लावारिस क्षेत्र

लावारिस क्षेत्र, जिसे लातिनी भाषा में 'टेरा नलिस' (Terra nullis) कहते हैं, ऐसे भौगोलिक क्षेत्र को कहा जाता है जिसपर किसी राष्ट्र का अधिकार न हो। ऐसे क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें किसी देश का भाग बनाया जा सकता है हालांकि वर्तमान विश्व में अधिकतर ऐसे क्षेत्रों पर नियंत्रण करना अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा वर्जित है।

१९३१-१९३३ काल में नोर्वे ने पूर्वी ग्रीनलैंड को 'लावारिस क्षेत्र' बताते हुए उसपर क़ब्ज़ा कर लिया - बाद में इसपर उस समय के स्थाई अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने नोर्वे के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया, जिसपर नोर्वे ने इस क्षेत्र को छोड़ दिया

उदाहरण के लिए सन् १९२० तक आर्कटिक महासागर में स्थित स्वालबार्ड द्वीप समूह एक लावारिस क्षेत्र था। यहाँ किसी भी देश का स्थाई क़ब्ज़ा नहीं था और केवल गर्मियों में व्हेल पकड़ने वाले कुछ मछुआरे यहाँ आया करते थे। ९ फ़रवरी १९२० में की गई स्वालबार्ड संधि के अंतर्गत इस लावारिस क्षेत्र को नोर्वे का हिस्सा बना दिया गया।[1] इसी तरह ऑस्ट्रेलिया पर क़ब्ज़ा करने के लिए ब्रिटेन ने वहाँ के आदिवासियों को अनदेखा करते हुए उसे एक लावारिस क्षेत्र' घोषित कर दिया और उसपर क़ब्ज़ा कर लिए।[2] १९६७ की अंतरिक्ष संधि के अंतर्गत चन्द्रमा और अन्य खगोलीय वस्तुएँ हमेशा के लिए लावारिस क्षेत्र घोषित की गई हैं। इनपर किसी देश का क़ब्ज़ा मान्य नहीं होगा और यह सभी मानवों की सांझी धरोहर बताई जाती हैं।[3]

इन्हें भी देखें

  • संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि

सन्दर्भ

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