बूर्जुआ
और अर्थशास्त्र में मध्य वर्ग से अधिक धनवान श्रेणी को कहा जाता है और इस शब्द का प्रयोग बाएँ की राजनीति के सन्दर्भ में अधिक होता है। यह मूल रूप से फ़्रांसीसी भाषा का शब्द है। यूरोप में १८वीं सदी में इस वर्ग को पूँजीपति और पूँजी से सम्बंधित संस्कृति पर नियंत्रण रखने वाला समझा जाता था।
साम्यवादी सोच में
साम्यवादी (मार्क्सवादी) विचारधारा में बूर्जुआ वर्ग के लोग हमेशा धन बटोरने व अपनी संपत्ति सुरक्षित करने में लगे रहते हैं और उनका मुख्य ध्येय समाज में अपने ऊँचे स्थान और आर्थिक नियंत्रण को बनाए रखना होता है। मार्क्सवादी दृष्टिकोण में समाज में दो मुख्य वर्ग होते है - बूर्ज़वाज़ी (पूंजीपति) और प्रोलितारियत (proletariat, मज़दूर वर्ग)। बूर्ज़वाज़ी कारख़ानों और आर्थिक कार्य के अन्य साधनों पर क़ब्ज़ा जमाए होते हैं। प्रोलितारियत को जीवनी चलाने के लिए मजबूरन इनके कारख़ानों में काम करना होता है क्योंकि आमदनी करने का कोई अन्य ज़रिया नहीं होता। इस तरह से बूर्ज़वाज़ी प्रोलितारियत के श्रम से लाभ उठाते हैं और प्रोलितारियत को कठिनाई और ग़रीबी में जीवन बसर करना पड़ता है। अन्य विचारधाराओं में इस मार्क्सवादी दृष्टिकोण में खोट निकाले गए हैं।[1][2]
उच्चारण
अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, रूसी व अन्य भाषाओं में 'बूर्झ़वाज़ी' सही उच्चारण है, जिसके बिंदु-वाले 'झ़' का उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'झ' से काफ़ी भिन्न है। इसका उच्चारण अंग्रेज़ी के 'टेलिविझ़न' शब्द के 'झ़' से मिलता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- मध्य वर्ग की अवधारणा और हिंदी साहित्य (राहुल सिंह)
- बूर्जुआ का बूर्ज (शब्दों का सफर)