मुँह

मुँह जंतुओं की आहार नली का प्रथम भाग होता है जिसको आहार और लार मिलता है।[1] ओरल म्यूकोसा मुँह के अन्दर की उपकला में श्लेष्म झिल्ली होती है। अपनी मुख्य क्रिया यानि पाचक तंत्र की पहली कड़ी के अतिरिक्त मनुष्यों में मुँह एक और अहम कार्य करता है जो कि है एक दूसरे के साथ वार्तालाप के द्वारा संपर्क करना। हालांकि ध्वनि का मुख्य स्रोत गला होता लेकिन इस ध्वनि को भाषा का रूप जीभ, होंठ, जबड़ा और ऊपरी मुँह का तालु देते हैं। मुँह का अन्दरुनी भाग अमूमन लार की वजह से गीला रहता है और होंठ से मुँह के अन्दर की श्लेष्म झिल्ली त्वचा (जो कि बाकी शरीर को ढँकती है) में परिवर्तित हो जाती है।

मुँह
सिर और गर्दन
महिला का बन्द मुँह

मौखिक क्षिद्र

मौखिक क्षिद्र पाचन नली के पहले भाग का प्रतिनिधित्व करता है।[2] इसके अंतर्गत होंठ, मसूड़े, जीभ, दाँत, मुँह का तालु इत्यादि अंग आते हैं।[2]

संपर्क बनाना

मनुष्यों में वार्ता के द्वारा संपर्क स्थापित करना मुँह का खाने के बाद दूसरा सबसे प्रमुख काम होता है। अन्य पशु भी एक दूसरे से संपर्क स्थापित करते हैं लेकिन सिर्फ़ गले से निकली ध्वनियों के द्वारा। मनुष्य एकमात्र ऐसा पशु है जो कि मुँह की मदद से समझ में आने वाली आवाज़ें निकाल सकता है जिसे हम वार्तालाप कहते हैं।[3]
पुराने काल में जब शब्द संरचना के साथ-साथ भाषा का भी विकास हो रहा था लेकिन लिपि तब तक ईजाद नहीं हुयी थी, मनुष्य ऐतिहासिक, सामाजिक तथा अन्य घटनाओं के बारे में एक दूसरे को यह घटनायें कहानियाँ सुनाने के ज़रिए बताते थे। क्योंकि इस तरीक़े में लेखन क्रिया का अभाव था, इसलिए इसे मौखिक रूप से प्रचार कहा गया।[4]

बिल्ली की मुख-गुहिका

इन्हें भी देखिये

सन्दर्भ

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