फतेहपुर जिला

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला

फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के बीच बसा हुआ है।[1] फतेहपुर जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा, असोथर अश्वत्थामा की नगरी और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगु ऋषि की तपोस्थली के रूप में मानी जाती है। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है और इसका मुख्यालय फतेहपुर शहर है।

फतेहपुर
—  जिला  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
मण्डलप्रयागराज
ज़िलाफतेहपुर
जनसंख्या
घनत्व
2,632,733 (2011 के अनुसार )
• 634/किमी2 (1,642/मील2)
लिंगानुपात901 /
साक्षरता58.6%%
आधिकारिक भाषा(एँ)हिन्दी
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
4,152 km² (1,603 sq mi)
• 114.66 मीटर (376 फी॰)
आधिकारिक जालस्थल: fatehpur.nic.in/

81°12′E / 26.16°N 81.20°E / 26.16; 81.20

इतिहास

असोथर

कस्बा असोथर जनपद फतेहपुर मुख्यालय से ३० किलोमीटर और नेशनल हाईवे थरियांव से १२ किलोमीटर कि दूरी पर यमुना नदी में किनारे पर फतेहपुर जनपद के मुख्यालय के दक्षिणी सीमा पर स्थित है। ११वी शताब्दी के मध्य राजा भगवंत राय खींची जी ने इसे बसाया था। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने महाभारत काल में ब्रम्हास्त्र पाने के लिए यहीं पर आकर तपस्या की थी , तभी से इस बस्ती का नाम असुफल हो गया जो कालान्तर में असोथर के नाम से जाने जाना लगा । खीची वंश के राजाओं में राजा भगवंत राय ने अश्वत्थामा का मन्दिर बनवाया । ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी अजर - अमर है और अपनी तपोस्थली व मोटे महादेव मंदिर में आज भी पूजा अर्चना करने आते हैं । तभी तो समूचे क्षेत्र को अश्वत्थामा का मन्दिर आस्था और विश्वास में समेटे हुए है । कहते हैं कि महाभारत काल में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहाँ टिके थे। जनपद फतेहपुर के मुख्य पर्यटक स्थलों के रूप में विख्यात पांडवकालीन प्राचीन मंदिर बाबा अश्वत्थामा धाम , सिद्ध पीठ मोटे महादेव मंदिर असोथर के दक्षिण में स्थित है।

बावनी इमली

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस पेड़ का विकास उस नरसंहार के बाद बंद हो गया है। यह जगह बिन्दकी उपखंड में खजुआ कस्बे के निकट है। बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम मुगल रोड स्थित शहीद स्मारक बावनी इमली स्वतंत्रता की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1858 को रसूलपुर गांव के निवासी जोधा सिंह अटैया दरियाव सिंह को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ फांसी पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की स्मृति में इस वृक्ष को बावनी इमली कहा जाने लगा।

चार फरवरी 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने असफल आक्रमण किया। साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था। सात दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसम्बर को जहानाबाद में गदर काटी और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया। जोधा सिंह अटैया और शिवदयाल सिंह के साथ गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी। जोधा सिंह को 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको फांसी दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया और कई दिनों तक ये शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ महराज सिंह बावनी इमली आये और शवों को उतारकर शिवराजपुर में इनकी अंत्येष्टि की।

खागा

फतेहपुर मुख्यालय से NH19 में पूर्व की ओर 35 किलोमीटर पर गंगा और यमुना के मध्य खागा स्थित है। 1857 की क्रांति में खागा के अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह के इतिहास को भारत सरकार की पुस्तक "हूज हू ऑफ इंडियन मारटायर्स 1857 वॉल्यूम 3 के पेज 31"में लिखा है कि सन 1795 ईसवी में खागा फतेहपुर उत्तरप्रदेश में लोधी क्षत्रिय जमींदार ठाकुर मर्दन सिंह के पुत्र ठाकुर दरियाव सिंह लोधी ने पुत्र ठाकुर सुजान सिंह लोधी के नेतृत्व में खागा तहसील के कोषागार को जून 1857 में लूट लिया और बहुत से अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया था। पांडु नदी औंग और बाँदा के तरौहां के युद्ध में उनके साथ तात्या टोपे,राना बेनीमाधव, और कर्वी के राजा माधव राव ने उनका साथ दिया। 6 मार्च 1858 को लोधी ठाकुर दरियाव सिंह,पुत्र ठाकुर सुजान सिंह, भाई ठाकुर निर्मल सिंह,चचेरे भाई ठाकुर बख्तावर सिंह, ठाकुर रघुनाथ सिंह को फांसी दे दी गयी थी।

