कोङ्कणी भाषा
कोङ्कणी भाषा[note ४] (कोङ्कणी लेखनभेद: कोंकणी) मुख्यतः भारतको कोङ्कण क्षेत्रमा बसोबास गर्ने कोङ्कणी लोकद्वारा बोलिने एक हिन्द-आर्य भाषा हो। यो भारतीय संविधानको आठौँ अनुसूचीमा पर्ने २२ अनुसूचित भाषाहरूमध्ये एक र गोवाको आधिकारिक भाषा हो।[८] कोङ्कणी भाषाको सबैभन्दा पुरानो शिलालेख सन् ११८७ मा लेखिएको थियो।[९] यो भाषालाई कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, गुजरात र दादरा र नगर हवेली तथा दमन र दीवमा अल्पसङ्ख्यक भाषाको दर्जा दिइएको छ।[१०]
कोङ्कणी भाषा | |
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कोंकणी / ಕೊಂಕಣಿ / Konknni / കോങ്കണീ / کونکڼی | |
मूलभाषी | भारत |
क्षेत्र | कोङ्कण (भारतको गोवा, कर्नाटक, मङ्गलोर, महाराष्ट्र तथा केरलका केही भाग), गुजरातको डाङ जिल्ला र दादरा र नगर हवेली तथा दमन र दीव[१][२] |
रैथाने(हरू) | कोङ्कणी लोक |
मातृभाषी वक्ता | १ करोड २६ लाख |
भारोपेली
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आञ्चलिक भाषाहरू |
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विगत: ब्राह्मी नागरी गोयकानडी मोडी वर्तमान: देवनागरी (official)[note १] रोमन[note २] कन्नड[note ३] मलयालम | |
सरकारी दर्जा | |
आधिकारिक भाषा | India |
नियामक संस्था | कर्नाटक कोङ्कणी साहित्य अकादमी र गोवा सरकार[४] |
भाषा सङ्केतहरू | |
आइएसओ ६३९-२ | kok |
आइएसओ ६३९-३ | kok – inclusive codeव्यक्तिगत कोडहरू: gom – गोवा कोङ्कणीknn – मराठी कोङ्कणी |
ग्लोटोलग | goan1235 गोवा कोङ्कणी[५]konk1267 कोङ्कणी[६] |
भारतमा मातृभाषाका रूपमा कोङ्कणी बोलिने क्षेत्र |
कोङ्कणी एक दक्षिण हिन्द-आर्य भाषा हो। यसमा अझै पनि वैदिक संस्कृतको भाषिक तत्त्व कायम हुनका साथै यो दुवै पश्चिमी र पूर्वीय हिन्द-आर्य भाषा समूहसँग मिल्दोजुल्दो छ।[११]
कोङ्कण क्षेत्र बाहेक उत्तरमा दमन जिल्लादेखि दक्षिणमा कोच्चिसम्म कोङ्कणी भाषाका विभिन्न भाषिका बोलिन्छ। यद्यपि, मानक कोङ्कणीसँग वास्ता नभएको तथा एक-अर्कासँग पनि सम्पर्क नभएका हुनाले यी भाषिकाका वक्ताले एक-अर्कालाई सहजै बुझ्न सक्दैनन्। तटीय महाराष्ट्रमा बोलिने मालवणी, चित्पावनी, पूर्वी भारतीय कोली र आगरी जस्ता भाषिकाहरू कोङ्कणी नबोल्ने क्षेत्रमा बोलिने भाषाहरूसँग मिसिएर छिटै हराउने खतरामा छन्।[१२][१३]
वर्गीकरण
