताओं के लिए बने थे। इसकी स्थिति में सुधार लाने के लिए रूसी सरकार सक्रिय रूप से नागरिक उपयोग के लिए ग्लोनास को बढ़ावा दे रही है।[15]

उपयोगकर्ता खंड के विकास में सुधार करने के लिए 11 अगस्त 2010 को सर्गेई इवानोव ने ग्लोनास के साथ संगत रहने तक मोबाइल फोन सहित सभी जीपीएस क्षम्य उपकरणों पर तब तक 25% आयात शुल्क लगाने की योजना की घोषणा की। इसके साथ ही साथ सरकार रूस में सभी कार निर्माताओं को 2011 से ग्लोनास युक्त कार बनाने के लिए मजबूर करने की योजना बना रही है। इससे रूस में कार संयोजन केन्द्रों वाली फोर्ड और टोयोटा जैसी विदेशी ब्रांड वाली कंपनियों सहित सभी कार निर्माता कंपनियां प्रभावित होंगी.[16]

एसटी-एरिक्सन,[17] ब्रॉडकॉम[18] और क्वालकॉम जैसी प्रमुख विक्रेता कंपनियों के सभी वर्तमान जीपीएस और फोन बेसबैंड चिप जीपीएस के संयोजन के साथ ग्लोनास का समर्थन करते हैं। किसी भी आयात प्रतिबन्ध से बहुत कम परिवर्तन होने की सम्भावना है क्योंकि दुनिया भर में भेजे जाने वाले अधिकांश उपकरण बहुत जल्द ग्लोनास का समर्थन करेंगे।

उपग्रह समूह का सम्पूरण

2010 में उपग्रह समूह को सम्पूर्ण आकार प्रदान करने के रूसी उद्देश्य को एक झटके का सामना करना पड़ा जब दिसंबर 2010 में तीन ग्लोनास-एम उपग्रहों का प्रक्षेपण विफल हो गया। खुद प्रोटोन-एम रॉकेट ने दोषरहित तरीके से प्रदर्शन किया था लेकिन ऊपरी स्तर ब्लोक डीएम3 (एक नया संस्करण जो अपनी पहली उड़ान भरने वाली थी) में सेंसर की विफलता की वजह से बहुत ज्यादा ईंधन भर दिया गया था। नतीजतन ऊपरी स्तर और तीन उपग्रह प्रशांत महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गए। कोमेर्संट के अनुमान के मुताबिक इस प्रक्षेपण विफलता की वजह से 160 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।[19] रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने सम्पूर्ण कार्यक्रम का सम्पूर्ण लेखापरीक्षण और इस विफलता की छानबीन करने का आदेश दिया। [20]

इस दुर्घटना के बाद रोस्कॉसमॉस ने दो आरक्षित उपग्रहों को सक्रिय किया और खास तौर पर मूल रूप से योजनाबद्ध परीक्षण के बजाय क्रियाशील उपग्रह समूह के हिस्से के रूप में फरवरी 2011 में प्रक्षेपित करने के लिए पहला बेहतर ग्लोनास-के उपग्रह बनाने का फैसला किया। इससे उपग्रहों की कुल संख्या 23 हो जाएगा जो लगभग सारी दुनिया का कवरेज प्राप्त होगा। दूसरा ग्लोनास-के तीन से चार महीने के भीतर तैयार हो जाएगा.[21]

2010 में राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने सरकार को 2012 से 2020 तक ग्लोनास के लिए एक नए संघीय लक्ष्यित कार्यक्रम तैयार करने का आदेश दिया। 2001 के मूल कार्यक्रम को 2011 में समाप्त करने के लिए अनुसूचित किया गया है।[19]