The Tribes and Castes of the North-western provinces and Oudh, 1896 के पृष्ठ 319 पर सिंगरौर के बारे में उद्धृत है: Singraur, A tribe found in the Fatehpur District Their claim to be Rajputs does not appear to be universally admitted, and by one account they are really Lodha Rajput. Under their leader Daryao Sinh they gave much trouble in the Fatehpur District during the mutiny.... (W. Crooke, 1896)Fatehpur Gazetteer, 1906 में उद्धृत है कि-The Lodhas of Ekdala, Khaga, and Khakreru are a separate caste and are known by the distinctive name of Singraur under their leader, Dario Singh, they gave much trouble during mutiny.चार्ल्स वाल्टर फिनलॉक, तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट एवं कलेक्टर फतेहपुर ने सन 1851 ईस्वी में जो लिखा था और जो सन् 1852 में स्टैटिसटिकल रिपोर्ट ऑफ दि डिस्टिक आफ फतेहपुर के नाम से प्रकाशित हुआ था के पेज नंबर 13, पैरा 445 में लिखा है कि तालुका बहादुरपुर खागा, लोधा राजपूत जाति के एक पुराने परिवार की पैतृक संपत्ति थी। इस परिवार के वर्तमान प्रतिनिधि दरियाव सिंह हैं, जो "ठाकुर दरियाव सिंह" कहे जाते हैं। ये अपने पिता मर्दन सिंह की मृत्यु पर 1824 ईस्वी में इस तालुका के उत्तराधिकारी हुये । उस समय से इस परिवार का भाग्य धीरे-धीरे अवनति की ओर आता प्रतीत हुआ।


इसीप्रकार भारत सरकार की पुस्तक"डिक्सनरी ऑफ मारटायर्स इंडियाज़ फ्रीडम स्ट्रगल(1857-1947)वॉल्यूम 2" के पेज 163 में (MUTINY RECORD FATEHPUR,MUTINY BASTA अर्थात गदर के रिकॉर्ड )में लिखा है कि ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म 1795 में खागा फतेहपुर उत्तरप्रदेश मेंक्षत्रिय ज़मीदार ठाकुर मर्दन सिंह के  के यहाँ हुआ था।
आगे वे अपनी उक्त पुस्तक के पैरा 446 में ठाकुर दरियाव सिंह के व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं कि "हम अपने सामने एक घमंडी, अशिक्षित, ऐसा व्यक्ति देखते हैं जो अतुल्य पशुबल, महान व्यक्ति साहस और अनियंत्रित महत्वाकांक्षा रखता है।" 


पुस्तक"जंगनामा-ग़दर के फूल लेखक श्री अमृत लाल नागर " में भी ठाकुर दरियाव सिंह के बारे में लिखा है। कि ठाकुर दरियाव सिंह चहलारी ,बहराइच के ठाकुर बलभद्र सिंह के मामा थे।भारत सरकार ने फतेहपुर के मेडिकल कॉलेज का नाम "अमर शहीद जोधा सिंह अटैया ठाकुर दरियाव सिंह मेडिकल कॉलेज फतेहपुर" रखा है।

भिटौरा

पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि यहाँ सुप्रसिद्ध संत महर्षि भृगु लंबे समय तक पूजा का स्थान रहा है। यहाँ पर गंगा नदी प्रवाह उत्तर दिशा की ओर है। शहर मुख्यालय से उत्तर दिशा में बारह किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी भागीरथी के भिटौरा तट पर महर्षि भृगु मुनि ने तपस्या की थी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भृगु मुनि की तपोस्थली में देवता भी परिक्रमा करने आए थे। पवित्र धाम गंगा महर्षि भृगु क्रोध में एक बार भगवान विष्णु की छाती पर लात भी मारी थी। यहाँ पर अन्य आधा दर्जन मन्दिर बने हुए हैं।