कोङ्कणी हिन्द-आर्य भाषा समूहअन्तर्गत पर्ने एक भाषा हो। यो दक्षिण हिन्द-आर्य भाषा समूहको मराठी-कोङ्कणी शाखामा पर्छ।[१४] कोङ्कणीमा शब्दको संश्लेषण धेरै हुन्छ र अन्य आधुनिक हिन्द-आर्य भाषाहरूको तुलनामा यसको संस्कृतसँग नजिकको सम्बन्ध कायम रहेको छ। भाषाविद्अनुसार कोङ्कणी प्राकृतका विभिन्न स्वरूपको संयोजन हो। कोङ्कण क्षेत्रमा इतिहासभरि भएको प्रवासको क्रमले गर्दा पनि यसो भएको हुन सक्छ।[१५]
नाम
प्राचीन कोङ्कणीका वक्ताहरूले कोङ्कणीलाई सामान्य रूपमा "प्राकृत" नै भन्ने सम्भावना छ।[१६] १३औँ शताब्दी भन्दा पहिलेका कुनै पनि साहित्यिक कृतिमा "कोङ्कणी" शब्दको प्रयोग गरिएको पाइँदैन। मराठी कवि सन्त नामदेवद्वारा तेह्रौँ शताब्दीमा लेखिएको "अभङ्ग २६३" मा प्रथम पटक "कोङ्कणी" शब्दको उल्लेख गरिएको छ।[१७] कोङ्कणीलाई "क्यानरिम", "कोङ्कणिम्", "गोमान्तकी", "ब्राह्मण" तथा "गोवानी" जस्ता नामले पनि चिनाउने गरिन्छ। शिक्षित मराठी वक्ताहरूले कोङ्कणीलाई "गोमान्ताकी" (मराठी लेखनभेद: गोमांतकी) भन्ने गर्छन्।
कोङ्कणीलाई पोर्तगाली उपनिवेशवादको बेला "लिङ्ग्वा क्यानरिम" (रोमन लिपि: Lingua Canarim) भनिन्थ्यो।[१८] क्याथोलिक मिसनरीहरूले कोङ्कणीलाई "लिङ्ग्वा ब्राह्मण" (रोमन लिपि: Lingua Brahmana) भन्थे।[१८] पछि "लिङ्ग्वा क्यानरिम" लाई पोर्तगाली उपनिवेशीहरूले "लिङ्ग्वा कोङ्कणिम्" (रोमन लिपि: Lingua Concanim) भन्न थाले।[१८] सोह्रौँ शताब्दीमा युरोपेली क्रिस्तान थोमस स्टिवन्सले आरते दा लिङ्ग्वा क्यानरिम (रोमन लिपि: Arte da lingoa Canarim) नामक पुस्तकमा "लिङ्ग्वा क्यानरिम" वा "क्यानरिम" शब्दको प्रयोग गरेको कारणमा पनि विवाद परेको छ। "क्यानरिम" शब्द फारसी शब्द "किनार" बाट उत्पत्ति भएको हुन सक्ने मान्यता छ। यसका साथै "कन्नड" शब्दको पोर्तगाली लिप्यन्तरअनुसार "क्यानरिम" शब्द बनेको हुन सक्ने दोस्रो सिद्धान्त अघि सारिएको छ।[१८] त्यसबेलाका सबै युरोपेली लेखकहरूले भने आम जनताद्वारा बोलिने "क्यानरिम" र शिक्षित वर्गद्वारा बोलिने "लिङ्ग्वा क्यानरिम ब्राह्मण" अर्थात् "ब्राह्मण दे गोवा" भनी गोवामा बोलिने दुइटा विभिन्न भाषाका अभिलेख राखेका छन्। युरोपेली उपनिवेशी तथा अन्य जातका जनताले भने धार्मिक ग्रन्थ लेख्नका लागि "लिङ्ग्वा क्यानरिम ब्राह्मण" अर्थात् "ब्राह्मण दे गोवा" को प्रयोगमा जोड दिन्थे।[१८]
कोङ्कण शब्द र फलस्वरूप कोङ्कणी शब्दको उत्पत्तिसम्बन्धी दुइटा भिन्न दृष्टिकोण छन्:
- कोङ्कणी भाषाको उत्पत्ति भएको ठाउँमा पहिलेदेखि बसोबास रहेको कोकण समाजको नामबाट "कोङ्कण" शब्दको उत्पत्ति भएको मानिन्छ।[१९]