प्रणाली विवरण

ग्लोनास एक वैश्विक उपग्रह नेविगेशन प्रणाली है जो सैन्य और असैनिक उपयोगकर्ताओं की वास्तविक स्थित और वेग का पता लगाती है। उपग्रहों को 64.8 डिग्री झुकाव और 11 घंटे 15 मिनट की अवधि के साथ 19100 किमी ऊँचाई पर मध्य वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया है।[22][23] 'ग्लोनास की कक्षा इसे खास तौर पर उत्तरी अक्षांश में इस्तेमाल के लिए अनुकूल बनाती है जहाँ जीपीएस संकेत मिलने में तकलीफ हो सकती है।[6][8] इन उपग्रह समूहों को तीन कक्षीय तलों में संचालित किया जाता है जिनमें से प्रत्येक तल में बराबर दूरी पर स्थित 8 उपग्रह हैं।[23] वैश्विक कवरेज वाले एक सम्पूर्ण क्रियाशील उपग्रह समूह में 24 उपग्रह हैं जबकि रूसी प्रदेशों को कवर करने के लिए 18 उपग्रहों की जरूरत है। किसी स्थिति का पता लगाने के लिए रिसीवर को कम से काम चार उपग्रहों की सीमा में होना चाहिए जिनमें से तीन उपग्रहों का इस्तेमाल उपयोगकर्ता की स्थिति का पता लगाने के लिए और चौथे उपग्रह का इस्तेमाल रिसीवर और तीन अन्य अंतरिक्ष यान की घड़ियों के साथ तालमेल बैठाने के लिए किया जाएगा.[22]

उपग्रह

ग्लोनास कार्यक्रम का मुख्य ठेकेदार ज्वाइंट स्टॉक कंपनी रेशेटनेव इन्फॉर्मेशन सैटेलाइट सिस्टम्स (जिसे पहले एनपीओ-पीएम कहा जाता है) है। जेलेज़नोगोर्स्क में स्थित इस कंपनी ने अंतरिक्ष उपकरण इंजीनियरिंग संस्थान (ru:РНИИ КП) और रूसी रेडियो नेविगेशन एवं समय संस्थान के सहयोग से सभी ग्लोनास उपग्रहों को डिजाइन किया है। उपग्रहों के धारावाहिक उत्पादन का काम ओम्स्क स्थित कंपनी पीसी पोलियोट ने पूरा किया है।

विकास के तीन दशकों में उपग्रह की डिजाइन में कई बार सुधार किए गए हैं और इन्हें तीन पीढ़ियों: मूल ग्लोनास (1982 से), ग्लोनास-एम (2003 से) और ग्लोनास-के (2011 से) में बांटा जा सकता है। प्रत्येक ग्लोनास उपग्रह को एक जीआरएयू पदनाम 11एफ654 मिला है और उनमें से प्रत्येक को सैन्य "कॉसमॉस-एनएनएनएन" पदनाम भी मिला है।[24]

पहली पीढ़ी

वास्तव में पहली पीढ़ी के ग्लोनास (जिसे यूरेगन भी कहा जाता है) उपग्रहों में से सभी 3 अक्षीय स्थिर वाहन थे जिनका वजन आम तौर पर 1250 किलो था और उपग्रह समूह के भीतर स्थानांतरण के लिए उनमें एक मामूली प्रणोदन प्रणाली लगी हुई थी। समय के साथ उन्हें ब्लॉक आईआईए, आईआईबी और आईआईवी वाहनों के रूप में उन्नत बनाया गया जिनमें से प्रत्येक ब्लॉक में विकासवादी सुधार किया गया था।

1985-1986 में प्रोटोटाइपों की तुलना में बेहतर समय और आवृत्ति मानकों और बढ़ी हुई आवृत्ति स्थिरता के साथ छः ब्लॉक आईआईए उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया। इन अंतरिक्ष यानों ने 16 महीने के एक औसत संचालन जीवन काल का भी प्रदर्शन किया। 2 वर्षीय डिजाइन जीवन काल वाला ब्लॉक आईआईबी अंतरिक्षयान 1987 में दिखाई दिया जब कुल मिलाकर 12 अंतरिक्ष यानों को प्रक्षेपित किया गया था लेकिन उनमें से आधे अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण वाहन दुर्घटनाओं में लापता हो गए। इसे कक्षा में स्थापित करने वाले छः अंतरिक्ष यानों ने अच्छा काम किया जिन्हें औसत लगभग 22 महीनों तक संचालित किया गया।

