अत-तारिक़

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 86 वां सूरा (अध्याय)

सूरा अत-तारिक़ (इंग्लिश: At-Tariq) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 86 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 17 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अत-तारिक़ [1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अत्-तारिक़ [2]नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत के शब्द “अत-तारिक़” (रात को प्रकट होनेवाला) को इसका नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इसकी वार्ता की वर्णन-शैली मक्का मुअज़्ज़मा की परारम्भिक सूरतों से मिलती जुलत है, किन्तु यह उस समय की अवतरित सूरा है जब मक्का के काफ़िर कुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) के आह्वान को क्षति पहुँचाने के लिए हर तरह की चालें चल रहे थे।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसमें दो विषयों का उल्लेख किया गया है। एक , यह कि मनुष्य को मरने के पश्चात् ईश्वर के समक्ष उपस्थित होना है। दूसरे, यह कि कुरआन एक निर्णायक सूक्ति है जिसे काफ़िरों की कोई चाल और उपाय क्षति नहीं पहुंचा सकती। सबसे पहले आकाश के तारों को इस कपात की गवाही में सामने लाया गया है कि ब्रह्माण्ड की कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है जो एक सत्ता की देख-रेख के बिना अपनी जगह स्थिर और शेष रह सकती हो। फिर मनुष्य को स्वयं उसकी अपनी ओर ध्यान दिलाया गया है कि किस तरह वीर्य की एक बून्द से उसे अस्तित्व में लाया गया और जीता-जागता मनुष्य बना दिया गया है और इसके बाद कहा गया है कि जो ईश्वर इस तरह उसे अस्तित्व में लाया है वह निश्चय ही उसको दोबारा पैदा करने की सामर्थ्य रखता है और यह दूसरी पैदइश इस उद्देश्य के लिए होगी कि मनुष्य के उन सभी रहस्यों की जाँच-पड़ताल की जाए जिनपर दुनिया में परदा पड़ा रह गया था। वार्ता की समाप्ति पर कहा गया है कि जिस तरह आसमान से बरिश का बरसना और ज़मीन से वृक्षों और फ़सलों का उगना कोई खेल नहीं, बल्कि एक गम्भीर कार्य है उसी तरह कुरआन में जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, वे भी कोई हँसी - मज़ाक़ नहीं हैं, बल्कि सुदृढ़ और अटल बातें हैं। काफ़िर इस भ्रम में हैं कि उनकी चालें इस कुरआन के आह्वान को परास्त कर देंगी, किन्तु उन्हें ख़बर नहीं कि अल्लाह भी एक उपाय में लगा हुआ है और उसके उपाय के आगे काफ़िरों की चालें धरी- की- धरी रह जाएँगी। फिर एक वक्य में अल्लाहके रसूल (सल्ल.) को यह सांत्वना और निहित रूप से काफ़िरों को यह धमकी देकर बात समाप्त कर दी गई है कि आप तनिक धैर्य से काम लें और कुछ समय के लिए काफ़िरों को अपनी-सी कर लेने दें, अधिक विलम्ब न होगा कि उन्हें स्वयं मालूम हो जाएगा कि उनका परिणाम क्या होता।

सुरह "अत-तारिक़ का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अल-बुरूज
क़ुरआनअगला सूरा:
अल-आला
सूरा 86 - अत-तारिक़

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

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