अल-जिन्न

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 72 वां सूरा (अध्याय) है

सूरा अल-जिन्न (इंग्लिश: Al-Jinn) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 72 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 28 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-जिन्न [1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में भी सूरा अल्-जिन्न[2]नाम दिया गया है।

नाम “अल-जिन्न " सूरा का नाम भी है और विषय-वस्तु की दृष्टि से इसका शीर्षक भी, क्योंकि इसमें जिन्न के कुरआन सुनकर जाने और अपनी जाति में इस्लाम के प्रचार करने की घटना का सविस्तर वर्णन किया गया है।

अवतरणकाल

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

हदीस की पुस्तक बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत अब्बास (रजि.) से उल्लिखित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) अपने कुछ सहाबा (साथियों) के साथ उक्काज़ के बाज़र जार रहे थे। रास्ते में नख़ला के स्थान पर आपने फ़ज्र (प्रातः) की नमाज़ पढ़ाई। उस समय जिन्नों का एक गिरोह उधर से गुज़र रहा था। कुरआन-पाठ की आवाज़ सुनकर वह ठहर गया और ध्यानपूर्वक कुरआन सुनता रहा। इसी घटना का उल्लेख इससूरा में किया गया है। अधिकतर टीकाकारों ने इस उल्लेख के आधार पर यह समझा है कि यह नबी (सल्ल.) के ताइफ़ की यात्रा की प्रसिद्ध घटना है। किन्तु यह अनुमान कई कारणों से सही नहीं है। ताइफ़ की उस यात्रा में जिन्नों के कुरआन सुनने की जो घटना घटी थी उसका क़िस्सा सूरा 40 (अहक़ाफ़) आयत 29 से 32 में बयान किया गया है। उन आयतों पर एक दृष्टि डालने से ही मालूम हो जाता है कि उस अवसर पर जो जिन्न कुरआन मजीद सुनकर ईमान लाए थे वे पहले से ही हज़रत मूसा (अलै.) और पूर्व की आसमानी किताबों पर ईमान रखते थे। इसके विपरीत इस सूरा की आयत 2.7 से प्रत्यक्षतः स्पष्ट होता है कि इस अवसर पर क़ुरआन सुनने वाले जिन्न बहुदेववादियों और परलोक और ईशदूतत्व (पैग़म्बरी) का इनकार करने वालों में से थे। इसलिए सही बात यह है कि सूरा 46 (अहक़ाफ़) और सूरा 72 (जिन्न) में एक ही घटना का उल्लेख नहीं किया गया है, बल्कि ये दो अलग-अलग घटनाएँ हैं। सूरा 46 (अहक़ाफ़) में जिस घटना का उल्लेख किया गया है वह सन् 10 नबवी की ताइफ़ की यात्रा में घटित हुई थी, और इस सूरा की आयतों 8 से 10 पर विचार करने से आभासित होता है कि यह ( दूसरी घटना ) नुबूवत के आरम्भिक कालखण्ड की ही हो सकती है।

