अत-तूर

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 52 वां सूरा (अध्याय) है।

सूरा अत-तूर (इंग्लिश: At-Tur) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 52 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 49 आयतें हैं।

नाम

तूर पर्वत के शिखर से नज़ारा

सूरा अत-तूर[1]या सूरा अत्-तूर[2]पहले ही शब्द 'वत्तूर' (क़सम है तूर की) से उद्धृत है। यहाँ तूर पर्वत (सीनाई पर्वत) विशेष के लिए आया है जिसपर इस्लामी मान्यतानुसार हज़रत मूसा (अलै.) को पैग़म्बरी प्रदान की गई थी।

अवतरणकाल

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

विषय-वस्तुओं के आन्तरिक प्रमाणों से अनुमान होता है कि यह भी मक्का मुअज़्ज़मा के उसी कालखण्ड में अवतरित हुई है , जिनमें सूरा 51 (अज़-ज़ारियात ) अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं किआयत 1 से लेकर आयत 28 तक का विषय आख़िरत (परलोक) है। सूरा 51 (अज़-ज़ारियात ) में इसकी संभावना, अनिवार्यता और इसके घटित होने के प्रमाण दिए जा चुके हैं इसलिए यहाँ इन्हें दुहराया नहीं गया है, अलबत्ता आख़िरत की गवाही देनेवाले कुछ तथ्यों और लक्षणों की क़सम खाकर पूरे ज़ोर के साथ यह कहा गया है कि वह निश्चय ही घटित होगर रहेगी। फिर यह बताया गया है कि जब वह आ पड़ेगी तो उसके झुठलानेवालों का परिणाम क्या होगा और उसे मानकर ईशपरायणता की नीति अपनानेवाले किस तरह अल्लाह के अनुग्रह और उसकी कृपाओं से सम्मानित होंगे। इसके बाद आयत 19 से अन्त तक में कुरैश के सरदारों की उस नीति की आलोचना की गई है जो वे अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के आह्वान के मुक़ाबले में अपनाए हुए थे। वे आपको कभी काहिन , कभी उन्मादग्रस्त और कभी कवि घोषित करते। वे आपपर इल्ज़ाम लगाते थे कि यह कुरआन आप स्वयं गढ़-गढ़कर ईश्वर के नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। वे बार-बार व्यंग्य करते थे कि ईश्वर को पैग़म्बरी के लिए मिले भी तो बस यह साहब मिले ! वे आपके आह्वान और प्रचार व प्रसार पर अत्यन्त अप्रसन्नता और खिन्नता व्यक्त करते थे। वे आपस में बैठ-बैठकर सोचते थे कि आपके विरुद्ध क्या चाल ऐसी चली जाए जिससे आपका यह आह्वान समाप्त हो जाए। अल्लाह ने उनके नीति की आलोचना करते हुए निरन्तर कुछ प्रश्न किए हैं, जिनमें से प्रश्न या तो उनके किसी आक्षेप का उत्तर है या उनके किसी अज्ञान की समीक्षा। फिर कहा है कि इन हठधर्म लोगों को आपकी पैग़म्बरी स्वीकार करने के लिए कोई चमत्कार दिखाना बिलकुल व्यर्थ है। आयत 28 के बाद अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को यह आदेश दिया गया है कि इन विरोधियों और शत्रुओं के आरोपों और आक्षेपों की परवाह किए बिना अपने आह्वान और लोगों के चेताने का काम निरन्तर जारी रखें , और अन्त में भी आपको ताकीद की गई है कि धैर्य के साथ इन रुकावटों का मुक़ाबला किए चले जाएँ यहाँ तक कि अल्लाह का फैसला आ जाए। इसके साथ आपको इस ओर सन्तुष्ट किया गया है कि आपके प्रभु ने आपको सत्य के शत्रुओं के मुक़ाबले में खड़ा करके अपने हाल पर छोड़ नहीं दिया है , बल्कि वह निरन्तर आपकी देख - रेख कर रहा है। जब तक उसके फैसले की घड़ी आए , आप सब कुछ सहन करते रहे और अपने प्रभु की स्तुति और उसके महिमा-गान से वह शक्ति प्राप्त करते रहे जो ऐसी परिस्थितियों में अल्लाह का काम करने के लिए अपेक्षित होती है।

सुरह "अत-तूर का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद"[3]ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखेंAt-Tur 52:1

पिछला सूरा:
अध-धारियात
क़ुरआनअगला सूरा:
अन-नज्म
सूरा 52 - अत-तूर

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सन्दर्भ:

इन्हें भी देखें

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