आणविक बादल

खगोलशास्त्र में आणविक बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल (इन्टरस्टॅलर क्लाउड) को कहते हैं जिसका घनत्व और और आकार अणुओं को बनाने के लिए पार्यप्त हो। अधिकतर यह अणु हाइड्रोजन (H2) के होते हैं, हालांकि आणविक बादलों में और भी प्रकार के अणु मिलते हैं। आणविक बादलों में मौजूद हाइड्रोजन अणुओं को उनसे उभरने वाली विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) के ज़रिये पहचान लेना मुश्किल है इसलिए इन बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन होता है। सौभाग्य से, हमारी आकाशगंगा (गैलॅक्सी) में देखा गया है के आणविक बादलों में हाइड्रोजन के साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के अणु भी मिलते हैं और इस कार्बन मोनोऑक्साइड से उभरती रोशनी उतनी ही प्रबल होती है जितनी उसके इर्द-गिर्द हाइड्रोजन की मात्रा होती है। हालांकि यह हाइड्रोजन की मात्रा को अनुमानित करने का तरीका हमारी आकाशगंगा में तो चल जाता है, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के कार्बन मोनोऑक्साइड के रोशानपन और हाइड्रोजन की मात्रा का यह सम्बन्ध शायद कुछ दूसरी आकाशगंगाओं में सच न हो।[1]

यह धूल और गैस का आणविक बादल कैरीना नॅब्युला का एक टूटा हुआ अंश है और इसके पास नवजात तारे नज़र आ रहे हैं। इन तारों की रोशनी खगोलीय धूल से गुज़रती हुई नीली लगने लगी है क्योंकि यह धूल नीला रंग अधिक फैलती है। इन तारों का कठोर प्रकाश कुछ लाख सालों में इस आणविक बदल को उबल कर ख़तम कर देगा। यह छवि १९९९ में हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी थी।
बार्नार्ड ६८ का विशाल आणविक बादल इतना घना है के यह एक "काले नॅब्युला" की तरह प्रतीत होता है, क्योंकि यह पीछे से आने वाले तारों की रोशनी को एक परदे की तरह रोक रहा है।
"सॅफ़्यस बी" नामक आणविक बादल और उसमें नए जन्मे तारे।

अन्य भाषाओँ में

"आणविक बादल" को अंग्रेज़ी में "मॉलॅक्यूलर क्लाउड" (molecular cloud) कहते हैं।

आणविक बादलों की क़िस्में

विशाल आणविक बादल

हमारे सूरज के आकार से दस हज़ार से दस लाख गुना बड़े अणुओं के विशालकाय बादलों को विशाल आणविक बादल कहते हैं। यह कभी-कभी सौ प्रकाश-वर्ष के व्यास (डायामीटर) तक पहुँच जाते हैं। जहाँ हमारे सौर मण्डल के व्योम में कणों का घनत्व एक कण प्रति घन सेंटीमीटर है वहाँ इन बादलों में १०,०००-१०,००,००० कण प्रति घन सेंटीमीटर पहुँच सकते हैं। इस घनत्व पर इन बादलों के अन्दर कणों की तरह-तरह की आकृतियाँ बन जाती हैं - जैसे की रेशे, चादरें, गोले और बेढंगे गुच्छे।[2] कहीं तो यह बादल इतने घने होते हैं के अपने पीछे के तारों से आने वाली रोशनी को एक परदे की तरह बिलकुल रोक देते हैं, जिस से उस इलाक़े में एक काला नॅब्युला एक काले धब्बे की तरह नज़र आता है।[3]

छोटे आणविक बादल

छोटे आणविक बदल हमारे सूरज के केवल कुछ सैंकड़ों गुना द्रव्यमान ही रखते हैं, लेकिन इनका अंदरूनी गुरुत्वाकर्षण इनको घने गोलों के रूप में बनाए रखता है। इन्हें खगोलशास्त्री कभी-कभी "बौक गोले" (Bok globules, बौक ग्लोब्यूल्ज़) बुलाते हैं।

ऊँचे छित्तरे आणविक बादल

यह छित्तरे, रेशेदार बादल होते हैं जो आकाशगंगा के चपटे चक्र से थोड़ा ऊपर हट के पाए जाते हैं।[4][5]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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