- स्कन्द पुराणको सह्याद्री खण्डमा लेखिएअनुसार परशुरामले समुद्रमा वाण हानी वरुणलाई वाण पुगेको ठाउँसम्मको पानी पछाडि सार्ने आदेश दिएका थिए। पानी पछि सरी उत्पन्न भएको नयाँ ठाउँलाई संस्कृतका "कोण" र "कण" शब्दको समासबाट "कोङ्कण" भन्न थालियो।
प्राचीनकालमा कोङ्कणी लिपि
गोयकानडी लिपिमा लिखित गोवा राज्यको अरबालेममा भेट्टाइएको कोङ्कणी भाषाको पहिलो अभिलेख अनुमानतः दोस्रो शताब्दीमा गुप्त कालको बेलाको हो। त्यसमा लेखिएको छ, "शाचिपुराचे शिरसि" (अनुवाद: शाचिपुरको शिखरमा)। गोमटेश्वर बाहुबली नामक प्रकाण्ड जैन पाषाणस्तम्भको पदमा लेखिएको छ, "श्रीचामुण्डाराजें कर वियालें, श्रीगङ्गाराय सुत्ताले कर वियालें" (अनुवाद: श्री चामुण्डरायले गराए, पछि श्री गङ्गारायले पुनः गराए)।[२०] श्रवणबेलगोलास्थित गोमटेश्वरको पदमा दुई अभिलेख छन् — दाहिनेपट्टि र देब्रेपट्टि। दाहिनेपट्टिको अभिलेख प्राचीन कन्नड लिपिमा लेखिएको छ भने देब्रेपट्टिको अभिलेख देवनागरीमा लेखिएको छ।
वर्तमानकालमा कोङ्कणी लिपि
देवनागरी लिपिमा कोङ्कणी लेख्नका लागि पालना गर्नुपर्ने नियमहरूलाई गोवा कोङ्कणी अकादमीद्वारा प्रकाशित कोंकणी शुद्धलेखनाचे नेम (अनुवाद: कोङ्कणी शुद्धलेखन हेतु नियमावली) नामक पुस्तकमा व्याख्या गरिएको छ। यसका साथै रोमन लिपिमा कोङ्कणी लेख्नका लागि पालना गर्नुपर्ने नियमहरूलाई कोङ्कणी गायक उल्लास बुयांवद्वारा दालगादो कोङ्कणी अकादमीमार्फत प्रकाशित प्रताप नाइकद्वारा लिखित थोमस स्टिवन्स कोङ्कणी केन्द्र रोमी लिपि (देवनागरी कोङ्कणी: तॉमास स्टीवन्स कोंकणी केंद्र रोमी लिपी) र रोमी लिपिएन्त कोङ्कणी कोर्स (देवनागरी कोङ्कणी:रोमी लिपिएंत कोंकणी कोर्स, रोमी कोङ्कणी: Romi Lipient Konknni Kors) व्याख्या गरिएको छ।[२१]
कोङ्कणी स्वरवर्ण
आइएएसटी | देवनागरी | रोमन | कन्नड | मलयालम | अरबी | आइपिए |
---|---|---|---|---|---|---|
a | अ | o | ಅ | അ | ا،ع | /ɐ/ |
ā | आ | a | ಆ | ആ | آ | /ɑː/ |
i | इ | i | ಇ | ഇ | – | /i/ |
ī | ई | i | ಈ | ഈ | ي | /iː/ |
u | उ | u | ಉ | ഉ | – | /u/ |
ū | ऊ | u | ಊ | ഊ | و | /uː/ |
ṛ | ऋ | ru | ಋ | ഋ | – | /ɹ̩/ |
ṝ | ॠ | – | ೠ | ൠ | – | /ɹ̩ː/ |
ṝ | ॠ | – | ೠ | ൠ | – | /ɹ̩ː/ |
ḷ | ऌ | – | ಌ | ഌ | – | /l̩/ |
ḹ | ॡ | – | ೡ | ൡ | – | /l̩ː/ |
e | ऍ | e | – | – | – | /æ/ |
e | ऎ | ê वा e | ಎ | എ | اے | /e/ |
ē | ए | ê वा e | ಏ | ഏ | اے | /eː/ |
o | ऒ | ô वा o | ಒ | ഒ | او | /o/ |
ō | ओ | ô वा o | ಓ | ഓ | او | /oː/ |
ô | ऑ | o | – | – | – | /ɔ/ |