ब्लॉक आईआईवी पहली पीढ़ी का सबसे सफल अंतरिक्ष यान था। खास तौर पर 1988 से 2000 तक इस्तेमाल होने वाले और 2005 तक प्रक्षेपणों में शामिल किए जाने वाले कुल मिलाकर 25 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया। इस डिजाइन का जीवन काल 3 वर्ष था हालांकि कई अंतरिक्ष यानों ने इससे लंबा जीवन जीया जिनमें से एक परवर्ती मॉडल 68 महीनों तक चलता रहा। [25]

ब्लॉक आईआई उपग्रहों को आम तौर पर प्रोटोन-के ब्लोक-डीएम-2 या प्रोटोन-के ब्रिज-एम बूस्टरों का इस्तेमाल करके बैकोनुर कोस्मोड्रोम से एक बार में तीन-तीन करके प्रक्षेपित किया जाता था। इसका एकमात्र अपवाद उस समय हुआ जब दो प्रक्षेपणों में एक ग्लोनास उपग्रह के बदले में एक इटालोन जियोडेटिक रिफ्लेक्टर उपग्रह का इस्तेमाल किया गया था।

दूसरी पीढ़ी

ग्लोनास-एम के नाम से मशहूर दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों का विकास 1990 में शुरू हुआ और 2003 में पहली बार प्रक्षेपित किया गया। इन उपग्रहों का जीवन काल काफी अधिक सात वर्ष और वजन थोड़ा अधिक 1480 किलो था। उनका व्यास लगभग 2.4 मी॰ (7 फीट 10 इंच) और ऊंचाई 3.7 मी॰ (12 फीट) है जिनका प्रक्षेपण के समय 1600 वाट की विद्युत शक्ति उत्पादन क्षमता के लिए सौर सारणी विस्तार 7.2 मी॰ (24 फीट) था। इसके पिछले भाग के ढांचे में एल-बैंड प्रेषण के लिए 12 प्राथमिक एंटेना लगे हैं। सटीक कक्षा निर्धारण और जियोडेटिक अनुसन्धान में सहायता करने के लिए लेजर कॉर्नर-क्यूब रिफ्लेक्तारों को भी ले जाया जाता है। रखी गई सिजियम घड़ियाँ स्थानीय घड़ियों का स्रोत प्रदान करती हैं।

2007 के अंत तक कुल मिलाकर दूसरी पीढ़ी के चौदह उपग्रह छोड़े गए। पिछली पीढ़ी की तरह दूसरी पीढ़ी के अंतरिक्ष यानों को भी तीन-तीन करके प्रोटोन-के ब्लोक-डीएम-2 या प्रोटोन-के ब्रिज-एम बूस्टरों का इस्तेमाल करके छोड़ा गया था।

तीसरी पीढ़ी

ग्लोनास-के पिछली पीढ़ी से काफी बेहतर है: यह अपने आप में पहला बिना दबाव वाला ग्लोनास उपग्रह है जिसका द्रव्यमान काफी कम है (1450 किलो द्रव्यमान वाले ग्लोनास-एम की तुलना में मात्र 750 किलो). इसका संचालन जीवन काल 10 वर्ष है जो दूसरी पीढ़ी के ग्लोनास-एम के 7 वर्षीय जीवन काल की तुलना में अधिक है, यह प्रणाली की सटीकता को बेहतर बनाने के लिए 2 के बजाय 5 नेविगेशन संकेतों को संचारित करेगा। [26] एल1 और एल2 बैंडों पर 4 सैन्य संकेतों को संचारित किया जाएगा जबकि असैनिक संकेत के लिए एल3 बैंड का इस्तेमाल किया जाएगा.[27] ग्लोनास-के उपग्रहों के माध्यम से अतिरिक्त सीडीएमए संकेतों का प्रसारण किया जाएगा जिनमें से दो जीपीएस/गैलीलियो संगत नेविगेशनल संकेत होंगे। [28] खास तौर पर रूसी घटकों से बने नए उपग्रह के उन्नत उपकरण की मदद से ग्लोनास की सटीकता को डबल करने में मदद मिलेगी.[22] पिछले उपग्रहों की तरह ये भी दोहरी सौर सारणी वाली 3 अक्षीय स्थिर नादिर संकेत हैं।[उद्धरण चाहिए] पहले ग्लोनास-के उपग्रह को 26 फ़रवरी 2011 को सफलतापूर्वक छोड़ा गया।[26][29]