स्वामी विज्ञानानंद जी ने महर्षि भृगु की तपोस्थली में भगवान शंकर की विशाल मूर्ति स्थापित कराई है और नया पक्का घाट भी तैयार कराया है। भगवान शंकर की मूर्ति पर ॐ नमः शिवाय का बारह वर्षों से अनवरत पाठ चल रहा है। उत्तर वाहिनी गंगा पूरे भारत में मात्र तीन जगह है जिसमे हरिद्वार, काशी व भृगु धाम भिटौरा है।

हथगाम

यह महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी ऐवम उर्दू के शायर इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। इसे सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।

रेन्ह

यह महाभारत कालीन गाँव है और यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है। दो दशकों पहले एक बहुत पुरानी भगवान विष्णु की कीमती मिश्र धातु की मूर्ति को इस इस गांव में पाया गया था। अब ये मूर्ति कीर्तिखेडा गांव में एक मंदिर में स्थित है और ये गांव बिन्दकी-ललौली सड़क पर है। कहा जाता है कि यहां पर कृष्ण के बड़े भाई बलराम की ससुराल है।

शिवराजपुर

यह गांव बिन्दकी के निकट गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का एक बहुत पुराना मंदिर है। जो मीरा बाई का मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान कृष्ण की मूर्ति को मीरा बाई, जो की भगवान कृष्ण की एक प्रख्यात भक्त और मेवाड़ के शाही परिवार के एक सदस्य थीं, के द्वारा स्थापित किया गया था।

तेन्दुली

यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ सांप के शिकार/कुत्ता काटे बीमरो का ईलाज बाबा झामदास के मन्दिर में होता है।

बिन्द्की

यह बहुत ही पुराना शहर है जो कि मुख्यालय से लगभग १५ मील दूर है। बिन्दकी का नाम यहाँ के राजा वेनुकी के नाम पर पडा। यह बहुत ही धर्मनिरपेक्ष शहर है। यहाँ कि भूमि गन्गा और यमुना नदी के बीच में होने के कारण बहुत ही उपजाऊ है। यह् उत्तर प्रदेश के राज्य में एक् एक सबसे पुराना तहसील है। शहीद जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और प्रसिद्ध हिंदी कवि राष्ट्र-कवि सोहन लाल की मात्रभूमि है।इसी तहसील की एक ग्रामसभा डीघ है जो मलवाँ ब्लाक के अंतर्गत आती है। ग्राम- ईशापुर ,सैरपुर , जहानपुर व डीघ मिलकर ग्रामसभा बन जाते हैं,ग्राम ईशापुर में ही ३० अप्रैल १९७८ को कवि,लेखक,पत्रकार,समाजसेवी सत्येन्द्र पटेल’प्रखर’ जी का जन्म एक प्रतिष्ठित कुरमी परिवार जिसे विश्व में पटेल आस्पद के नाम से जाना पहचाना जाता है , में हुआ था.आपके पिता श्री सत्यप्रकाश सिंह जी व माता जी का नाम श्रीमती बृजरानी पटेल था।आपके दादा श्री जगन्नाथ व दादी जी श्रीमती सुदामादेवी से मिले संस्कारों व आदर्शों के परिणाम स्वरूप आपका मन हिंदी साहित्य सृजन की ओर बचपन से लगता था,वर्ष २०१८ में अखण्ड भारत के निर्माता सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जीवनी,कृतित्व व व्यक्तित्व पर आधारित “सरदार पटेल चरित मानस”महाकाव्य के प्रकाशन ने आपको पूरे देश में मान सम्मान व पहचान दिलाई ।आज आप की आधादर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, एवम् आप अपने अनवरत लेखन से हिंदी साहित्य के भण्डार में श्रीवृद्धि कर रहें हैं जो सुखद है।

