ज़ाक देरिदा

ॹाक देरिदा (15 जुलाई 1930 – 8 अक्टूबर 2004) अल्जीरिया में जन्में एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे जिन्हें विरचना (deconstruction) के सिद्धान्त के लिए जाना जाता है। उनके विशाल लेखन कार्य का साहित्यिक और यूरोपीय दर्शन पर गहन प्रभाव पड़ा है। Of Grammatology उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है।

ॹाक देरिदा
व्यक्तिगत जानकारी
जन्मJackie Élie Derrida[1]
15 जुलाई 1930
El Biar, French Algeria
मृत्युअक्टूबर 9, 2004(2004-10-09) (उम्र 74)[2]
Paris, France[2]
जीवनसाथी(याँ)Marguerite Aucouturier
वृत्तिक जानकारी
युग20th-century philosophy
क्षेत्रWestern philosophy
विचार सम्प्रदाय (स्कूल)Continental philosophy
Post-structuralism
Deconstruction
Radical hermeneutics[3]
प्रमुख विचारDeconstruction · Différance · Phallogocentrism · Free play · Archi-writing · Metaphysics of presence · Invagination

जीवन

देरिदा फ्रेंच अल्जीरिया में एक यहूदी परिवार में 15 जुलाई 1930 को पैदा हुए। वे पाँच बच्चों के परिवार में तीसरे स्थान पर थे। उनका पहला नाम जैकी था, लेकिन बाद में उन्होंने अधिक औपचारिक नाम ज़ाक अपना लिया।[4] उनका यौवन अल्जीरिया के एल-बियार में बीता।

वहाँ के फ्राँसिसी प्रशासकों ने देरिदा को 1942 में उनके स्कूल जाने के पहले दिन ही विचे सरकार की यहूदियो के प्रति भेदभाव की नीति अपनाते हुये निष्कासित कर दिया था। उन्होंने विस्थापित यहूदी अध्यापकों और विद्यार्थियों द्वारा आरम्भ किये स्कूल जाने के बजाये एक वर्ष के लिए गोपनीय तरीके से स्कूल से अनुपस्थित रहना अधिक बेहतर समझा। इस बीच कईं फुटबाल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए – वे एक व्यवसायिक खिलाड़ी बनने का सपना संजोय थे – वे रूसो, अल्बर्ट कामू, फ्रेदरिक नीत्सचे और आन्द्रे ज़ीड जैसे दार्शनिकों और लेखकों को पढ़ते रहे। उन्होंने दर्शन शास्त्र के विष्य में गम्भीरता से लगभग 1948 और 1949 में सोचना शुरू किया। वे पेरिस के लुई-ल-ग्राँद स्कूल में विद्यार्थी बनें, जहाँ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। 1951–52 में अपने स्कूल के अध्ययन वर्ष के अन्त में वे इकोल नोरमेल सुपेरियर की प्राम्भिक परीक्षा में तीसरे प्रयास में ही सफल हो पाये।

इकोल नोरमेल सुपेरियर में पहले दिन वे लुई आल्थुसर से मिले, जो उनके मित्र बन गए। वे मिशेल फूको के भी मित्र बने, जिनके लेक्चर में वे जाया करते थे। लुवैं, बेलजियम, में हसरल लेखागार जाने के बाद उन्होंने हसरल पर अपना लेक्चर 'The Origin of Geometry' पूरा किया। देरिदा को हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए छात्रवृति मिली और जून 1957 में उन्होंने मारग्रीट अकूत्चुरीर से बॉस्टन में विवाह किया। अल्जीरिया के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें सेना में कार्य करने के स्थान पर सैनिकों के बच्चों को पढ़ाने को कहा गया और उन्होंने 1957 से 1959 तक उन्हें अंग्रेज़ी और फ्रेन्च पढ़ाई।

इस युद्ध के बाद देरिदा ने तेल कैल समूह से जुड़े साहित्यिक तथा दार्शनिक सिद्धाँतवादियों से एक लंबा चलने वाल संवाद आरम्भ किया। इसी समय में देरिदा ने 1960 से लेकर 1964 तक सॉरबॉन में और 1964 से 1984 तक इकोल नोरमेल सुपेरियर में दर्शन पढ़ाया। उनकी पत्नी मारग्रीट ने उनके पहले बच्चे, पियेर, को 1963 में जन्म दिया। 1966 में जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में दिये गए उनके लेक्चर 'Structure, Sign and Play in the Discourse of the Human Sciences' के साथ ही उनके सिद्धाँतों को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने लगी। उनके दूसरे पुत्र ज़ाँ का जन्म 1967 में हुया। इसी वर्ष देरिदा की पहली तीन पुस्तकें – Writing and Difference, Speech and Phenomena, और Of Grammatology – छपीं, जिनसे वे विख्यात हुये।

उन्होंने एक और शोध पत्र 'Thèse d'État' 1980 में पूरा किया, जो कि बाद में अंग्रेज़ी में 'The Time of a Thesis: Punctuations' के नाम से छपा। देरिदा ने 1983 में केन मेकमुलन के साथ Ghost Dance नामक फिल्म में काम किया। उन्होंने इस फिल्म में स्वयं का पात्र निभाया तथा इसकी पटकथा लिखने में भी योगदान दिया।

