वर्णमाला

अबुगीदा या अन्य विधियों में लिखित भाषा के वर्णों का संयोजन

किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला (वर्णों की माला या समूह) कहते हैं। उदाहरण के लिए देवनागरी की वर्णमाला में अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः  क  ख  ग  घ  ङ। च  छ  ज  झ  ञ। ट  ठ  ड  ढ  ण। त  थ  द  ध  न। प  फ  ब  भ  म। य  र  ल  व। श  ष  स  ह को 'देवनागरी वर्णमाला' कहते हैं और a b c d ... z को रोमन वर्णमाला कहते हैं।

यह चीनी भाषा का एक चित्रलिपि-आधारित शब्द है, जिसका अर्थ 'किताब' या 'लेख' होता है - यह अक्षर नहीं है और इसका सम्बन्ध किसी ध्वनि से नहीं है - जापान में इसे "काकू" पढ़ा जाता है जबकि चीन में इसे "शू" पढ़ा जाता है

वर्णमाला इस मान्यता पर आधारित है कि वर्ण, भाषा में आने वाली मूल ध्वनियों (स्वनिम या फ़ोनीम) का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ध्वनियाँ या तो उन अक्षरों के वर्तमान उच्चारण पर आधारित होती हैं या फिर ऐतिहासिक उच्चारण पर। किन्तु वर्णमाला के अलावा लिखने के अन्य तरीके भी हैं जैसे शब्द–चिह्न, सिलैबरी आदि। शब्द-चिह्नन में प्रत्येक लिपि चिह्न पूरे-के-पूरे शब्द, रूपिम या सिमान्टिक इकाई को निरूपित करता है। इसी तरह सिलैबरी में प्रत्येक लिपि चिह्न किसी अक्षर को निरूपित करता है।

वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे- अ, ई, व्, च्, क्, ख् इत्यादि।

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते। वर्णमाला- वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।

अन्य विधियों में भावचित्रों का इस्तेमाल होता है (जैसा की चीनी भावचित्रों में) या फिर चिह्न शब्दांशों को दर्शाते हैं। इसी तरह, प्राचीन मिस्री भाषा एक चित्रलिपि थी जिसमें किसी वर्णमाला का प्रयोग नहीं होता था क्योंकि उसकी लिपि का हर चिह्न एक शब्द या अवधारणा दर्शाता था।

प्रकार

प्रत्येक वर्णमाला में दो प्रकार के वर्ण होते हैं स्वर वर्ण तथा व्यंजन वर्ण। व्यंजनों के साथ स्वर लगाने के भिन्न तरीक़ों के आधार पर वर्णमालाओं को तीन वर्गों में बांटा जाता हैं:[1]

  • रूढ़ी वर्णमाला (simple or 'true' alphabet) - जैसी कि यूनानी वर्णमाला, जिसमें स्वर भिन्न अक्षरों के साथ ही लगते हैं, जैसे कि 'पेमिर' शब्द को 'πεμιρ' लिखा जाता है (जिसमें ε और ι के स्वर वर्ण स्पष्ट रूप से जोड़ने होते हैं)।
  • आबूगिदा (abugida) - जैसे कि देवनागरी जिसमें मात्रा के चिह्नों के ज़रिये व्यंजनों के साथ स्वर जोड़े जाते हैं। मसलन 'पेमिर' को 'प​एमइर' नहीं लिखते बल्कि 'प' के साथ चिह्न लगाकर उसे 'पे' और 'म' के साथ चिह्न लगाकर उसे 'मि' कर देते हैं। इन मात्रा चिह्नों को अंग्रेज़ी में 'डायाक्रिटिक' (diacritic) कहा जाता है।
  • अबजद (abjad) - जैसे कि फ़ोनीशियाई वर्णमाला जिसमें व्यंजनों के साथ स्वरों के न तो वर्ण लगते हैं और न ही मात्रा चिह्न बल्कि पढ़ने वाले को सन्दर्भ देखकर अंदाजा लगाना होता है कि कौनसे स्वर इस्तेमाल करे। वैसे तो अरबी-फ़ारसी लिपि में मात्रा चिह्नों की व्यवस्था है लेकिन कभी-कभी उन्हें नहीं लिखा जाता, जिस से वे लिपियाँ प्रयोग में कुछ हद तक अबजदों जैसी बन जाती हैं। 'بنتی‎' को 'बिनती' भी पढ़ा जा सकता है और 'बुनती' भी क्योंकि शुरू के 'ب‎' ('ब') व्यंजन के साथ कोई स्वर चिह्न नहीं लगा हुआ है।

अन्य भाषाओं में

'वर्णमाला' को अंग्रेजी में '[अल्फाबेट']' (alphabet) कहते हैं। अरबी, फ़ारसी, कुर्दी और मध्य पूर्व की अन्य भाषाओं में इसे 'अलिफ़-बेई' या सिर्फ 'अलिफ़-बे' कहते हैं (जो अरबी-फ़ारसी लिपि के पहले दो अक्षरों का नाम है)।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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