ai | ऐ | oi | ಐ | ഐ | اے | /ʌj/ |
au | औ | ov | ಔ | ഔ | او | /ʌʋ/ |
टीका-टिप्पणी
- कोङ्कणीमा "ॠ", "ऌ" र "ॡ" केवल तत्सम शब्दमा प्रयोग गरिन्छ। उदाहरणका लागि, संस्कृतबाट आएको "कॣप्त" शब्दमा "ॡ" स्वरवर्णको प्रयोग गरिन्छ।
- "अ", "ओ" र "ऒ" को रोमन लिप्यन्तरका लागि "o" अक्षरको प्रयोग गरिन्छ। पोर्तगाली राजमा कोङ्कणीलाई रोमन लिपि तथा वर्णमाला पद्धतिसँग मेल खाने किसिमले परिवर्तन गरिएको थियो। फलस्वरूप, पोर्तगाली वर्णविन्यासले मौलिक कोङ्कणी स्वरलाई केही हदसम्म विकृत गरेको छ।[२२] उदाहरणका लागि,
- "करता" शब्दलाई रोमी कोङ्कणीमा "korta" वा "corta" लेखिन्छ। कहिलेकाहीँ अन्तिम स्वरको अनुनासिकीकरणले गर्दा "cortam" लेख्ने चलन पनि चलेको छ।
- "दोन" लाई "don" लेखिन्छ।
- "पॊरनॆं" लाई "pornem" लेखिन्छ।
- "आ" र "ऍ" लाई क्रमशः "a" र "ê" लेखिन्छ।
- "हांव" लाई "hanv" वा "anv" लेखिन्छ।
- "कॅनरा" लाई "Kanara" वा "Canara" लेखिन्छ।
- विशेष स्थितिहरूमा नासिक्य स्वरका लागि रोमी कोङ्कणीमा स्वरवर्ण अक्षरको माथि टिल्ड (~) चिह्नको प्रयोग गरिन्छ। उदाहरणका लागि, "पांय" लाई रोमी कोङ्कणीमा "pãy" लेखिन्छ।[२१]
- स्पष्ट विभेदनका लागि भने बन्द स्वर (ए र ओ) का लागि सर्कमफ्लेक्स चिह्न (ê र ô) को प्रयोग गरिन्छ भने खुला स्वर (ऍ र ऑ) का लागि कुनै विशिष्ट चिह्न (e र o) को प्रयोग गरिँदैन।[२१] यद्यपि, पाठकलाई स्वरवर्णको सही उच्चारण आउने अपेक्षा गरिएको छ भने सर्कमफ्लेक्सको प्रयोग गर्नु आवश्यक छैन।
कोङ्कणी व्यञ्जनवर्ण
स्पर्शी | अनुनासिक | अन्तःस्थ | सङ्घर्षी | असङ्घर्षी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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घोष → | अघोष | सघोष | अघोष | सघोष | अघोष | सघोष | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्राण → | अल्पप्राण | महाप्राण | अल्पप्राण | महाप्राण | अल्पप्राण | महाप्राण | अल्पप्राण | महाप्राण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कण्ठ्य | ka | क | Ka | ಕ | ക | ک | /k/ | kha | ख | Kha | ಖ | ഖ | كھ | /kʰ/ | ga | ग | Ga | ಗ | ഗ | گ | /g/ | gha | घ | Gha | ಘ | ഘ | گھ | /ɡʱ/ | ṅa | ङ | Nga | ಞ | ങ | – | /ŋ/ | ha | ह | Ha | ಹ | ഹ | ہ،ح | /ɦ/ | |||||||||||||||||||||||||||||||||||
तालव्य | ca | च | Cha | ಚ | ച | چ | /c/ | cha | छ | Chha | ಛ | ഛ | چھ | /cʰ/ | ja | ज | Ja | ಜ | ജ | ج | /ɟ,/ | jha | झ | Jha | ಝ | ഝ | جھ | /ɟʱ/ | ña | ञ | Nja | ಙ | ഞ | – | /ɲ/ | ya | य | Ya | ಯ | യ | ي | /j/ | śa | श | Sha, Xa | ಶ | ശ | ش | /ɕ, ʃ/ | ||||||||||||||||||||||||||||
