ओउ्म्


ओ३म् () आ ओंकारक नामान्तर प्रणव छी । ई ईश्वरक वाचक अछि । ईश्वरक साथ ओंकारक वाच्य-वाचक-भाव सम्बन्ध नित्य छैक, साङ्केतिक नै । सङ्केत नित्य आ स्वाभाविक सम्बन्ध कऽ प्रकट करैत अछि । सृष्टिके आदिमे सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणवक स्फुरण होइत छैक । तदनन्तर सात करोड़ मन्त्रसभक आविर्भाव होइत अछि । अही मन्त्रसभक वाच्य आत्माके देवता रूपमे प्रसिद्ध अछि । ई देवता मायाके ऊपर विद्यमान रहिक मायिक सृष्टिके नियन्त्रण करैत छैक । एहिमेसँ आधा शुद्ध मायाजगत्मे कार्य करैत छैक आ शेष आधा अशुद्ध आ मलिन मायिक जगत्मे । ई एकटा शब्दक ब्रह्माण्डक सार मानल जाइत अछि, १६ श्लोकसभमे सेहो हिनकर महिमा वर्णित अछि ।[१]

देवनागरीमे ओ३म
कन्नडमे ओ३म
तमिळमे ओम
मलयालममे ओ३म
ओम तिब्बतीमे ओ३म
गुरुमुखीमे 'एक ओंकार'
बाली भाषामे ओंकार


परिचय

ब्रह्मप्राप्तिके लेल निर्दिष्ट विभिन्न साधनसभमें प्रणवोपासना मुख्य छैक। मुण्डकोपनिषद्मे लिखल अछि:

प्रणवो धनु:शरोह्यात्मा ब्रह्मतल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ॥


ओंकार

नानक किया छथिन

गुरु नानक जी कs शब्द एक ओंकार सतनाम बहुत प्रचलित एवम शत्प्रतिशत सत्य छी । एक ओंकारटा सत्य नाम अछि । राम, कृष्ण सब फलदायी नाम ओंकार पर निहित अछि एवम ओंकारके कारणने एकर महत्व छै । बाँकी नामसभक तs हमसभ बनौने छी परंतु ओंकार मात्र छैक जेकी स्वयंभू छी आ हर शब्द अहीसं बनल अछि । सभ ध्वनिमें ओउ्म शब्द होइत अछि ।[२]


महत्व एवम लाभ

ओउ्म तीन शब्द 'अ' 'उ' 'म' सं मिलकर बनल अछि जेकी त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु आर महेश तथा त्रिलोक भूर्भुव: स्व: भूलोक भुव: लोक तथा स्वर्ग लोकक प्रतीक छी ।[३]


लाभ

पद्माशनमें बइठ कs एकर जप करलासं मनक शांती एवम एकाग्रताक प्राप्ति होति छैक, वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषिसभक कहना छै कि ओउ्म आ एकाक्षरी मंत्र[४] एकर पाठ करलासं दाँत, नाक, जीभ सभक उपयोग होइत अछि जहिमे हार्मोनल स्राव कम होति छै आ ग्रंथि स्रावक कम करके अही शब्द बहुतो बीमारीसभसं रक्षा आर शरीरके सात चक्र (कुंडलिनी) कs जागृत करैत छैक ।[५]


विवेचना

तस्य वाचकः प्रणवः
ओ ईश्वरक वाचक प्रणव 'ॐ' छी'।

तैत्तरीयोपनषद शिक्षावल्ली अष्टमोऽनुवाकःमें ॐ कs विषयमें कहल गेल अछि

ओमति ब्रह्म। ओमितीद ँूसर्वम्।

ओमत्येदनुकृतिर्हस्म वा अप्यो श्रावयेत्याश्रावयन्ति।

ओमति सामानि गायन्ति।

ओ ँूशोमिति शस्त्राणि श ँूसन्ति।

ओमित्यध्वर्युः प्रतिगरं प्रतिगृणाति। ओमिति ब्रह्मा प्रसौति।

ओमित्यग्निहोत्रमनुजानति।

अमिति ब्राह्मणः प्रवक्ष्यन्नाह ब्रह्मोपाप्नवानीति।

ब्रह्मैवोपाप्नोति।।

अर्थातः- ॐ ही ब्रह्म छी । ॐ ही प्रत्यक्ष जगत् छी। ॐ ही एकर (जगतक) अनुकृति छी । हे आचार्य! ॐ के विषयमें आर सुनाओल जाई आचार्य सुनाबैत अछि । ॐ सं प्रारम्भ करिके साम गायक सामगान कहैत छथि । ॐ-ॐ कहैत् ही शस्त्र रूप मs मन्त्र पढ़ल जाइत अछि । ॐ सं अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रसभक उच्चारण करैत अछि । ॐ कहीक अग्निहोत्र प्रारम्भ करल जाइत अछि । अध्ययनके समय ब्राह्मण ॐ कहीकs ब्रह्म कs प्राप्त करsक बात करैत अछि । ॐक द्वारा ही ओ ब्रह्म कs प्राप्त करैत अछि ।

ओ ओंकार आदि मैं जाना।
लिखि औ मेटें ताहि ना माना ॥
ओ ओंकार लिखे जो कोई।
सोई लिखि मेटणा न होई ॥

गुरु नानक ॐ कs महत्वक प्रतिपादित करैत लिखलथि —

ओम सतनाम कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्त
यानी ॐ सत्यनाम जपsवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं "अकाल-पुरुषके" सदृश भs जाइत अछि।

"ॐ" ब्रह्माण्डक नाद छी एवं मनुष्यके अन्तरमें स्थित ईश्वरक प्रतीक छी ।

सन्दर्भ सामग्रीसभ

बाह्य जडीसभ