खजुहा

पुराने समय में खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का मुगल काल में बहुत ही महत्त्व था। औरन्गजेब के समय पर यह इलाहाबाद मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को भगवान शिव की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। खजुहा मुगल रोड पर स्थित है। यह स्थान काफी प्राचीन है। इसका वर्णन प्राचीन हिन्दू धर्मग्रन्थ ब्रह्मा पुराण में भी हुआ है, जो कि 5000 वर्ष पुराना था। 5 जनवरी 1659 ई. में मुगल शासक औरगंजेब का अपने भाई शाहशुजा के साथ भीषण युद्ध हुआ था। औरंगजेब ने शाहशुजा को इस जगह के समीप ही मारा था। अपनी जीत की खुशी में उन्होंने यहां एक विशाल और खूबसूरत उद्यान और सराय का निर्माण करवाया था। इस उद्यान को बादशाही बाग के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त इस सराय में 130 कमरें है। आज की स्थिति में यह अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है।

इस छोटे से शहर में 118 अद्भुत शिव मंदिर हैं। खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए हैं। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है। यहाँ दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में रावण पूजा भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की रामलीला को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की रामलीला जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है। यहां पर दशहरा मेले पर अन्य स्थानों की तरह रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि रावण को पूजनीय मानकर हजारों दीपों की रोशनी के साथ पूजा अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं रावण के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है। इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीजा) के दिन तालाब से लाई गई मिट्टी एवं कांस से कुंभ निर्माण कर गणेश की प्रतिमा निर्माण कर दशहरा के दिन पूजा अर्चना की जाती है। खजुहा मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य खजुहा के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि रावण का शीश तांबे से बनाया जाता है। दशमी के दिन से गणेश पूजन से शुरू होने वाली रामलीला परेवा द्वितीया के दिन राम रावण युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक रामलीला की समाप्त हो जाती है।

खजुहा की रामलीला का विशेष महत्व है। जहाँ रावण को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा श्रीराम के पहले रावण की पूजा की जाती है। जहां मेघनाथ का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा कुंभकरण व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।

हजारी लाल का फाटक

1857 से शुरू हुई आजादी की जंग के अंतिम मुकाम 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का केन्द्र बिन्दु शहर के चौक स्थित हजारी लाल का फाटक था। बलिया के कर्नल भगवान सिंह ने जिले के आठ सौ से अधिक देशभक्तों की फौज की कमान संभाली थी। झंडा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद ने आजादी की इस चिंगारी को तेज करने का प्रयास किया। शिवराजपुर का जंगल क्रांतिकारियों की शरण स्थली था। बताते हैं कि यहीं पर गुप्त रणनीति तय होती थी और फिर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के लिये क्रांतिकारियों के दल निकल पड़ते थे।

9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिले की महती भूमिका होने पर 1942 की लड़ाई में पूर्वाचल के जनपदों सहित बांदाहमीरपुर के क्रांतिकारियों ने जिले को ही रणभूमि के रूप में स्वीकारा तभी तो बलिया के कर्नल भगवान सिंह, चीतू जैसे क्रांतिकारी यहां के देशभक्तों का साथ देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज किया। जिले के क्रांतिकारी गुरुप्रसाद , बंशगोपाल, शिवदयाल उपाध्याय, दादा दीप नारायण, शिवराज बली, देवीदयाल, रघुनंदन , यदुनंदन प्रसाद, वासुदेव ,भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर जिले में एक माहौल पैदा कर दिया तभी तो एक-एक करके लगभग आठ सौ से अधिक की फौज क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला दिया। चौक स्थित हजारीलाल का फाटक क्रांतिकारियों के लिये गुप्तगू का मुख्य केन्द्र था। बताते हैं कि यहीं पर कानपुर व पूर्वाचल के क्रांतिकारी नेता आकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये क्या करना है इसकी रणनीति बताते थे।

अंग्रेजी शासकों को हजारी लाल फाटक की जानकारी हो गयी थी। कई बार यहां छापा मारकर क्रांतिकारियों को दबोचने के प्रयास किये गये। आखिर क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान खोजना ही पड़ा। शिवराजपुर के जंगल में क्रांतिकारियों का मजमा लगता था। बताते हैं कि अस्सी हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित जंगल को ही क्रांतिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत गोपालगंज के फसिहाबाद स्थल से की गयी। इसके अलावा खागा जीटी रोड को भी केन्द्र बिन्दु बनाया गया। जहानाबाद, हथगाम, खागा सहित दो दर्जन से अधिक स्थानों पर क्रांतिकारियों ने धरना-प्रदर्शन कर अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये ललकारा। इस दरम्यान लगभग चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेतृत्व करने वाले आधे से अधिक नेता जब जेल चले गये तो अंगनू , बद्री जैसे क्रांतिकारियों ने मोर्चा संभाला।