वजन कम होने की वजह से ग्लोनास-के अंतरिक्षयान को काफी कम लागत वाले सोयुज-2.1बी बूस्टरों का इस्तेमाल करके प्लेसेत्स्क कोस्मोड्रोम प्रक्षेपण स्थल से जोड़ियों में या प्रोटोन-के ब्रिज-एम प्रक्षेपण वाहनों का इस्तेमाल करके बैकोनुर कोस्मोड्रोम से एक बार में छः अंतरिक्षयानों को प्रक्षेपित किया जा सकता है।[22][23]

भूमि नियंत्रण

ग्लोनास का भूमि नियंत्रण खंड पूरी तरह से पूर्व सोवियत संघ प्रदेश के भीतर स्थित है। भूमि नियंत्रण केन्द्र और समय मानक मॉस्को में स्थित है और टेलीमेट्री और ट्रैकिंग स्टेशन सेंट पीटर्सबर्ग, टेर्नोपोल, एनिसीस्क, कोमोसोमोल्स्क-ना-अमुर में हैं।[30]

रिसीवर

सेप्तेंत्रियो, टोप्कोन, जावद, मैगेलन नेविगेशन, नोवाटेल, लीका जियोसिस्टम्स और ट्रिम्बल इंक ग्लोनास का इस्तेमाल करने के लिए जीएनएसएस रिसीवरों का निर्माण करती है। एनपीओ प्रोगेस "जीएएलएस-ए1" नामक एक रिसीवर का वर्णन[मृत कड़ियाँ] करता है जो जीपीएस और ग्लोनास रिसेप्शन को जोड़ता है। स्काईवेव मोबाइल कम्युनिकेशंस एक इनमारसैट आधारित उपग्रह संचार टर्मिनल का निर्माण करती है जो ग्लोनास और जीपीएस दोनों का इस्तेमाल करता है।[31]

संकेत

एक रूसी सैन्य रग्ड, संयुक्त ग्लोनास/जीपीएस रिसीवर

ग्लोनास उपग्रह दो प्रकार का संकेत देता है: एक मानक सटीक (एसपी) संकेत और एक अस्पष्ट उच्च सटीक (एचपी) संकेत.

इन संकेतों में जीपीएस संकेतों की तरह डीएसएसएस इनकोडिंग और बाइनरी फेज-शिफ्ट कुंजीयन (बीपीएसके) मॉड्यूलेशन का इस्तेमाल होता है। सभी ग्लोनास उपग्रह अपने एसपी संकेत के रूप में एक समान कोड संचारित करते हैं हालांकि प्रत्येक कोड को एल1 बैंड नामक 1602.0 मेगाहर्ट्ज के दोनों तरफ से प्रसारित होने वाली 15 चैनल वाली आवृत्ति विभाजन बहु अभिगम (एफडीएमए) तकनीक का इस्तेमाल करके एक अलग आवृत्ति पर भेजा जाता है। केन्द्रीय आवृत्ति 1602 मेगाहर्ट्ज + n x 0.5625 मेगाहर्ट्ज है जहाँ "n " एक उपग्रह आवृत्ति चैनल नंबर (n =−7,−6,−5,...0,...,6, पहले n ==−7,...0,...,13) है। संकेतों को 25 से 27 डीबीडब्ल्यू (316 से 500 वाट) के बीच एक ईआईआरपी पर दाएं हाथ के वृत्ताकार ध्रुवीकरण का इस्तेमाल करके एक 38° शंकु के रूप में भेजा जाता है। ध्यान दें कि प्रतिलोम संबंधी (कक्षा में गृह के विपरीत तरफ) उपग्रह जोड़ियों को सहारा देने के लिए एक समान आवृत्ति चैनलों का इस्तेमाल करके केवल 15 चैनलों की सहायता से 24 उपग्रहों के समूह को समायोजित किया जाता है क्योंकि ये उपग्रह एक ही समय में पृथ्वी के उप्ग्योग्कर्ता की नजर में कभी नहीं आएँगे.