मूर्धन्य | ṭa | ट | Tta | ಟ | ട | ٹ | /ʈ/ | ṭha | ठ | Ttha | ಠ | ഠ | ٹھ | /ʈʰ/ | ḍa | ड | Dda | ಡ | ഡ | ڈ | /ɖ/ | ḍha | झ | Ddha | ಢ | ഢ | ڈھ | /ɖʱ/ | ṇa | ण | Nna | ಣ | ണ | – | /ɳ/ | ra | र | Ra | ರ | ര | ر | /r/ | ḷa | ळ | Lla | ಳ | ള | – | /ɭ̆/ | ṣa | ष | Xa | ಷ | ഷ | /ʂ/ | ||||||||||||||||||||||
दन्त्य | ta | त | Ta | ತ | ത | ط،ت | /t̪/ | tha | थ | Tha | ಥ | ഥ | تھ | /t̪ʰ/ | da | द | Da | ದ | ദ | د | /d̪/ | dha | ध | Dha | ಧ | ധ | دھ | /d̪ʱ/ | na | न | Na | ನ | ന | ن | /n/ | la | ल | La | ಲ | ല | ل | /l/ | sa | स | Sa | ಸ | സ | ص،س | /s/ | ||||||||||||||||||||||||||||
ओष्ठ्य | pa | प | Pa | ಪ | പ | پ | /p/ | pha | फ | Pha | ಫ | ഫ | پھ | /pʰ/ | ba | ब | Ba | ಬ | ബ | ب | /b/ | bha | भ | Bha | ಭ | ഭ | بھ | /bʱ/ | ma | म | Ma | ಮ | മ | م | /m/ | va | व | Va | ವ | വ | و | /ʋ/ | |||||||||||||||||||||||||||||||||||
वर्त्स्य | ca | च़ | Cha | – | – | – | /t͡ʃ/ | za | ज़ | Za | – | – | ز،ظ،ذ | /d͡ʒ/ | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
दन्तोष्ठ्य | fa | फ़ | Fa | ಫ಼ | – | ف | /f/ |
टीका-टिप्पणी
- एउटै वर्णलाई चिनाउन प्रयोग गरिएपनि कन्नड लिपिको "ಚ" र मलयालम लिपिको "ച" ले भिन्न ध्वनिको प्रतिनिधित्व गर्छन्।
- त्यसैगरी, एउटै वर्णलाई चिनाउन प्रयोग गरिएपनि कन्नड लिपिको "ಜ" र मलयालम लिपिको "ജ" ले भिन्न ध्वनिको प्रतिनिधित्व गर्छन्।
- रोमन लिपिमा दन्त्य व्यञ्जनलाई दोहोर्याएर सो वर्णलाई मूर्धन्य बनाउन सकिन्छ। उदाहरणका लागि, "ta" ले "त" को प्रतिनिधित्व गर्छ भने "tta" ले "ट" को प्रतिनिधित्व गर्छ।
- रोमी कोङ्कणीमा "श" र "ष" दुवैलाई "sha" वा "xa" लेखिन्छ र "श" उच्चारण गरिन्छ।
- रोमी कोङ्कणीमा "फ" र "फ़" दुवैलाई "fa" लेखिन्छ र दुवैलाई "फ़" उच्चारण गरिन्छ।
- नवयती कोङ्कणीमा "ن" व्यञ्जनवर्ण त हो नै तर यसले स्थितिअनुसार अनुस्वारको पनि काम गर्छ। उदाहरणका लागि, नवयती कोङ्कणीमा "रङ" लाई "رنگ " र "अण्डो" लाई "انڈو" लेखिन्छ।
- नवयती कोङ्कणीमा फारसी तथा अरबी आगन्तुक शब्दका लागि "ع", "غ" र "ح" वर्णहरूको प्रयोग गरिन्छ।
- रोमी कोङ्कणीमा उद्धरण चिह्न (') लगाई दुई अक्षरलाई जोडिएको छ भने उक्त अक्षर अनुस्वार नभई स्वतन्त्र अक्षर हो भन्ने बुझ्नुपर्छ।[२१]
