अल-बलद

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 90 वां सूरा (अध्याय)

सूरा अल-बलद (इंग्लिश: Al-Balad) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 90 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 20 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-बलद [1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-बलद [2]नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत “नहीं, मैं क़सम खाता हूँ अल-बलद (इस शहर मक्का) की" के शब्द 'अल-बलद' को इसका नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इसका विषय और वर्णन-शैली मक्का अज़्ज़मा के आरम्भिक काल की सूरतों जैसी है, किन्तु एक संकेत इसमें ऐसा मौजूद है जो पता देता है कि इसके अवतरण का समय वह था जब मक्का के काफ़िर (इन्कार करने वाले) अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की दुश्मनी पर तुल गए थे और आपके विरूद्ध हर अनाचार और अत्याचार की उन्हेंने अपने लिए वैध कर लिया था।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा का विषय संसार में मनुष्य की और मनुष्य के लिए संसार की वास्तविक हैसियत समझाना और यह बताना है कि ईश्वर ने मनुष्य के लिए सौभाग्य और दुर्भाग्य के दोनों रास्ते खोलकर रख दिए हैं। उनको देखने और उनपर चलने के संसाधन भी उसके लिए जुटा दिए हैं। और अब यह मनुष्य के अपने प्रयास और परिश्रम पर निर्भर करता है कि वह सौभाग्य के मार्ग पर चलकर अच्छे परिणाम को पहुँचता है या दुर्भाग्य का मार्ग ग्रहण करके बुरे परिणाम का सामना करता है। सबसे पहले मक्का नगर और उसमें अल्लाह के रसूल (सल्ल.) पर बीतने वाली मुसीबतें और आदम की पूरी संतान की हालत को इस तथ्य पर साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया है कि, यह संसार मनुष्य के लिए विश्राम स्थान नहीं है, बल्कि यहाँ वह पैदा ही मशक़्शत (परिश्रम) की हालत में हुआ है। इस विषय को यदि सूरा 53 (नज्म) की आयत 39 “मनुष्य के लिए कुछ नहीं, लेकिन वह जिसके लिए उसने प्रयास किया है" से मिलाकर देखा जाए तो बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि इस कर्मभूमि- संसार में मनुष्य का भविष्य उसकी चेष्टा, प्रयास और मेहनत- मशक़्क़त पर निर्भर करता है। इसके बाद मनुष्य की यह भ्रान्ति दूर की गई है कि उसपर कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं है जो उसके कार्य को देख रही है और उसपर उसकी पकड़ करने वाली है। फिर बताया गया है कि दुनिया में मनुष्य ने बड़ाई और श्रेष्ठता के कैसे ग़लत मानदण्ड निश्चित कर रखे। जो व्यक्ति अपनी बड़ाई के प्रदर्शन के लिए ढेरों माल लुटाता है, लोग उसकी अधिक प्रशंसा करते हैं, हालाँकि जो सत्ता उसके कार्य की देख-रेख कर रही है, वह देखती है कि उसने यह माल किन तरीक़ों से प्राप्त किया और किन रास्तों में, किस नीचता और किन उद्देश्यों के लिए ख़र्च किया। इसके बाद सर्वोच्च अल्लाह कहता है कि हमने मनुष्य को ज्ञान के साधन और सोचने-समझने की क्षमताएँ देकर उसके सामने भलाई और बुराई के दोनों रास्ते खोलकर रख दिए हैं। एक रास्ता वह है जो नैतिक पतनों की ओर जाता है और उसपर जाने के लिए कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता, बल्कि मन को खूब रस मिलता है। दूसरा रास्ता नैतिक ऊर्ध्वताओं की ओर जाता है कि उस पर चलने के लिए आदमी को अपनी इंद्रियों को बाध्य करना पड़ता है। फिर अल्लाह ने बताया है कि वह घाटी क्या है जिससे गुज़र कर आदमी ऊँचाइयों की ओर जा सकता है। इस मार्ग पर चलनेवालों का परिणाम यह है कि मनुष्य अल्लाह की दयालुताओं का पात्र हो जाए, और इसके विपरीत दूसरा मार्ग ग्रहण करने वालों का परिणाम नरक की आग है, जिससे निकलने के सारे द्वार बन्द हैं।

सुरह "अल-बलद का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अल-फ़ज्र
क़ुरआनअगला सूरा:
अश-शम्स
सूरा 90 - अल-बलद

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

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