आर्मीनियाई भाषा

आर्मीनी भाषा (հայերեն) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार[1] की यह भाषा मेसोपोटैमिया तथा कॉकस की मध्यवर्ती घाटियों और काले सागर के दक्षिणी पूर्वी प्रदेश में बोली जाती है। यह प्रदेश आर्मीनी जार्जिया तथा अज़रबैजान (उत्तर-पश्चिमी ईरान) में पड़ता है। यह आर्मीनिया गनतंत्र की राजभाषा है। आर्मीनी भाषा को पूर्वी और पश्चिमी भागों में विभाजित करते हैं। गठन की दृष्टि से इसकी स्थिति ग्रीक और हिंद-ईरानी के बीच की है। पुराने समय में आर्मीनिया का ईरान से घनिष्ठ संबंध रहा है और ईरानी के प्राय: दो हजार शब्द आर्मीनी भाषा में मिलते हैं। इन्हीं कारणों से बहुत दिनों तक आर्मीनी को ईरानी की केवल एक शाखा मात्र समझा जाता था। पर अब इसकी स्वतंत्र सत्ता मान्य हो गई है। इसकी अपनी अनन्य लिपि है जिसकी खोज ४०५ ई में हुई थी।

आर्मीनी भाषा
հայերեն
बोली जाती हैआर्मीनिया
कुल बोलने वाले140 लाख
भाषा परिवार*हिन्द-यूरोपीय
  • आर्मीनी
लेखन प्रणालीआर्मीनी लिपि
आधिकारिक स्तर
आधिकारिक भाषा घोषित आर्मीनिया
नियामक
भाषा कूट
ISO 639-1hy
ISO 639-2hye
ISO 639-3
██ ऐसे क्षेत्र जहां आर्मीनियाई बहुमत की भाषा है

इस भाषा का व्यंजनसमूह मूल रूप से भारतीय और काकेशी समूह की जार्जी भाषा से मिलता जुलता है। प्‌ त्‌ क्‌ व्यंजनों का ब्‌ द् ग्‌ से परस्पर व्यत्यय हो गया है। उदाहरणार्थ, संस्कृत वश के लिए आर्मीनी में 'तस्न' शब्द है। संस्कृत पितृ के लिए आर्मीनी में ह्यर है। आदिम भारोपीय भाषा से यह भाषा काफी दूर जा पड़ी है। संस्कृत द्वि और त्रि के लिए आर्मीनी में एर्कु और एरेख शब्द हैं। इसी से दूरी का अनुमान हो सकता है। व्याकरणत्मक लिंग प्राचीन आर्मीनी में भी नहीं मिलता। संस्कृत 'गौ' के लिए आर्मीनी में केव्‌ है। ऐसे शब्दों से ही आदि आदिम आर्यभाषा से इसकी व्युत्पत्ति सिद्ध होती है। आर्मीनी अधिकतर बोलचाल की भाषा रही है। ईरानी शब्दों के अतिरिक्त इसमें ग्रीक, अरबों और काकेशी के भी शब्द हैं।

साहित्य

आर्मीनी भाषा में पाँचवीं शताब्दी ई. के पूर्व का कोई ग्रंथ नहीं मिलता। आर्मीनी का जो भी प्राचीन साहित्य था उसे ईसाई पादरियों ने चौथी और पाँचवीं ई. शताब्दियों में नष्ट कर दिया। कुछ ही समय पूर्व अशोक का एक अभिलेख आर्मीनी भाषा में प्राप्त हुआ है जो संभवत: आर्मीनी का सबसे पुराना नमूना है। आर्मीनी की एक लिपि पांचवी ईसवी शताब्दी में गढ़ी गई जिसमें इंजील का अनुवाद और अन्य ईसाई धर्मप्रचारक ग्रंथ लिखे गए। पांचवीं शताब्दी में ही ग्रीक के भी कुछ ग्रथों का अनुवाद हुआ। इसी शताब्दी में लिखा हुआ फाउसतुस नामक एक ग्रंथ चौथी शताब्दी की आर्मीनी परिस्थिति का सुंदर चित्रण करता है। इसमें आर्मीनिया के छोटे-छोटे नरेशों के दरबारों, राजनीतिक संगठन, जातियों के परस्पर युद्ध और ईसाई धर्म के स्थापित होने का इतिहास अंकित है। ऐलिसएउस वर्दपैत ने वर्दन का एक इतिहास लिखा जिसमें आर्मीनयों ने सासानियों से जो धर्मयुद्ध किया था उसका वर्णन है। खौरैन के मोज़ेज़ ने आर्मीनिया का एक इतिहास लिखा जिसमें ४५० ईसवी तक का वर्णन है। यह ग्रंथ संभवत: सातवीं शताब्दी में लिखा गया। आठवीं शताब्दी से बराबर आर्मीनिया के ग्रंथ मिलते हैं। इनमें से अधिकांश इतिहास और धर्म से संबंध रखते हैं।

१९वीं शताब्दी के मध्यभाग में आर्मीनिया के रूसी और तुर्की जिलों में एक नई साहित्यिक प्रेरणा निकली। इस साहित्य की भाषा प्राचीन भाषा से व्याकरण में यथेष्ट भिन्न है, यद्यपि शब्दावली प्राय: पुरानी है। इस नवीन प्रेरणा के द्वारा आर्मीनी साहित्य में काव्य, उपन्यास, नाटक, प्रहसन आदि यथेष्ट मात्रा में पाए जाते हैं। आर्मीनी में पत्र-पत्रिकाएँ भी पर्याप्त संख्या में निकली हैं। सोवियत संघ में प्रवेश कर इस प्रदेश की भाषा और साहित्य ने बड़ी तेजी से उन्नति की।

लिपि

१०१११२१३१४१५१६१७१८१९२०२१२२२३२४२५२६२७२८२९३०३१३२३३३४*३५३६३७३८३९
ԱԲԳԴԵԶԷԸԹԺԻԼԽԾԿՀՁՂՃՄՅՆՇՈՉՊՋՌՍՎՏՐՑՈւՒՓՔՕՖ
աբգդեզէըթժիլխծկհձղճմյնշոչպջռսվտրցոււփքևօֆ
abgdezēët’žilxçkhjġč̣mynšočpǰsvtrc’uwp’k’evòf
[ɑ][b][g][d][ɛ][z][ɛ][ə][tʰ][ʒ][i][l][χ][t͡s][k][h][d͡z][ʁ][t͡ʃ][m][j][n][ʃ][o][t͡ʃʰ][p][d͡ʒ][r][s][v][t][ɾ][t͡sʰ][u][v][pʰ][kʰ][ɛv][o][f]

संदर्भ ग्रंथ

  • मेइए ले लाँग दु माँद (पेरिस);
  • बाबूराम सक्सेना : सामान्य भाषाविज्ञान (प्रयाग)

सन्दर्भ

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