कोङ्कणीमा अनुनासिक वर्ण तथा अनुनासिकीकरण
कोङ्कणीमा नाकेबोलीमा "ङ्", "ञ्", "ण्", "न्" र "म्" को ध्वनि उच्चारण गर्दा अक्षरका थाप्लामा अनुस्वार (ं) दिइन्छ। अनुस्वारको सही उच्चारण त्यसको पछाडि आउने व्यञ्जनवर्णमा भर पर्छ।[२३] स्वरवर्णको थाप्लामा अनुस्वार दिइएको छ भने सो स्वरको अनुनासिकीकरण भएको बुझ्नुपर्छ। उदाहरणका लागि, "बांयी" (अनुवाद: इनार) मा "आ" स्वरलाई नाके उच्चारण गरिन्छ। "मांस" जस्ता तद्भव शब्दहरूमा कहिलेकाहीँ अनुनासिक वर्णको लोप भई सामान्य तरिकाले नाके स्वरबिना नै उच्चारण गरिन्छ।
कोङ्कणीमा अवग्रह (ऽ)
बोल्ने क्रममा मनमा उब्जने आश्चर्य, खुसी, दुःख, घृणा, प्रशंसा आदि भावलाई लम्ब्याउनका लागि बाहेक अवग्रहको प्रयोग गर्ने थोरै हिन्द-आर्य भाषाहरूमध्ये कोङ्कणी पनि एक हो। मानक कोङ्कणीमा अवग्रहको प्रयोग नगरिएपनि सामान्यतया कन्नड सरस्वत जनसमूहले हिन्द-आर्य भाषाहरूमा श्वा विलोपनका नियमको अनुकूल अपूर्ण कालका क्रियापदहरूमा अवग्रहको प्रयोग गर्ने गर्छन्।[२४]
वाक्य | देवनागरी कोङ्कणी |
---|---|
उसले गर्दै थियो | तॊ करतलॊऽशिलॊ |
उसले गर्दैछ | तॊ करतऽसा |
उसले गर्दै हुनेछ | तॊ करतलॊऽसतलॊ |
शब्दको अन्त्यमा प्रयोग गर्दा अवग्रहले श्वा विलोपन नहुने अवस्थालाई सङ्केत गर्छ।
कोङ्कणीमा श्वा विलोपन
अन्य हिन्द-आर्य भाषाहरूमा झैँ कोङ्कणी भाषाको उच्चारणमा श्वा विलोपनले महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह गर्छ।[२५][२६] शुद्ध उच्चारण तथा उचित बोधका लागि श्वा विलोपन अत्यावश्यक हुन्छ। यद्यपि, श्वा विलोपनका लागि उचित नियमावली नभएका हुनाले दोस्रो भाषाको रूपमा कोङ्कणी सिक्ने धेरै मानिसहरूले श्वाको प्रयोग कहिले गर्ने र कहिले नगर्ने भनेर थाहा पाउन सक्दैनन्।[२७]
संस्कृत उच्चारणको विपरीत शब्दको अन्तिम व्यञ्जनवर्ण वा विशेष स्थितिमा शब्दको बिचमा रहेको श्वा (ə) लाई अनिवार्य रूपमा उच्चारण गरिँदैन। कोङ्कणी उच्चारणमा हुने यस घटनालाई "श्वा विलोपन नियम" भनिन्छ। तसर्थ, स्वरवर्णको पछाडि रहेको व्यञ्जनवर्णलाई स्वरवर्णको अगाडि रहेको व्यञ्जनवर्ण सँगै आए भने पहिलो व्यञ्जनवर्णमा रहेको श्वालाई अनिवार्य रूपमा हटाइन्छ।[२८] यद्यपि, यो सामान्यकरण अपूर्ण छ र यसकारण उच्चारणमा त्रुटि हुने अवसर पनि धेरै हुन्छन्। अर्थात्, यो सामान्यकरणअनुसार कहिलेकाहीँ आवश्यक श्वाको पनि विलोपन गरिन्छ। श्वा विलोपनको ढाँचालाई राम्ररी बुझ्नु विशेषतः कोङ्कणी भाषामा वाक् संश्लेषणका लागि आवश्यक पर्छ।[२८] उपयुक्त श्वा विलोपन र श्वा परिवर्धनको अभावमा संश्लेषित वाक् कृत्रिम सुन्छन्।