एचपी संकेत को एसपी संकेत के समान वर्गाकार चरण में प्रसारित किया जाता है जिसके लिए प्रभावी रूप से उसी वाहक का इस्तेमाल किया जाता है जिसका इस्तेमाल एसपी संकेत के लिए किया जाता है लेकिन इसका बैंडविड्थ एसपी संकेत के बैंडविड्थ से दस गुना अधिक होता है।

एल2 संकेतों के लिए उसी एफडीएमए का इस्तेमाल किया जाता है जिसका इस्तेमाल एल1 बैंड संकेतों के लिए किया जाता है लेकिन लेकिन समीकरण 1246 मेगाहर्ट्ज + n ×0.4375 मेगाहर्ट्ज द्वारा निर्धारित केन्द्र आवृत्ति के साथ 1246 मेगाहर्ट्ज पर प्रसारित किया जाता है जहाँ n का विस्तार वहीं तक है जहाँ तक एल1 का है।[32] एचपी संकेत के अन्य विवरणों का खुलासा नहीं किया गया है।

एक संयुक्त ग्लोनास/जीपीएस निजी रेडियो बीकन

इसकी चरम कार्यकुशलता पर एसपी संकेत द्वारा 5 से 10 मीटर के भीतर क्षैतिज और 15 मीटर के भीतर ऊर्ध्वाधर स्थिति निर्धारण सटीकता प्रदान किया जाता है जिसके वेग सदिश का माप 10 सेमी/सेकंड के भीतर और समय 200 एनएस के भीतर होता है जिनमें से सभी एक साथ चार पहली पीढ़ी के उपग्रहों की माप पर आधारित होते हैं;[33] ग्लोनास-एम जैसे नए उपग्रह इससे बेहतर है। अधिक यथार्थ एचपी संकेत प्राधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं जैसे रूसी सेना लेकिन फिर भी यूएस पी (वाई) कोड के विपरीत जिसे एक इन्क्रिप्टिंग डब्ल्यू कोड द्वारा ठीक किया गया है, ग्लोनास पी कोडों को केवल 'अस्पष्टता के माध्यम से सुरक्षा' का इस्तेमाल करके स्पष्ट रूप में प्रसारित किया जाता है। हालांकि इस संकेत के इस्तेमाल में खतरा है क्योंकि एल2पी कोड पर डेटा बिट्स के मॉड्यूलेशन (और इसलिए ट्रैकिंग रणनीति) में हाल ही में परिवर्तन करके इसे यादृच्छिक अंतरालों पर उतार-चढ़ाव रहित मोड से 250बीपीएस बरसत में रूपांतरित कर दिया गया है। ग्लोनास एल1पी कोड को मैनचेस्टर मिएंडर कोड के बिना 50बीपीएस पर मॉड्यूलेट किया जाता है और सीए कोड की तरह एक समान कक्षीय तत्वों का वहन करने के बावजूद यह महत्वपूर्ण लुनी-सोलर त्वरण मापदंडों और घड़ी सुधार शर्तों के लिए अधिक बिट्स आवंटित करता है।

फ़िलहाल एल1 बैंड संकेत के लिए एक समान एसपी कोड के साथ एल2 बैंड में एक अतिरिक्त असैनिक सन्दर्भ संकेत का प्रसारण किया जाता है। मामूली मूल ग्लोनास डिजाइन के अंतिम उपग्रह अर्थात् केवल उपग्रह संख्या 795 को छोड़कर यह वर्तमान समूह के सभी उपग्रहों और आंशिक रूप से एक असंचालनीय ग्लोनास-एम उपग्रह से प्राप्य है जिसे केवल एल1 बैंड में प्रसारित किया जा रहा है। (समूह की स्थिति पर दैनिक अद्यतन के लिए www.glonass-ianc.rsa.ru देखें.)

ग्लोनास में "पीजेड-90" (पृथ्वी मापदंड 1990 - पैरामेट्री जेमली 1990) नामक एक समन्वय डेटम का इस्तेमाल होता है जिसमें उत्तरी ध्रुव की सटी स्थिति को 1990 से 1905 तक इसकी स्थिति के एक औसत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह जीपीएस के समन्वय डेटम डब्ल्यूजीएस 84 के विपरीत है जो 1984 में उत्तरी ध्रुव की स्थिति का इस्तेमाल करता है। किसी भी निर्धारित दिशा में 40 से॰मी॰ (1 फीट) से कम करके डब्ल्यूजीएस से अलग करने के लिए 17 सितम्बर 2007 तक पीजेड-90 डेटम को नवीकृत किया गया है।