जिन्न की असलियत

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि जहाँ तक कुरआन का (सम्बन्ध है, उस) में एक जगह नहीं, अधिकतर स्थानों पर जिन्न और मनुष्य का उल्लेख इस हैसियत से किया गया है कि ये दो विभिन्न प्रकार के सृष्ट जीव हैं। उदाहरणार्थ , सूरा 7 ( आराफ़ ) आयत 38 , सूरा 11 ( हूद ) आयत 119 , सूरा 41 (हा . मीम . अस - सजदा ) आयत 25 और 29 , सूरा 46 (अल अहक़ाफ़ ) आयत 17 , सूरा 51 (अज़ - ज़ारियात ) आयत 56 , सूरा 114 ( अन नास ) आयत 6 और पूरी सूरा 55 ( रहमान ) , सूरा 7 ( आराफ़ ) आयत 12 और सूरा 15 ( हिज्र ) आयत 26-27 में साफ़ - साफ़ बताया गया है कि मनुष्य की सृष्टि जिस तत्त्व से हुई है वह मिट्टी है और जिन्नों की सृष्टि जिस तत्त्व से हुई है वह है अग्नि। सूरा 15 (हिज्र ) आयत 27 में स्पष्ट किया गया है कि जिन्न मनुष्य से पहले पैदा किए गए थे। सूरा 7 (आराफ़) आयत 27 में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि जिन्न मनुष्यों को देखते हैं, किन्तु मनुष्य उनको नहीं देखते । सूरा 15 (हिज्र) आयत 16-17 , सूरा 37 (साफ़्फ़ात) आयत 6-10 , और सूरा 67 (मुल्क) आयत 5 में बताया गया है कि जिन्न यद्यपि ऊपरिलोक की ओर उड्डयन कर सकते हैं, किन्तु एक सीमा से आगे नहीं जा सकते। सूरा 2 (बक़रा) आयत 50 से मालूम होता है कि धरती की ख़िलाफ़त (शासनाधिकार) अल्लाह ने मनुष्य को प्रदान की है और मनुष्य जिन्नों से श्रेष्ठ प्राणी है। कुरआन यह भी बताता है कि जिन्न मनुष्य की तरह स्वतंत्र अधिकार प्राप्त सृष्ट जीव हैं और जिन्नों को आज्ञापालन और अवज्ञा तथा कुन और ईमान का वैसा ही अधिकार दिया गया है, जैसा मनुष्य को दिया गया है। (कुरआन मजीद में इसी तरह की और भी बहुत-सी बातें जिन्नों के विषय में बयान की गई हैं। उनके इन सभी बयानों) से यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि जिन्न का अपना एक स्थायी बाह्य अस्तित्व होता है और वे मनुष्य से एक दूसरी ही जाति के अदृश्य सृष्ट प्राणी हैं।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा में पहली आयत से लेकर आयत 15 तक यह बताया गया है कि जिन्न के गिरोह पर कुरआन मजीद सुनकर क्या प्रभाव पड़ा और फिर वापस जाकर अपनी जाति के दूसरे जिन्नों से क्या-क्या बातें कहीं। इस सिलसिले में अल्लाह ने उनकी समग्र बातचीत उद्धृत नहीं की है , बल्कि केवल उन विशेष बातों को उद्धृत किया है जो उल्लेखनीय थीं। तदनन्तर आयत 16 से 17 तक लोगों को हितोपदेश दिया गया है कि वे बहुदेववाद को त्याग दें और सीधे मार्ग पर दृढ़ता के साथ चलें तो उनपर प्रसादों की वर्षा होगी अन्यथा अल्लाह की भेजी हुई नसीहत से मुँह मोड़ने का परिणाम यह होगा कि उन्हें कठोर यातना का सामना करना पड़ेगा। फिर आयत 19 से 23 तक मक्का के काफ़िरों की इस बात पर निन्दा की गई है कि जब अल्लाह का रसूल अल्लाह की ओर आमंत्रित करने के लिए आवाज़ बुलन्द करता है तो वे उसपर टूट पड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं । फिर आयत 24 से 25 में काफ़िरों को चेतावनी दी गई है कि आज वे रसूल को असहाय देखकर उसे दबा लेने की चेष्टा कर रहे हैं, किन्तु एक समय आएगा जब उन्हें मालूम हो जाएगा कि वास्तव में असहाय कौन है। अन्त में लोगों को बताया गया है कि परोक्ष का ज्ञाता केवल अल्लाह है। रसूल (सल्ल.) केवल वह ज्ञान प्राप्त होता है जो अल्लाह उसे देना चाहता है।

सुरह "अल-जिन्न का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
नूह
क़ुरआनअगला सूरा:
अल-मुज़्ज़म्मिल
सूरा 72 - अल-जिन्न

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

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