यज़ीदी
यज़ीदी या येज़ीदी (कुर्दी: ئێزیدی या Êzidî, अंग्रेज़ी: Yazidi) कुर्दी लोगों का एक उपसमुदाय है जिनका अपना अलग यज़ीदी धर्म है। इस धर्म में वह पारसी धर्म के बहुत से तत्व, इस्लामी सूफ़ी मान्यताओं और कुछ ईसाई विश्वासों के मिश्रण को मानते हैं। इस धर्म की शुरुआत १२वीं सदी ईसवी में शेख़ अदी इब्न मुसाफ़िर ने की और इसके अनुसार ईश्वर ने दुनिया का सृजन करने के बाद इसके देख-रेख सात फरिश्तों के सुपुर्द करी जिनमें से प्रमुख को 'मेलेक ताऊस', यानि 'मोर (पक्षी) फ़रिश्ता' है। अधिकतर यज़ीदी लोग पश्चिमोत्तरी इराक़ के नीनवा प्रान्त में बसते हैं, विशेषकर इसके सिंजार क्षेत्र में। इसके अलावा यज़ीदी समुदाय दक्षिणी कॉकस, आर्मेनिया, तुर्की और सीरिया में भी मिलते हैं।
यज़ीदी Êzidîtî / Yazidi | ||||||||||||||||||||||||
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इराक़-सीरिया सीमा के पास सिंजार पहाड़ों मे कुछ यज़ीदी (सन् १९२० के दशक में) | ||||||||||||||||||||||||
आदर्श वाक्य/ध्येय: | ||||||||||||||||||||||||
कुल अनुयायी | ||||||||||||||||||||||||
संस्थापक | ||||||||||||||||||||||||
उल्लेखनीय प्रभाव के क्षेत्र | ||||||||||||||||||||||||
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धर्म | ||||||||||||||||||||||||
यज़दानी धर्म की यज़ीदी शाखा | ||||||||||||||||||||||||
पाठ्य | ||||||||||||||||||||||||
यज़ीदी श्रुती ग्रंथ (Kitêba Cilwe) यज़ीदी काली किताब (Mishefa Reş) | ||||||||||||||||||||||||
भाषाएं | ||||||||||||||||||||||||
कुर्दी,[12] कुरमांजी |
धर्म और परम्पराएँ
यजीदी इराक, सीरिया, जर्मनी, आर्मेनिया, रूस के निवासी हैं। ये 'यजीदी', मुसलिम नहीं हैं, ईसाई भी नहीं हैं। पारसी धर्म माननेवाले भी नहीं। इनका स्वयं का एक 'यजीदी पंथ' है। परन्तु यह पन्थ हिंदू धर्म के एकदम नजदीक लगता है। अनेक शोधार्थियों ने इस 'यजीदी' पंथ को पश्चिम एशिया में हिंदुओं का एक 'खोया हुआ पंथ' कहा है। यजीदियों की निश्चित जनसंख्या के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। अनेक लोगों के अनुसार इस पंथ के लोगों की संख्या 15 लाख है। इस पंथ को माननेवाले लोग प्रमुखता से इराक और सीरिया में रहते हैं।
इन यजीदियों के प्रार्थना-स्थल एकदम हिंदू मंदिरों जैसे ही दिखाई देते हैं। उनके मंदिरों पर नागों के चित्र उकेरे हुए होते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यजीदी लोगों के जो पवित्र निशान हैं, उनमें पंख पसारकर नाचता हुआ मोर प्रमुख है। ध्यातव्य है कि इराक, सीरिया इत्यादि किसी भी देश में मोर प्राणी पाया ही नहीं जाता। यजीदियों के इस मोर की साम्यता तमिल देवता भगवान् सुब्रह्मण्यम की परम्परागत प्रतिमा/चित्र से मिलती है। यजीदियों का प्रतीक चिह्न पीले रंग का सूर्य है, जिसमें 21 किरणें दरशाई गई हैं। 21 की संख्या हिंदू धर्म में भी पवित्र मानी जाती है। हिंदुओं की ही तरह उनकी समाई, दीप प्रज्वलन, स्त्रियों के माथे पर पवित्रता की बिंदी, पुनर्जन्म में उनकी श्रद्धा इत्यादि हिंदुओं के अनेक रीति-रिवाज यजीदियों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। हिंदुओं की तरह वे भी हाथ जोड़कर भगवान् को नमस्कार करते हैं। हिंदुओं की ही तरह यज्ञ भी करते हैं, हिन्दुओं की तरह ही पूजा-पाठ करते हैं, आरती के थाल तैयार करते हैं। ऐसी कई-कई समानताएँ इन दोनों संस्कृतियों में दिखाई देती हैं।[13]
कुछ लोग इसका अर्थ यह लगाते हैं कि अत्यन्त सम्पन्न एवं वैभवशाली हिंदू/वैदिक संस्कृति के वाहक ये समूह ईसा पूर्व दो से तीन हजार वर्ष पहले भिन्न-भिन्न कारणों से स्थानान्तरित होकर विश्व के अलग-अलग भागों में गए। कुछ लोगों ने आसपास की परिस्थिति एवं वातावरण के साथ मेल-जोल बना लिया और अपनी संस्कृति को किसी तरह बचाए रखा और वहीं, किसी-किसी समुदाय ने अपनी संस्कृति को काफी अक्षुण्ण रखा।