सीडीएमए संकेत

2008 के बाद से ग्लोनास के साथ इस्तेमाल करने के लिए नए सीडीएमए संकेतों पर शोध किया जा रहा है।

2010-2011 में प्रक्षेपित किए जाने वाले दो नवीनतम ग्लोनास-के1 उपग्रह परीक्षण प्रयोजनों के लिए 1202.025 मेगाहर्ट्ज पर एल3 बैंड में स्थित एक अतिरिक्त एसपी सीडीएमए संकेत का इस्तेमाल करेगा।

2013-2015 में प्रक्षेपित किए जाने वाले ग्लोनास-के2 उपग्रह मूल एफडीएमए आवृत्तियों के पास तीन अतिरिक्त सीडीएमए संकेतों का इस्तेमाल करेगा जिसमें से एक अस्पष्ट संकेत एल2 बैंड में 1242 मेगाहर्ट्ज पर स्थित होगा और साथ ही साथ दो संकेत एल1 बैंड में 1575.42 मेगाहर्ट्ज पर होंगे; 2015 के बाद प्रक्षेपित किए जाने वाले परवर्ती ग्लोनास-केएम उपग्रह 1176.45 मेगाहर्ट्ज पर एल5 बैंड में मुक्त संकेत का प्रदर्शन करेंगे और मौजूदा आवृत्तियों पर और अधिक सीडीएमए संकेतों का भी इस्तेमाल करेंगे। [34][35][36][37]

साँचा:GLONASS satellites roadmap

हालांकि ग्लोनास सीडीएमए के प्रारूप और मॉड्यूलेशन को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है लेकिन फिर भी डेवलपरों के प्रारंभिक वक्तव्यों से पता चलता है कि एल1 बैंड में मुक्त संकेत के लिए 1575.42 मेगाहर्ट्ज पर केंद्रित बीओसी (2,2) मॉड्यूलेशन का इस्तेमाल किया जाएगा, एल3 बैंड में मुक्त संकेत के लिए 1202.025 मेगाहर्ट्ज पर केंद्रित क्यूपीएसके (10) मॉड्यूलेशन का इस्तेमाल किया जाएगा और एल5 बैंड में मुक्त संकेत के लिए 1176.45 मेगाहर्ट्ज पर केंद्रित बीओसी (4,4) मॉड्यूलेशन का इस्तेमाल किया जाएगा.[37][38] इनमें से दो संकेत अनिवार्य रूप से समतुल्य आधुनिकीकृत जीपीएस असैनिक संकेतों "नव असैनिक एल1" (एल1सी) और "जीवन की सुरक्षा" (एल5) के केन्द्र बिंदुओं पर स्थित जीपीएस-प्रारूप वाले संकेत हैं जो मौजूदा गैलीलियो और कम्पास संकेतों के पास स्थित हैं और एल3 बैंड का संकेत एल2 बैंड के आधुनिकीकृत जीपीएस के "एम-कोड" संकेत के ठीक नीचे स्थित है। इस तरह की व्यवस्था से बहुमानक जीएनएसएस रिसीवरों को कार्यान्वित करने में आसानी होगी और यह सस्ता भी पड़ेगा.

द्विआधारी चरण-परिवर्तन कुंजीयन (बीपीएसके) का इस्तेमाल मानक जीपीएस और ग्लोनास संकेतों द्वारा किया जाता है लेकिन बीपीएसके और क्षेत्रकलन चरण-परिवर्तन कुंजीयन (क्यूपीएसके) दोनों को क्षेत्रकलन आयाम अधिमिश्रण (क्यूएएम) का भिन्नरूप माना जा सकता है। बाइनरी ऑफसेट वाहक (बीओसी) गैलीलियो, आधुनिकीकृत जीपीएस और कम्पास द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मॉड्यूलेशन है।

सीडीएमए संकेतों के आरम्भ के साथ इस समूह में विस्तार करके इसमें सक्रिय उपग्रहों की संख्या 30 कर दी जाएगी; भावी सुधारों के लिए अंत में एफडीएमए संकेतों का विरोध करना पड़ सकता है।[39]

वर्तमान स्थिति

उपलब्धता

[99] 09:51:05 UTC के अर्थ सरफेस (मास्क एंगल: 5 डिग्री) पर ज्यामिति कारक PDOP की स्थिति के वर्तमान मूल्य को दर्शाता हुआ मानचित्र.

