अध-धारियात

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 51 वां सूरा (अध्याय) है। पढ़ते हैं सूरा अज़्-ज़ारियात

अध-धारियात (इंग्लिश: Adh-Dhariyat): उर्दू बोलने वाले इसे अज़-ज़ारियात भी पढ़ते हैं. इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 51 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 60 आयतें हैं।

नाम

सूरा अज़-ज़ारियात[1]या सूरा अज़्-ज़ारियात[2]पहले ही शब्द 'वज़्ज़रियात' (क़सम है उन हवाओं की जो गर्द उड़ानेवाली हैं), से उद्धृत है। आशय यह है कि वह सूरा जिसका आरम्भ अज़-ज़ारियात शब्द से होता है।

अवतरणकाल

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

विषय-वस्तुओं और वर्णन-शैली से साफ़ मालूम होता है कि यह सूरा (भी उसी) समय में अवतरित हुई थी जिसमें सूरा 50 (क़ाफ़.) अवतरित हुई है।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि

इसका बड़ा भाग परलोक के विषय पर है और अन्त में एकेश्वरवाद की ओर बुलाया गया है। इसके साथ लोगों को इस बात पर सचेत किया गया है कि नबियों (अलै.) की बात न मानना और अज्ञानपूर्ण धारणाओं पर आग्रह करना स्वयं उन्हीं जातियों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ है जिन्होंने यह नीति अपनाई है। आख़िरत के सम्बन्ध में जो बात इस सूरा के छोटे-छोटे, किन्तु अत्यन्त अर्थमय वाक्यों में बयान की गई है, वह यह है कि मानव जीवन के परिणामों के विषय में लोगों की विभिन्न और परस्पर विरोधी धारणाएँ स्वयं इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि इनमें से कोई धारणा भी ज्ञान पर आधारित नहीं है, बल्कि हरेक ने अटकलें दौड़ाकर अपनी जगह जिस दृष्टिकोण की स्थापना कर ली उसी को वह अपनी धारणा बनाकर बैठ गया। इतनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण मौलिक समस्या पर , जिसके विषय में आदमी के अभिमत का ग़लत हो जाना उसके पूरे जीवन को ग़लत करके रख देता है , ज्ञान के बिना मात्र अटकलों के आधार पर कोई धारणा बना लेना एक विनाशकारी मूर्खता है। ऐसी समस्या के विषय में ठीक अभिमत निर्धारित करने का बस एक ही रास्ता है, और वह यह है कि मनुष्य को आख़िरत (परलोक) के सम्बन्ध में जो ज्ञान ख़ुदा की ओर से उसका नबी दे रहा है उसपर वह गम्भीरतापूर्वक विचार करे और धरती और आकाश की व्यवस्था और स्वयं अपने अस्तित्व पर दृष्टिपात करके खुली आँखों से देखे कि क्या उस ज्ञान के सत्य होने की गवाही हर तरफ़ मौजूद नहीं है। इसके बाद बड़े संक्षिप्त ढंग से एकेश्वरवाद की ओर बुलाते हुए कहा गया है कि तुम्हारे स्रष्टा ने तुमको दूसरों की बन्दगी के लिए नहीं, बल्कि अपनी दासता के लिए पैदा किया है। वह तुम्हारे बनावटी उपास्यों की तरह नहीं है जो तुमसे आजीविका लेते हैं । और तुम्हारी सहायता के बिना जिनकी प्रभुता नहीं चल सकती। वह ऐसा उपास्य है जो सबको आजीविका देता है, किसी से आजीविका लेने पर आश्रित नहीं और जिसका प्रभुत्व स्वयं उसके बल-बूते पर चल रहा है। इसी सिलसिले में यह भी बताया गया है कि नबियों (अलै.) का मुक़ाबला जब भी किया गया है, बुद्धिसंगत आधार पर नहीं , बल्कि उसी दुराग्रह और हठधर्मी और अज्ञानपूर्ण अहंकार के आधार पर किया गया है जो आज मुहम्मद (सल्ल.) के साथ बरता जा रहा है । फिर मुहम्मद (सल्ल.) को निर्देश दिया गया है कि इन सरकशों की ओर ध्यान न दें और अपने आमंत्रण और याद दिलाने का कार्य करते रहें, क्योंकि वह इन लोगों के लिए चाहे लाभकारी न हो किन्तु ईमान लानेवालों के लिए लाभप्रद है ।

सुरह "अज़-ज़ारियात का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद"[3]ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखेंAdh-Dhariyat 51:1

पिछला सूरा:
क़ाफ़
क़ुरआनअगला सूरा:
अत-तूर
सूरा 51 - अध-धारियात

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सन्दर्भ:

इन्हें भी देखें

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