चंद्रमा का विमुख फलक

चंद्रमा का विमुख फलक (far side of the Moon), जिसे पहले चंद्रमा का अंधकार पक्ष (dark side of the Moon) कहा गया,[1] चंद्रमा का एक गोलार्ध है जिसका मुखड़ा हमेशा पृथ्वी से दूर रहता है। उस पार का इलाका असंख्य प्रहार क्रेटर की भीड़ एवं अपेक्षाकृत कुछ समतल चंद्र मारिया के साथ पूर्णतः बीहड़ है। यहाँ दक्षिण ध्रुव-ऐटकेन घाटी है जो सौर मंडल के सबसे बड़े क्रेटरों में से एक है। चंद्रमा का पृथ्वी की ओर केवल एक ही मुख रहने का कारण ज्वारबंधन (tidal locking) है। पृथ्वी पर रहने वाले चांद का विमुख फलक कभी नहीं देख सकते - उसे देखने के लिए पृथ्वी की सतह छोड़कर अंतरिक्ष यान द्वारा चंद्रमा को दूसरी ओर से देखने जाना पड़ता है।

चंद्रमा का विमुख फलक, अपोलो 16 द्वारा खींची गई तस्वीर

मनावों द्वारा पहला दर्शन

सन् 1959 तक किसी भी मानव ने चंद्रमा का विमुख फलक नहीं देखा था और उसका रूप पूरी तरह अज्ञात था। 7 अक्तूबर 1959 को सोवियत संघ का लूना 3 अंतरिक्ष यान इस मुख के कुछ अंश के चित्र उतरकर पृथ्वी तक भेजने में सफल हो गया। इनमें से 18 चित्र सलामती से प्राप्त हुए और मानवों को पहली बार चांद के इस मुख के एक-तिहाई भाग का दर्शन हुआ।[2][3] धीरे-धीरे बाकी क्षेत्र के चित्र प्राप्त हुए और 6 नवम्बर 1960 में सोवियत संध विज्ञान अकादमी ने इस मुख को सम्मिलित करने वाली प्रथम चंद्र मानचित्रावली (ऐट्लस) प्रकाशित करी। 20 जुलाई 1965 को एक और सोवियत अंतरिक्ष यान, ज़ोन्द 3, ने उत्तम विभेदन (रेसोल्यूशन) वाली 25 नई तस्वीरें दीं जिनमें सैंकड़ो किलोमीटर तक चलते क्रेटरों की शृंखलाएँ दिखीं।[4]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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