गेटवे ऑफ़ एर्थ

जिले का एकमात्र स्वच्छ एवं सुंदर सुप्रसिद्ध पार्क।इस पार्क में दूर दूर से लोग घूमने आते हैं।इसकी सही लोकेशन गूगल मैप से प्राप्त कर सकते हैं।यह जयराम नगर में स्थित है तथा लगभग स्टेशन से दूरी १ किलोमीटर है।

परिवहन

फतेहपुर जिला भली प्रकार से सड़क और रेल मार्ग से जुडा हुआ है।

भारतीय रेल

भारतीय रेल की हावड़ा अमृतसर मुख्य मार्ग पर फतेहपुर का पडाव स्थल है। यहाँ पर नई दिल्ली, जम्मू, हावड़ा, जोधपुर, फ़र्रुख़ाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी आदि के लिये मेल गाड़ियां मिलती हैं। यहाँ से मिलने वाली कुछ गाड़ियां नीचे दी गयी हैं:

कानपुर की ओर जाने वाली गाड़ियाँ

गाडी सख्यानामकहाँ सेकहाँ तकआगमन समयप्रस्थान समयसन्चालित दिवस
२४०३इलाहाबाद मथुरा एक्सप्रेसइलाहाबादमथुरा--००:५३प्रतिदिन
२४१७प्रयागराज एक्सप्रेसइलाहाबादनयी दिल्ली--२२:५०प्रतिदिन
४१६३संगम एक्सप्रेसइलाहाबादमेरठ शहर--२०:३०प्रतिदिन
२३०७हावड़ा जोधपुर एक्सप्रेसहावड़ाजोधपुर--१३:३०प्रतिदिन
२३११हावड़ा दिल्ली कालका मेलहावड़ाकालका--१०:४५प्रतिदिन
२५०५नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेसगुवाहाटीदिल्ली--११:००प्रतिदिन
२८१५पुरी नयी दिल्ली एक्सप्रेस्पुरीनयी दिल्ली--०८:४०म॰, गु॰, शु॰, रवि॰
४०८३महानन्दा एक्सप्रेस--०७:४५प्रतिदिन
८१०१टाटा जम्मूतवी एक्सप्रेसटाटाजम्मू--१०:३०प्रतिदिन

इलाहाबाद की ओर जाने वाली गाडियाँ :

गाडी सख्यानामकहाँ सेकहाँ तकआगमन समयप्रस्थान समयसन्चालित दिवस
२४०4इलाहाबाद मथुरा एक्सप्रेसमथुराइलाहाबाद--03:13प्रतिदिन
२४१8प्रयागराज एक्सप्रेसनयी दिल्लीइलाहाबाद--04:37प्रतिदिन
4164संगम एक्सप्रेसमेरठ शहरइलाहाबाद--05:15प्रतिदिन
2308हावड़ा जोधपुर एक्सप्रेसजोधपुरहावड़ा--12:30प्रतिदिन
2312हावड़ा दिल्ली कालका मेलकालकाहावड़ा--15:40प्रतिदिन
2506नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेसदिल्लीगुवाहाटी--14:05प्रतिदिन
4084महानन्दा एक्सप्रेस--16:10प्रतिदिन

सड़क मार्ग

फतेहपुर जिला भली प्रकार से सड़क मार्ग से अन्य शहरो से जुडा हुआ है। ग्रान्ट ट्रक रोड पर स्थित फतेहपुर जिला लगभग सभी शहरो से सीधे सम्पर्क में है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का बस ठहराव स्थल भी यहाँ है। यहाँ से नियमित तौर पर दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी,बाँदा, चित्रकूट, झाँसी, तथा बरेली आदि शहरो के लिये बस सेवायें उपलब्ध हैं।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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