देरिदा यात्रा करते रहे तथा एक के बाद एक अस्थायी और सथायी पदो पर कार्यरत रहे। देरिदा पेरिस-स्थित इकोल दे हॉते एत्चयूद अं सायंसिस सोसियाल में शिक्षा निदेशक के पद पर रहे। फ्राँसवा शतले तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर देरिदा ने 1983 में कोलैज़ इंतरनेशनाल द फिलोसोफी की स्थापना की, जहाँ दर्शन पर वह संदर्भ सके जो अकादमी में और कहीं नहीं हो सकता था। देरिदा इस संस्थान के पहले अध्यक्ष चुने गए।

सिलविअन ऐगाचिनसकि ने देरिदा के तीसरे पुत्र डेनिअल को 1984 में जन्म दिया।

सन्‍ 1986 में देरिदा इरवीन के कैलिफोर्निया विश्वविद्धालय में कला के प्राध्यापक बनें। देरिदा का परिवार उनके यहाँ के अभिलेखों को ले कर, जिनमें में कुछ अनौपचारिक रूप से विश्वविद्धालय को दे दिये गए थे, अभी भी एक कानूनी विवाद में है। वे अनेक अमरीकी विश्वविद्धालयों, जैसे कि जॉन हॉपकिंस विश्वविद्धालय, येल विश्वविद्धालय, न्यू यॉर्क विश्वविद्धालय और द न्यू स्कूल ऑफ़ सोशल रिसर्च, में नियमित रूप से विज़िटिंग फ़ैकल्टी की तरह जाया करते थे।

देरिदा द अमेरिकन एकैडमी ऑफ़ आर्टस एवं साअंस के सदस्य थे और उन्हें फ्रेंकफर्ट विश्वविद्यालय से 2001 में अडोर्नो-प्रेस भी मिला। उन्हें केम्ब्रिज विश्वविद्यालय, कोलम्बिया विश्वविद्यालय, द न्यु स्कूल ऑफ सोशल रिसर्च, एसेक्स विश्वविद्यालय, लैवन विश्वविद्यालय और विलियम्स कॉलेज से मानद डाक्टरेट की उपाधि भी मिली।

सन्‍ 2002 में वे देरिदा नामक एक वृतचित्र में स्वयं की भूमिका में दिखे। सन्‍ 2003 में वे अग्नाशय (pancreatic gland) के कैंसर से ग्रसित पाये गए, जिससे उनके वार्ता कार्यो और यात्रा में कमी आयी। वे पेरिस के एक अस्पताल में 8 अक्तुबर 2004 को मृत्यु को प्राप्त हुये।

कार्य

परिचय

देरिदा ने अपनी बात को कहना और लिखना तब प्रारम्भ किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक दृश्य व्यक्ति। तथा सामूहिक जीवन को समझने की संरचनावादी (structuralist) तथा दृश्यप्रपंच वैज्ञानिक (phenemological) धाराओं में तीव्रता से बंट रहा था। वे दार्शनिक जो दृश्यप्रपंच विज्ञान के प्रति रूझान रखते थे उनका उद्देश्य अनुभव को समझने के लिये उसके उद्ग म को समझना तथा उसका विवरण देना था, जिससे वे अनुभव के विकास की प्रक्रिया को किसी आरम्भिकता अथवा घटना से जोड़ सकें। परन्तु संरचनावादियों के लिये यह एकदम गलत कठिनता थी और उनके लिए अनुभवों की गहराई केवल संरचनाओं का प्रभाव मात्र थी, जो कि स्वयं एक अनुभव नहीं हो सकता था। इस संदर्भ में सन 1959 में देरिदा ने प्रश्नद पूछा: क्या किसी संरचना का उद्गअम नहीं होना चाहिए, तथा क्या आराम्भिकता, या उद्गमम बिन्दु, किसी वस्तु का उद्गसम होने के लिए पहले से ही संरचित नहीं होनी चाहिए?

दूसरे शब्दों में, हर तंत्र अथवा समकालिक प्रक्रिया का एक इतिहास होता है, तथा संरचनाओं को उनके उद्गेम को समझे बिना नहीं समझा जा सकता। साथ ही, गति सुनिश्चिनत करने के लिए आरम्भिकता कोई विशुद्ध एकत्व अथवा सामान्यता नहीं हो सकती, बल्कि इसे पहले से ही ऐसे परिभाषित होना चाहिए कि इससे एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का उद्गसम हो सके। इस आसतित्व-सूचक जटिलता को एक मूलभूत सिद्धान्त नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे उद्ग म का अभाव माना जाना चाहिए, जिसे देरिदा ने iterability, नक्श या पाठात्मकता (textuality) कहा है। आस्तित्व-सूचक जटिलता का यह विचार, न कि आरम्भिक शुद्धता, उद्गतमता तथा संरचना के विचारों को असंतुलित करता है तथा देरिदा के दर्शन का आधार है, जिससे विरचना सहित इस दर्शन की सभी परिभाषायें निकलती हैं।

देरिदा के तर्क में इस आस्तित्व-सूचक जटिलता के सभी नमूनों, किस्मों तथा दूसरे अनेक विषयों में इसके प्रभावों को दर्शाना सम्मिलित था। इस उद्देश्य प्राप्ति में उन्होंने दार्शनिक एवं साहित्यिक मूलग्रन्थो की सम्पूर्ण, महीन एवं सचेतन, लेकिन साथ ही बदलावकारी, पाठन की विधि अपनायी, जिसमें उनका झुकाव ऐसे अर्थों को पकड़ना था जो मूलग्रन्थ के संरचनात्मक एकत्व अथवा लेखकीय उत्पत्ति के विपरीत प्रकट होते थे।

सन्दर्भ

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