श्वा विलोपनका कारण कोङ्कणीका धेरै शब्दहरू मूल संस्कृत उच्चारणभन्दा फरक हुन्छन्। उदाहरणका लागि शुद्ध कोङ्कणी उच्चारणमा "आपयता" लाई "आपय्ता", "करता" लाई "कर्ता", "मिरसांग" लाई "मिर्साङ्" र "वेद" लाई "वेद्" उच्चारण गरिन्छ।
स्पष्टिकरणका लागि, "ळब" वर्णानुक्रमलाई "मळब" (अनुवाद: आकास) मा "मळब्" उच्चारण गरिन्छ भने "मळबार" (अनुवाद: आकासमा) मा "मळ्बार्" उच्चारण गरिन्छ। मातृभाषाको रूपमा कोङ्कणी बोल्ने व्यक्तिहरूले त शुद्ध उच्चारण गर्न सक्छन् तर वाक् संश्लेषण अनुप्रयोग तथा दोस्रो भाषाको रूपमा कोङ्कणी बोल्ने व्यक्तिहरूले श्वा विलोपनमा ध्यान नदिँदा शब्द वा वाक्यांशको उद्दिष्ट अर्थ बुझ्न गाह्रो हुन सक्छ।
स्वरवर्णको अनुनासिकीकरण
शब्दको अन्तिममा अनुस्वारको प्रयोग गरिएको छ भने सामान्यतया त्यो शब्दको अन्तिम स्वरलाई नाके तरिकाले उच्चारण गरिन्छ। उदाहरणका लागि "जेंवण" लाई श्वा विलोपनले गर्दा कहिलेकाहीँ "जेंवों" उच्चारण गरिन्छ।
श्वा विलोपनको नियमावली
- सामान्यतया शब्दको अन्तिम "अ" लाई उच्चारण गरिँदैन। उदाहरणका लागि, "देव" लाई "देव्" उच्चारण गरिन्छ।
- दुईभन्दा बढी अक्षर रहेको र अन्तिममा "अ" बाहेक अन्य कुनै स्वरवर्णको प्रयोग गरिएको शब्दमा बिचको श्वाको उच्चारण गरिँदैन। उदाहरणका लागि "चॆरकॊ" लाई "चेर्को" उच्चारण गरिन्छ।
- दुईभन्दा बढी अक्षर रहेको र अन्तिममा "अ" रहेको शब्दमा अन्तिम श्वाका साथै बिचको श्वाको पनि विलोपन हुन्छ। उदाहरणका लागि, "उपकार" लाई "उप्कार्" उच्चारण गरिन्छ।
- क्रियाको धातुको विकार भएपनि धातुको अन्त्यमा जहिले पनि व्यञ्जनवर्णको प्रयोग गरिन्छ र सो वर्णमा श्वा विलोपन हुन्छ। उदाहरणका लागि, "आपय" धातुमा "ता" प्रत्यय जोडी बनेको "आपयता" लाई "आपय्ता" उच्चारण गरिन्छ।
टीका-टिप्पणी
सन्दर्भ सामग्रीहरू
बाह्य कडी
- कोङ्कणी भाषा वेबसाइट
- कोङ्कणी न्युज, कोङ्कणी समाचार वेबसाइट
- कोङ्कणी भाषा वेबसाइट वेब्याक मेसिन अभिलेखिकरण २०१४-११-१५ मिति
- कोङ्कणी साहित्य
- कोङ्कणी-अङ्ग्रेजी द्विभाषी वेबसाइट
- अनलाइन गोवा कोङ्कणी शिक्षा
- अनलाइन कोङ्कणी समाचारको पठन वेब्याक मेसिन अभिलेखिकरण २०१७-०६-२३ मिति
- अनलाइन मङ्गलोर कोङ्कणी शिक्षा
- अनलाइन मङ्गलोर क्याथोलिक कोङ्कणी शिक्षा
- गोवा कोङ्कणी अकादमीद्वारा प्रकाशित कोङ्कणी भाषा-साहित्यको इतिहास
- अनलाइन मङ्गलोर कोङ्कणी शब्दकोश
- विश्व कोङ्कणी केन्द्रको आधिकारिक वेबसाइट
- कोङ्कणी टङ्कण वेबसाइट