26 फ़रवरी 2011 (2011 -02-26) के अनुसार , ग्लोनास समूह की स्थिति इस प्रकार है:[40]

समूह में उपग्रहों की कुल संख्या27 एससी
संचालनरत22 एससी
चालू होने वाले चरण में1 एससी
रखरखाव में4 एससी
अतिरिक्त कलपुर्जे-
बंद होने वाले चरण में-

रूसी संघ के सभी इलाकों को कवर करने वाली निरंतर नेविगेशन सेवाओं के लिए इस प्रणाली को 18 उपग्रहों और दुनिया भर में सेवा प्रदान करने के लिए 24 उपग्रहों की जरूरत है।[41] ग्लोनास प्रणाली फ़िलहाल रूस के लगभग 100% क्षेत्रों को कवर कर रही है।[42]

सटीकता

[105] पर एलेवेशन 5 डिग्री से नीचे नहीं के लिए थेडीन्यूरल रेन्ज पर ग्लोनास कस्टमर (PDOP≤6) के लिए इंटेग्रल नेविगेशन की उपलब्धता

रूसी विभेदक सुधार एवं निगरानी प्रणाली के डेटा 2010 के अनुसार  के अनुसार अक्षांश और देशांतर के लिए ग्लोनास नेविगेशन परिभाषाओं (पी=0.95 के लिए) की सुस्पष्टता 4.46—8.38 मी थी जिसके साथ एनएसवी की माध्य संख्या 7—8 (स्टेशन के आधार पर) के बराबर है। इसकी तुलना में जीपीएस नेविगेशन परिभाषाओं की एक ही समय की सुस्पष्टता 2.00—8.76 मी थी जिसके साथ एनएसवी की माध्य संख्या 6—11 (स्टेशन के आधार पर) के बराबर है।[43] इसलिए जीपीएस की तुलना में केवल असैनिक प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लोनास की सटीकता बहुत थोड़ी ही कम है।

कुछ आधुनिक रिसीवर में ग्लोनास और जीपीएस दोनों उपग्रहों का इस्तेमाल करने की क्षमता होती है जिससे 50 से ज्यादा उपग्रहों की उपलब्धता की वजह से शहरी घाटियों में काफी बेहतर कवरेज प्राप्त होता है और स्थिति का पता लगाने में बहुत कम समय लगता है। शहरी घाटी या पर्वतीय क्षेत्रों के अंदरूनी हिस्सों में केवल जीपीएस के इस्तेमाल से काफी बेहतर सटीकता प्राप्त हो सकती है। एक साथ दोनों नेविगेशन प्रणालियों का इस्तेमाल करने के लिए ग्लोनास/जीपीएस नेविगेशन परिभाषाओं की सुस्पष्टता 2.37—4.65 मी थी जिसके साथ एनएसवी की माध्य संख्या 14—19 (स्टेशन के आधार पर) के बराबर है।

रूसी संघीय अंतरिक्ष एजेंसी के निदेशक अनातोली पेर्मिनोव ने बताया[44] कि ग्लोनास की सटीकता में वृद्धि करने के लिए कुछ कदम उठाए जा रहे हैं। 2011 तक ग्लोनास के उपग्रह समूह में विस्तार करके और भूमि खंड में सुधार करके इसकी सटीकता के 2.8 मी तक पहुँचने की उम्मीद है। खास तौर पर नवीनतम उपग्रह डिजाइन ग्लोनास-के में एक बार शुरू हो जाने के बाद इस प्रणाली की सटीकता को दुगना करने की क्षमता है।

इन्हें भी देखें

  • ग्लोबल नेवीगेशन सेटेलाइट सिस्टम – ग्लोबल सेटेलाईट पोजीशनिंग सिस्टम के लिए सामान्य शब्द
  • मल्टीलेट्रेशन – पोजीशनिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गणितीय तकनीक

सन्दर्भ

संदर्भग्रन्थ

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:TimeSig

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